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2024 :लड़ने और हार नहीं मानने की प्रवृति को दिखाने में कामयाब रहे आदिवासी

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राजन कुमार

वर्ष 2024 आदिवासियों के लिए काफी उथल-पुथल भरा रहा है, लेकिन आदिवासियों ने भी लड़ने और हार नहीं मानने की प्रवृति को दिखाया है।हालांकि पिछले साल शुरू हुई मणिपुर राज्य के मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच हिंसा अभी भी थमी नहीं है। सिर्फ उसकी गति थोड़ी धीमी हो गई है। लोकसभा के आम चुनाव में भी मणिपुर हिंसा कोई मुद्दा नहीं बन सका। वर्ष 2024 में लगभग 16 देशों और भारत के अंदर लगभग 150 से अधिक जगहों का दौरा करनेवाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर का दौरा अभी तक नहीं किया है और न ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही मणिपुर का दौरा किया।

हालांकि 19 नवंबर, 2024 को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर मणिपुर में जारी हिंसा पर हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। खड़गे ने पत्र में लिखा था कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार पिछले 18 महीनों के दौरान मणिपुर में शांति और सामान्य स्थित बहाल करने में पूरी तरह विफल रही है। हिंसा के कारण 300 से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें अधिकांश महिलाएं, और छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल रहे। जबकि एक लाख से भी अधिक लोगों को बेघर और विस्थापित होकर विभिन्न राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है और यह अभी भी बदस्तूर जारी है। मणिपुर के लोग अपनी ही धरती पर असुरक्षित होते जा रहे हैं। राज्य के लोगों का केंद्र और राज्य सरकार से भरोसा उठ गया है।

दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते कुकी जनजाति के सदस्य

विदित हो कि मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा मार्च, 2023 में एक आदेश में राज्य की बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने की सिफारिश राज्य सरकार को किया गया था। इस आदेश के खिलाफ जब मणिपुर के कुकी व नागा जनजाति के लोगों द्वारा प्रदर्शन किया गया तो मैतेई समुदाय के लोगों के साथ झड़प शुरू हो गई। इसके बाद से ही मणिपुर में हिंसा भड़क गई।

झारखंड में चमके हेमंत सोरेन

इस साल 31 जनवरी को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किया गया तो इसे केंद्र में सत्तासीन भाजपा द्वारा सोरेन को राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश के रूप में देखा गया। लेकिन जब 23 नवंबर, 2024 को झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो हेमंत सोरेन ने न सिर्फ खुद को साबित किया, बल्कि उनकी जीत को आदिवासियों की– जीत के रूप में भी देखा गया।

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जब उन्हें फरवरी, 2024 में झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में भाग लेने की अनुमति दी गई तो उस दौरान हेमंत सोरेन ने जो कहा वह मार्मिक था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए अपनी गिरफ्तारी को आदिवासियों के आत्मसम्मान से जोड़ा। उन्होंने कहा था– “मैं फाइव स्टार होटल में रुकूं, बीएमडब्ल्यू चलाऊं, तो उन्हें समस्या होती है। हम जंगल से बाहर आए, इनके बराबर में बैठ गए, तो इनके कपड़े मैले हो गए। हमारे शौक गुनाह, उनके शौक रासलीला।” उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को निशाने पर लिया और कहा था कि मेरी गिरफ्तारी की पटकथा पहले से ही बहुत सुनियोजित तरीके से लिखी जा रही थी और मेरी इस गिरफ्तारी में राजभवन भी शामिल रहा है। अपनी गिरफ्तारी पर उन्होंने कहा था कि देश के लोकतंत्र में काला अध्याय नए तरीके से जोड़ा गया है। क्योंकि इस तरह से किसी सीएम को पहली बार गिरफ्तार किया गया है।

यह सवाल वाजिब है कि क्या आदिवासी होने की वजह से हेमंत सोरेन के साथ ऐसा किया गया? झारखंड के लोगों ने इसे इस रूप में लिया कि यदि यह मान लिया जाए कि हेमंत सोरेन ने जमीन खरीदी थी तो यह एक सिविल कोर्ट का मामला था, क्या ऐसे केस में एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी उचित है? और ऐसे मामले में गिरफ्तारियां होने लगे तो देशभर के कई राजनेता, उद्योगपति और अन्य हजारों लोग जेलों में होंगे।

