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 मिर्ज़ापुर के वनों और जंगलों पर अडानी की कंपनी की नजर,धनबल-बाहुबल के सामने ध्वस्त हो रहे नियम क़ानून

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मिर्ज़ापुर। राज्य के वनों और जंगलों से घिरे मिर्ज़ापुर के मड़िहान में विशाल वन भूमि पर अडानी की कंपनी की नजर गड़ गई है। 1600 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट ‘पावर एनर्जी’ खोले जाने की गुपचुप तैयारी को अंजाम देने के साथ ही पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेने के लिए आवेदन भी किया गया है। वनों जंगलों, वन्य जीवों और पर्यावरण से नाता रखने वाले लोगों का मानना है कि यदि ऐसा होता है तो जल-जंगल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने के साथ दुर्लभ वन्य जीवों के जीवन पर भी संकट के बादल मंडराने लगेंगे। वैसे भी जंगलों में बढ़ती इंसानी आहटों और जल संकट ने वन्य जीवों को संकट में डाल दिया है। जो इनके (जानवरों) पलायन और विलुप्त होने से लेकर जंगलों, हरियाली के सिमटते जाने का कारण बनते आ रहे हैं।

पूर्व में 1320 मेगावाट की परियोजना ‘वेलस्पन पावर एनर्जी’ के नाम से मड़िहान तहसील क्षेत्र के देवरी जंगल में विद्युत उत्पादन इकाई खुलने वाली थी, लेकिन वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए लगे युवा कार्यकर्ताओं के लंबे संघर्ष के बाद ‘वेलस्पन पावर एनर्जी’ उल्टे पांव भाग खड़ी हुई थी। कई वर्षों के बाद पुनः जंगल में आहटें होने लगी हैं। घनघोर जंगल में इंसानी चहलकदमी बढ़ने और वाहनों के आवागमन के लिए रास्ते को विस्तार देने के बाद घेरे बंदी भी शुरू हो गई है। इससे एक बार पुनः वन्य जीवों की जीवन सुरक्षा और भविष्य में उत्पन्न होने वाली परेशानियों को लेकर बहस छिड़ गई है।

इसी मसले पर पिछले दिनों ‘विंध्य बचाओ अभियान’ ने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी भेज जल्दी कारवाई करने की मांग की है। पूर्व में इसी स्थान पर वेलस्पन पावर एनर्जी द्वारा तापीय विद्युत परियोजना प्रस्तावित था। जिसको राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने पर्यावरण स्वीकृति को अवैध करार देते हुए 21 दिसंबर 2016 में रद्द कर दिया था। बाद में यह परियोजना अडानी ग्रुप को हस्तांतरित किया गया। कम्पनी इससे पहले भी कई बार इस स्थान पर कभी सड़क तो कभी जंगल सफाई का कार्य लेने की कोशिश करती रही है, लेकिन विंध्य बचाओ के कार्यकर्ताओं ने मुस्तैदी के जल-जंगल और वन्य जीवों को बचाने की खातिर हर अवैध कार्यों को राज्य सरकार और भारत सरकार के मदद से रोकती आई है। जिस स्थान पर यह प्रोजेक्ट प्रस्तावित था वह मड़िहान के जंगलों का अभिन्न अंग है और इसे गैर वन भूमि दिखाने की कोशिश कम्पनी सालों से करती आ रही है।

