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20 साल का ट्रेंड….कम अंतर से जीती तीन में से दो सीट पर हार जाती हैं पार्टियां

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मध्य प्रदेश में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। चुनाव तारीखों के एलान के बाद सभी दल चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार भी तय हो चुके हैं। नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। तब पता चलेगा कि किसने कहां से बाजी मारी। कौन बेहद आराम से जीता और कौन हारते-हारते जीत गया।  बीते चुनावों का ट्रेंड देखें तो जिन सीटों पर सबसे पार्टियों को बेहद कम अंतर से जीत मिलती है, वहां ज्यादातर मामलों में अगले चुनाव में परिणाम बदल जाते हैं। 

पिछले चार चुनावों में सबसे छोटी जीत वाली तीन-तीन सीटों के नतीजे देखे। 2003, 2008 और 2013 में सबसे छोटी जीत वाली तीन-तीन सीटों पर के आंकड़ों का अध्ययन किया। इन सीटों पर अगले चुनाव में क्या हुआ? आइये जानते हैं, साथ ही जानते हैं कि 2018 में सबसे कम अंतर से हार-जीत वाली तीन सीटें कौन सी थीं? 

MP Election 2023 Check Previous Years Madhya Pradesh Result Trends In Terms Of Margin Updates in Hindi

मध्य प्रदेश चुनाव।

2003 में किन सीटों पर सबसे कम रहा जीत-हार का अंतर?
2003 के चुनाव में तीन सबसे छोटे अंतर की जीत-हार वाली सीटें आमला, बहोरीबंद और सिरमौर थीं। आमला सीट पर कांग्रेस की सुनीता बेले 398 वोट से जीतीं थीं। बहोरीबंद सीट पर भी कांग्रेस के निशिथ पटेल 402 वोट से जीते थे। वहीं, सिरमौर सीट पर माकपा के राम लखन शर्मा को 588 वोट से जीत मिली थी।

2003 में जिन सीटों पर सबसे छोटी जीत मिली वहां 2008 में क्या हुआ?
आमला सीट पर 2003 में जीतने वाली सुनीता बेले की जगह कांग्रेस ने 2008 में किशोर बर्दे को टिकट दिया। इसके बाद भी कांग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सकी। 2008 में यहां भाजपा के चैतराम मानेकर 30,546 वोट से जीते। वहीं, बहोरीबंद सीट पर 2003 में महज 402 वोट से जीतने वाले कांग्रेस के निशिथ पटेल को 2008 में 1,674 वोट से जीत मिली। 2003 में सिरमौर सीट पर 588 वोट से जीतने वाली माकपा की 2008 में जमानत तक जब्त हो गई। 2008 में इस सीट पर बसपा के रामकुमार उर्मलिया ने महज 309 वोट से जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के श्रीनिवास तिवारी को हराया। 

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मध्य प्रदेश चुनाव। 

2008 में किन सीटों पर सबसे कम रहा जीत-हार का अंतर?
2008 के चुनाव में तीन सबसे छोटे अंतर की जीत-हार वाली सीटें धार, पन्ना और परासिया थीं। धार सीट पर भाजपा की नीना वर्मा को महज एक वोट से जीत मिली थी। वहीं, पन्ना विधानसभा सीट पर कांग्रेस के श्रीकांत दुबे को महज 42 वोट से जीत मिली। इसी तरह परासिया सीट पर भाजपा के ताराचंद बावरिया सीट पर महज 93 वोट से जीते थे। 

2008 में जिन सीटों पर सबसे छोटी जीत मिली वहां 2013 में क्या हुआ?
धार सीट पर 2008 में महज एक वोट से जीतीं नीना वर्मा ने 2013 में भी इस सीट पर जीत दर्ज की। इस बार उनकी जीत का अंतर 11,482 वोट का था। वहीं, पन्ना सीट पर 2008 में महज 42 वोट से हारने वालीं कुसुम महदेले ने 2013 में इस सीट पर जीत दर्ज की। 2013 में उन्होंने 29,036 वोट से जीत दर्ज की। महदेले ने बसपा के महेंद्र पाल वर्मा को हराया। 2008 में यहां से जीतने वाली कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई। वहीं, परासिया सीट पर भी 2008 में हारने वाली कांग्रेस ने 2013 में जीत दर्ज की। 2008 में 93 वोट से हारी कांग्रेस 2013 में 6,862 वोट से जीत दर्ज की। 

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मध्य प्रदेश चुनाव। 

2013 में किन सीटों पर हुआ सबसे कम अंतर से फैसला
2013 के विधानसभा चुनाव में तीन सबसे छोटे अंतर की जीत-हार वाली सीटें सुरखी, जतारा और बरघाट थीं। सुरखी सीट पर भाजपा की पारुल साहू को महज 141 वोट से जीत मिली। वहीं, जतारा सुरक्षित सीट पर कांग्रेस के दिनेश अहिरवार को 233 वोट से जीत मिली। इसी तरह सिवनी जिले की बरघाट सीट पर भाजपा के कमल मर्सकोल 269 वोट से जीते थे।

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2013 में जिन सीटों पर सबसे छोटी जीत मिली वहां 2018 में क्या हुआ?
सुरखी सीट पर 2013 में 141 वोट से जीतने वाली भाजपा को 2018 में यहां हार का सामना करना पड़ा। यहां कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत जीते। हालांकि, 2020 में उन्होंने पाला बदल लिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में राजपूत को भाजपा के टिकट पर जीत मिली। जतारा सीट पर 2013 में जीतने वाली कांग्रेस ने 2018 में यह सीट समझौते के तहत लोकतांत्रिक जनता दल के लिए छोड़ दी। 2018 में यह सीट भाजपा के पास चली गई। लोजद यहां जमानत तक नहीं बचा सकी। इसी तरह बरघाट सीट पर 2018 में कांग्रेस के अर्जुन सिंह काकोड़िया ने जीत दर्ज की। यानी, 2013 में जिन तीन सीटों सबसे कम अंतर से जीत मिली, 2018 वो तीनों सीटें विरोधी दल ने जीत लीं। 

सबसे कम अंतर से फैसला?
2018 के विधानसभा चुनाव में तीन सबसे छोटे अंतर की जीत-हार वाली सीटें ग्वालियर दक्षिण, सुवासरा और जावरा थीं। ग्वालियर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक महज 121 वोट से जीत दर्ज करने में सफल रहे। सुवासरा सीट पर कांग्रेस के हरदीप सिंह डंग महज 350 वोट से जीतने में सफल रहे। इसी तरह जावरा सीट पर भाजपा के राजेंद्र पांडेय राजू भैया 511 वोट से जीतने में सफल रहे। सुवासरा से जीते डंग 2020 में भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद हुए उपचुनाव में डंग ने भाजपा के टिकट पर 29,440 वोट से जीत दर्ज करने में सफल रहे। 

कम अंतर से जीती तीन में से दो सीट पर हार जाती हैं पार्टियां
2003 से 2013 तक के आंकड़ों के देखें तो तीन सबसे कम अंतर से जीतीं गईं सीटों में से कम से कम दो पर अगले चुनाव में जीतने वाली पार्टी बदल जाती है। 2003 में सबसे कम अंतर वाली जीत वाली तीन सीटों में दो पर अगले चुनाव में पार्टियां हार गईं।  इसी तरह 2008 में तीन सबसे कम अंतर से जीत-हार वाली सीटों में से दो पर अगले चुनाव में पार्टियां हार गईं। वहीं,  2013 में जिन तीन सीटों पर सबसे कम अंतर से जीत मिली, 2018 वो तीनों सीटें विरोधी दल ने जीत लीं।

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