यही कारण था कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को आदिवासियों के आत्मसम्मान और अस्मिता से जोड़कर देखा गया। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित झारखंड की सभी लोकसभा सीटें हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा समर्थित इंडिया गठबंधन के खाते में आईं।

लेकिन नवंबर, 2024 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों ने हेमंत को आदिवासियों का नायक बना दिया। 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में 56 सीटों पर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया गंठबंधन की जीत हुई, जिसमें झामुमो को 34, कांग्रेस को 16, राष्ट्रीय जनता दल को 4, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)(लिबरेशन) को 2 सीटों पर जीत मिली। जबकि विपक्षी भाजपा समर्थित एनडीए गठबंधन को 24 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। उसका यह हश्र चंपई सोरेन को अपने खेमे में शामिल करने के बावजूद हुआ, जो हेमंत सोरेन के जेल प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री रहे और उनके विश्वासपात्र रहे।

हेमंत सोरेन की इस जीत में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन ने पार्टी को एकजुट रखा और व्यापक जन-समर्थन जुटाया।

विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान आदिवासी महिलाओं के साथ हेमंत सोरेन

ओड़िशा को मिला आदिवासी मुख्यमंत्री

ओड़िशा विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद ओड़िशा को आदिवासी मुख्यमंत्री मिला। कुल 146 विधानसभा सीटों वाले ओड़िशा राज्य में पहली बार भाजपा सरकार बनाने में सफलता हासिल की। भाजपा को 81 सीट मिले जबकि प्रदेश में लंबे समय से शासन करनेवाली बीजू जनता दल को 49 सीटों पर संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस को 13 सीटें और 4 सीटें अन्य को मिलीं।

ओड़िशा में भाजपा सरकार गठन के साथ ही मोहन चरण माझी ओड़िशा के तीसरे आदिवासी मुख्यमंत्री बने। ओड़िशा को 24 साल बाद आदिवासी मुख्यमंत्री मिला। ओड़िशा में पूर्व में दो आदिवासी मुख्यमंत्री बन चुके हैं– गिरिधर गमांग और हेमानंद बिस्वाल।

छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री मिलने के बाद भी नहीं थम रहा आदिवासियों के मौत का सिलसिला

दिसंबर, 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने पर आदिवासी समुदाय से आनवाले विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री बनने के बाद भी छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर अत्याचार का सिलसिला थम नहीं रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के अनुसार छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में इस साल की पहली तारीख को एक 6 महीने की आदिवासी बच्ची को पुलिस ने गोली से उड़ा दिया था। साल के बीच में 14 साल की लड़की को मार दिया गया, 16 साल की गूंगी आदिवासी लड़की को गोली से उड़ा दिया गया और अब साल की आखिर में चार आदिवासी बच्चों को गोली लगने की सूचना मिली है।

छत्तीसगढ़ की प्रमुख मानवाधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में 8 नवंबर, 2024 को सुरक्षा-बलों द्वारा फर्जी मुठभेड़ किया गया। जिन्हें नक्सली कहा गया वास्तव में वे आदिवासी ग्रामीण थे। सोनी सोरी के मुताबिक सुरक्षा बलों द्वारा 50-60 ग्रामीणों को हिरासत में लेकर पूछताछ किया गया और 15-20 लोगों को नक्सली बताकर जेल भेज दिया गया।

लोकसभा चुनाव के दरमियान भी छत्तीसगढ़ में निर्दोष आदिवासियों को नक्सली के नाम पर मारने की घटना प्रकाश में आई। इसी वर्ष 10 मई, 2024 को बीजापुर जिले में मुठभेड़ में छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार 12 नक्सली मारे गए। जबकि छत्तीसगढ़ की सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी ने मुठभेड़ को फर्जी बताया और कहा कि सभी मृतक तेंदू पत्ता तोड़ने गए थे। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाया था कि उसने आदिवासी लोगों को घेर कर गोली मार दी। इस मामले में बीजापुर जिला मुख्यालय के सामने एक प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सोनी सोरी ने कहा था कि अभी भी कई लोग लापता हैं, जिनके बारे में पुलिस कोई सूचना नहीं दे रही है कि वे मार दिए गए हैं या फिर उन्हें जेल में रखा गया है। इस घटना से तीन सप्ताह पहले कांकेर जिले में 29 आदिवासियों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई थी। पुलिस ने उन्हें भी नक्सली करार दिया था।