“भालू संरक्षण रिजर्व” के लिए प्रस्तावित जंगल को नष्ट करने की योजना

यह जंगल मिर्जापुर वन प्रभाग द्वारा वर्ष 2019 में “भालू संरक्षण रिजर्व” के लिए भी प्रस्तावित किया गया था, लेकिन राज्य सरकार ने इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं किया। जहां पर पावर प्लांट को स्थापित किए जाने को कदम बढ़ाए जा रहे हैं वह स्थल मड़िहान वन रेंज के बीचोंबीच है। यह भूमि जिसमें कई संरक्षित वन्यजीव रहते हैं। 2019 में DFO ने इसको भालू संरक्षण रिजर्व घोषित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग को प्रस्ताव भी भेजा था। यह जंगल पूरे भारत वर्ष के लिए प्राचीन प्राकृतिक संपदा है और यहां पाए जाने वाले कई जंगली जानवर उत्तर प्रदेश में दुर्लभ है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि DFO मिर्ज़ापुर और SDM मड़िहान ने इस साल कोई रिपोर्ट भेज कर उक्त वन भूमि को गैर वन दिखाने की कोशिश की है, जिसका इस्तेमाल करते हुए शायद कम्पनी दोबारा अपना पावर प्लांट लगाने की उम्मीद कर रही है। तो दूसरी ओर विंध्य बचाओ अभियान के कार्यकर्ता इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेते हुए, इस पर कानूनी कार्रवाई करने को तैयार हैं।

मिर्ज़ापुर और उत्तर प्रदेश के इस बहुमूल्य जंगलों को बचाने के लिए विंध्य बचाओ अभियान पिछले 14 सालों से मिर्ज़ापुर में कार्यरत है जिसके कार्यकर्ता जल जंगल से लेकर वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में निःस्वार्थ भाव से अपना योगदान देते हुए आए हैं। विंध्य बचाओ अभियान से जुड़े हुए मिर्ज़ापुर के वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार उपाध्याय “जनचौक” को बताते हैं कि जिस तरह से मड़िहान के जंगलों में अतिक्रमण बढ़ रहा है वह आगामी दिनों में पर्यावरण संरक्षण को गहरा आघात पहुंचाने वाला होगा। समय रहते इस पर गंभीरता से विचार करते हुए इन्हें बचाने के उपाय नहीं किए गए तो वह दिन दूर नहीं जब हरियाली के बजाए यहां कंक्रीट के जंगल नज़र आएंगे जिसके परिणाम क्या होंगे इसका भी आंकलन सहजता से किया जा सकता है।”

शिवकुमार उपाध्याय की बातों में भविष्य के वह परिणाम छुपे हुए हैं जो भले ही लोगो को न दिखलाई देते हों, लेकिन उसके गंभीर रूप आने वाले समयों में खुद ब खुद देखने को मिलेंगे। पिछले कई वर्षों से निरंतर पौधरोपण करते आए अनिल कुमार सिंह उर्फ ग्रीन गुरु कहते हैं “जल-जंगल, हरियाली धरती के श्रृंगार और मानव जीवन के लिए जीवनदाता हैं। जिनसे हमें स्वच्छ हवा और बेहतर जीवन प्राप्त होता है। वहीं वन्य जीव भी जंगलों पहाड़ों की रौनक और खूबसूरती के पोषक होते हैं। दोनों के बिना इनका जीवन अधूरा होता है और इन दोनों के ही संरक्षण में मनुष्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कालांतर में अब यही मनुष्य इन्हें नष्ट करने पर तुला हुआ है जो पर्यावरण संरक्षण को चोट पहुंचाने जैसा कृत्य है जिस पर रोक न लगा तो परिणाम घातक होंगे”

धनबल-बाहुबल के सामने ध्वस्त हो रहे नियम क़ानून

मिर्ज़ापुर जिले के मड़िहान तहसील क्षेत्र के कुनबिया मार जंगल से होते हुए जोगिया दरी जाने वाले मार्ग को पूरी तरह से रोक दिया गया है। इतना ही नहीं अब गेट बनाकर लोगों के आवागमन पर पूरी तरीके से पाबन्दी लगा दिए जाने की भी जोर-शोर से तैयारी की जा रही है। जंगल में हरे पेड़ों खैर, शीशम आदि कीमती पेड़ों की कटाई करने के बाद जंगली मार्ग पर बिना परमिशन के मोरंग और मिट्टी डाल दिया गया है। जबकि बिना राज्यपाल की अनुमति के वन विभाग की जमीन पर किसी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं हो सकता। लेकिन धनबल, बाहुबल के सामने क्या नियम, क्या क़ानून? यह तो सीधे-साधे लोगों पर लागू होता है। जबकि धनबल और बाहुबल के सामने तो नियम क़ानून की दुहाई देने वाले अधिकारी भी घुटने टेक देते है।

