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 क्या योगी जाएंगे?BJP का मौजूदा टकराव दरअसल नंबर टू पोजिशन के लिए

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नीरजा चौधरी

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के बारे में माना जा रहा था कि BJP अपना प्रदर्शन सुधारेगी। पार्टी को 2019 के मुकाबले इस बार बेहतर करने की उम्मीद थी। भरोसा था कि देश के दूसरे हिस्सों में पिछले चुनाव की तुलना में एकाध सीटों का जो घाटा होगा, उसकी भरपाई यूपी से हो जाएगी। इस भरोसे की वजह भी थी, पीएम नरेंद्र मोदी और उनके साथ सीएम योगी आदित्यनाथ। लेकिन, चुनाव परिणामों ने सारे अनुमान बिगाड़ दिए।

अपनों की नाराज़गी: यूपी में चुनाव के दौरान लोकल फैक्टर हावी हो गए। राजपूतों से बात करने के दौरान यह साफ दिखा कि उनमें यह सोच थी कि अगर दिल्ली में BJP का नेतृत्व मजबूत हुआ तो योगी अपने पद पर बने नहीं रह पाएंगे। इस वजह से वे पार्टी को थोड़ा झटका देना चाहते थे। इसी तरह, ब्राह्मणों और दलितों में भी नाराजगी थी। दलितों को डर था कि अगर BJP की सीटें 400 पार हो गईं, तो संविधान बदल दिया जाएगा। OBC का एक हिस्सा जो हाल के बरसों में BJP से जुड़ा था, वह कट गया। वहीं, जो पासी कम्युनिटी पार्टी के सपोर्ट में रही है, वह भी इस चुनाव में पीछे हट गई।

बिहार अलग क्यों: पूर्वी यूपी और पश्चिम बिहार के बीच बहुत दूरी नहीं है, लेकिन दोनों के परिणाम में बहुत अंतर रहा। दोनों जगह के हालात एकदम अलग थे। गैर यादव OBC जो यूपी में नाराज था, वह बिहार में BJP से खफा क्यों नहीं हुआ? वहां पर राजपूत कम्युनिटी क्यों BJP से नहीं छिटकी? यही सवाल दिल्ली में भी उठाया गया। कई जगह इस बारे में लिखा भी गया। फिर वहां यह सवाल आया कि क्या यूपी में BJP के खराब प्रदर्शन के लिए योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार थे और क्या उन्होंने पूरा दमखम नहीं लगाया? क्या राजपूतों को अपने सीएम का इशारा मिला और वे बैठ गए? योगी की तरफ से बात आ रही है कि चुनाव में उनकी बात नहीं मानी गई, उनकी मर्जी के बिना टिकट बांटे गए। उन्होंने लखनऊ में हुई समीक्षा बैठक में साफ कहा कि यह हार ओवरकॉन्फिडेंस की वजह से मिली है। कार्यकर्ताओं को लगा कि जीत रहे हैं और बाहर नहीं निकले।

संघ की दूरी: इस सीन में संघ की भी चर्चा लाजिमी है। संघ में भी एक अनमनापन दिखा। पहले के चुनावों की तरह संघ के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हुए। कहा जा रहा है कि संघ के भीतर भी चाहत थी सरकार पर थोड़ा लगाम लगाने की। RSS, योगी, दलित, OBC – इन सबकी अगर मंशा थी लगाम लगाने की, तो क्या वह चीज नियंत्रित ढंग से काम कर गई? इन्हीं सब बातों को लेकर समीक्षा हो रही है और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं।