बीबीसी द्वारा प्रसारित खबर के अनुसार मार्च, 2024 में बीजापुर के बोड़गा गांव में घर के भीतर घुसकर एक अधेड़ आदिवासी महिला राजे ओयाम को गोली मार दिया गया। 30 जनवरी, 2024 को भी बीजापुर के बोड़गा गांव में ही एक आदिवासी युवक रमेश ओयाम की गोली लगने से मौत हुई थी। शुरू में पुलिस ने दावा किया कि पुलिस के साथ मुठभेड़ में एक माओवादी मारा गया है। रमेश ओयाम के सगे भाई बस्तर पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स में हैं। कुछ वक़्त बाद पुलिस ने जानकारी दी कि माओवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान, रमेश ओयाम को क्रॉस फायरिंग में गोली लगी थी। इसी तरह एक जनवरी, 2024 को बीजापुर के ही मुदवेंडी गांव की रहने वाली मासे सोढ़ी की छह महीने की बच्ची मंगली सोढ़ी गोली लगने से मारी गई थी और मासे सोढ़ी घायल हो गई थी। पुलिस ने इस घटना में भी क्रॉस फायरिंग में गोली लगने का दावा किया था। हालांकि, मासे सोढ़ी ने आरोप लगाया था कि सड़क निर्माण के लिए उस दिन जेसीबी के साथ सुरक्षाबलों के सैकड़ों जवान आए थे और गांव के लोगों को भी वहां बुलाया गया था, इसी दौरान जवानों ने तीन गोली चलाई, जिसमें उनकी गोद में दूध पी रही बेटी मंगली को गोली लगी और वहीं उसकी मौत हो गई। गोली से मासे की हाथ में भी चोट आई। इसी तरह बीजापुर के ही बेल्लमनेन्ड्रा गांव की मासे कारम, मंगली पुनेम और कल्ला मडकाम ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि 20 जनवरी, 2024 को गांव के आठ लोग गोरनम में आयोजित एक धरना में भाग लेने के लिए जा रहे थे। उसी दौरान पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें सामने की ओर चल रहे तीन लोग मारे गए। मारे जाने वालों में 40 साल के कोसा कारम, 15 साल की सोनी मड़काम और 14 साल की नागी पुनेम शामिल थीं। आरोप है कि इसके बाद पुलिस ने अन्य दो लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया।

छत्तीसगढ़ में कोयला खनन के लिए पर्यावरण एवं नियम की अवहेलना कर स्थानीय लोगों के काफी विरोध के बावजूद हंसदेव जंगल की कटाई लगातार जारी है। इस कारण इलाके की जैव-विविधता को काफी नुकसान हुआ है। जंगल कटाई का विरोध करने वाले लोगों को पुलिसिया दमन का शिकार होना पड़ा और अनेक लोग घायल भी हुए। यह मामला राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रकाश में आया है, लेकिन सूबे में आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बाद भी इस घटना पर रोक नहीं लग सकी है।

राजस्थान में बीएपी का उदय

राजस्थान के आदिवासियों में विशेष रूप से लोकप्रिय भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने अपने गठन के एक वर्ष के भीतर ही राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। बीएपी के राजस्थान में चार विधायक – अनिल कुमार कटारा (चौरासी), उमेश मीणा (आसपुर), जयकृष्ण पटेल (बागीदौरा), थावर चंद (धरियावद) – हैं। वहीं बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा से सीट से युवा राजकुमार रोत सांसद बने हैं। वर्ष 2024 में बीएपी को एक सांसद और एक विधायक मिला है। बागीदौरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी ने जीत हासिल की है। बीएपी अपने गठन के एक वर्ष के भीतर जिस प्रकार से प्रदर्शन की है, इससे इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ रही है। इसे राजस्थान के आदिवासी समुदायों में बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा के रूप में भी देखा जा रहा है। 