ऐसा ही नजारा जोगिया दरी में देखने को मिल रहा है जहां कम्पनी के द्वारा वगैर वन विभाग के अनुमति के जंगल में खैर, शीशम जैसे कीमती पौधों को काटकर मोरंग, मिट्टी इत्यादि डालकर मनमाने ढंग से रास्ते बना दिए गये है और उन रास्तों पर अब कम्पनी के बड़े-बड़े वाहन फर्राटा भर रहे हैं। भारी वाहनों के हॉर्न बजने से जंगली जानवर कांप उठते हैं और अब जंगल को छोड़कर भाग रहे हैं। जबकि जंगल में भारी वाहनों के तेज ध्वनि व हॉर्न बजने से कुछ जानवरों के हृदयगति पर भी खतरा होता है, हालांकि कंपनी के इस मनमानी रवैये से क्षेत्र के लोगों में आक्रोश है।

तीन तरफ से जंगलों से घिरे इस कंपनी के द्वारा बिना किसी परमिशन के प्रतिबंधित प्रजातियों के पेड़ों की कटाई कर दी गई, लेकिन सुरक्षा के दृष्टि से नियुक्त वन विभाग के रेंजर, वाचर एवं जिले के अधिकारी कर्मचारी कुम्भकरणी निद्रा में सोते रहे हैं। ऐसे अधिकारी किस ढंग से वन की सुरक्षा कर रहे हैं और इनसे क्या वन क्षेत्र सुरक्षित रह पायेगा यह सोचनीय है। बरसात होने से एक ओर सैलानी इसी रास्ते से होकर जोगिया दरी के विहंगम नजारे को देखने के लिए लालायित होते हैं वहीं मार्ग बन्द किए जाने से लोगों को परेशानी भी होने लगी है। आधे रास्ते से उन्हें वापस लौटना भी पड़ रहा है, जबकि इस जंगल में विभिन्न प्रकार के जानवर भी पाए जाते हैं। इस बाबत वन क्षेत्राधिकारी देवेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि जंगल की भूमि पर किसी प्रकार से सड़क नहीं बनाई जा सकती मामले की जांच कर कार्यवाई की जाएगी। यह कार्रवाई कब व किस प्रकार से की जाएगी यह कोई बताने को तैयार नहीं है।

जंगल की हरियाली काट कर प्लॉटिंग करने की ज़िद ने बढ़ाई परेशानी

विंध्य क्षेत्र की हरी-भरी वादियों, पहाड़ों पर आच्छादित वन और वन्य प्राणियों को भू-माफियाओं से भीषण खतरा है। जंगल तेजी से सिमटते जा रहे हैं और जंगल में रहने वाले वन्य जीव विलुप्त हो रहे हैं। जंगल और पहाड़ पर मड़हा डाल कर रहने वाले कोल मुसहर जैसी आदिवासी वनवासी जनजातियों को प्रशासन जंगल से खदेड़ने का काम करता है, जबकि दूसरी तरफ भू-माफियाओं को जंगल काट कर वन भूमि पर कंक्रीट की इमारतें खड़ी करने की प्रशासन से इजाजत मिल जा रही है। परिणाम ये हुआ है कि जंगल की हरियाली काट कर प्लॉटिंग करने का काम तेज गति से हो रहा है। शासन, प्रशासन, वन विभाग और राजस्व विभाग आंखें मूंदे हैं। मिर्जापुर जनपद का मड़िहान और हलिया का वन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के सबसे बेहतरीन उष्ण कटिबंधीय पतझड़ वनों के लिए जाना जाता है। यहां की जैव विविधता असाधारण एवं लोकप्रिय है।

