भले ही इस बार के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के माध्यम से केंद्र की एनडीए सरकार ने देश को यह जताने की कोशिश की हो कि वह अपने अतीत को भूलकर एक नए सिरे से देश के युवाओं और बेरोजगारों की समस्याओं पर ध्यान देने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि देश के किसान सरकार के झांसे में आने वाले नहीं हैं। 4 जून के बाद से ही केंद्र सरकार इधर बजट पेश करने की तैयारियों में जुटी हुई थी, उधर किसान नेता बजट सत्र के साथ देश में नए स्तर पर आंदोलन को ले जाने की रणनीति तैयार कर रहे थे।
22 जुलाई के दिन जब संसद का मानसून सत्र आरंभ हुआ, दिल्ली में किसानों का जमावड़ा लगने लगा। बता दें कि इस बार किसानों के इस आंदोलन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के हाथ में है, जिसने Constitution Club में देशभर के 200 से अधिक किसान संगठनों के सम्मेलन का आयोजन कर रखा था। इसी के साथ किसानों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी इंतजार था, जिसमें उन्हें हरियाणा के शंभू बॉर्डर से दिल्ली कूच करने के लिए हरी झंडी पाने की आस थी। किसानों के इस सम्मेलन को कृषि मुद्दों के विशेषज्ञ प्रकाश कामारेड्डी, और देवेंद्र शर्मा ने भी संबोधित किया और देश भर से आये हुए किसानों के सामने उन्होंने एमएसपी और कृषि लागत का पूरा ब्यौरा पेश किया।
लंबी लड़ाई के मूड में हैं किसान
बजट सत्र के बाद भी किसान संगठनों की ओर से एक बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार की गई है। पंजाब के किसानों ने शंभू बॉर्डर पर 6 महीने के खाने और रहने का बन्दोबस्त कर अपने ट्रेक्टर-लारी में सामान जमा कर रखा है। उन्हें अभी भी उम्मीद है कि सर्वोच्च अदालत उनके संवैधानिक अधिकारों पर विचार करेगी। इसके अलावा, 1 अगस्त के दिन पूरे भारत में किसानों के द्वारा मौजूदा सरकार का पुतला दहन किया जाएगा। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश भर में ट्रेक्टर रैली निकालने और नए आपराधिक कानूनों की प्रतियां जलाने का ऐलान किया गया है। इसके अलावा, 31 अगस्त को आंदोलन के 200 दिन पूरे होने के अवसर पर कई कार्यक्रम रखे जाने हैं और सितंबर माह में पिपली और जींद में विरोध प्रदर्शन की रणनीति बनाई गई है। इसके साथ ही किसान शंभू बॉर्डर को भी नहीं छोड़ने के हक में हैं। उनके मुताबिक, यह स्थल अब किसान आंदोलन की पहचान बन चुका है। उन्हें अभी भी भरोसा नहीं है कि हरियाणा और केंद्र सरकार उन्हें दिल्ली के भीतर कदम रखने की इजाजत देने वाले हैं, इसलिए उन्होंने तय किया है कि जब तक किसानों को दिल्ली जाने के लिए रास्ता नहीं दिया जाता है, वे शंभू बॉर्डर पर अपने धरने को जारी रखेंगे।
बता दें कि 13 फरवरी से पंजाब के किसान पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर लामबंद हैं, जहां से उन्हें हरियाणा प्रशासन दिल्ली आने से रोके हुए है। यह काम हरियाणा की खट्टर सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार के इशारे पर किया था, लेकिन आज न खट्टर हरियाणा सरकार की कमान संभाल रहे हैं और न ही दिल्ली में नरेंद्र मोदी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है। लेकिन 5 महीने पहले जिस प्रकार से शम्भू और खनौरी बॉर्डर की किलेबंदी की गई थी, वह आज भी जारी है। यहां तक कि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के द्वारा 10 जुलाई को हरियाणा सरकार को शम्भू बॉर्डर खोलने के आदेश दिए गये थे, जिस पर स्थगन आदेश हासिल करने के लिए हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च नयायालय में अपील दाखिल की थी। कल शीर्ष अदालत ने इस मामले पर विचार करते हुए जो टिप्पणी की है, उससे प्रदर्शनकारी किसान नाखुश हैं, क्योंकि उनको कहीं न कहीं लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनके संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी कर राज्य और केंद्र सरकार को अविश्वास दूर करने की बात कह समय ही मुहैया कराने का काम किया है।
किसान नेताओं का मानना है कि हरियाणा सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में झूठा हलफनामा दायर किया गया है। किसान मजदूर मोर्चा के नेता गुरमीत मंगत के मुताबिक, “हरियाणा सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में झूठा शपथपत्र देकर बताया गया है कि किसानों के द्वारा 500-600 हथियारबंद टैंक प्रदर्शन स्थल पर तैनात किये गये हैं। इसके साथ ही कहा गया है कि अगर किसानों को दिल्ली जाने की इजाजत दे दी जाती है तो कानून और व्यस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। हरियाणा सरकार के हलफनामे की जांच की जानी चाहिए।”