लोकसभा को संबोधित करते बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत

यह पार्टी दूसरे राज्यों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है। बीएपी का एक विधायक मध्य प्रदेश में भी है। दिसंबर, 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के सैलाना विधानसभा सीट से कमलेश्वर डौडियार निर्वाचित हुए। बीएपी के सभी विधायक और सांसद आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट से ही चुने गए हैं। बीएपी ने झारखंड विधानसभा चुनाव में भी अपने कुछ उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

बीएपी का उदय गुजरात के दिग्गज आदिवासी नेता छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) से विवाद के कारण हुआ। 10 सितंबर, 2023 को बीटीपी से अलग होकर भारत आदिवासी पार्टी के गठन का ऐलान किया गया था।

आदिवासियों को डीएनए टेस्ट कराने को बोलकर राजस्थान के शिक्षा मंत्री ने कराई खुद की फजीहत

जून, 2024 बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने कहा था कि “आदिवासी हिंदू नहीं हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत आज तक किसी भी आदिवासी परिवार में तलाक नहीं हुआ। भाजपा आदिवासियों को हिंदू बताती है तो वह यह भी बताए कि हिंदू वर्ण व्यवस्था में जो ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र चार वर्ण माने गए हैं, उनमें आदिवासी समाज किस वर्ण में आता है।”

राजकुमार रोत का यह बयान आने के बाद 22 जून, 2024 को राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि “आदिवासी हिंदू हैं कि नहीं, ये अपने पूर्वजों से पूछेंगे। हमारे यहां वंशावली लिखने वालों से पूछेंगे। वह कौन हैं। यदि वह (राजकुमार रोत) हिंदू नहीं हैं तो उनका डीएनए टेस्ट कराएंगे कि क्या वह लोग अपने पिता की औलाद हैं या नहीं।”

मदन दिलावर के इस बयान पर राजस्थान में सियासत गर्मा गई। सांसद राजकुमार रोत ने उनकी बयान की आलोचना की और कहा कि पूरे समुदाय पर अंगुली उठाने का खामियाजा उनको भुगतना पड़ेगा। राजकुमार रोत 29 जून, 2024 को डीएनए टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल देने शिक्षा मंत्री के जयपुर के आधिकारिक आवास पर पहुंच गए। हालांकि पुलिस ने उनको रोक लिया। लेकिन आदिवासी समाज के लोगों ने शिक्षा मंत्री के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उनके इस्तीफे की मांग की।

सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि आदिवासी समुदाय ने हर धर्म का मान सम्मान रखा है, लेकिन आदिवासी समाज किसी धर्म व्यवस्था में नहीं आता है। आदिवासी किसी आस्था का समर्थक जरूर है, लेकिन संवैधानिक रूप से किसी धर्म में नहीं आता है। हम प्रकृति में विश्वास रखते है, लेकिन किसी धर्म विशेष में आस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री ने डीएनए टेस्ट करवाने की बात कही, लेकिन अब मंत्री गायब हो गए हैं। अगर वो सच्चे हैं तो आदिवासियों का डीएनए टेस्ट करवाएं।

वहीं प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा जिले में कई जगह दिलावर सिंह का पुतला फूंका गया।

दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को बौद्धिक दिव्यांग कहा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के डीएनए परीक्षण के संबंध में दिलावर का बयान बेहद निंदनीय है।

4 जुलाई, 2024 को जब राजस्थान में विधानसभा सत्र शुरू हुई तो नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने शिक्षा मंत्री से सदन में माफी मांगने और मुख्यमंत्री से दिलावर का इस्तीफा लेने की मांग की। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि प्रदेश के शिक्षा मंत्री किसी एक समाज के लिए यह कहे कि उनका डीएनए टेस्ट करवाया जाएगा, इससे बड़ी शर्म की बात हमारे लिए हो नहीं सकती है। आपको क्या हक है किसी दूसरे समाज के डीएनए पर टिप्पणी करने का। टीकाराम जूली ने कहा कि दुख इस बात का है कि मदन दिलावर के बयान पर मुख्यमंत्री और भाजपा ने एक शब्द भी नहीं कहा। इससे आदिवासी समाज ही नहीं पूरे राजस्थान का सिर शर्म से झुका है। कांग्रेस ने मदन दिलावर का विधानसभा में तब तक विरोध करने का ऐलान किया जब तक कि वो आदिवासियों को लेकर दिए गए बयान पर माफी नहीं मांग लेते।