मिर्जापुर के मड़िहान वन क्षेत्र में स्लॉथ, भालू, तेंदुआ, गिद्ध (अब तो विलुप्त हो चुके), चिंकारा, काला हिरन, गोह, मगरमच्छ, जंगली सुअर, अजगर आदि वन्य जीवों का वास है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इन वनों में विध्वंसक परिर्वतन हो रहा है। इससे जंगल और हरियाली के अस्तित्व पर ग्रहण लगता जा रहा है। जंगलों को खत्म कर तेजी के साथ हो रहे अवैध कब्जे, वन की कटाई और कंक्रीट के निर्माण कार्यों के साथ-साथ अवैध पत्थर के अंधाधुंध खनन से स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। उपर से सरकारी मुलाजिमों की चुप्पी इन्हें बढ़ावा दे रहे हैं।

जंगल के तेज दोहन के कारण ही कुछ वर्षों पूर्व मड़िहान के जंगलों से भटक कर एक बाघ पड़री क्षेत्र के गांवों की ओर आ गया था। इसी प्रकार 16 जून 2017 को मड़िहान के जंगल से प्यास से तड़पता हुआ एक भालू सुबह के वक्त नकटी मिश्रोली गांव में घुस गया था। जिससे पूरे गांव में खलबली मच गई थी। काफी मशक्कत के बाद वन विभाग और पुलिस टीम ने ग्रामीणों के सहयोग से उसे पकड़ कर फिर जंगल में छोड़ा। मड़िहान का जंगल भालू के लिए प्रसिद्ध है। वन विभाग के रिकार्ड में भी जंगल में भालुओं की अच्छी खासी संख्या दिखाई जाती है। भीषण गर्मी में वन्य जीवों के समक्ष पीने के पानी का गंभीर संकट होता है। वर्ष 2017 में मड़िहान जंगल के नकटी मिश्रौली गांव से लगे गांव में बाघ दिखाई दिया था। वन विभाग और कानपुर चिड़ियाघर की टीम दो दिनों तक उस बाघ की तलाश में जुटी रही, लेकिन नाकाम रही।

मुख्यमंत्री से लगाई गुहार, पर नहीं सुनी गई पुकार

मिर्ज़ापुर के वन क्षेत्र में किए गए अवैध कब्जों को हटाए जाने को लेकर पूर्व में विंध्य बचाओ अभियान ने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को एक ज्ञापन सौंपा था। संस्था से जुड़े देवादित्य सिन्हा और वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार उपाध्याय ने मुख्यमंत्री से मिल कर मांग की थी कि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वन एवं वनों के आसपास सभी निर्माण पर तुंरत रोक लगाई जाय। इन्होंने प्राचीन वन भूमि पर किए गए कब्जे को हटा कर दोषियों पर कार्रवाई करने और मामले की सीबीआई जांच कराने की भी मांग की थी। ताकि, वन भूमि पर अवैध कब्जा करने के साथ प्लॉटिंग के काम में लगे लोगों और कंपनियों का खुलासा हो सके, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।

सरकारी उपेक्षा और प्रशासनिक मिलीभगत का नतीजा रहा है कि दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों और भालुओं वाले मड़िहान के जंगल की पहचान मिटती जा रही है। इसी जंगल के देवरी इलाके में पूर्व में ‘वेलेस्पन पावर एनर्जी’ की ओर से 1320 मेगावाट की बिजली परियोजना प्रस्तावित रही है, जो पूरी तरह से विवादों में घिरी रही। वेलेस्पन के खिलाफ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में याचिका भी दायर की थी। कंपनी ने ग्रामीणों की जमीन को औने-पौने दामों पर दलालों और दबंगों के माध्यम से हथियाने का काम भी शुरू कर दिया था, जिसमें कंपनी को पुलिस और प्रशासन का भी खूब साथ मिला।

