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साहित्यकारों को जरूरत है जनता की आवाज बनने की

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 मुनेश त्यागी 

    आज चौधरी चरण सिंह के उर्दू विभाग में जनवादी लेखक संघ मेरठ, उर्दू विभाग और वी कमिट संस्था ने संयुक्त रूप से प्रेमचंद जयंती का प्रोग्राम आयोजित किया। गोष्टी में दिल्ली से आए प्रोफेसर इर्तमा करीम ने कहा कि आज लोगों को साहित्य से दूर कर दिया गया है। यह प्रेमचंद की दुनिया का भारत नहीं है। समस्याओं के सिर्फ रूप बदले हैं, समस्याएं वही हैं। सरकार ने साहित्यकारों को डरा दिया है और हमारे लिखने पढ़ने की विचार की आजादी छीन ली गई है। आज अनेक प्रेमचंदों की जरूरत है। आज के कई साहित्यकार व्यापारी हो गए हैं। इस बुरे होते समाज को संभालने की जरूरत है।

     मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए जनवादी लेखक संघ के जिला सचिव मुनेश त्यागी ने बताया कि प्रेमचंद ने गुलामी, सामंती शोषण, गैर बराबरी सांप्रदायिकता, जातिवाद, बेमेल विवाह, विधवा विवाह, कृषि समस्या, किसान मजदूर संकट पर कलम चलाई और उनके निदान के रास्ते बताएं। वे कलम का सिपाही बनें, उन्होंने लुटेरी संस्कृति के खिलाफ लिखा और मजदूर किसान एकता की बात की और उन्होंने कहा कि अलग-अलग नहीं मिलजुल कर संघर्ष करने की जरूरत है। 

    उन्होंने औरतों की समस्याओं को उठाया उन्हें विद्रोहिनी ने बनाया, उन्हें दब्बू नहीं बल्कि लड़ना और संघर्ष करना सिखाया, उन्होंने किसानों और मजदूरों को वाणी दी और उन्हें अपनी रचनाओं में हीरो बनाया, लड़ना सिखाया अन्याय और जुल्म के खिलाफ आवाज उठानी सिखाई। आज हमें प्रेमचंद की इस विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है, आज समाज में व्याप्त जुल्मों सितम के खिलाफ लिखने, पढ़ने, आवाज उठाने और लड़ने की जरूरत है। आज के साहित्यकारों को मानव विरोधी प्रवृत्तियों से लड़ने की प्रेमचंद की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है।

      उन्होंने कहा कि आज अगर प्रेमचंद होते तो वे सांप्रदायिकता पर करारी चोट करते, जातिवाद का  विरोध करते, सरकारी और प्राइवेट भ्रष्टाचार की धज्जियां उड़ाते, समाज में पहले झूठ फरेब, बेईमानी और मक्कारियों की पोल खोलते, महिला विरोधी भ्रूण हत्या, दहेज, औरत विरोधी मानसिकता नजर और नजरिया पर चोट करते और साहित्य को राजनीति के आगे चलने वाली मशाल बताते, आज के भटके हुए जनमानस को राह दिखाते, आज की गला काट प्रतियोगिता पर चोट करते। 

     आज अगर प्रेमचंद होते तो हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द की कहानी लिखते, धर्मांता अंधविश्वास और कर्मकांडों पर चोट करते, एक बेहतर और मानवीय समाज बनाने की बात करते, किसान मजदूर जन विरोधी राज्य के कारनामों की पोल खोलते। आज हमें प्रेम प्रेमचंद की तरह पूरे इंकलाब की बात करने की जरूरत है। प्रेमचंद का साहित्य पढ़कर ही एक बेहतर दुनिया, बेहतर समाज, बेहतर परिवार और बेहतर इंसान का निर्माण किया जा सकता है।

    उन्होंने प्रेमचंद के कुछ उध्दरण भी पेश किये जो निम्न प्रकार है,,,,

,, हिंदू मुस्लिम एकता ही असली स्वराज है 

,,,कौमी एकता और मेलजोल से ही देश की नैय्या पार होगी 

,,,हिंदू मुस्लिम मैत्री को अपना कर्म बना लेने की जरूरत है 

,,,,धर्म की एकता में ही हमारे उध्दार की ताकत है 

,,,,भारत का जातिगत द्वेष हमारी राजनीतिक पराधीनता का कारण है, स्वराज जी इसका खात्मा कर सकता है 

,,,भारत में हिंदू और मुसलमान दोनों ही एक नाव पर सवार हैं, डूबेंगे तो दोनों ही डूबेंगे और पार लगेंगे तो दोनों ही साथ-साथ पार लगेंगे 

,,,,भारतवासी भारतीय बनाकर संयुक्त उन्नति की ओर अग्रसर हों 

,,,,कुछ का भला नहीं, सबका भला करने वाला राष्ट्र चाहिए 

,,,,हमारी जीत इसी में है कि हम बांटो और राज करो की नीतियों को सफल न होने दें 

,,,सांप्रदायिकता का इलाज सांप्रदायिक मनोवृति का शमन करने से ही हो सकता है 

,,,हमें सांप्रदायिकता से जातिवाद, अन्याय और शोषण से संग्राम करना है 

,,,, इंकलाब की नहीं पूरे इंकलाब की बात करो।

,,,,हमारे शास्त्र होंगे,,, धैर्य विश्वास, सहिष्णुता और संघर्ष

      डॉक्टर विद्यासागर ने कहा की प्रेमचंद आज भी शायद की धुरी बने हुए हैं। वे समय के साथ चले थे।हमें भी आज इस जन विरोधी समाज के खिलाफ लिखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उनकी दृष्टि और चिंतन बड़ा था और प्रेमचंद द्वारा उठाई गई समस्याएं आज भी मौजूद हैं।

    प्रोफेसर प्रज्ञा पाठक ने कहा कि आज प्रेमचंद को लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है। प्रेमचंद ने गरीबों का प्रशस्तिगान किया था। हमें आज भी शोषण और पीड़ित जनता का प्रशस्तिगान करने की जरूरत है। प्रेमचंद का साहित्य आम आदमी के सुख-दुख को प्रगति प्रकट करता है। वह अन्याय और अनीति का विरोध करने वाले साहित्यकार हैं। आज हमें भी ऐसा ही साहित्य लिखने की जरूरत है।

      प्रोफेसर असलम जमशेदपुर ने कहा की प्रेमचंद ने इंकलाब की बात की थी। आज के साहित्यकार इंकलाब की बात क्यों नहीं कर रहे हैं? उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि आज के साहित्यकार मौजूद समस्याओं पर नहीं लिख रहे हैं। गोष्ठी की अध्यक्षता प्रोफेसर इर्तजा करीम ने की और संचालन डॉक्टर अलका वशिष्ठ ने किया।

    इस मौके पर आसिफ,  शादाब, आफाक खान, कौशर नदीम, रफत जमाली, मरियम, शाजिया, उजमा, फरहत, नुज्जत, हारून, आबिद सैफी, हरीश, वसीम, तंजीर अंसार,  इरशाद से ईद अहमद, शमशाद, शौर्य जैन, धर्मपाल मित्रा, मंगल सिंह और डोरी लाल भास्कर आदि मौजूद थे।

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