विधानसभा में विवाद को लगातार बढ़ता देख 18 जुलाई, 2024 को शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने आदिवासियों के डीएन टेस्ट वाले बयान पर विधानसभा में माफी मांग ली।आदिवासी महिलाओं के विरासत अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संसद से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में आवश्यक संशोधन करने का आग्रह किया

सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिसंबर, 2024 को फिर से संसद से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (एचएसए) में आवश्यक संशोधन करके आदिवासी महिलाओं के उत्तरजीविता के अधिकार को सुरक्षित करने के तरीकों पर गौर करने का आग्रह किया।

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजाति ‘सवारा’ से प्रतिवादियों (आदिवासी महिलाओं) को संपत्ति का अधिकार दिया था।

न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने 19 दिसंबर को फैसले में यह सिफारिश की, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के 2022 के एक फैसले का हवाला दिया गया था जिसमें कहा गया था कि किसी महिला को पिता की संपत्ति में उसके अधिकार से वंचित करना “कानून की दृष्टि से गलत” है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का एक प्रासंगिक प्रावधान यह निर्धारित करता है कि उत्तराधिकार का कानून एसटी के सदस्यों पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्देश न दे। इसमें यह है कि एसटी समुदाय में एक बेटी कानूनी रूप से पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं मांग सकती है।

भारत की आजादी के सात दशक बाद भी इस प्रावधान के जारी रहने पर अफसोस जताते हुए 2022 के फैसले में कहा गया कि जब गैर-आदिवासी समूहों की बेटी पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी की हकदार है, तो आदिवासी समुदायों की बेटी को इस अधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है।

पीठ ने 2022 के फैसले से संबंधित अंश को भी दोहराया, जिसमें कहा गया था– “आदिवासी महिला, बिना वसीयत के उत्तराधिकार में आदिवासी पुरुष के बराबर की हकदार है। भारतीय संविधान के 70 साल की अवधि के बाद भी आदिवासी की बेटी को समान अधिकार से वंचित करना, जिसके तहत समानता के अधिकार की गारंटी दी गई है, केंद्र सरकार के लिए इस मामले पर गौर करने और यदि आवश्यक हो, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करने का समय आ गया है, जिसके तहत अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर लागू नहीं होता है।”

वर्ष 2022 के फैसले में कहा गया था– “हमें उम्मीद और भरोसा है कि केंद्र सरकार इस मामले पर गौर करेगी और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत प्रत्याभूत समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेगी।”

सर्वोच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 2019 के उस निर्णय को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सवारा जनजाति के सदस्य लेकिन उत्तराधिकार के मामलों में हिंदू कानून के तहत शासित होने की आकांक्षा रखने वाले व्यक्तियों की याचिका को खारिज कर दिया गया था। साथ ही, उच्च न्यायालय ने कुछ आदिवासी महिलाओं, संबंधित संपत्ति के मालिक की बेटियों को न्याय, समानता और अच्छे विवेक के आधार पर मुकदमे की संपत्ति में हिस्सा देने के लिए मध्य प्रांत कानून अधिनियम, 1875 को प्रासंगिक बताया।

यह देखते हुए कि संपत्ति के मालिक की मृत्यु 1951 में हो चुकी थी, अर्थात हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अधिनियमन से पहले, जिसने आदिवासी महिलाओं के खिलाफ प्रतिबंध लगाया था, शीर्ष अदालत ने आदिवासी महिलाओं को संपत्ति के अधिकार देने के लिए 1875 के अधिनियम को लागू करने में उच्च न्यायालय के विचारों की पुष्टि की।

आदिवासियों के धर्म कोड की मांग का मुद्दा भी छाया रहा

नवंबर, 2024 में संपन्न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड भी चुनावी मुद्दा था। भाजपा के समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और हिंदुत्व के मुद्दे को बेअसर करने के लिए कांग्रेस-झामुमो ने अपने चुनावी घोषणापत्र में जनगणना में सरना धर्मकोड लागू करवाने की वकालत की। जबकि दूसरी ओर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने झारखंड चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह सरना कोड लागू करेगी। हालांकि भाजपा के अन्य नेता सरना धर्मकोड पर मुखर नहीं रहे।

