,मुनेश त्यागी
पूंजी मजदूरों का शोषण करती है
तो मेहनत मोहब्बत की दुकान सजाती है।
पूंजीपतियों के पास लाभ कमाने की हवस होती है
तो मजदूर को उत्पादन करने की चाह।
उत्तराखंड के रिषीकेश की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के सकुशल बाहर निकलने पर पूरे देश की जनता ने राहत की सांस ली है। यहां पर कुछ बातों की चर्चा करनी बहुत जरूरी है जो इस हादसे में देश के सामने आई है। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में 41 मजदूरों को सुरंग में मरने खपने के लिए छोड़ दिया गया था। उनको निकालने के लिए देश-विदेश की सारी जुगत फेल हो गई थी। मॉडर्न टेक्नोलॉजी भी धरी की धरी रह गई थी। आखिरकार 17 दिनों से फंसे इन 41 मजदूरों को निकालने के लिए “रैट माइनर्स” का सहारा लिया गया और भारत के इन बहादुर 12 मजदूरों ने अपनी जान पर खेल कर अपने साथी 41 मजदूरों को मौत के मुंह से निकाल लिया।
इन 12 मजदूरों के नाम इस प्रकार हैं,,,, वकील, मुन्ना, फिरोज, मोनू, नसीम, इरशाद, अंकुर, रशीद, जतिन, नासिर, सौरभ और देवेंद्र। इन 12 मजदूरों ने लगातार बिना रुके 26 घंटे काम किया, सारी बाधाएं पर की और जीत हासिल की और अपने 41 मजदूर साथियों को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया। कई सारे सांप्रदायिक प्रवृत्ति के लोग इन मजदूरों को हिंदू मुसलमान कहकर प्रदर्शित कर रहे हैं। दरअसल उनकी यह सोच गलत है। ये सारे मजदूर मेहनतकश हैं ये हिंदू मुसलमान नहीं, ये भारत के असली सपूत हैं। असली देशभक्त हैं, असली भारतीय यानि हिंदुस्तानी हैं। ये सभी भारत के मजदूर वर्ग के असली नुमाइंदे हैं।
ये 12 मजदूर रेट माइनर्स दिल्ली की “रोक्वेल इंटरप्राइजेज” कम्पनी के मजदूर हैं, जो सीवर और पानी की लाइनों को साफ करने का काम करते हैं। जब 25 नवंबर को सारी मशीनें नाकाम हो गईं, तो इन जांबाज मजदूरों को बुलाया गया। घटना स्थल का पूरा मौका मुआयना करने के बाद, इन्होंने चार-चार मजदूरों की तीन टीमें बनाईं, जो लगातार दो-दो घंटे काम करती थी और इन्होंने अपने लगातार प्रयास से 26 घंटे में अपने बेहद कठिन कार्य को अंजाम दिया और 17 दिन से सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचा लिया।
असल में ये 12 मजदूर ही देश की असली अलम्बरदार हैं जिन्होंने भारत का मुंह पूरी दुनिया में काला होने से बचा लिया। 41 मजदूर तो बहादुर हैं ही, जो मुनाफे की हवस का शिकार हो गए थे, मगर इस पूरे घटनाक्रम में, देश के असली नायक तो ये 12 बहादुर मजदूर ही हैं जिन्होंने अपने परिवार की परवाह किए बिना, अपना सब कुछ अपना जीवन दांव पर लगा दिया और मुसीबत में फंसे भारत के 41 मजदूरों को मौत के मुंह से बचा लिया।
बड़े अफसोस की बात है कि अधिकांश मीडिया जान पूछकर, जान पर खेल कर इन 41 मजदूरों को बचाने वाले, इन 12 मजदूरों की बात नहीं कर रहा है, उनके नाम, पते और उनके विश्व प्रसिद्ध इस महान कारनामे के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। मौत पर खेलने वाले इस अमर और अमिट अभियान के इन बहादुर मजदूरों के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। यह बेहद अफसोस की बात है।
आज बात तो इन महान कारनामों की, इन मौत को हराने वाले महान कारनामों को अंजाम देने वालों की होनी चाहिए थी, भारत का माथा ऊंचा करने वाले इन महान मजदूरों की होनी चाहिए थी, देश के बच्चे बच्चे को, हर मजदूर, किसान और भारत के हर नागरिक को, उनके इस महान करनामे की जानकारी दी जानी चाहिए थी।
यहीं पर उस कंपनी और उसके मालिक के बारे में पूरे देश की जनता को जानकारी दी जानी चाहिए थी जिसने मजदूरों की सुरक्षा के तमाम तौर तरीकों को ताक पर रखकर, इन 41 मजदूरों को मौत के मुंह में धकेल दिया था, पर एक साजिश के तहत उस मुनाफाखोर शैतान को जान पूछ कर बचाया जा रहा है। इस पूरी साजिश में देश विरोधी और मजदूर विरोधी मुहिम में, हमारे देश का पूरा शासक वर्ग, पूरी सरकार और मीडिया का अधिकांश हिस्सा शामिल है।
आज भारत के हर सच्चे नागरिक और राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता की यह जिम्मेदारी बन गई है कि इन तमाम मेहनतकश मजदूरों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान किया जाए, इन्हें देश के नायक घोषित किया जाए और इन सारे मजदूर को कम से कम पांच पांच लाख रुपए का इनाम दिया जाना चाहिए और अगर यह काम सरकार नहीं करती है तो भारत के सारे राजनीतिक दलों को मिलकर, एकजुट प्रयास करके, इन सारे मजदूर को पांच-पांच लाख रुपए इनाम देना चाहिए, उनके बच्चों की मुफ्त शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए और इनके परिवार के वृद्ध जनों को 20-20 लाख रुपए प्रतिमा बुढ़ापा पेंशन दी जानी चाहिए।
हम यहां पर यह भी कहेंगे की सुरंग खोदने के सारे मामलों में, उन मजदूर सुरक्षा मापदंडों का पूरा पालन किया जाना चाहिए, ताकि मजदूरों की जान माल की पूरी सुरक्षा की जा सके और भविष्य में ऐसे जान लेवा हादसों से बचा जा सके। भारत के इन 41 मजदूरों को मौत के मुंह से निकालने वाले, भारत के असली हीरो इन 12 जांबाज मजदूरों को दिल से सलाम।