विडंबना ये है कि मड़िहान के जंगल से लगे रोड एसएच-5 के किनारे के वन को काट कर तत्कालीन समय में मुलायम सिंह यादव विश्वविद्यालय का निर्माण कराया गया। वहीं दूसरी तरफ, वन क्षेत्र उजाड़ कर वहां साइन सिटी विंडम, माउंटेन सिटी हेवन, स्पेजियो स्मार्ट सिटी बसाने की भी तैयारी रही है। कल तक जहां हरे भरे वनों की घनी हरियाली देखने को मिलती थी, आज वहां ‘यहां प्लॉट विकाऊ है’ के बड़े-बड़े बोर्ड लगे दिखते रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं के दृढ़ संकल्प और कड़े कदम का ही परिणाम रहा कि जंगल की जमीन पर कब्जा करने वाले लोगों की जमीन हिलने लगी थी आनन-फानन में मुलायम सिंह यादव विश्वविद्यालय के बोर्ड को देखते ही देखते हटा दिया गया। यह अलग बात रही है कि शासन-प्रशासन और वन विभाग की अनदेखी के चलते पुनः यहां के जंगलों में दूसरे नामों से बड़े शिक्षण संस्थान को खोलने की इजाजत दे दी गई है।

अभियान को रोकने के लिए कार्यकर्ताओं पर हुए हमले

वेलेस्पन पावर एनर्जी से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरूक करने और आंदोलन करते आ रहे विंध्य बचाओ अभियान के कार्यकर्ताओं पर क्या-क्या नहीं हुए, यह बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार उपाध्याय की आंखें भर आती हैं। वह बताते हैं कि “एक कार्यक्रम में भाग लेने जाते समय जंगल में रास्ता भटक जाने के दौरान संस्था के सदस्यों को कंपनी के लोगों और मड़िहान पुलिस ने मिल कर प्रताड़ित किया और उनके कैमरे वगैरह लूट लिए थे। दबंगई के बल पर उन लोगों को दबाने का काम किया गया। विंध्यक्षेत्र के जंगलों, खासकर मड़िहान क्षेत्र के जंगलों को बचाने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मिर्जापुर स्थित दक्षिणी परिसर के शिक्षकों एवं छात्रों द्वारा भी अभियान चलाया गया था। इसके अलावा पर्यावरण और वन संरक्षण के मसलों पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में याचिकाएं भी दायर की गई। इसके बावजूद पूरा तंत्र आंखें बंद कर निर्लज्जता और घृष्टता से भ्रष्ट आचरण में लगा हुआ रहा है।

संरक्षण के अभाव में विलुप्त हो रहे वन्य जीव

जल और जंगलों के तेजी के साथ हो रहे दोहन ने वन्य जीवों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले जतन पर सवाल खड़े करते हुए महकमे की कागजी कार्रवाई को भी घेरे में खड़ा किया है। कैमूर वन्य जीव बिहार क्षेत्र के अन्तर्गत पाए जाने वाले जंगली वन्य जीव विलुप्त होते जा रहे हैं। इनके संरक्षण का कोई ठोस इंतजाम न होने से इनकी संख्या में कमी आ रही है। कुछ जीव तो विलुप्त भी हो चुके हैं। ऐसे ही चलता रहा तो भालू, तेंदुआ, काले हिरन इत्यादि वन्य जीवों के लिए मशहूर यह अभ्यारण्य क्षेत्र विरान हो जाएगा। जानकार बताते हैं कि मिर्ज़ापुर के जंगलों में खासकर मड़िहान और हलिया से लगने वाले जंगलों में 1965 तक शेर की दहाड़ सुनाई दिया करते थे। मड़िहान का जंगल राजगढ़ अहरौरा, के जंगलों के रास्ते सोनभद्र चंदौली के घने जंगलों से होते हुए बिहार राज्य की सीमा से लग जाता है। इसी प्रकार हलिया के जंगल पड़ोसी जनपद प्रयागराज से लगे होने के साथ-साथ मध्य प्रदेश राज्य के जंगलों से जुड़े हुए हैं। मड़िहान और हलिया के जंगलों का भी आपस में जुड़ाव जो पटेहरा, सिरसी, संतनगर के जंगलों पहाड़ों से होते हुए हलिया से लगे हुए हैं। ऐसे में यह वन्य जीवों के लिए काफी मुफीद हुआ करते थे। पहाड़ी नदी नालों के जलस्रोत और हरे-भरे विशाल जंगल इनका उपयुक्त ठौर ठिकाना हुआ करता था।

