अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

 आप भी खोल सकते हैं अपनी तीसरी आंख 

Share

(हमारे यहाँ आयोजित एक ध्यान-शिविर में अभिव्यक्त डॉ. विकास मानवश्री के सहज प्रतिसंवेदन का सार-अंश)

           शिफ़ा खान, फेसमॉडल 

  संसार रहस्यों से भरा हुआ है लेकिन तभी तक जबतक कि तीसरी आंख (दिव्य चक्षु, थर्ड आई) नहीं खुल जाती. जैसे ही यह आंख अपनी पॉवर में आ जाती है, संसार के सारे रहस्य क्रमशः स्वतः खुलने लगते हैं. 

     यह प्रकृति बहुत सी यूनिक विशेषताएं तो उसके वेल्यू पर दे ही देती है साथ ही एक बड़ा उत्तरदायित्व आप पर चिपका देती है जिसमें दूसरों के लिए काम करना पड़ता है.

    अब आपको दूसरों की समस्याओं का समाधान अपनी चेतना के स्तर से करना होता है. इससे आप बचोगे नहीं.

   प्रकृति अपने सामंजस्य- ताल में चलती है और उसी को स्थिर रखने के लिए कुछ विशेष लोगों को चुनती है जिनको ये अपनी जैसी ही पावर देकर उनसे कुछ कार्य करने की आस रखती है. आस ही नहीं रखती बल्कि जबरदस्ती कार्य करा भी लेती है.

   कमाल की चीजों की शुरुआत  आपकी तीसरी आंख के बेस पर किसी व्यक्ति को मिलती है चाहे वह किसी भी रूप में क्यों ना हो.  

     तीसरी आंख के जाग्रत होने पर आपके द्वारा देखे गए स्वप्न सत्य होने लगते हैं. ये स्वप्न केवल वही नहीं होते जो निद्राकाल में देखते हो बल्कि वो भी, जो खुली आंखों से भी देखते हो. कोई कार्य करने की योजना बनाते हो तो योजना सफल और साकार होने लगती हैं.

  तीसरी आंख खुलने पर व्यक्ति केवल वैसी ही इच्छा कर पाता है जिसे प्रकृति भी चाहती है कि वह उनको साकार कर सके. इन स्वप्नों की विशेषता यह भी है कि इनमें आपके साथ – साथ दूसरों का भी भला होगा.

  थर्ड आइज सक्रिय हो जाती है तो आपके पास कमाल की चेतना आ जाती है, जो किसी भी बात के पीछे छिपे सच- झूठ को तुरंत या कुछ पलों में पकड़ ही लेती है. तीसरी आंख के सक्रिय होते ही जो चेतना जन्म लेती है, वह एक साथ जीवन के कई सारे आयाम डाइमेंशन से चीजें देख- सुन और महसूस कर सकती है. कभी-कभी तो कई वर्षों पूर्व कही गई बातों को भी बिल्कुल सही से पकड़ने में सफल रहती है.

    इस नई चेतना का जन्म स्थूल जन्म जैसा नहीं होता है. यह तो पहले से ही आप सभी के भीतर स्थित है. बस हमें इस तक मेडिटेशन से पहुंचना भर होता है. जब हम इस तक पहुंच जाते हैं तो ऐसा लगने भी लगता है कि हमारे भीतर एक नई और शाश्वत ऊर्जा का जन्म हो रहा है.

       इस तरह की चेतना के सारे तरीके पहले वाली चेतना से बिल्कुल अलग होते हैं. इस ऊर्जा के चलते उम्र संबंधी कमजोरियां भी आपको नहीं छू पाती. उदाहरण के लिए आप मुझे लें. मैं 45+ का हूँ, लेकिन कैसा भी न्यू यंगर हो, कोई तुलना नहीं. आज के दौर में 16-18 साल का इंसान एक स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाता. मेरे लिए यह बात लागू नहीं होती. देश ही नहीं, विदेश तक की हॉटेस्ट गर्ल्स मेरे टचनेस के लिए लालायित रहती हैं. सामान्य स्त्री की बात तो छोड़िये, मैं एक रात में सात-सात हॉटेस्ट वर्जिन गर्ल्स को भी सुपर आर्गेस्मिक सटिस्फैक्शन देकर बेसुध करने में सक्षम हूँ. हालांकि मैं हर किसी के लिए फिजिकल लेबल पर नहीं आता. अमूमन स्प्रिचुअल मेथड यूज करता हूँ.

