हर बार तुम ही नहीं कतरोगे*
हमारी इच्छाएं
हमारी हंसी
हमारे गीत
हमारे पंख!
हम भी कतर देंगे
तुम्हारी कतरने की
इच्छा, दंभ
पौरुष और
तुम्हारी सत्ता!!
अमिता शीरीं
कैसे चुप रहें, कबतक चुप रहें,
क्या चुल्लू भर पानी में डूब मरें,
जिंदगी और जान अभी बाकी है,
आन और शान अभी बाकी है,
क्यों और कबतक डरूँ मौत से,
क्या डरने से मौत भाग जाएगी,
कहो तो कहीं छुप जाऊँ,
क्या छुपने से मेरे पास नहीं आएगी,
तुम हमें क्यों नहीं सोचने देते,
क्यों नहीं कुछ करने देते,
क्या दिक्कत है हमारे बोलने से,
क्यों डरते हो हमारे सोचने से,
क्या अंधा बन जाऊं आंख रहते,
गूंगा बना रहूँ सब कुछ सहते,
क्या हम आदमी नहीं,
क्या आदम की संतान नहीं,
हमारे तन में दिमाग भी है,
दिल, जज्बे और अरमान भी हैं,
क्या दिल हमारा धड़कता नहीं,
क्या मेरा सीना फड़कता नहीं,
हमें भी खुशी होती है, दर्द होता है,
जानते हैं हम, क्या गर्म, क्या सर्द होता है,
हम कोई गुलाम तो नहीं,
हम अंधे और बहरे तो नहीं,
जख्म हमारे कोई कम गहरे तो नहीं,
नहीं, हम चुप नहीं रहेंगे,
हम अब अत्याचार नही सहेंगे,
हमें बोलना आता है,
हमें लड़ना भी आता है,
हम लड़ेंगे अंतिम दम तक,
जबतक मंजिल आ न जाए हम तक.
राम अयोध्या सिंह
जिस देश की माओं बहनों को
अगयार उठा कर ले जाएं
जिस देश के क़ातिल गुंडों को
अशराफ़ छुड़ा कर ले जाएं
जिस देश की कोर्ट कचहरी में
इंसाफ़ टकों में बिकता हो
जिस देश का मुंशी काज़ी भी
मुजरिम से पूछ के लिखता हो
उस देश हर इक लीडर पर
सवाल उठाना वाज़िब है
उस देश के हर इक लीडर को
सूली पर चढ़ाना वाज़िब है ।
फैज़ अहमद फैज़
अगयार = अजनबी
अशराफ = बड़ी ज़ात वाले
सिर्फ़ रोटी का सवाल अपने सामने नहीं
सिर्फ़ रोटी का सवाल अपने सामने नहीं
हमको चाहिए आदमी की ज़िंदगी सही
हमको काम चाहिए , हमें आराम चाहिए
दिन की तल्ख़ धूप और हँसती शाम चाहिए
अपने हाथों से लिख सकें अपना भविष्य हम
हमें उथल-पुथल भरा वो वर्तमान चाहिए
हमें आज़ादी चाहिए , हमें बहार चाहिए
हमको दिल का धड़कता हुआ संसार चाहिए
हमें तो चाहिए ज़िंदगी की हर सही खुशी …
अभी जो शोषणों की चाल रही हैं तेज़ चक्कियाँ
अभी हैं बंदिशें हजार , हैं सहस्र बेड़ियाँ
अभी गुलामियों की बोझ से झुकी हुई कमर
अभी सितम के सामने सहम सी जाती है नज़र
इनका ज्ञान चाहिए , हमें विज्ञान चाहिए
हमको सभ्यता का अब नया विहान चाहिए
अंधकार के ख़िलाफ़ चाहिए रोशनी …
पूरा मुल्क चाहिए , हर ज़मीन चाहिए
हमको पूरी गोल धरती खुश – हसीन चाहिए
हमारे हाथ जुटें और रचें एकता के गीत
अपनी आँखों में हमें नया यकीन चाहिए
हमें ऊँचाइयों से ऊँचा वो आकाश चाहिए
हमको चेतना का गुलमोहर , पलाश चाहिए
सर उठाएँ हम तो लगे उठा है आदमी …
हमको शांति चाहिए , हमको अम्न चाहिए
हमको जंग के ख़िलाफ़ आज जंग चाहिए
हम लड़ें , थकें , झुकें , उठें , बढ़ें और फिर लड़ें
हमें तो जिंदगी का खुला-खुला रंग चाहिए
साँस-साँस में हमें तो नया ख़्वाब चाहिए
डेग-डेग पर अब उठता इंकलाब चाहिए
मुक्त गीत , मुक्त कंठ , मुक्त राग-रागिनी
हमको चाहिए आदमी की ज़िंदगी सही
सिर्फ़ रोटी का सवाल अपने सामने नहीं ।
आदित्य कमल
दर्द दिल पर पहले से ही, कोई कम नहीं,
गर मिल जाए कुछ और भी, कोई गम नहीं.
