अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

 बढ़ती गंभीर स्वास्थ्य समस्या के लिए जिम्मेदार कौन?

Share

(विश्व हृदय दिवस 29 सितंबर 2024)

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

देश में बढ़ती जानलेवा बीमारियां, मानसिक तनाव, घटती जीवन प्रत्याशा और असमय मौत में हमारी आधुनिक जीवनशैली की खास भूमिका है। आधुनिक जीवनशैली जीने वाले युवाओं में दिल का दौरा पड़ने की संभावना अधिक होती है। छोटे बच्चों से लेकर किशोरवयीन युवाओं तक खेलते हुए चक्कर आकर गिरने की घटनाएं आजकल देखने-सुनने मिलती है, बैठे-बैठे लोग चक्कर आकर गिर जाते है और चिकित्सक बताते है कि हृदयघात हुआ है। बहुत बार आवश्यक आपातकाल चिकित्सकीय सहायता न मिलने के कारण जान चली जाती है। आज हम वो खा-पी रहे हैं जो पशु के खाने लायक भी नहीं है। हमारे पारंपरिक खाद्य पदार्थों की जगह पाश्चिमात्य फास्ट फूड और अस्वास्थ्यकर आहार आ गया है। छोटी-सी जबान के जायके के लिए सम्पूर्ण शरीर को नुकसान पहुंचाया जाता है। ये बड़ी दुख की बात है, कि हम खाद्य व्यंजनों का चयन स्वाद के आधार पर करते है, जबकि ये सर्वदा स्वास्थ्य के आधार पर होने चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि अधिकतर लोग पेट भरने के लिए खाते है, लेकिन वे कितनी कैलरी, किस प्रकार, किस गुणवत्ता में ले रहे है, शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा लगातार बढ़ रही, पाचन तंत्र कमजोर हो रहा है, इसका विचार नहीं करते। भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, अस्वच्छता, अशुद्ध हवा पानी, पर्याप्त नींद न लेना, बढ़ता वजन, व्यायाम की कमी, अशुद्ध वातावरण, शोर, काम का दबाव, घरेलू कलह, मानसिक तनाव, नशाखोरी से बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। मानवीय शरीर पहले के दशक के मुकाबले कमजोर प्रतीत हो रहा है, अब मौसम बदलते ही मानवीय शरीर को विविध बीमारियां जल्द जकड लेती है, क्योंकि रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो रही है।

तले हुए खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत मांस, अतिरिक्त चीनी वाले खाद्य पदार्थ व पेय, वसायुक्त खाद्य पदार्थ, नमकीन पदार्थ, मैदा युक्त पदार्थ, सोडा, उच्च वसायुक्त डेयरी उत्पाद, आइसक्रीम, ट्रांस वसा, मक्खन, लाल मांस, आलू चिप्स, फ्रेंच फ्राईज, कुकीज़, पाम तेल, पिज़्ज़ा, बेकन, बेक्ड उत्पाद, सफेद चावल, सफेद ब्रेड, पास्ता, सॉसेज, पॉलिश अनाज, डिब्बाबंद सूप या फ़ूड कंपनियों के प्रक्रिया किये गए पदार्थ, मानवीय शरीर के लिए अस्वास्थ्यकर होते है क्योंकि इनसे हमें आवश्यक पोषकतत्वों की जरुरत पूरी नहीं होती, इनका प्रयोग न हो तो बेहतर है, लेकिन चीनी और नमक का उपयोग बंद नहीं कर सकते, लेकिन मर्यादित करना या अन्य पर्याय जरुरी है। ये पदार्थ शरीर में स्लो पॉइजन के रूप में काम करते है और सीमा के बाहर होने पर शरीर में मौजूद ख़राब तत्व बढ़ते हुए मानवीय अंगो को विफल करते हुए घातक बीमारी में तब्दील हो जाते है।

भारत में अधिकांश मौतों और विकलांगताओं के लिए हृदय संबंधी बीमारियाँ जिम्मेदार हैं। साल 2022 में भारतीयों में दिल के दौरे में 12.5 प्रतिशत की वृद्धि हुयी। अस्वास्थ्यकर आहार, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह और अधिक वजन ये जोखिम अब देश में कुल बीमारी के बोझ का एक चौथाई हिस्सा है। गैर-संचारी रोग देश में होने वाली सभी मौतों में से 60 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। लगभग 5.8 मिलियन भारतीय हर साल हृदय और फेफड़ों की बीमारियों, स्ट्रोक, कैंसर और मधुमेह से जान गवांते है। कैंसर और मधुमेह की बढ़ती प्रवृत्ति के साथ-साथ हृदय रोग दो दशकों से ज्यादा समय से भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक रहा है। विश्व स्तर पर 2021 में सबसे बड़ा हत्यारा इस्केमिक हृदय रोग रहा, जो दुनिया में होने वाली सभी मौतों में से 13 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है।