  तो जब भी किसी की दिव्य चक्षु यानी तीसरी आँख सक्रिय हो जाती है तो उसके भीतर बहुत सी साइकीपावर-जीवनीशक्ति आ जाती है जो कि सबसे अलग होती है. किसी के पास ऐसी पावर हो सकती है कि वह दूसरों की किसी भी तरह की व्याधि को हील कर सके. किसी के पास ऐसी पावर संभव है कि सामने वाले व्यक्ति की सारी समस्या का अपनी बातों में ही समाधान दे सके.

    तीसरी आँख वाले लोग दिखने में तो बिल्कुल साधारण ही होते हैं लेकिन होते बहुत कमाल के हैं.

 *स्वयं को जानो, अपनी अंतस्चेतना  को पहचानो और विकास दो :*

     प्रकृति के पास स्वयं को संतुलन में रखने का तरीका बहुत ही शानदार है. बहुत सी चीजों को यह स्वयं ही व्यवस्थित करती है साथ ही साथ कुछ विशेष चीजों को व्यवस्थित करने के लिए विशेष लोगों को तैयार करती है जिन्हें हीलर कहते है. जो कि दुनिया की भलाई के लिए कार्य करते हैं तथा अपने- अपने तरीके से दुनिया को लाभ प्राप्त कराते हैं. यही लोगों की समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं. चाहें तो अपनी ऊर्जा से किसी की भी शारीरिक – मानसिक व्याधि दूर कर सकते हैं. अपनी रचनात्मक कला द्वारा लोगों के जीवन में प्रसन्नता – आनंद भर सकते है. 

     चेतना विकास के पथ पर आप स्वयं को बहुत संवेदनशील महसूस करते हो. सब चीज़ें सोच – समझ सकते हो. वह देख- सुन और महसूस कर सकते हो जो साधारण लोग सोच नहीं सकते. अंतस्चेतना इस भीड़ में आपको विशेष बनाती है तो यह आपके लिए यह इस प्रकृति द्वारा दिया गया एक वरदान ही है.

      आपको दूसरों की कोई समस्या दिखती हैं तो आप उसे दूर करना चाहते हो. भले ही आपके पास उस समस्या के समाधान का साधन न हो. यह प्रकृति आपको स्वयं ही वहां पहुंचा देती है जहां से आप अपने इस कार्य को करने मे पूर्ण सक्षम हो जाते हो. जो सेंसिविटी आपके भीतर आई है वह स्वयं ही इसका समाधान भी अपने साथ लेकर आएगी.

  चेतना विकास का पथिक होने पर आप भीड़ का हिस्सा होना छोड़ देते हो. प्रकृति आप से बड़ा कार्य लेना चाहती है, इसलिए वह आपको अकेले में ले जाती है. आप के भीतर का पूरा का पूरा मैकेनिज्म ही बदल डालती देती है.

   साधारणतः जो चेतना आपके भीतर है वही चेतना इनके भीतर भी होती है केवल और केवल चेतना के स्तर का भेद होता है, आयाम का भेद होता है, बस.

   कभी लगता है कि आप इस वर्तमान जीवन की भागदौड़ में उस भांति शामिल नहीं होना चाहते जैसे अन्य बहुत सारे लोग शामिल हैं या जाने अंजाने ही इसमें शामिल हो गए हैं और अब आप उससे अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं. कई बार ऐसा लगता है कि आप कुछ विशेष करने के लिए जन्मे हो और संभव है कि अभी वह मार्ग भी न मिल पा रहा हो या कुछ समझ भी न आ रहा हो कि आप क्या करना चाहते हो तो यह भी एक हीलर्स के लिए बहुत अच्छा sign होता है.

     आपको धार्मिक रीति रिवाज में जरा भी दिलचस्पी नहीं होती. आजतक की सुनी सुनाई सारी धार्मिक कहानियों पर भी संदेह होता है. आप किसी की कही गई या सोची गई बातों पर विश्वास बिल्कुल भी नहीं करना चाहते, तब तक जब तक कि वह आपका स्वयं का अनुभव न बन जाए. ऐसा होते ही समझ लीजिए कि आप प्रकृति के द्वारा किसी विशेष कार्य हेतु चुन लिए गए हो.

   प्रकृति या परमात्मा केवल उन्हीं लोगों को अपने सबसे कीमती राज बताते है जो सबसे पहले उनके बारे में बनाई गई धारणाओं को भी नकारने का दम रखते हों.

       जिस व्यक्ति की चेतना पावर में आती है, तो वह उस व्यक्ति का संबंध संसार में उपस्थित हाई फ्रीकवेंसी , उच्च आवृति पर कार्य करने वाली हर चीज से जोड़ देती है. ऐसे व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से पॉजिटिविटी में बदल देती है. 