दर्द से ही तो खेलते रहे हैं, हम सारी जिंदगी,
आह भी सुन ले कभी, इतना किसी में दम नहीं.
जुल्मो-सितम की सेज पर सोते रहे हैं हम,
गहरी नींद में जो सपने न देखे, वो हम नहीं.
हम तोड़ देते मुट्ठियों से, इन पत्थरों को भी,
तोड़ेंगे तेरी छाती भी, करेंगे कोई रहम नहीं.
मुस्कुरा लें हमारे घावों पे, जितना भी जी चाहे,
झुका लें सिर अपना यूँ ही, ये हमारा धरम नहीं.
निहत्थे आंधियों से,बे चिराग लड़े अंधेरों से,
हमको मिटाने वालों ने, कभी किए रहम नहीं.
घाव गहरा कितना भी हो, दर्द अब नहीं होता,
आग से खेलने वाले, खोजते कभी मरहम नहीं.
राम अयोध्या सिंह
मौजे ऐसी भी है साहिल जिन्हें हासिल नहीं होता
मुसाफिर वो भी है मुकाम जिन्हें हासिल नहीं होता
कोई बेखौफ उड़ता है फलक में चांद तारो तक
परिंदे वो भी है आसमा जिन्हें हासिल नहीं होता
बरसते सिर्फ नदियों पर बादल सियासी दबाव में
प्यासे वो सहरां भी है जिन्हें पानी हासिल नहीं होता
तुम्ही मुद्दई तुम्ही मुंसिफ तुम्ही कानून तुम्ही इजलास
अफसोस फिर भी ये इंसाफ क्यों फाजिल नहीं होता
बहस गरम है देश में हिन्दू औे मुस्लिम की मगर
सवाल नागरिक के अधिकार का शामिल नहीं होता
जिना तो जिना है”सरल” किसी बहन बेटी से हो
सवाल औरत के वजूद का कभी गाफिल नहीं होता
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव यूपी
9695164945
फाजिल:: विद्वान
गाफिल: बेसुध,अचेत
देश गान
1
मेरे देश तुम्हें प्रणाम
हम सब काम करें निष्काम
तेरे मिट्टी में हम खेले
लगते हैं जहां नित मेले
तेरा सुंदर सुबह ओ शाम
मेरा देश तुम्हें….
2
तेरी शस्य श्यामला भूमि
सरिता सागर की हर उर्मि
ये सब बढ़ाएं तेरा धाम
मेरा देश तुम्हें…
3
तेरी बलिवेदी पर
बहुतों ने दे दी है जान
सब गाएं तेरा गौरव गान
मेरा देश तुम्हें….
