व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा*
शुक्र मनाएं, 2022 खत्म हो रहा है। उसके साथ ही बेशर्म रंग पर मचा हुड़दंग भी खत्म हो रहा है। क्या हुआ कि जोशी जी वाले सेंसर बोर्ड को अपने धक्के से खत्म करने के बाद, बेशर्म हुड़दंग खत्म हो रहा है; कम से कम खत्म तो हो रहा है? हुड़दंग, भगवा बिकनी उतरवाने पर भी खत्म नहीं होता, तो ही मोदी जी किस नरोत्तम मिश्रा या साध्वी प्रज्ञा, वगैरह को टोकने वाले थे! और उससे कम में तो भगवा भावनाओं के घाव भरने वाले थे नहीं! बिकनी उतरवाने के बाद, भगवा भावनाएं अगर ‘‘पठान’’ हटवाने पर अड़ जातीं तो? शुक्र है, सेंसर बोर्ड के साथ बेशर्म हुड़दंग खत्म तो हो रहा है। हर खत्म होने वाली चीज का शोक ही नहीं मनाते, कुछ का शुक्र भी मनाते हैं — 2022 का भी।
खैर! पठान फिल्म में हीरोइन के बेशर्म रंग तो अब नहीं दिखाई देेंगे, पर 2022 ने जो तरह-तरह से और रंग-रंग के बेशर्मी के रंग दिखाए हैं, उनका क्या? निम्मो ताई ने तो सिलक की साडिय़ों में भी वो-वो रंग दिखाए हैं, कि उनके सामने बिकनी वाले रंग भी पानी भरते हैं। पहले महंगाई बढ़ती गयी, तो यह गहरा ज्ञान दिया कि महंगाई बढऩे की उनकी सरकार ज्यादा परवाह नहीं करती है, क्योंकि कम से कम भारत के गरीबों को महंगाई से कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर, जब रुपए के मुकाबले डालर महंगे से महंगा ही होता गया, तो विपक्षियों को फटकारा कि रुपए के लुढक़ने का झूठा प्रचार क्यों करते हो? रुपया कोई लुढक़ा-वुढक़ा नहीं, बस डालर ही शरारतन ऊपर से ऊपर चढ़ता गया है। और साल खत्म होते-होते और भी सुनहला रंग दिखा दिया — कर्ज बट्टे-खाते में डालने से, अरबपति कर्जदारों का कोई फायदा थोड़े ही होता है? फायदा तो सरकारी बैंकों का होता है, जिनका डूबे कर्जों से पीछा छूट जाता है! और निर्मला जी के रंग तो सिर्फ नमूना हैं — मोदी जी के दरबार में, ऐसे रंगों की ही भरमार है!
और भी बहुत बेशर्म रंग दिखाए हैं तूने – 2022। विश्वगुरु के तख्त के दावेदारों को विश्व अमीरी में दूसरे-तीसरे नंबर के साथ, विश्व भूख सूचकांक पर 107वें नंबर पर बैठाया है। कहां डैमोक्रेसी की मम्मी और कहां प्रैस की स्वतंत्रता में 150वां नंबर दिलाया है! अब अपना बेशर्म रंग उठा, तू जा – 2022!
*(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)*