शिकारियों की गिद्ध दृष्टि के बाद भू-माफियाओं, लकड़ी माफियाओं के बाद अब कार्पोरेट घरानों की नज़र जंगल की जमीनों पर पड़ जाने से इनके अस्तित्व पर घोर संकट के बादल मंडरा उठे हैं। कभी मिर्ज़ापुर के जंगलों में करीब डेढ़ सौ प्रजाति के वन्य जीव पाए जाते थे, कालांतर में यह संख्या घटी अब बचे-खुचे वन्य जीवों के अस्तित्व को बचाने के जतन को कौन है। इनको पतन की ओर ले जा रही है। मिर्ज़ापुर जनपद का वन क्षेत्र 94 हेक्टेयर से अधिक हैं, लेकिन करीब 25 हजार हेक्टेयर में फैले कैमूर वन्य जीव बिहार का जंगली क्षेत्रफल काफी घना है। जो मध्य प्रदेश के रीवा, हनुमान, सीधी से लेकर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, सोनभद्र व चंदौली जनपद से सटा हुआ है, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस क्षेत्र में अवैध खनन व वनों की हो रही अंधाधुंध कटाई के चलते जंगल विरान होते जा रहे हैं। इसके अलावा काले हिरन व गुलदार (तेंदुआ) जैसे जानवरों का शिकार किया जाना भी इनकी संख्या में कमी का कारण बना है। साथ ही इनके संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं किए जाने से ये जानवर दूसरे प्रांतों के जंगलों का रूख कर ले रहे हैं। हालांकि वन विभाग ने इनके संरक्षण करने के लिए कदम उठाने की बात तो करता है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा सके हैं, ताकि इनके शिकार पर लगाम लग सके।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जताई चिंता

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर वन प्रभाग के मड़िहान रेंज के ददरी खुर्द से सटे जंगली क्षेत्र में मशीनरी के उपयोग करके बड़े पैमाने पर वनस्पति की सफाई और सड़कों और अन्य संरचनाओं के निर्माण पर चिंता जताई है। इस क्षेत्र को 1952 में वन के रूप में अधिसूचित किया जाना था, लेकिन नहीं किया गया और अब पिछले साल पारित एक नए कानून की शर्तों के तहत इसे विकसित किए जाने का खतरा है। कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह की कंपनी द्वारा विकसित की जा रही थर्मल पावर परियोजना के लिए डीम्ड वन भूमि पर विचार किया जा रहा है।

एफसी संशोधन अधिनियम या वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम 2023 जो पिछले साल पारित किया गया था, अनियंत्रित डीम्ड वनों को इसके दायरे से पूरी तरह छूट देता है, जिससे विभिन्न बुनियादी ढांचे और अन्य परियोजनाओं के लिए उनके डायवर्जन का मार्ग प्रशस्त होता है। विंध्य पारिस्थितिकी और प्राकृतिक इतिहास फाउंडेशन ने 28 जून 2024 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को “वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम1980 और नियमों के गंभीर उल्लंघन पर लिखा था। उत्तर प्रदेश में मिर्ज़ापुर वन प्रभाग के मरिहान रेंज में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986।” यह क्षेत्र प्रस्तावित स्लॉथ भालू संरक्षण रिजर्व का हिस्सा है और असाधारण रूप से समृद्ध और खतरे वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है

इसी साइट (स्थान) को एक बार मेसर्स वेलस्पन एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 1320 मेगावाट कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट के लिए प्रस्तावित किया गया था, जिसे बाद में मिर्ज़ापुर एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड को स्थानांतरित कर दिया गया था। रोचक बात यह है कि जब यह परियोजना वेलस्पन एनर्जी के पास थी, तब इसकी पर्यावरणीय मंजूरी को रद्द कर दिया गया था।

