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 बढ़ती सुख-सुविधाओं की लालसा ने मनुष्य का सुकून छीना

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(विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष – 10 अक्टूबर 2024)

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

आज के आधुनिक जीवनशैली में तेजी से उभरने वाला विकार मानसिक तनाव है, जो हम हमेशा लोगों के व्यवहार से अनुभव करते है, विभिन्न परिस्थितियों में खुद में भी बहुत बार तनाव महसूस होता है। लोगों द्वारा किया गया दुर्व्यवहार, दुःख, परेशानी में इंसान को हमेशा मन में डर सताता है, चिंता होती है, नकारात्मक विचार और बुरे ख्याल मन में बैठ जाते है। घटित बुरी घटनाओं की यादें हमें हरदम झंझोड़ देती है। दिन भर में दस अच्छी और एक बुरी खबर में अच्छी खबर को नजरअंदाज कर हमें केवल वह एक बुरी घटना ही परेशान करती है। जबकि उस एक बुरी खबर का हमारे जीवन में कोई विशेष अस्तित्व भी नहीं होता। लेकिन मनुष्य बेमतलब की बात को तूल देकर खुद के मन और तन को विकार देता है। अपने मन पर खुद का नियंत्रण न होना ही समस्या की मूल जड़ है। तनाव बढ़ाने से या खुद के टेंशन लेने के समस्याओं का कभी हल नहीं निकलता है। तनाव ख़त्म होगा हमारे सकारात्मक विचार और सफल प्रयास से।

सभी प्राणियों में मनुष्य को सबसे बुद्धिमान माना जाता है, मनुष्य ने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली है, आज के आधुनिक वातावरण में जहां देखने को तो खूब सुख-सुविधाएं दिखाई पड़ती है, परंतु इस आधुनिकता में मनुष्य ने अपना सुख-चैन, स्वाभाविकता, भोलापन, मासूमियत खो दिया, सुकून महसूस नहीं होता। भौतिक सुख को ही हमनें सब कुछ मान लिया है, और यहाँ तक कि हम इंसानियत को भी भूलकर पैसों के पीछे पागल हो गए। मानव से मानवता और इंसान से इंसानियत शब्द बना है, इसी शब्द की सार्थकता अनुरूप हर मनुष्य का आचरण होना चाहिए, परंतु मनुष्य बहुत नीचे गिर गया है। बहुत बार लोगों का स्वार्थ देखकर ऐसा लगता है कि इनसे बेहतर तो पश-पक्षी है, जो खुद के फायदे के लिए दुसरो को तबाह नहीं करते है। आज की युवापीढ़ी तो रात को जागती है और दिन में आराम फरमाती है, घर में कम और बाहर ज्यादा खाते है, लोगों की नसीहत भी गाली लगती है, नीतिनियम, रोक टोक को पाबंदी मानते हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम ने तो हमें लत लगा दी है। जिम्मेदारियों के बोझ का अहसास जिन्हे होता है वहीं मेहनत को अपना कर्म बना लेते है तब उम्र भी मायने नहीं रखती है।

अपराध, भ्रष्टाचार, पद और सत्ता का दुरुपयोग, प्रदूषण, मिलावटखोरी, हर ओर राजनितिक हस्तक्षेप, अश्लीलता, झूठ, झूठा दिखावा, भेदभाव, धोखा, नशाखोरी, लोभ, संस्कारहीन व्यवहार, ईर्ष्या भाव ऐसे दूषित वातावरण में मानसिक शांति मिलना ढोंग है। लोगों की लापरवाही भी मनुष्य के लिए सिरदर्द का कारण बनता है, हर क्षेत्र में सरकारी कर्मचारियों की कमी की समस्या की सजा आम जनता को भुगतनी पड़ती है। उदाहरण के लिए ट्रैफिक पुलिस की कमी के कारण शहरों में खुलेआम ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन बड़ी परेशानी है। हर जगह, हर क्षेत्र, कार्यालय, हर रिश्ते-नाते में कुछ लोग ऐसे मिल जायेंगे जो दुनिया में केवल दूसरों को परेशान करने के लिए मौजूद है। क्योंकि ये सब तो दुनियाँ में अशांति और अराजकता के वाहक है, बहुत से लोग इससे जुड़ी समस्याओं से प्रभावित है, लेकिन सिर्फ यही हमारा पूरा संसार नहीं है, लोगों ने क्या किया इससे बेहतर है कि हमने क्या किया? यह समझें। दुनिया में केवल समृद्ध प्रकृति, अच्छे कर्म और समाधान ही मानसिक सुख का आधार बन सकते है।