हार बस बहाना: BJP के हालात से सबसे बड़ा सवाल यही पैदा होता है कि क्या योगी को हटाया जाएगा? अगर ऐसा होना होगा तो भी तुरंत नहीं होगा। दिल्ली में कुछ लोगों का मानना है कि कोई भी बड़ा बदलाव आने वाले राज्य विधानसभा चुनावों के बाद हो सकता है। लेकिन योगी को हटाना इतना आसान नहीं है और यह मसला केवल चुनावी हार की जवाबदेही का भी नहीं है। चुनाव तो मोदी के नाम पर लड़ा गया और स्ट्रैटिजी बनाई अमित शाह ने। कहा जा रहा है कि यूपी में चुनाव को लेकर टॉप लीडरशिप की कुल 6 बैठक हुई थीं। हर बैठक में योगी मौजूद रहे। ऐसे में यह कहना सही नहीं कि उन्हें चीजों की जानकारी नहीं थी। हालांकि यह भी सही है कि चुनाव का चेहरा मोदी थे। पोस्टरों में वह छपे थे, योगी नहीं। योगी को आगे प्रोजेक्ट नहीं किया गया यानी कहीं न कहीं मनमुटाव था।

ऊपर का सपोर्ट: डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बार-बार दोहरा रहे हैं कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। उपचुनाव को लेकर बुलाई गई बैठक में वह नहीं गए। दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी मीटिंग से दूर रहे। अब तो सहयोगी भी खुलकर बोल रहे हैं। योगी सरकार में मंत्री संजय निषाद ने बुलडोजर पॉलिसी के खिलाफ बयान दिया है। अनुप्रिया पटेल आरक्षण को लेकर सवाल कर चुकी हैं। ऊपर के समर्थन के बिना ये नेता यूं खुलकर मोर्चा नहीं ले सकते। इससे निष्कर्ष निकलता है कि नेतृत्व या तो योगी को हटाना चाहता है या फिर वह अभी माहौल भांप रहा है।

योगी शिवराज नहीं: नेतृत्व के लिए कोई फैसला करना इतना आसान नहीं है। योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान नहीं हैं। मैं जब अयोध्या गई थी, तो वहां मध्य प्रदेश की कई महिलाएं मिलीं। एमपी में जीत के बावजूद शिवराज को सीएम नहीं बनाए जाने से वे महिलाएं नाखुश थीं। एमपी में मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना बहुत लोकप्रिय रही है। इसके बाद भी शिवराज को उनके राज्य से हटाकर दिल्ली में मंत्री बनाया गया। अगर योगी को भी सीएम पद से हटाकर दिल्ली बुलाया जाता है और कोई मंत्री पद दिया जाता है तो क्या वह चुपचाप केंद्र में चले जाएंगे? योगी की अपनी फॉलोइंग है, जो मोदी से अलग है। उनकी फॉलोइंग गोरखनाथ मठ की वजह से है, हिंदू युवा वाहिनी की वजह है। योगी के सीएम बनने के बाद हियुवा निष्क्रिय हो गई थी। मैंने सुना है कि इसे दोबारा सक्रिय किया जा रहा है। हाल के बरसों में योगी की लोकप्रियता दूसरे राज्यों में भी बढ़ गई है।

महाराष्ट्र कनेक्शन: चुनाव परिणाम को लेकर BJP में जितनी हलचल है, उससे लग रहा है कि बदलाव होगा। कुछ पदाधिकारी बदल सकते हैं, कैबिनेट में बदलाव हो सकता है, लेकिन योगी के बारे में कुछ कहना मुश्किल है। यह निर्भर करेगा महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों पर। इसी वजह से महाराष्ट्र में बहुत कुछ झोंका जा रहा है। वहां भी लाडली बहना योजना लाई जा रही है। माना जा रहा है कि यह गेम चेंजर साबित होगी। इस तरह से कहीं न कहीं यूपी के तार महाराष्ट्र से भी जुड़े हैं।

असल लड़ाई: 2017-18 में मेरी संघ के कुछ पदाधिकारियों से बात हुई थी। पोस्ट मोदी एरा के लिए वे लोग दो चेहरे देख रहे थे – देवेंद्र फडणवीस और योगी आदित्यनाथ। फिर इसमें अमित शाह जुड़ गए। कुछ लोग मानते हैं कि BJP का मौजूदा टकराव दरअसल नंबर टू पोजिशन के लिए है। यह टकराव है शाह और योगी के बीच।

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