- सनत जैन
गुना में बुधवार की रात हुए बस हादसे में 13 लोगों की बस के अंदर ही जलकर मौत हो गई। 13 लोगों का ऐसा अग्नि संस्कार हुआ कि शव एक-दूसरे से चिपक गए। अब डीएनए टेस्ट से मृतकों की पहचान की जा रही है। मृतकों में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक मनोहर लाल शर्मा भी मौजूद थे। जिनकी बस के अंदर ही बैठे-बैठे अग्नि संस्कार में मौत हो गई। घटना की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री डॉ महेश यादव घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने मृतकों के आश्रितों को चार-चार लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की। घोषणा की मुख्यमंत्री महोदय ने ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को तुरंत हटाने के आदेश दिये। वहीं आरटीओ और सीएमओ को सस्पेंड कर दिया।
निश्चित रूप से सरकार द्वारा जो कार्रवाई की गई, उसमें अधिकारियों की लापरवाही थी। समय-समय पर बसों की चेकिंग और जांच का काम ओर जो निरीक्षण करना चाहिए था, उसमें लापरवाही बरती। मुख्यमंत्री द्वारा की गई कार्रवाई को सभी लोगों द्वारा सराहा गया। घटना के बाद पुलिस सक्रिय हुई। बस मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। घटना के बाद जो जानकारी प्राप्त हुई है, उससे लगा कि अधिकारियों से ज्यादा इस घटना के लिए सरकार भी जिम्मेदार है। जब इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं तब सरकार जागती है। संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई कर देती है। मामला यहीं पर खत्म हो जाता है। इस घटना के बाद जब वस्तु स्थिति खुलकर सामने आई। पता लगा कि फायर ब्रिगेड समय पर घटनास्थल पर नहीं पहुंची। गुना से कुछ ही किलोमीटर दूर यह घटना हुई थी, यदि फायर ब्रिगेड समय पर पहुंच जाती तो इतनी बड़ी संख्या में मौत नहीं होती। दुर्घटना के आधे घंटे के बाद बस में आग लगी, यह माना जा रहा है कि बस में केन में पेट्रोल लेकर गुना से एक यात्री बस में आरोन ले जा रहा था। पेट्रोल में आग लगने के बाद पीछे की तरफ बड़ी तेजी के साथ आग भड़की और देखते ही देखते 13 लोगों का बस के अंदर ही अग्नि संस्कार हो गया।
इसके बाद और भी खबरें निकलकर सामने आई परिवहन विभाग में पिछले 10 वर्षों से नियुक्तियां नहीं हुई हैं। पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर जो कर्मचारी परिवहन विभाग में जाते थे, उनकी नियुक्तियां बंद कर दी गई हैं। पिछले 10 साल में बसों की संख्या और गाड़ियों की संख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ी है। परिवहन विभाग में 10 साल से नियुक्तियां ही नहीं हुई है। परिवहन विभाग के पास जांच अमला ही उपलब्ध नहीं है। परिवहन विभाग ना तो समय पर फिटनेस की जांच कर पाता है और ना ही रोड पर चलती हुई गाड़ियों की जांच कर पाता है। 25 लाख वाहनों की जांच के लिए प्रदेश के 52 जिलों में 56 अधिकारी तैनात हैं। इसी से समझा जा सकता है कि सरकार परिवहन विभाग को लेकर किस तरह की जिम्मेदारी निभा रही है। परिवहन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी केवल अपनी मासिक वसूली पर ही ध्यान रखते हैं। यह बात सरकार को भी मालूम है।
10 साल से जब स्टाफ ही नहीं दिया जा रहा है, केवल अधिकारियों की जिम्मेदारी ठहरना उचित भी प्रतीत नहीं होती है। परिवहन विभाग से सबसे ज्यादा कमाई सरकार को होती है। पंजीयन से लेकर रोड टैक्स परमिट और फिटनेस के नाम पर हर साल अरबो रुपए की वसूली सरकार द्वारा की जाती है, लेकिन सरकार जांच के लिए यदि पर्याप्त अमला ही नहीं रखेगी तो इस तरीके की दुर्घटनाओं पर किस तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। इसको लेकर भी सरकार की जिम्मेदारी तय होती है। घटना के बाद जो वस्तु स्थिति सामने आ रही है। उसके अनुसार परिवहन विभाग के पास जांच के लिए निरीक्षक और अमला ही उपलब्ध नहीं है। परिवहन विभाग के सारे काम भगवान भरोसे हैं। केवल एक काम परिवहन विभाग में सही तरीके से हो रहा है, वह अवैध वसूली का है। करोड़ों रुपए की अवैध वसूली हर माह परिवहन विभाग द्वारा की जाती है, इसके लिए कॉन्ट्रैक्ट पर भी लोग रखे जाते हैं। अवैध वसूली के लिए स्थानीय गुंडों का भी सहारा लिया जाता है। जो परिवहन विभाग की ओर से वसूली करते हैं। आरटीओ कार्यालय में जो वाहन जांच के लिए जाते हैं, उसमें भी दलालों की बड़ी भूमिका होती है। आवेदन के साथ नोट चलते हैं, दलालों की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। अधिकारी भी केवल अपनी वसूली पर ध्यान देते हैं। यदि वह मिल जाती है, तो कागज पर आंख मूंदकर हस्ताक्षर कर देते हैं
। परिवहन विभाग का नाम अब वसूली विभाग रख देना चाहिए। जब सरकार के पास अमला ही नहीं है, तो जांच कौन करेगा। सरकार को सब कुछ मालूम है। सरकार पिछले 10 वर्षों से आंख बंद करके बैठी हुई थी। इसमें सरकार की भी जिम्मेदारी तय होती, तो निश्चित रूप से इस तरीके की दुर्घटनाओं पर लगाम लगती। घटना के बाद कुछ लोगों को उनके पद से हटा दिया गया है, कुछ को निलंबित कर दिया गया है। एक सप्ताह बाद सब लोग इस खबर को भूल जाएंगे। अधिकारियों की नियुक्ति दूसरी जगह पर कर दी जाएगी। जो लोग मर गए हैं, वह तो परलोक सिधार गए हैं। उनके आश्रित और जो घायल हुए हैं, वह कई वर्षों तक इस वेदना को सहने के लिए विवश है। हर घटना एक सबक होती है। मध्य प्रदेश सरकार भी इसे एक सबक के रूप में स्वीकार करें। परिवहन विभाग को पर्याप्त अमला उपलब्ध कराए। अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए। तभी स्थितियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इस तरह की फौरी कार्रवाई से किसी को कोई फायदा होने वाला नहीं है। सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना ही चाहिए।