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 खाकी पुलिस का पर्याय है…खाकी की 170 साल की कहानी

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अंग्रेजों के जमाने से ही खाकी पुलिस की पहचान है। खाकी कहिए या लिख दीजिए लोग समझ जाएंगे पुलिस की बात हो रही है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि पुलिस के लिए खाकी का इस्तेमाल सबसे पहले भारत में ही हुआ। कर्नाटक के तटीय शहर मेंगलुरू में इसका जन्म हुआ। साल था 1851; जॉन हॉलर नाम के एक जर्मन टेक्सटाइल इंजीनियर और ईसाई मिशनरी शहर में बालमपट्टा के बाजल मिशन वीविंग इस्टेब्लिशमेंट (कपड़े बनाने की फैक्ट्री) में काम करता था। उसी ने पहली बार कपड़ों को रंगने के लिए खाकी डाई को ईजाद किया। आइए जानते हैं खाकी के 170 साल के दिलचस्प इतिहास की अनसुनी कहानियां।

1989 में बेसल मिशन पर रिसर्च करने वाले विवेकानंद कॉलेज, पुत्तुर के प्रिंसिपल डॉक्टर पीटर विल्सन प्रभाकर बताते हैं, ‘1851 में हॉलर को फैक्ट्री के इंचार्ज की जिम्मेदारी दी गई। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी खाकी डाई का आविष्कार। उसके नेतृत्व में कपड़ा फैक्ट्री ने 1852 से खाकी कपड़ों को बनाना शुरू किया।’ प्रभाकर ने कन्नड़ में ‘भारतदल्ली बाजल मिशन’ (भारत में बाजल मिशन) नाक की किताब भी लिखी है।

खाकी एक उर्दू का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है धूल का रंग। यह खाक शब्द से बना है। प्रभाकर बताते हैं कि 1848 में ही खाकी शब्द ऑक्सफर्ड डिक्शनरी में जगह पा चुका था। लेकिन इसके 3 साल बाद इस नाम से पहली बार डाई बनी। हॉलर ने काजू के खोल का इस्तेमाल करते हुए इस डाई को बनाया। वैसे भी दक्षिण कर्नाटक में बड़ी तादाद में काजू का उत्पादन होता है।

खाकी रंग की डाई जल्द ही तेजी से लोकप्रिय होती गई। थियोलॉजिकल कॉलेज में आर्काइव दस्तावेज के मुताबिक, ‘कपड़े की फैक्ट्री चलती रही…खूब फली-फूली। हर तरह के कपड़े बनते और पहनने के लिए तैयार किए जाते थे। लेकिन हॉलर की खाकी मिलिटरी के बीच अपने टिकाऊपन की वजह से काफी चर्चित हो गई।’

उसी दौरान हॉलर के बनाए खाकी कपड़ों को तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के केनरा जिले में पुलिस यूनिफॉर्म के रूप में अपनाई गई। कासरागोड, साउथ केनरा, उडुपी और नॉर्थ केनरा में खाकी पुलिस की वर्दी बन गई।

खाकी की चर्चाएं मद्रास प्रेसीडेंसी के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट्स तक भी पहुंच गईं। उनके मन में जिज्ञासा जगी कि आखिर इतना टिकाऊ कपड़ा कहां और कैसे बन रहा है। प्रभाकर बताते हैं कि लॉर्ड रॉबर्ट्स ने बलमट्टा की उस फैक्ट्री का दौरा किया जहां खाकी कपड़े बन रहे थे। वह इतना संतुष्ट हुआ कि उसने ब्रिटिश सरकार से सिफारिश की कि आर्मी के लिए खाकी को वर्दी तौर पर चुना जाए। ब्रिटिश सरकार ने उसकी सिफारिशें मान ली और इस तरह खाकी मद्रास प्रेसीडेंसी के तहत आने वाले सैनिकों की वर्दी का रंग बन गई। कुछ समय बाद ब्रिटेन ने भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के अपने उपनिवेशों में सैनिकों के लिए खाकी को अनिवार्य कर दिया।

बाद में दूसरी सेनाओं औ भारत सरकार के विभागों ने भी अपने जूनियर-लेवल स्टाफ के यूनिफॉर्म के लिए खाकी को अपना लिया। भारतीय डाक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट वर्करों की यूनिफॉर्म भी खाकी ही है। बाजल मिशन की उपलब्धियों में पहले कन्नड़ अखबार ‘मंगलुरु समाचारा’ के प्रकाशन के साथ-साथ ‘खाकी का आविष्कार’ सबसे प्रमुख है।

Ramswaroop Mantri

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