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों और सरकार के साथ बातचीत कर इस गतिरोध का समाधान निकालने के लिए अपनी ओर से स्वतंत्र व्यक्तियों की एक समिति के गठन की भी बात कही है। अदालत ने पंजाब और हरियाणा से उपयुक्त व्यक्तियों के नाम सुझाने के लिए कहा है। केकेएम के संयोजक सरवन सिंह पंधेर ने अपने बयान में कहा है कि अब, देश के लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि किसान राजमार्ग को अवरुद्ध नहीं कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग खुलें, क्योंकि पिछले कई महीनों से पंजाब और हरियाणा में कारोबार गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। हमें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट हमें दिल्ली जाने की अनुमति प्रदान करेगा। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मुद्दों को हल करने के लिए एक समिति बनाये जाने के विचार पर किसान नेता पंधेर का कहना है कि उन्हें ऐसी किसी कमेटी से किसी नतीजे की कोई खास उम्मीद नहीं है। हम समिति के लिए नामों का प्रस्ताव करने या न करने के बारे में फैसला लेने के लिए सभी किसान यूनियनों से सलाह-मशविरा करेंगे। मुझे लगता है कि केंद्र और हरियाणा में भाजपा सरकारें प्रदर्शनकारी किसानों के मुद्दों को हल करने के प्रति गंभीर नहीं हैं। इसलिए, हमें ज्यादा उम्मीद नहीं है।
इस बार संसद के भीतर और बाहर दोनों ओर से घेरेबंदी की तैयारी
इसके साथ ही किसानों ने 22-23 जुलाई को दो दिनों तक अपने सम्मेलन के साथ-साथ देश भर से जुटे तमाम राजनीतिक दलों के सांसदों के बीच जाकर किसानों के मुद्दों से उन्हें परिचित कराने का भी काम किया है। यह पहली बार है जब किसान संगठन अपने आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए राजनीतिक दलों के सहयोग से भी परहेज नहीं कर रहे। किसान संगठनों ने इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों सहित एनडीए में भाजपा को छोड़ सभी सहयोगी दलों के साथ अपनी बातचीत को तेज करने का काम किया है। कल किसान नेताओं का एक जत्था प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी मिला।
हालांकि कांग्रेस के सांसद किसानों के सम्मेलन में शामिल हुए, लेकिन किसान नेताओं से मुलाक़ात के लिए राहुल गांधी के द्वारा उन्हें अपने संसद स्थित कार्यालय में आमंत्रित किये जाने को भी राजनीतिक गलियारों में एक अलग अंदाज में देखा जा रहा है। 24 जुलाई को यह मुलाक़ात काफी जद्दोजहद के बाद हो पाई, जब आमंत्रित किसान नेताओं को संसद के प्रांगण में आने से रोक दिया गया, जिसके बाद जब राहुल गांधी ने इस पर बयान देकर खुद बाहर आकर मिलने की बात कही तो किसान नेताओं को अंदर आने की इजाजत मिल गई।
एसकेएम और किसान मजदूर मोर्चा के छह-छह सदस्यों वाले इस प्रतिनिधिमंडल ने इस मुलकात के बाद कहा है कि विपक्ष के नेता (एलओपी) राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन के सभी घटकों से परामर्श के बाद संसद में सी2+50% के मुताबिक सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और किसानों, खेत मजदूरों के लिए कर्ज माफी की मांग उठाने का आश्वासन दिया है। 40 मिनट तक चली इस बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल के साथ-साथ पंजाब के सभी कांग्रेसी सांसद मौजूद थे। किसान नेताओं ने राहुल गांधी को अपनी मांगों से अवगत कराया, जिसमें एमएसपी और कर्ज माफी के अलावा, हरियाणा के एक पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में गठित एसआईटी के द्वारा प्रदर्शनकारी शुभकरण सिंह की हत्या की कोई जांच न करने, पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों पर आंसू गैस के गोले दागने वाले हरियाणा पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय छह पुलिस अधिकारियों को सम्मानित करने के हरियाणा सरकार के आदेश को वापस लेने की मांग मुख्य रूप से उठाई गई।
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि राहुल गांधी ने हमारी सभी मांगों का समर्थन किया और हमें आश्वासन दिया है कि वे इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ सभी मुद्दों पर चर्चा करेंगे और गठबंधन की ओर से इन्हें उठाने का प्रयास करेंगे। किसान संगठन ये भी चाहते हैं कि विपक्ष के अधिकांश सांसद और विशेषकर, विपक्षी नेता राहुल गांधी बजट सेशन के दौरान फसलों पर एमएसपी की गारंटी के मुद्दे पर प्राइवेट मेंबर बिल पेश करें। किसान संगठन मानते हैं कि ऐसा करने से भले ही कोई कानून पारित नहीं होगा, क्योंकि यह काम हमेशा सत्ताधारी दल की ओर से अंजाम दिया जाता है, लेकिन इससे किसानों के ज्वलंत मुद्दों पर राष्ट्रीय बहस खड़ी होगी। सत्तारूढ़ दल को भी मजबूरन इस पर विचार कर बिल पेश करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
इससे पहले 22 जुलाई को एक दर्जन से अधिक सांसदों ने दिल्ली में किसानों के सम्मेलन में अपनी शिरकत देकर उनकी मांगों को संसद के भीतर उठाने का आश्वासन दिया था। शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने एमएसपी को क़ानूनी गारंटी पर प्राइवेट मेंबर बिल को प्रस्तावित भी कर दिया है।
केंद्र की भाजपा सरकार के सामने समस्याओं का अंबार लग चुका है, जो पिछले दस वर्षों के उसके शासन का नतीजा है। सामने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हैं, और इन दोनों राज्यों के किसान मोदी सरकार से बेहद खफा हैं। किसानों के इस आंदोलन की निरंतरता भले ही पिछले 4 वर्षों के दौरान कई बार टूट चुकी हो, लेकिन न उनकी मांगों का कोई समाधान मोदी सरकार के द्वारा निकाला जा सका है, और न ही देश की कृषि पर आश्रित 55% आबादी के सामने लड़ने के सिवाय कोई विकल्प है। देखना है, नई सरकार खुद को कॉर्पोरेट की सरकार से आम किसानों-मजदूरों की सरकार दिखने के लिए खुद को कितना तैयार कर पाई है?