2022 में भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 67.74 वर्ष थी। जबकि 2023 तक मोनाको में पुरुषों और महिलाओं के लिए 84 और 89 वर्ष थी, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, मकाऊ और जापान में पुरुषों और महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा क्रमश 81 और 87 वर्ष है। ग्रामीण क्षेत्रों में 17 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 29 प्रतिशत बुजुर्गों को पुरानी बीमारियाँ हैं। उच्च रक्तचाप और मधुमेह सभी पुरानी बीमारियों का कुल 68 प्रतिशत हिस्सा हैं। यह आश्चर्य की बात है कि हृदय रोग पश्चिम देशों की तुलना में भारत में 10-15 साल पहले होता है। भारत में हृदय रोगों के कारण 24.8 प्रतिशत मौतें होती हैं, इसके बाद श्वसन संबंधी 10.2 प्रतिशत मौतें होती हैं, जबकि जानलेवा और अन्य ट्यूमर के कारण 9.4 प्रतिशत मौतें होती हैं। लैंसेट अध्ययन में पाया गया कि 2019 में भारत में प्रदूषण के कारण 2.3 मिलियन से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु हुई। यूनिसेफ और खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट अनुसार, भारत देश में 45 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं और हर साल पांच साल से कम उम्र के 6 लाख बच्चे अपर्याप्त शुद्ध जल आपूर्ति, पोषक भोजन की कमी और अस्वच्छता के कारण जान गवांते है। शुद्ध पानी की कमी के कारण हर साल लगभग 2 लाख मौतें होती हैं।

भारत में तनाव का स्तर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित यूके, जर्मनी, फ्रांस, चीन, ब्राजील और इंडोनेशिया जैसे देशों की तुलना में अधिक है। आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के नवीनतम 2023 इंडिया वेलनेस इंडेक्स के अध्ययनों के मुताबिक भारत में हर तीसरा व्यक्ति तनाव का सामना कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 77 प्रतिशत भारतीय नियमित आधार पर तनाव के कम से कम एक लक्षण का अनुभव करते हैं। भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है, प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 0.07 मनोचिकित्सक और 0.12 मनोचिकित्सक नर्सें हैं। अक्सर, इन पेशेवरों के पास अवसाद से निपटने के लिए बहुत कम या कोई प्रशिक्षण नहीं होता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन 2024 के अनुसार, दुनिया में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है, जो प्रति सप्ताह औसतन 45 घंटे से अधिक काम करते हैं, विशेषत निजी संस्थानों और व्यवसायों में। इसमें हमारा देश भूटान, लेबनान, लेसोथो, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान जैसे देशों से भी पीछे है।

बड़े-बड़े कारखानों से रसायनयुक्त जहरीला पानी और धुंआ आसपास के वातावरण में जहर घोलता है। खेतों में भी बड़ी मात्रा में हानिकारक रासायनिक खादों का प्रयोग होता है। अभी हाल ही में नए अध्ययन से पता चला है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक प्लास्टिक प्रदूषण पैदा करता है। देश में सभी प्रकार के प्रदूषण की भी गंभीर समस्या बनी हुई है। हानिकारक अपशिष्ट, मिलावटखोरी की गंभीर समस्या में भी हम अग्रणी है। शहरों की सड़कों पर लोगों की संख्या से ज्यादा गाड़ियों का जाम नजर आता है। अधिकतर राज्यों की कबाड़ बनी सरकारी बस और स्थानीय प्रशासन द्वारा संचालित बसे भी प्रदूषण करती हुई चल रही है। शहरों से होकर बहने वाली अधिकतर नदियाँ तो नालों के स्वरूप में दिखती है। निर्माण स्थल, फैक्ट्री एरिया में अधिकतर मजदूर बगैर मास्क के धूल भरे वातावरण में कार्य करते है। घटते वन, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, कचरे के ढेर, ग्लोबल वार्मिंग ने जीव सृष्टि के लिए खतरा पैदा किया है। पूरे वर्ष पल-पल मौसम की स्थितियां बदलती रहती हैं, जिससे साल भर बीमारियों का वायरल चलता रहता है और देश में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद लगातार अस्पताल मरीजों से हाउसफुल रहते है।

अब इसे नियमों का उल्लंघन कहे या लापरवाही लेकिन इसकी सजा हम सबके मानसिक- शारीरिक स्वास्थ्य को भुगतनी पड़ती है, आर्थिक नुकसान होता है वो अलग। क्या इसमें प्रशासन जिम्मेदार है जो मिलावटखोरी, प्रदूषण, भ्रष्टाचार पर पूर्णत नियंत्रण नहीं रख पा रहा है और सबके लिए पर्याप्त स्वास्थ सुविधा, पोषक आहार, शुध्द जल उपलब्ध नहीं कर पा रहा है। या वो स्वार्थी लोग जिम्मेदार है जो सिर्फ अपने फायदे के लिए गलत काम करके पर्यावरण और आम जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर नुकसान पहुंचाते है। या फिर हम लोग जिम्मेदार है, जो अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख सकते, क्योंकि अस्वास्थ्यकर आहार, आलस्य, नशाखोरी, अशुद्धता, आधुनिक जीवनशैली हमारे लिए जानलेवा होकर भी हम सुधर नहीं रहे। जिम्मेदारी सबकी है, हम सबको अमूल्य जीवन का मोल समझना होगा। अगर अभी भी जागे तो खुशहाल स्वस्थ भारत बनाकर हर साल स्वास्थ्य समस्याओं पर होने वाले अरबों डॉलर की भी बचत हो सकती है और बढ़ती गंभीर बीमारियों की गति भी धीमी की जा सकती है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मोबाइल & व्हाट्सएप न. 082374 17041

prit00786@gmail.com

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें