अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मनुस्मृति काल:600 न्यायाधीशमें से 582 ब्राह्मण

Share

आर पी विशाल

निर्भया गैंगरेप मामले में विनय शर्मा के समर्थन में आये लोग गलत नहीं है. असल में मनुस्मृति काल में किसी भी ब्राह्मण को बलात्कार की सजा केवल मुंडन करवाकर छोड़ दिया जाता था. बलात्कार हत्या करने पर उन्हें पाप नहीं लगता था लेकिन सजा देने पर ही पाप लगता था ऐसा उन्होंने खुद कानून बनाया था. आज उसी काल को वापस लाने हेतु महामहिम राष्ट्रपति जी को सुझाव दिया जा रहा है.ब्राह्मण का विरोध स्वाभाविक है. उन्होंने कभी मुगलों का भी विरोध नहीं किया क्योंकि उस दौरान मुगलों ने ब्राह्मणों के अधिकार को सुरक्षित रखा. जब मुगल राजाओं ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया तो ब्राह्मणों ने खुद को हिन्दू मानने से इंकार कर दिया था. उन्होंने तर्क दिया हम हिन्दू नहीं ब्राह्मण है और औरंगजेब ने ब्राह्मणों को छोड़कर बाकि सभी गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगा दिया था.

अंग्रेजों ने इसी वजह से कलकत्ता हाईकोर्ट में ब्रिटिश काल में जो प्रिवी काउंसिल था, उसमें किसी भी ब्राह्मण को प्रिवी काउंसिल के चेयरमैन बनने पर बैन लगा दिया था. अंग्रेजों का मत था कि ब्राह्मणों में न्यायिक चरित्र नहीं होता है. आज पूरे भारत में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लगभग 600 न्यायाधीश है, जिनमें से 582 ब्राह्मण है. क्या समझा जाय कि आज हमारी न्याय व्यवस्था का इतना लचर होना यही वजह है ?

आपको याद रहे नन्दकुमार देव एक समृद्ध बंगाली ब्राह्मण को कम्पनी लॉ (ईस्ट इंडिया कम्पनी) के अंतर्गत 6 मई 1775 में अंग्रेजों ने फांसी दी थी. यह फांसी तत्कालिन कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट (रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के तहत 1774 में स्थापित) प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एजिला इम्पे द्वारा तत्कालीन बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा लगाए गए जालसाजी के आरोप में दी गई थी.

नन्दकुमार देव को फांसी दिए जाने के बाद भारत और इंग्लैंड में जबरदस्त बहस छिड़ गई. बहस तो यह थी कि एक ब्राह्मण को कैसे फांसी दी गई ? मगर उसका तकनीकी पॉइंट यह कि भारतीय व्यक्ति को कम्पनी लॉ के तहत जालसाजी जैसे सिविल मैटर के लिए फांसी नहीं दी जा सकती है. जो उचित भी था हालांकि कम्पनी लॉ में यह कानून सभी के लिए था.

मगर ऐसी ही विभिन्न प्रक्रियाओं और विरोध के फलस्वरूप भारत के कानूनी प्रावधान के लिए चार्टर एक्ट 1833 के अंतर्गत प्रथम भारतीय विधि आयोग का गठन किया गया, जिसका चैयरमैन आजीवन अविवाहित रहे लार्ड थॉमस बेबिग्टन मैकाले यानि लार्ड मैकाले को बनाया गया.

मैकाले ने तत्कालीन लॉ, हिन्दू लॉ आदि का गहनतापूर्वक अध्ययन करते हुए अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को सौंपी. मैकाले की रिपोर्ट का अध्ययन और अन्य सुझावों हेतु चार्टर ऐक्ट 1853 के अंतर्गत द्वितीय भारतीय विधि आयोग का गठन किया गया.