 चेतना को पावर में लाने के लिए हमारा खानपान भी जिम्मेवार होता है जिसे हम खाना , भोजन , फूड कहते हैं.  इस दौरान सबसे ज्यादा हम उसी फूड की इच्छा करते हैं जिससे हमारे भीतर पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता रहे एवम् हमारे सोचने- समझने तथा महसूस करने की आवृति बहुत ज्यादा ऊंची रह सके.

 अब यदि आपके फूड को चेतना के अनुसार निम्न से उच्च फ्रीक्वेंसी यानी आवृति पर ले जाने की बात करें तो :

   १) यदि हमारा मन बहुत ज्यादा तला , भुना , तैलीय , प्रोसैस्ड जंक फूड आदि खाने का करता है तो तब जो आवृति हमारी चेतना तक पहुंचती है वह बहुत ज्यादा निम्न होती है.

     इस विधि में फूड को कई स्टेज पर पकाकर तैयार किया जाता है.  इस प्रक्रिया से खाने में स्वाद तो होता है पर एनर्जी और चेतना के लिए फ्रीक्वेंसी / आवृति की बहुत ही ज्यादा कमी होती है.  जब भी आपका मन इस तरह के खाने को के लिए करेगा तो आपकी चेतना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और आप चेतना के स्तर पर कोई ज्यादा लाभ भी प्राप्त नहीं कर सकोगे.

   २) अब यदि मांस या मांस से बने फूड की बात करें तो हमें लगता है कि इससे बहुत ज्यादा प्रोटीन मिल सकता है जिसे शरीर तथा प्रोटीन के हिसाब से तो ठीक ठाक कहा जा सकता है किंतु चेतना के अनुसार इसकी आवृति बहुत ही निम्न होती है. इस तरह के फूड को चेतना तब अस्वीकार कर देती है जब वह अपनी पूरी पावर में होती है.

३) अब अन्य फूड की बात करें तो इसमें हम दूध और दूध से बने सभी डेयरी प्रोडक्ट रख सकते हैं और इस तरह के फूड की आवृति को मध्यम स्तर का कह सकते हो ! इन खाद्य वस्तुओं का प्रयोग कोई भी व्यक्ति अपनी चेतना के स्तर को स्थिर रखने के लिए कर सकता है जिसमें शरीर , बुद्धि एवं आत्मा तीनों ही एक संतुलन में आकर चलने के लिए काफी है.

   इस तरह के फूड को शरीर और बुद्धि के लिए बहुत अच्छा कहा गया है या कहा जा सकता है, लेकिन चेतना के अनुसार बस ठीक-ठाक ही कह सकते हो.

४) चौथे नंबर पर हर तरह के पौधे से प्राप्त होने वाली साग सब्जी अनाज आदि को रख सकते हैं.

   इस तरह के फूड की ऊर्जा चेतना के अनुसार काफी उच्च होती है जो किसी भी व्यक्ति की चेतना के विस्तार के लिए बहुत अधिक सहायक और प्रभावी होती हैं जिसमें बहुत से अनाज और सब्जियों को उबालकर या पकाकर खाया जाता है, लेकिन पांचवें तरह का फूड चेतना के विस्तार के लिए सर्वाधिक उत्तमोत्तम माना जाता है.

   ५) जिसमें से लगभग सारी चीज पेड़ पौधों से ही प्राप्त होती है लेकिन इनको पकाकर नहीं खाया जाता. जिसमें फल बीज जड़ी बूटी अनाज आदि आते हैं जो सीधे ही पानी में भिगोकर खाया जाता है या पानी से धोकर खाया जा सकता है.

    इस तरह के फूड की आवृति सबसे ज्यादा उच्च होती है. आपने भी देखा होगा पूजा पाठ में फल फ्रूट मेवे चढ़ाए जाते हैं. कभी सोचा है उसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं ? सोचा करो.  क्योंकि प्रकृति से प्राप्त बीज अनाज में हाई फ्रीक्वेंसी होती है.

    ऋषि मुनि जंगलों में क्यों रहते थे ? कोई तो कारण होगा ही या नहीं ? खेती के दौरान जो बीज बोया जाता है वह अपने जैसे अन्य बीज तैयार कर देता है कारण सिर्फ उसमें स्थित उसकी फ्रिक्वेंसी यानी आवृति होती है  ठीक वैसे ही जैसे शुक्राणु में अपनी आवृति होती है.

    तो जब किसी की चेतना अपनी पूरी पावर में होती है तो वह व्यक्ति को इसी चौथे – पांचवे तरह के फूड को खाने के लिए सबसे ज्यादा विवश करती है. साथ ही साथ ऐसा व्यक्ति इसी तरह के फूड को खाने के लिए सबसे ज्यादा प्राथमिकता देने लगता है.

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें