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येडियुरप्पा को बेटे के कारण गंवानी पड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी

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नई दिल्ली। कर्नाटक राज्य के बीजेपी नेता पिछले कुछ समय से लगातार ये आरोप लगा रहे थे कि मुख्यमंत्री येडियुरप्पा का बेटा डिफेक्टो सीएम की तरह काम कर रहा है. इसे लेकर राज्य बीजेपी नेताओं ने फरवरी 2020 में एक चार पेज का लेटर जारी किया था, हालांकि इस पर किसी के साइन नहीं थे. लेकिन राज्य में ये चर्चाएं लगातार बढ़ने लगी थीं कि चौथी बार सीएम बने येडियुरप्पा के बेटे वीवाई विजेंद्र उनके प्रॉक्सी बन चुके हैं.

दरअसल येडियुरप्पा हमेशा से परिवारजनों के संदिग्ध व्यावसायिक लेनदेन को लेकर कारण विवादों में रहे हैं. जब 2011 में भी वह पद से हटे थे तब भी संदिग्ध बिजनेस ट्रांजिक्शन एक बड़ी वजह थे.

दक्षिण भारत की जानी-मानी न्यूज मिनट बेवसाइट की रिपोर्ट अनुसार, जुलाई 2019 में जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उनका नाम उनके विवादित रिश्तेदार एनआर संतोष के साथ जुड़ने लगा. जो पिछले कई सालों से उनका विश्वस्त था और अपहरण, दहेज उत्पीड़न और हत्या के प्रयास जैसे आरोपों से घिरा था. हालांकि येडियुरप्पा ने उससे दूरियां बना लीं. जब वो बेंगलुरु (Bangalore) में डॉलर कॉलोनी स्थित अपने निजी मकान से सरकारी आवास में आए तो उनका घर और आफिस धीरे धीरे उनके बेटे विजेंद्र के प्रभाव में आ गया.बहुत से मंत्री भी इसलिए थे क्षुब्ध 
पार्टी में अपने कुछ खास लोगों के अलावा येडियुरप्पा ने खुद को बाकी पार्टी और नेताओं से काट लिया. ये आरोप लगने लगे कि विजेंद्र समानांतर सरकार चलाने लगे हैं. बहुत से मंत्री आरोप लगाने लगे कि विजेंद्र सीधे उनके मंत्रालय के कामकाज में हस्तक्षेप करते हैं और अधिकारियों को निर्देश देते हैं. इस बात को लेकर वो खुद अंधेरे में रहते हैं.

येडियुरप्पा तक पहुंचना मुश्किल कर दिया था
बहुत से विधायकों ने आरोप लगाया कि उनके विधानसभा क्षेत्रों के फंड का इस्तेमाल विजेंद्र अपने तरीके से करते हैं. कई बीजेपी नेताओं का आरोप था कि विजेंद्र ने उनका येडियुरप्पा तक पहुंचना मुश्किल कर दिया है, वो उन्हें उनसे मिलने नहीं देते.

हालांकि चुनौती लेकर खुद का प्रभामंडल भी बनाया
पिछले एक साल राज्य में बीजेपी के सीनियर नेता अगर ऐसे आरोप लगा रहे थे तो येडियुरप्पा की निर्भरता विजेंद्र पर बढ़ती जा रही थी. इस बीच विजेंद्र ने राज्य के बीजेपी के लिए सबसे कमजोर रहे ओल्ड मैसूर क्षेत्र में पार्टी को बेहतर करने का काम अपने हाथ में लिया. वो दिसंबर 2019 में केआर पेते के उपचुनाव के प्रभारी थे. इस चुनाव में बीजेपी की जीत हुई, जिसके बाद वो अपने पिता की छाया से निकलकर खुद अपना प्रभामंडल बनाने लगे.

नवंबर 2020 में विजेंद्र ने सीरा विधानसभा इलाके में कैंप किया, जहां से बीजेपी कभी नहीं जीती थी. इस बार भी यहां के उपचुनाव में बीजेपी की जीत का सेहरा उन्हीं के सिर बंधा. हालांकि राज्य के बीजेपी के सीनियर नेता इससे नाराज हो गए. पार्टी के नेता ईश्वरप्पा ने तो तुरंत मीडिया में कह भी दिया कि ये सभी के मिले जुले प्रयासों से हुआ है.

पिता के प्रतिनिधि के तौर पर लगातार दिल्ली की ट्रिप लगाते थे
पिछले कुछ महीनों में विजेंद्र ने दिल्ली की कई बार ट्रिप लगाई. वो वहां येडियुरप्पा के प्रतिनिधि के तौर पर बीजेपी के सीनियर नेताओं से मिलते थे. उनकी हालिया विजिट 23 जुलाई को हुई. जिसमें उन्होंने हाईकमान को समझाने की कोशिश की कि अगर येडियुरप्पा जाते हैं तो लिंगायत समुदाय पर इसका कितना असर पड़ेगा. हालांकि कर्नाटक के मीडिया में ये रिपोर्ट्स भी आईं कि उन्होंने हाईकमान के सामने ऐसा भी प्रस्ताव रखा कि अगर उनके पिता को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा रहा है तो उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया जाए, जिससे लिंगायत समुदाय खुश हो जाएगा.

इसके बाद विजेंद्र ने ताबड़तोड़ लिंगायत समुदाय के संतों के साथ मीटिंग की. इसी का नतीजा था कि राज्य में करीब 500 लिंगायत संत ये कहने लगे कि राज्य में येडियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाना ठीक नहीं रहेगा.

सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप 
हालांकि इस बीच येडियुरप्पा के बेटे पर सत्ता के दुरुपयोग औऱ भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे थे, जिसने हालात को मुश्किल कर दिया. हालांकि पिता और बेटे के संबंध ऐसा नहीं है कि हमेशा बेहतर ही रहे हैं.

कभी येडियुरप्पा ने उनसे घर छोड़ने को कहा था
वर्ष 2010 में येडियुरप्पा ने विजेंद्र और अपनी बेटी बीएस उमादेवी से घर छोड़ देने के लिए कहा था. तब येडियुरप्पा ने कहा था कि उन्होंने ऐसा कदम इसलिए उठाया ताकि वो घिरे हुए गलत और स्वार्थी लोगों से खुद को दूर कर सकें. तब उन्होंने कहा था कि अगर कोई रिश्तेदार उनके नाम का इस्तेमाल करता है तो तुरंत उन्हें बताया जाए. हालांकि लोगों का मानना है कि ये इमेज सुधारने के लिए येडियुरप्पा का सियासी कदम भर था.

दरअसल येडियुरप्पा के दो बेटे पहले भी प्रेरणा एजुकेशनल एंड सोशल ट्रस्ट के जरिए संदिग्ध लेन देन और भ्रष्टाचार में फंस चुके हैं. हालांकि पिछली बार जब येडियुरप्पा सीएम थे तो परिवार का दखल कामकाज में नहीं था लेकिन इस बार विजेंद्र को सीधे सीएम आफिस में एंट्री मिलती थी.

45 साल के कानून ग्रेजुएट हैं
बीवाई विजेंद्र 45 साल के हैं. कानून की पढ़ाई की है. उनके बारे में कहा जाता है कि वो चुनौतियां लेने से कभी पीछे नहीं रहते. पिता की तरह ही डेयरिंग और आक्रामक हैं. उनका राजनीतिक करियर वर्ष 2009 में बेंगलुरु यूनिट में बीजेपी युवा मोर्चा का सचिव बनने के साथ शुरू हुआ था.

तेज सियासी दिमाग और आक्रमकता भी
ये भी कहा जाता है कि उनके पास तेज सियासी दिमाग है. वर्ष 2019 में जेडीएस और कांग्रेस सरकार में टूटफूट कराने और 13 विधायकों को बीजेपी की ओर लाने में उनकी भूमिका पर्दे के पीछे अच्छी खासी थी. उसमें उनका नाम भी आया. हालांकि उनका आगे बढ़ना लिंगायत समुदाय के भी कई नेताओं को भी रास नहीं आया.

फिलहाल कर्नाटक बीजेपी के उपाध्यक्ष
विजेंद्र पिछले साल प्रदेश में बीजेपी के महासचिव बनना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने बहुत कोशिश भी की, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. फिलहाल उन्हें राज्य के 10 उपाध्यक्षों में जरूर रखा गया.

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