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*70 घंटे काम : नारायणमूर्ति का नया नारायणी प्रवचन*

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       पुष्पा गुप्ता

हमारे भारत में प्रवचकों की भरमार है। आए दिन कोई न कोई नया प्रवचक पैदा होता रहता है। हालाँकि जिसकी चर्चा इस लेख में है वह कोई नये प्रवचक नहीं हैं। बीच-बीच में उनके मुख से कोई न कोई प्रवचनी उद्गार-नसीहत-सलाह निकलती रहती है जिसको इस देश का खाया-पिया-अघाया मध्यवर्गीय जमात चरणामृत समझ कर पीता और सर से लगाता रहता है!

      ये महाशय हैं भारत की दिग्गज आईटी सेक्टर की कम्पनी इम्फोसिस के मालिक नारायण मूर्ति जी! अभी हाल ही में मूर्ति जी ने यह प्रवचन दिया है कि  “देश की तरक्की के लिए हर रोज करीब 12 घण्टे और हफ्ते में कुल 70 घण्टे काम करना चाहिए!”

      इनके इस बयान पर कॉरपोरेट सेक्टर से लेकर गोदी मीडिया और फिल्मी जगत से जुड़े तमाम लोगों ने खूब वाहवाही की! ऐसा लगा जैसे इन्होंने वह मन्त्र बता दिया है कि कैसे किसी “देश को तरक्की की राह पर” आगे बढ़ाया जा सकता है! अब सवाल यह उठता है कि 12 घण्टे रोज और हफ्ते में 70 घण्टे काम करने के जिस मन्त्र का जाप नारायण मूर्ति कर रहे हैं उस मन्त्र से किसकी “तरक्की” होने वाली है! लेकिन सबसे पहले आते हैं काम के घण्टे के सवाल पर!

मूर्ति जी के अनुसार ज्यादा आमदनी और “देश की तरक्की” के लिए हफ्ते में 70 घण्टे काम करना चाहिए! लेकिन नारायण मूर्ति जी को शायद यह नहीं पता है कि इस देश की मजदूर-मेहनतकश आबादी हफ्ते में 70 घण्टे ही काम कर रही है!

     लेकिन उसके बावजूद वह गरिमापूर्ण जीवन जीने में असमर्थ है। रोज 10-12 घण्टे काम करने के बावजूद उन्हें केवल इतनी ही मज़दूरी मिल पा रही है जितने में वह बस कुछ बेहद मामूली बुनियादी ज़रूरतों को ही पूरा कर सके! इस देश की लगभग 94% मजदूर आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है, जिनकी दिनचर्या और जीवन स्थितियाँ बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं।

      इनके ऊपर छँटनी की तलवार तो लटकी ही रहती है साथ ही उनके काम के घण्टे और उसपर मिलने वाली मज़दूरी इतनी कम है कि वह बमुश्किल अपनी ज़रूरतों को पूरा कर पाते हैं। यही हाल खेतीहर मजदूरों से लेकर छोटी जोत के किसानों, रेहड़ी-पटरी वालों, रिक्शा-ठेला वालों, दुकानों-ढाबों-होटलों में काम करने वाले करोड़ों मेहनतकशों की है! लेकिन मूर्ति जी को उनकी जि़न्दगी नहीं दिखती है!

भारत देश वैसे भी दुनिया के पहले 10 देशों की सूची में सातवें पायदान पर खड़ा है जिन देशों में काम के घण्टे सबसे ज्यादा हैं। भारत से ऊपर कांगो, गाम्बिया, भूटान, कतर, यूएई जैसे देश ही आते हैं। इनमें भी ज्यादातर देशों के मेहनतकशों की स्थिति भी बहुत ही बुरी है।

      कानूनी तौर पर भारत में 48 घण्टे प्रति सप्ताह का कानून लागू है। यानी 8 घण्टे 6 दिन का कार्यदिवस और सप्ताह में एक छुट्टी! 8 घण्टे कार्य दिवस का कानून लागू होते हुए भी यहाँ 10 से 12 घण्टे काम लिया जाता है। इसके बावजूद भारत प्रति व्यक्ति औसत आय के मामले में दुनिया के देशों में 142वें पायदान पर खड़ा है।

