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  क्या कहती है बिहार की बदलती सियासी तस्वीर…..

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पटना. इस साल के अंत में होने वाले बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले जेडीयू के अंदर बेचैनी नजर आ रही है. पार्टी नेतृत्व ने वक्फ संशोधन विधेयक के लिए अपना समर्थन घोषित किया था, जिसे दोनों सदनों में पारित कर दिया गया, लोकसभा में 288 जबकि राज्यसभा में 128 मत मिले.विधेयक के लोकसभा में पारित होने के तुरंत बाद पार्टी के पांच मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया, जबकि कुछ अन्य ने विधेयक पर अपनी असहमति व्यक्त की है.

जेडीयू नेताओं के इस्तीफे
जेडीयू अल्पसंख्यक मोर्चा के राज्य सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक, मोहम्मद कासिम अंसारी, तबरेज सिद्दीकी अलीग, नदीम अख्तर और राजू नैयर पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. जबकि जेडीयू) महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम रसूल बलयावी भी इस्तीफा दे चुके हैं. तो वहीं, जेडीयू) एमएलसी गुलाम गौस ने पार्टी लाइन के खिलाफ बात कही है.

जेडीयू नेताओं की ये चिंता बिहार चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक पर हार के डर पर आधारित है. हालांकि, ये डर पहली नजर में मान्य हो सकता है, लेकिन आंकड़े एक अलग तस्वीर पेश करते हैं. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए से अलग रहते हुए मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया था, जिससे आरजेडी के प्राथमिक वोट बैंक में सेंध लगी थी. लेकिन 2015 के बाद की स्थितियों का अध्ययन एक अलग तस्वीर पेश करता है.

2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनावों में जब नीतीश मोदी विरोधी खेमे में थे, तब मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ थी.

सीएसडीएस लोकनीति पोस्ट पोल सर्वे के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जेडीयू ने कम्युनिस्टों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था तो उसे 23.5% मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश महागठबंधन का हिस्सा थे, तो गठबंधन को लगभग 80% मुस्लिम वोट मिले थे.

2015 के बाद बदले आंकड़े
2015 के बाद जब वे मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल हुए तो चीजें बदल गईं. साल 2020 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू गठबंधन केवल 5% मुस्लिम वोट हासिल कर सका. साल 2015 में आरजेडी गठबंधन के कारण जेडीयू को मिले वोटों की तुलना में यह भारी गिरावट थी और 2019 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी के 80% के मुकाबले जेडीयू गठबंधन को केवल 6% मुसलमानों ने वोट दिया था.

यही स्थिति कमोबेश 2024 के लोकसभा चुनावों में भी जारी रही, जब सिर्फ़ 12% मुसलमानों ने जेडीयू गठबंधन को वोट दिया जो 2014 की स्थिति से लगभग 50% कम था.

वहीं, 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की मुस्लिम आबादी 1,75,57,809 (1.75 करोड़) दर्ज की गई, जो राज्य की कुल आबादी का 17% है.

2024 के लोकसभा डेटा के अनुसार, बिहार में कुल 7,64,33,329 (7.64 करोड़) पंजीकृत मतदाता हैं. अगर हम 2011 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों के अनुपात को जोड़ दें, जो कुल आबादी का 17% है तो बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की अनुमानित संख्या लगभग 1,29,93,667 (1.29 करोड़) होगी.

बिहार में मुसलमानों ने किसे वोट दिया? 

गठबंधन लोकसभा चुनाव 2024 विधानसभा चुनाव 2020 लोकसभा चुनाव 2019 विधानसभा चुनाव 2015 लोकसभा चुनाव 2014
जेडीयू गठबंधन 12% 5% 6% 80% 23.5%
इंडिया ब्लॉक/MGB 87% 76% 80% 65%

अब अगर बिहार के मुस्लिम बहुल जिलों पर नजर डालें तो हम चार जिले लेते हैं, जहां मुस्लिम आबादी कुल आबादी का 30% से अधिक है. कुल मिलाकर ये जिले 24 विधानसभा क्षेत्रों में फैले हैं, जिनमें से जेडीयू ने 2015 के लोकसभा चुनावों में 7 जिलों जीत दर्ज की थी, जब वह महागठबंधन का हिस्सा थे. जबकि 2020 में एनडीए के साथ लड़ते हुए, जेडीयू ने केवल तीन जिलों में जीत हासिल की थी.

इससे ये बात स्पष्ट रूप से पता चलती है कि जब-जब जेडीयू ने पीएम मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हाथ मिलाया है, तब-तब उन्होंने मुसलमानों का समर्थन खो दिया है.

बिहार में मुस्लिम बहुल जिले (जनगणना 2011 और भारतीय चुनाव आयोग)

जिलों की मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 2020 के बाद जेडीयू के पास विधानसभाएं 2015 के बाद जेडीयू के पास विधानसभाएं

किशनगंज 67.98% 0/4 2/4
कटिहार 44.47% 1/7 0/7
पूर्णिया 38.46% 1/7 2/7
अररिया 42.95% 1/6 3/6
कुल 3/24 7/24
इसके अलावा हम ये भी देखते है कि जेडीयू के नारे वाले मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रदर्शन पीएम मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ कितना अलग रहा है और एनडीए के बिना उन्होंने कैसा प्रदर्शन किया है.

चुनावी आंकड़ों के अनुसार, साल 2015 में जेडीयू ने सात मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और उनमें से पांच ने चुनाव जीता था. हालांकि, 2020 में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के बावजूद जेडीयू का कोई भी उम्मीदवार विजेता के रूप में उभर नहीं सका.

साल कितने मुस्लिम उम्मीदवारों ने लड़ा चुनाव कितने उम्मीदवार जीते
इससे साफ पता चलता है कि 2015 के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन करने से जेडीयू को अपने मुस्लिम वोट बैंक से हाथ धोना पड़ा था. इतना ही नहीं साल 2020 में बड़ी संख्या में मुसलमानों को मैदान में उतारना भी नीतीश कुमार की पार्टी के लिए कारगर साबित नहीं हुआ.

अब वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन करने के कारण जेडीयू को मुस्लिम वोटों से वंचित होने का ये सिद्धांत गलत साबित होगा, क्योंकि 2015 के बाद पार्टी के पास कभी भी मुस्लिम वोट बैंक नहीं था.

ramswaroop mantri

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