4
शहीदों की शहादतों ने
युग युग रखा तेरा मान
तेरा यश फैला अविराम
मेरे देश तुम्हें…
5
रंग-बिरंगे हैं परिधान
हर सुर लय में तेरा गान
तेरी आभा है अभिराम
मेरे देश तुम्हें …
ब्रह्मदत्त तिवारी
कोई नफरत के टोल्टैक्स पर कब तक रुका रहेगा
कारवां भूख बेकारी का आखिर कबतक रुका रहेगा
गरीब मुर्गे का कत्ल कर देने से सवेरा नहीं रुकेगा
अस्त सूरज का उदय आखिर कब तक रुका रहेगा
सागर की ठंडी हवाओं से कहीं प्यास बुझती है
नदियों का बहाव आखिर कब तक रुका रहेगा
कहानी उन्माद की गढ़ लेने से किरदार नहीं बनते
बलिदानो का इतिहास आखिर कब तक छुपा रहेगा
कानून अवाम के लिए है या अवाम कानून के लिए
जम्हूरियत में तानाशाह आखिर कब तक छुपा रहेगा
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव, यूपी
9695164945
कठपुतली
कठपुतली अपने से कुछ नही कर सकती है
यहां तक की सोच भी नही सकती है
हाथ-पाव हिलाना तो दूर की बात है
कठपुतली काठ की ही नही
इंसानी हांड-मांस की भी सो सकती है
जो चल सकती है
बोल सकती है
आदेश भी दे सकती है
ऐसे कितने ही कठपुतलियों को
मै रोज देखता हूं
हाथ हिलाते हुए
भाषण देते हुए
सत्ता के गोद में खेलते हुए
जिन में से कुछ की डोर
बाइडेन के हाथ में है
तो कुछ की पुतिन के
तो कुछ को शी जेइपिंग नचा रहा है
और ये सब मिल कर इस दुनिया को लड़ा रहे है
ऐसे ही कठपुतलियों का चुनाव
हर पांच साल पर
हमारे देश में होता है
जो किसी जाति या समुदाय का नही
सत्ता का प्रतिनिधि होता है
वो उसी के लिये बोलता है
मुँह खोलता है
जनता के मामले में
हमेशा चुप रहता है
ऐसे कठपुतलियों का चुनाव
जनता को दिखाने
मूर्ख बनाने के लिये होता है
ताकी उसे लगे अपना ही कोई भाई या बहन
कुर्सी पर बैठा है
पर हक़ीकत क्या है ?
इसे सब जानते है ! –
विनोद शंकर
क्या स्त्रियों को त्यागकर ही
महान बना जा सकता है ?
गौतम बुद्ध ने त्याग किया
अपनी पत्नी का ,
छोड़ दिया उसे
अकेला सोती रात में ,
तब जाकर प्राप्त किया ज्ञान।
राम ने त्यागा
अपनी प्रियतमा सीता को
तब कहलाये “मर्यादापुरुषोत्तम “
क्यों समझा जाता रहा है ,
रोड़ा
स्त्रियों को अपनी मंजिल का ?
क्या नहीं बन सकता कोई महान ,
एक स्त्री के साथ चलकर
क्या नहीं पा सकता कोई अपनी मंजिल ,
एक स्त्री का साथ पाकर।
कब समझेगा हमारा समाज,
और कब समझेंगे
प्रगतिशीलता और स्त्रियों की वकालत का डंका पीटने वाले
ये लोग ,
कि, एक स्त्री
दुःख का कारण और रास्ते के पत्थर से
आगे कुछ है …………….. …..
ईप्सा शताक्षी
हिजाब
गर तुम जबरन हिजाब थोपोगे ,
तो मैं हिजाब के खिलाफ हूं ।
गर तुम मेरा हिजाब नोचोगे ,
तो मैं हिजाब के साथ हूं ।
हिजाब पहनूं या न पहनूं
यह मेरा मामला है ।
तुम नाहक नाक घुसेड़कर ,
क्यों खड़ा करते हो झमेला ।
युगल किशोर शर्मा
गया