-सुसंस्कृति परिहार
आजकल जब भी आज के जननायक की बात होती है तो राहुल गांधी का नाम ही आता है। पिछले दस वर्षों के सघन प्रयासों में उनके तमाम मंतव्य जन जन की आकांक्षाओं और समस्याओं को जानने समझने में खर्च हुए। मनमोहन सिंह जी की सरकार में उन्होंने दो बार प्रधानमंत्री बनने का आफर ठुकराया।ऐसा ही उनकी माता सोनिया जी ने किया उनका सारा संघर्ष कांग्रेस की रीति नीति को बचाकर जनहित के चल लिए रहा।2024में जब इंडिया गठबंधन ने चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को बहुमत से पीछे कर दिया तब लोगों ने उनसे सरकार बनाने का आग्रह किया पर उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति से अलहदा प्रतिपक्ष में बैठकर सत्तारुढ़ पार्टी से ही लोकतान्त्रिक तरीके से काम लेने का मन बनाया गठबंधन ने उन्हें प्रतिपक्ष का नेता भी सर्वानुमति से बना दिया।
राहुल ने प्रतिपक्ष के नेता की हैसियत से अपने पहले उद्बोधन में ही सत्तापक्ष को दिन में तारे दिखा दिए जो देश की जनता की समस्याओं और देश की बदतर हालात का पिटारा था।इसका परिणाम सहज रुप से यह हुआ कि देश की जनता को उनमें जननायक की छवि दिखने लगी है इसका सुफल हाल ही में सम्पन्न उपचुनावों में देखने मिला हैं जिसमें 13 में से सिर्फ 02 अंक ही भाजपा गठबंधन को मिल पाया शेष 11 जगह इंडिया गठबंधन ने जीतकर इनका सूपड़ा साफ कर दिया। राहुल बराबर आज भी अपने लक्ष्य में लगे हैं।आमजन के बीच पहुंच कर उन्हें दहशत से दूर करने और लोकतांत्रिक शक्ति को समझाने में ज्य़ादा वक्त ज़ाया करते हैं।
महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जिस राहुल गांधी को अडानी का बीस हज़ार करोड़ का सदन में हिसाब मांगने की वजह से संसद से निकाला गया। सरकार को’ हम दो- हमारे दो’ कहकर आईना दिखाया। चुनाव के दौरान मोदीजी ने मुकेश अंबानी और गौतम अडानी पर इल्ज़ाम लगाया कि वे आटो भर भर नोट राहुल गांधी को भेज रहे हैं। विगत दिनों उनमें से एक मुकेश अंबानी के छोटे पुत्र की शादी में किस मुंह से पहुंच गए। हालांकि यह सब भाजपा और संघ के चाल-चलन के अनुरूप था।खास बात तो यह रही कि जिसको कथित पैसे देने की बात कही गई वे वहां झांकने भी नहीं गए।आम लोगों के बीच पिज्जा खाते नज़र आए।जिसने राहुल गांधी को जन नायक बना दिया जबकि साहिबे आलम के इस कदम से जनता में खौल है।जियो की लूट से वैसे ही लोग सदमें में हैं धनकुबेरों के घर का वैभवशाली प्रदर्शन उन्हें कचोट रहा है।
आमलोगों ने इनके आलीशान वैवाहिक आशीर्वाद समारोहों में जिन राजनीति से जुड़े महान लोगों को देखा उनके प्रति भी साफ़ साफ़ नफ़रत भाव देखा जा रहा है जो धन की आभा से आभासित होते देखे गए ।अफ़सोसनाक यह है कि इस तमाशे बाजी में दो दो शंकराचार्य पहुंच गए।लोग उन थूक रहे हैं।सोशल मीडिया पर लोग इनके ख़िलाफ़ मुखरता से लिख रहे हैं।इस सब को देखकर लगता कि पूंजीवाद के पनपने की वजह यही लोग हैं जो ऐसे समारोह में जो जनता की लूट से होते हैं पहुंचकर उनकी शक्ति को बढ़ा रहे हैं तथा देश का धन केन्द्रित कर रहे हैं।
ऐसे ही कठिन वक्त में राहुल गांधी का धनबली के यहां ना पहुंचना उन्हें लोकप्रिय जन का नायक बनाता है।जबकि यह सच है कि कि मुकेश अंबानी सपत्नीक सोनिया गांधी जी को घर जाकर आमंत्रण पत्र देकर आए थे। जिसकी मीडिया में चर्चा आई लेकिन अन्य नेताओं शंकराचार्य वगैरह के घर उनके जाने की ख़बर कहीं से नहीं मिली।इसे इस परिवार की ताकत के रूप में भी देखा जाना चाहिए।जिसने लुटेरों का आमंत्रण ठुकराया। वर-वधू को शुभाशीष ज़रुर दिया गया।यह राहुल की डरो- मत डराओ मत रीति और जन नीति का परिचायक है। जो उन्हें इस समय देश में सबसे सक्षम नेता सिद्ध कर रहा है।