मानसिक तनाव हमारे द्वारा ही तैयार किया गया खुद के लिए विकार है, इसलिए समस्या का हल खोजें, परेशान न हों। मानसिक तनाव के निर्माता अधिकतर हम खुद होते है। हमारा व्यवहार भी इसके लिए उत्तरदायी है जैसे :- दुसरो पर ज्यादा भरोसा, बुरी आदतें, जल्दी हिम्मत हारना, खुद को कमजोर बेबस मानना, आलस्य, आधुनिक दिनचर्या का अवलंबन, नीतिनियम की कमी, गलत जिद, मार्गदर्शन की कमी, लोग क्या कहेंगे सोचकर डरते रहना, नया कुछ सीखने से डरना ऐसी बहुत सी बातें हमें मानसिक रूप से बीमार बनाती है। अगर हम सत्य की राह पर चल रहे हैं तो कभी भी लोकलाज की न सोचें। जीवन को आसान बनाकर जिंदादिली से जियें।

नकारात्मक विचार शैली के लोगों से दूरी बनाना हमें जीवन में बहुत आवश्यक है। हमें जीवन में उन लोगों की कद्र करनी चाहिए जो हमारे सुख-दुःख में हमेशा साथ देते है, बेहतर मार्गदर्शन करते है, मतलब के अनुसार व्यवहार बदलते नहीं है। हर व्यक्ति की अपनी अभिव्यक्ति, स्वतंत्रता होती है, कभी भी हमें अपनी मर्यादा भूलकर लोगों की स्वतंत्रता पर आंच आये ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। जीवन में अगर सुख-शांति से जीना है तो, बुरे काम से दूर रहें, परोपकार की भावना, प्रकृति प्रेम, पशु सेवा, असहायों की मदद, मानवधर्म की राह पर चलने से हम समाधानी बनकर रहेंगे। बिना किसी अपेक्षा और स्वार्थ के सत्कर्म हमें जीवन में संतोष दिलाते है। खुद को हमेशा अच्छे काम में व्यस्त रखें, अपने क्षेत्र में काम करते हुए हमेशा कुछ नया सीखने का प्रयत्न करें। थोड़ा समय निकालकर समाज में श्रमदान करें। हेल्दी हॉबी बनाए रखें, नियमित व्यायाम, मैदानी खेल खेलें, अपनी बढ़ती उम्र को भी केवल संख्या मानकर चलें। सुख-दुःख, हार-जीत जीवन में निरंतर चलता रहता है, वक्त कभी एक-सा नहीं रहता, समयानुसार बदलाव आते ही है। मुश्किल समय में हौसला बनाये रखें और आपने जो अपने जीवन में अच्छे काम, अच्छे व्यवहार किये है तो अच्छे लोग भी आपसे जुड़े रहेंगे। आप जीवन में जैसा बोएंगे वैसा ही फल पाएंगे।

क्या आपको याद है कि आप पिछली बार कब मन से खिलखिलाकर हंसे थे? जबकि हमें हर पल मुस्कुराते हुए जीना चाहिए। जीवन में समस्या आएंगी, लेकिन आप उस समस्या को किस तरीके से देखते है, ये आप पर निर्भर करता है। समस्याओं को चुनौती मानकर सामना करने वाले हमेशा सफल होते है, क्योंकि वे समस्याओं से घबराते नहीं बल्कि उसे अवसर मानकर आगे बढ़ते है। कोई भी समस्या या दुख होने पर वह समस्या खुद पर हावी न होने दें, तनाव बिलकुल भी न लें, क्योंकि तनाव अनेक जानलेवा गंभीर बीमारियों की जड़ होती है जो हमें अधिक मुश्किल हालात में डाल देती है, साथ ही यह अपराधवृद्धि में विशेष सहायक है। खुद पर भरोसा रखें, हमेशा समयानुसार अद्यतन रहें, मुश्किल आने पर निराश होने के बजाय हल क्या हो सकता है इस पर ध्यान दें। अपने खाली समय का सदुपयोग करें, सकारात्मक विचारों के लोगों से मिलें, गुस्से, आवेश या भावनाओं में बहकर तुरंत निर्णय न लें। नशे और बुरी संगत से दूर रहें। अभिभावक कृपया बच्चों को अतिलाड़ में न बिगाड़े, उन्हें उत्तम संस्कार दें। बिना किसी स्वार्थ के बेसहारों की मदद अनमोल सुकून देता है। जिसके मन में लोगों के लिए कोई जलन या भेदभाव नहीं है और अपने काम से संतुष्ट है वही समाधानी मनुष्य मानसिक तनाव से दूर रह सकता है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मोबाइल & व्हाट्सएप न. 082374 17041

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