वहीं झारखंड के आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सरना धर्म कोड की मांग को लेकर 6 जनवरी, 2024 को पत्र लिखा था।

वहीं विगत 7 अक्टूबर, 2024 को जयपुर में एक पत्रकार वार्ता में बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने भी आदिवासियों को अलग धर्म कोड देने की मांग की। उन्होंने कहा कि आदिवासी न तो हिंदू हैं, ना मुस्लिम, सिख और ईसाई हैं, लेकिन अपना कोई धर्म कोड नहीं होने के कारण वे दूसरे धर्मों को अपना रहे हैं। राजकुमार रोत संसद के शीतकालीन सत्र में भी आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग की।

6 जनवरी, 2024 को बीबीसी से बात करते हुए छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि यूसीसी जैसे प्रावधानों पर आदिवासियों को सचेत रहने की जरूरत है। जिस तरह से झारखंड ने सरना कोड लागू करने की मांग की है, उसी तरह से देशभर में आदिवासियों के लिए अलग कोड लागू करने की जरूरत है।

वहीं 7 जनवरी, 2024 को झारखंड के खूंटी जिले के कचहरी मैदान में प्रदेश भर से बड़ी संख्या में आदिवासी सरना धर्मकोड की मांग के लिए जुटे। इस साल सरहुल के मौके पर 8 अप्रैल, 2024 रांची में सरना धर्म कोड के लिए रैली आयोजित की गई और प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन में कहा गया कि पिछले साल की तरह इस बार लोकसभा चुनाव बहिष्कार की धमकी नहीं दी जाएगी, बल्कि हर जगह यह नारा गूंजेगा– सरना कोड नहीं तो वोट नहीं।

विदित हो कि पूर्व में झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा द्वारा सरना धर्म कोड के लिए प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस संबंध में कोई पहल नहीं की गई है।

केन-बेतवा लिंक परियोजना का आदिवासी कर रहे हैं विरोध

25 दिसंबर, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खजुराहो में केन-बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास किया। लेकिन केन-बेतवा लिंक परियोजना का मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के आदिवासी विरोध कर रहे हैं।

केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत केन नदी का पानी बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाना है। इस परियोजना के लिए मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर 22 मार्च, 2021 को हस्ताक्षर किया गया था। परियोजना को 8 वर्षों में पूरा किया जाना है।

परियोजना के पहले चरण में पन्ना जिले में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा दौधन बांध प्रस्तावित है। दौधन जलाशय के कारण लगभग 9 हजार हेक्टेयर भूमि डूब क्षेत्र में आएगी। इसमें पन्ना टाइगर रिजर्व, पीटीआर बफर की भूमि के साथ-साथ 10 गांवों की भूमि भी शामिल है। ये गांव आदिवासी बहुल हैं, जिसमें लगभग 2 हजार लोग प्रभावित हो रहे हैं। 16 दिसंबर, 2024 को जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन द्वारा पन्ना जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा गया और लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किया गया। ज्ञापन में कहा गया है कि प्रभावित होने वाले गांवों में से आठ गांवों के लोगों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया है और पुनर्वास योजना से भी लोगों को वंचित किया गया है। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि परियोजना से संबंधित पूरी जानकारी सरपंच, जनप्रतिनिधियों और लोगों को बताए बिना उन्हें गांवों से हटाया जा रहा है।

ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि मुआवजा राशि एवं विस्थापन प्रक्रिया पूर्ण किए बिना प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उक्त आठ गांवों की भूमि की एनओसी जारी करके वन विभाग को सौंप दिया गया है, जिससे कृषि एवं वन से जुड़ी आय पर वन विभाग द्वारा रोक लगा दी गई है।जयस संगठन द्वारा पूर्व में भी 18 सितंबर, 2024 और 8 अक्टूबर, 2024 को जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर विरोध प्रदर्शन किया गया। लेकिन अभी तक ज्ञापन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

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