अब उन देशों पर एक नजर डाल लेते हैं जिन देशों में काम के घण्टे सबसे कम हैं लेकिन प्रति व्यक्ति औसत आय और लोगों का जीवन स्तर दुनिया में सबसे बेहतर है। इसमें नीदरलैंड में सप्ताह में 29 घण्टे काम और 3 दिन छुट्टी, डेनमार्क में 33 घण्टे काम तीन दिन छुट्टी, कनाडा में 32 घण्टे , ब्रिटेन में 36 घण्टे, जर्मनी में 34 घण्टे,  जापान में 36 घण्टे, अमेरिका में 36 घण्टे का काम ही लिया जाता है।    

       लेकिन इसके बावजूद इन देशों में प्रति व्यक्ति औसत आय, उनका रहन-सहन बहुत ही उन्नत है। अमेरिका जैसे देशों में हफ्ते में 32 घण्टे यानी चार दिन काम और 3 दिन की छुट्टी के लिए धरना प्रदर्शन चल रहे हैं। लेकिन भारत जैसे देश में उल्टी गंगा बहायी जा रही है और काम के घण्टे बढ़ाए जाने को लेकर प्रवचन दिये जा रहे हैं! “देश की तरक्की” के नाम पर लोगों की ज़िन्दगी के वास्तविक अर्थों को छीना जा रहा है!

       यानी आप एक इन्सान होने की बुनियादी शर्त को खोकर मशीन की तरह काम कीजिए! ज़िन्दगी जीने, मनोरंजन करने, घूमने-फिरने, नया सीखने या सृजनात्मक श्रम करने को भूल जाईये! नारायणमूर्ति जैसे पूँजीपतियों की तिजोरी को भरते रहिये! मोदी सरकार भी लगातार श्रम कानूनों में संशोधन करके काम के घण्टे बढ़ाये जाने की योजना पर काम कर रही है।

जहाँ तक काम के घण्टे निर्धारित करने का मामला है, 1921 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौते के मुताबिक हफ्ते में 48 घण्टे काम करने का मानक निर्धारित किया गया था। 1935 आते-आते पश्चिमी देशों ने इसे घटाकर 40 घण्टे कर दिया! कुछ पश्चिमी देश तो हर 10 साल में काम के घण्टों को कम करते रहते हैं। लेकिन भारत में इसके 100 साल बाद भी 48 घण्टे का ही कानून लागू है।

       जबकि 8 घण्टे का काम, 8 घण्टे आराम, 8 घण्टे मनोरंजन का नारा दुनिया के मजदूर वर्ग ने 1880 के दशक में ही दिया था!  तब से लेकर अब तक पूरी दुनिया में तकनीक, कौशल और उत्पादकता में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है! आज प्रौद्योगिकी के जिस स्तर पर दुनिया खड़ी है वहाँ दो से चार घण्टे काम करके ही उत्पादन की ज़रूरत को आसानी से पूरा किया जा सकता है! इसके साथ ही सभी का जीवन स्तर कई गुना बढ़ाया जा सकता है!

         नारायणमूर्ति जैसे लोग ये बात कभी नहीं बोलेंगे! क्योंकि इस मुनाफ़ाखोर व्यवस्था का मूल मन्त्र ही यही है कि मज़दूर जितने ज्यादा घण्टे काम करेगा, पूँजीपतियों को उतना ही अधिक मुनाफा प्राप्त होगा। अगर इन्हें देश की तरक्की की इतनी ही फ़िक्र है तो ये ठेका प्रथा को समाप्त करने, सभी को रोज़गार की गारण्टी देने, न्यूनतम मज़दूरी को बढ़ाये जाने की बात क्यों नहीं करते.

        ये क्यों नहीं कहते कि करोड़ों-अरबों रुपयों का पूँजीपतियों का कर सरकार माफ़ न करे! क्योंकि असल में ये अपनी तरक्की को ही देश की तरक्की समझते हैं! इनके लिए नारायण (पूँजी) ही सब कुछ है! इसलिए नारायण मूर्ति सहित कॉरपोरेट जगत के तमाम पूँजीपति बीच-बीच में काम के घण्टे बढ़ाए जाने या “देश सेवा व तरक्की” की नसीहत के नाम पर युवाओं और मेहनतकशों को इस तरह का ‘नारायणी प्रवचन’ देते रहते हैं.

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