-सुसंस्कृति परिहार
हमारे देश को फर्जीवाड़ा में अनगिनत सफलताएं प्राप्त हैं। 2014 में सबसे पहले यह गूंज पी एम मोदीजी एवं पूर्व मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की फर्जी अंकसूचियों की बात के रूप में सामने आई। जिसकी जांच आज तक चल रही है।यानि फर्जीवाड़ा को छुपाया जा रहा है। इसके बाद मोदी सरकार ने मतदाताओं को लुभाने जो 15 लाख खाते में डालने और दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने की घोषणा की थी वह भी फर्जी निकली। चुनावी जीत के बाद इस फर्जीवाड़ा को जुमला कहकर डकार लिया गया।जो खाते लोगों ने 15 लाख मिलने की आशा में खुलवाए थे उनकी जमा राशि भी हड़प ली गई।
कोरोना काल में जो टीका नि: शुल्क लगाने की बात की गई उसमें भी ठगी की गई गैस , पेट्रोलियम के ज़रिए जनता को आज तक लूटा जा रहा है।इस दौरान आपदा में अवसर की तलाश में पीएम केयर फंड खाते में आए विदेशी धन और समाजसेवियों से प्राप्त धन का कोई हिसाब किताब नहीं दिया गया।
पुलवामा के शहीदों की मौत आज तक रहस्यमय बनी हुई है जिसकी कोई जांच आज तक नहीं हुई।इस घटना को चुनाव का राजनैतिक खेल बना दिया गया।चीन ने लद्दाख की बड़ी ज़मीन हथिया ली रक्षामंत्री और पीएम ने सरासर झूठ बोला कि चीन ना घुसा है और ना घुसेगा।इस फर्जीवाड़ा का रहस्य अडानी के बिजनेस से जुड़ा हुआ है। सरकार चुप है संसद में उठी आवाज़ बहुमत के नाम पर दबा दी जाती है।
फर्जीवाड़ा में महारत हासिल भारत में चुनावी इलेक्टोरल बांड में आए अकूत धन की आवाज़ उठी जांच की बात तेज हुई पर सुको की मिलीभगत से मामला दफ़न हो गया। चुनावी फर्जीवाड़ा की कलई भी खुलती जा रही है पर सरकार को सौ खून माफ़ हैं।
जब देश की सरकार फर्जीवाड़ा से बनी हो और लगातार खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा हो तो इसकी आड़ में , उनके मुख्यमंत्री ,मंत्री,सांसद, विधायक भी बराबर खेल रहे हैं।इस बीमारी से न्यायपालिका ,शासकीय अधिकारी , कर्मचारी भी बड़ी तादाद में ग्रस्त हुए हैं।शिक्षा ,रेल, स्वास्थ्य से लेकर लगभग सभी विभाग अपने अपने ढंग से इस फर्जीवाड़ा की चेन की अंजाम दे रहे हैं।जब विश्वविद्यालय की डिग्री नकली बनकर सामने आ गई हो तो उन पर विश्वास उठना स्वाभाविक है।नकली डिग्रियों और नकली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र पर हज़ारों लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और यहां तक कि जुडीशरी में काबिज हैं।
मध्यप्रदेश के व्यापम कांड ने भी यह सिद्ध किया था कि किस तरह से उस दौरान डाक्टर बने। इसकी जांच के दौरान इस कांड के तकरीबन 40 गवाह रास्ते से हटाए गए।जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।सब ठंडे बस्ते में चला गया। लाखों करोड़ों देने वाले डाक्टर आज भी पदस्थ हैं और शान से जनसेवा कर रहे हैं।
ऐसे फर्जीवाड़ा के दौर में एक विदेशी डाक्टर ऐन केम जान (उर्फ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव) के नाम पर यदि कार्डियोलॉजिस्ट बनकर मध्यप्रदेश के दमोह नगर के मिशन अस्पताल में लोगों को मौत की नींद सुला देता है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस डाक्टर ने भारत की कई अस्पतालों में ससम्मान काम किया है। पता चला है कि इस डाक्टर ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में भी तकरीबन आठ लोगों को आपरेशन के दौरान मारा था जिसमें एक विधानसभा के पूर्व स्पीकर भी शामिल हैं। यहां भी हल्ला हुआ।पर बात थम गई।
लेकिन इस बार मामला मिशनरी अस्पताल दमोह का है इसलिए इस पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है।लगता है यहां सख्त जांच होगी होना भी चाहिए। अस्पताल की मान्यता मुश्किल में फंस सकती है।वजह साफ़ है मुस्लिम और ईसाई सम्पत्ति पर सरकार की भृकुटी तानी हुई है।
बहरहाल,मामले की निष्पक्ष जांच होनी ही चाहिए किन्तु जो फरार डाक्टर है उसे भी कटघरे में लाना होगा। क्योंकि उस पर कई धाराओं के तहत् कार्रवाई होनी है।इस घटना के बाद यह भी सूत्र बताते हैं कि तथाकथित फर्जी डाक्टर भाजपा से जुड़ा हुआ है। इसलिए वह अब तक बचता रहा है।यदि डाक्टर पकड़ में नहीं आता है और मिशन अस्पताल पर ही सिर्फ ऐक्शन लिया जाता है तो स्वत: सिद्ध होगा कि इस कार्य में दिलचस्पी की वजह कुछ और है। इससे पूर्व मिशन अस्पताल के संचालक पर धर्मान्तरण तथा गौकशी जैसे आरोप भी लगाए जाते रहे हैं।
आशा की जाती है कि ओछी भावना से ऊपर उठकर जांच कार्य संपादित होगा और इस घटना से सबक लेकर सभी सरकारी और निजी चिकित्सालयों और उनके डाक्टर्स का सूक्ष्मता से मुआयना किया जाए ताकि कोई डाक्टर ऐन केम जान बनकर किसी के जीवन से खेल ना कर सके।
इस घटना से सचेत होकर अन्य विभागों में हुई भर्तियों के फर्जीवाड़ा की जांच होनी ज़रूरी है। क्योंकि यह राजरोग बनकर पूरे देश में फैल चुका है। गुजरात में तो एक फर्जी अदालत भी चल चुकी है।
यदि एक ईमानदार कोशिश देश में हो जाए तो भविष्य में कुछ सुधार निश्चित होगा।यदि ऐसे लोगों को दबोचा नहीं गया तो देश रसातल में पहुंच जाएगा।
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