अग्नि आलोक
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★फसल घृणा की काटो जी★

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थूक थूक कर चाटो जी
गोबर करके पाटो जी
जनविकास की शंख बजा
नित्य नए सपने दिखला
पहनो बेशर्मी का ताज
करना नहीं लोक की लाज
जबरा आगे पूंछ हिलाओ
अबरा से रंग गांठो जी
करते रहो घात प्रतिघात
करते जाओ मन की बात
अगर विरोधी ठोंके ताल
देशद्रोह का फंदा डाल
अगर भौकने से न माने
दौड़ दौड़ कर काटो जी
खेती लूट किसानी लूट
नम आंखों के पानी लूट
बचपन और जवानी लूट
नदियों की रवानी लूट
जल जंगल जमीन लूटो सब
आपस में मिल बांटो जी
मंदिर मस्जिद खेला खेल
पेरो बालू निकरै तेल
धर्म ध्वजा फहराओ जी
गंगा पूत कहावो जी
धर्म ही ओढ़ो धर्म बिछाओ
धरम चासनी चाटो जी
विश्वगुरू की ऊँची शान
राष्ट्रवाद का पूड़ी छान
लोकतंत्र की हत्या कर
संविधान से तनिक न डर
खेती करो जाति मजहब की
फसल घृणा की काटो जी

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