परियोजना प्रस्तावक द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका को भी रद्द कर दिया गया था। अडानी पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड (एमटीईयूपीपीएल) ने अब नई संदर्भ शर्तों (टीओआर) के लिए आवेदन किया है, जो कि पर्यावरण-मानसिक मंजूरी की प्रक्रिया में पहले कदमों में से एक है, जैसा कि वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार है। पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट प्रस्ताव में कहा गया है कि यह ग्राम ददरी खुर्द, तहसील मड़िहान जिला मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश में 2×800 मेगावाट कोयला आधारित अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्रोजेक्ट (टीपीपी) के लिए है, जिसे 8 मई, 2024 को प्रस्तुत किया गया था। भूमि 1600 मेगावाट क्षमता के प्रस्तावित विद्युत स्टेशन के लिए लगभग 365.19 हेक्टेयर क्षेत्र की आवश्यकता है। जिसमें से 364.57 हेक्टेयर गैर वन भूमि है और 0.62 हेक्टेयर संयंत्र सीमा के अंदर वन भूमि है।

एनजीटी मामले के याचिकाकर्ता देबादित्यो सिन्हा ने बताया कि “प्रस्तावित परियोजना सभी दिशाओं में अधिसूचित रिजर्व वन से घिरी हुई है और मिर्ज़ापुर के मड़िहान वन रेंज के अंदर स्थित है। यह क्षेत्र वन्य जीव और कई नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण है जो परियोजना स्थल के ठीक अंदर बहती हैं। परियोजना प्रस्तावक ने 2010 से वन क्षेत्र में बदलाव करना शुरू कर दिया और 2014 में इसे बंजर भूमि के रूप में दिखाकर पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त कर ली थी। बाद में एनजीटी ने 2016 में पर्यावरणीय मंजूरी को रद्द कर दिया था और इसे घटिया प्रभाव मूल्यांकन पर जोर देने के साथ ‘दागदार’ करार दिया और फैसले की समीक्षा करने से इनकार कर दिया। बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील वापस ले ली।”

वह आगे भी बताते हैं कि “यूपी राज्य राजपत्र के अनुसार 1952 की अधिसूचना, प्रस्तावित ‘ददरी खुर्द’ नामक स्थान जो वन विभाग में स्थानांतरित था, इसे भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत अधिसूचित किया जाना आवश्यक था, जो अभी भी लंबित है। हालांकि, इस क्षेत्र को ‘सरकारी रिकॉर्ड’ में दर्ज ‘वन’ के रूप में माना जाना चाहिए, जैसा कि 1980 के वन अधिनियम की धारा 1 ए और टीएन गोदावर्मन मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत परिभाषित किया गया है। यह क्षेत्र वन्य जीव विविधता में इतना समृद्ध और अद्वितीय है कि पूरे मड़िहान को घोषित करने का प्रस्ताव है।
सिन्हा ने बताया कि, ”स्लोथ बीयर कंजर्वेशन रिजर्व’ के रूप में इसके निकटवर्ती वन रेंज के साथ रेंज को 2019 में प्रभागीय वन अधिकारी, मिर्जापुर द्वारा आगे बढ़ाया गया था।”

थर्मल पावर प्रोजेक्ट से उत्पन्न होगी पानी की समस्या

पूर्व में वेलस्पन पावर एनर्जी को लेकर जो चिंताएं जताई गई थी वही चिंताएं अडानी कंपनी के पावर प्लांट को भी लेकर जताई जा रही हैं। लोगों का कहना है मड़िहान के जंगलों के नष्ट होने से महज जंगली जीव जंतुओं, पर्यावरण को ही खतरा होने वाला नहीं है, बल्कि आसपास के इलाकों में पानी का संकट भी गहरा जाएगा जिसका सीधा असर खेती किसानी से लेकर आस-पास के रहवासियों के नित्य जीवन पर भी सीधा असर डालेगा। इससे पलायन, भुखमरी जैसी संभावनाओं को भी बल मिल सकता है। बहरहाल देखना अब यह है कि सरकार इस गंभीर मसले पर क्या निर्णय लेती है। वैसे भी इलाकाई जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और इस क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण को बढ़ावा देने में इनकी उदासीनता किसी हैरत से कम नहीं है।

(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी )

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