द्वितीय विधि आयोग द्वारा ब्रिटिश सरकार को रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन और अन्य सुझावों हेतु The Act for Better Government of India 1858 के अंतर्गत गठित विधायी परिषद (Legislative Council) द्वारा गहन परीक्षण और दिए गये सुझावोंपरांत ब्रिटिश सरकार ने वर्तमान ताजिराते हिन्द/ भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को मान्यता दी और भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 57 ईपू. से लागू असमानता पर आधारित ब्राह्मण दंड संहिता (बीपीसी) अर्थात मनुस्मृति को शून्य घोषित करते हुए उसके स्थान पर ब्रिटिश सरकार ने भारत में IPC 06अक्टूबर 1860 से लागू कर दी. वही IPC आज तक भारत में मामूली संशोधनों के साथ लागू है.

ब्राह्मण का विरोध स्वाभाविक है. उन्होंने कभी मुगलों का भी विरोध नहीं किया क्योंकि उस दौरान मुगलों ने ब्राह्मणों के अधिकार को सुरक्षित रखा. जब मुगल राजाओं ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया तो ब्राह्मणों ने खुद को हिन्दू मानने से इंकार कर दिया था. उन्होंने तर्क दिया हम हिन्दू नहीं ब्राह्मण है और औरंगजेब ने ब्राह्मणों को छोड़कर बाकि सभी गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगा दिया था.

हजारों साल से शिक्षा के अधिकार से वंचित समाज के लिए मैकाले मुक्ति दूत बनकर भारत आये. उन्होंने शिक्षा पर पुरोहित वर्ग के एकाधिकार को समाप्त कर सभी को समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार प्रदान किया तथा पिछड़ों, अस्पृश्यों व आदिवासियों की किस्मत के दरवाजे खोल दिए. लार्ड मैकाले अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान तथा समर्थक, सफल लेखक तथा धाराप्रवाह भाषणकर्ता थे.

लार्ड मैकाले ने संस्कृत-साहित्य पर प्रहार करते हुए लिखा है कि क्या हम ऐसे चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करायें जिस पर अंग्रेजी पशु-चिकित्सा को भी लज्जा आ जाये ? क्या हम ऐसे ज्योतिष को पढ़ायें जिस पर अंग्रेज बालिकाएं हंसे ? क्या हम ऐसे इतिहास का अध्ययन कराएं जिसमें तीस फुट के राजाओं, राक्षसों का वर्णन हो ? क्या हम ऐसा भूगोल बालकों को पढ़ने को दें जिसमें शीरा तथा मक्खन से भरे समुद्रों का वर्णन हो ?

लार्ड मैकाले संस्कृत तथा फारसी भाषा पर धन व्यय करना मूर्खता समझते थे. उन्होंने अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया. अंग्रेजी भाषा ने ही भारत को पूरी दुनियां से जोड़ा. हालांकि बैर भाषा से नहीं था बल्कि उसकी मान्यताओं से था, जहां किसी शुद्र और स्त्री को संस्कृत पढ़ने का अधिकार नहीं था. संस्कृत पढ़ने वाली पहली महिला पण्डिता रमाबाई थी जो ब्राह्मण थी बावजूद इसके उन्हें समाज से बहिष्कृत किया गया था. उनके बारे में गूगल पर जाकर भी पढ़ सकते हैं.

लार्ड मैकाले ने वर्ण व्यवस्था के साम्राज्यवाद को ध्वस्त किया तथा गैर बराबरी वाले मनुवादी साम्राज्य की काली दीवार को उखाड़ फेंका. सच्चाई यह है कि लार्ड मैकाले ने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जिसके कारण ज्योतिवा फुले, शाहुजी महाराज, रामास्वामी नायकर और बाबासाहेब अम्बेडकर जैसी महान विभूतियों का उदय हुआ, जिन्होंने भारत का नया इतिहास लिखा.

मैकाले का भारत में एक मसीहा के रूप में आविर्भाव हुआ था, जिसने पांच हजार वर्ष पुरानी सामन्त शाही व्यवस्था को ध्वस्त करके जाति और धर्म से ऊपर उठकर एक इन्सानी समाज बनाने का आधार दिया. इसलिए यदि जिन्हें मुंडन मात्र करवाकर छोड़ दिया जाय उनको फांसी का प्रावधान हो तो उसका विरोध करना स्वाभाविक है. आज यह सब देखकर मानों मनुस्मृति काल वापस आने जा रहा हो.

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें