प्रभुनाथ शुक्ल
तुम शरद की धवल चाँदनी
मैं तेरा शीतल चंचल चंदा हूँ
हरसिंगार की तुम मादकता
मैं तेरे जुड़े का सुंदर बेला हूँ
तुम मेरे जीवन सरिता की
अधखिली हुईं रजनीगंधा
मलय गंध सी लगती तुम
जैसी हो तुम मेरी हरिगंधा
मेरे दिल की धड़कन में तुम
पायल सी बजती रहती हो
मेरे सपनों और उम्मीदों में
तुम वंशी जैसी बजती हो
तुम मेरे हर पथ और पग में
छाया बनकर कर चलती हो
पुरवाई की सिहरन सी तुम
मेरी अनुभूति में बिखरी हो
मेरे जीवन मधुमास की तुम
मदहोश भरी सी कविता हो
मयखाने के प्रेमी होठों की
चाहत की मधुशाला तुम
तुम मेरी अतृप्त मृगतृष्णा
मैं तेरे दिल का हीर प्रिया
जीवन के अद्भुत संगम का
तुम गंगा मैं तेरी धार प्रिया