मैसूर। विगत बुधवार को मैसूर जिले के हेग्गदादेवनकोट तालुका के क्यातनहल्ली में एक खेत की जुताई करते समय बलुआ पाषाण की तीर्थंकर प्रतिमा प्राप्त हुई है। कायोत्सर्गासन में यह प्रतिमा लगभग चार फीट ऊँची है। पादपीठ के समानान्तर इसके पार्श्वों में यक्ष-यक्षी शिल्पित हैं। स्कंधों के दोनों पार्श्वों में ऊपर को सुंण्ड किये हुए गज निर्मित हैं, उनके ऊपर एक एक देव या देवी पर्यंकासन में बैठे हैं, सुन्दर छत्रत्रय है। प्रतिमा का दिगम्बरत्व स्पष्ट है, उदर त्रिवली और ग्रीवा त्रिवली बनी हुई है। परिकर में सुन्दर नक्कासी है।
हासन के वीरेन्द्र कुमार बेगरु ने तीन-चार चित्रों के साथ इसकी प्राप्ति की प्रामाणिक जानकारी देते हुए बताया कि इस मूर्ति की मूर्तिकला संबंधी विशेषताओं को देखते हुए यह माना जा सकता है कि यह होयसल और चंगलवार काल की मूर्ति है। यह मूर्ति संभवतः 12वीं शताब्दी के आसपास की है। यह मूर्ति बहुत सुंदर है और इसमें प्राचीन आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठाविधि में बताई गई सभी विशेषताएं मौजूद हैं। मूर्ति का कोई भी हिस्सा क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है। इस मूर्ति को पुनः स्थापित करने की योजना है। अभी इसे गांव में लाकर खुले में स्थापित किया गया है। यहाँ जो ध्वस्त हो गया था, आचार्य प्रभाचनद्र वसदि के निर्माण करने की योजना है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मूर्ति में कोई दोष न होने पर भी यदि उसकी पूजा न की जाए और उसकी उपेक्षा की जाए तो वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगी और समाज की अवनति होगी। अब भले ही उस गांव में जैन गौड़ हों जहां मूर्ति मिली है, लेकिन उनमें बहुत उत्साह है। गाँव के लोगों ने अन्य जैन संस्थाओं व आचार्यवर्यों से ऐसी प्रतिमाओं के जीर्णोद्धार और पुनर्प्रतिष्ठा करवाने में आगे आने की प्रार्थना की है।
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
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