हरित रणनीतिक साझेदारी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। उस समय, इस नई साझेदारी की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने कहा था- ‘डेनमार्क के पास कौशल है, भारत के पास उसे नापने का पैमाना है और दुनिया को नई तकनीकों की आवश्यकता है।’ यह कथन दोनों देशों के बीच संयुक्त रोडमैप का प्रतिनिधित्व करता है।
पिछले चार सालों में हरित रणनीतिक साझेदारी दोनों देशों को ऊर्जा, जल, सतत शहरी विकास, स्वास्थ्य, कृषि, समुद्री और बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काफी करीब लाई है। पानी के क्षेत्र में, डेनमार्क और भारत के बीच पहला सहयोग राजस्थान राज्य में स्थापित किया गया था। दोनों देश सतत शहरी जल क्षेत्र विकसित करने पर सहयोग कर रहे हैं, जहां आरहूस शहर (डेनमार्क) और राजस्थान राज्य गैर-राजस्व जल को कम करने, सतत भूजल प्रबंधन, नदी के कायाकल्प और शहरी क्षेत्रों में एकीकृत जल प्रबंधन के माध्यम से रहने की क्षमता बढ़ाने पर सहयोग कर रहे हैं। जयपुर, उदयपुर और नवलगढ़ को आदर्श शहर के रूप में चुना गया है। डेनमार्क ही वह एकमात्र भागीदार देश है, जिसने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जल जीवन मिशन को रणनीतिक तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा (यूएनओपी) को वित्त पोषित किया। इसके तहत पहले चरण (2021-2022) में उत्तर प्रदेश के 11 जिलों के 137 गांवों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। दूसरे चरण (2022-2024) में परियोजना को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम और तमिलनाडु के 19 जिलों के 268 गांवों तक विस्तारित किया गया।
स्वच्छ नदी जल प्राप्त करना भारत-डेनमार्क सहयोग का एक और फोकस क्षेत्र है और दोनों देश वाराणसी में स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला (एसएलसीआर) की स्थापना में लगे हुए हैं, जिस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन के बीच 9 अक्टूबर 2021 को सुश्री मेटे की भारत यात्रा के दौरान सहमति बनी थी। ऊर्जा के क्षेत्र में भी अनेक डेनिश ऊर्जा विशेषज्ञ भारतीय संस्थानों में कार्यरत रहकर भारतीय सहयोगियों के साथ संयुक्त परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। इस साल की शुरुआत में, भारत और डेनमार्क ने ग्रीन फ्यूल अलायंस इंडिया लॉन्च किया, जिसमें मुख्य रूप से शामिल डेनमार्क की कंपनियां भारत में हरित ईंधन के उत्पादन के लिए तकनीक लाने की क्षमता रखती हैं।
भारत-डेनमार्क राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे होने के अवसर पर डेनमार्क का मानता है कि हम भारत जैसे दोस्त के बिना पृथ्वी को नहीं बचा सकते। हरित रणनीतिक साझेदारी ने 2020 से हमारी दोस्ती का मार्गदर्शन किया है और हम न केवल अपने लिए, बल्कि दुनिया भर के अपने अन्य दोस्तों के लिए भी इसके लाभों को पहुंचाने की उम्मीद करते हैं। निस्संदेह अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को साझा करके भारत और डेनमार्क एक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं कि कैसे वैश्विक साझेदारी महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों व सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में सार्थक प्रगति कर सकती है। इसे हम अफ्रीकी देशों में सौर ऊर्जा लाने के लिए दोनों देशों द्वारा अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइएसए) में मिलकर काम करने से भी समझ सकते हैं। दोनों देशों की हरित रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य यह भी है कि दोनों देशों के लोग इसके लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने और धरती माता के साथ संतुलन में रहने के लिए प्रेरित होते रहें।
फ्रेडी स्वेनराजदूत, डेनमार्क दूतावास, नई दिल्ली………….
डेनमार्क के साथ भारत की मित्रता के इस साल 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। दोनों देशों के बीच भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही 1949 में राजनयिक संबंध स्थापित हो गए थे और दशकों तक ये संबंध साझा लोकतांत्रिक परंपराओं व अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता की साझा इच्छा के साथ आगे बढ़ते रहे। पर इन संबंधों को असली जीवंतता तब मिली, जब सितंबर 2020 में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी व डेनमार्क की पीएम मेटे फ्रेडरिकसेन ने इन्हें हरित रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ा दिया।
हरित रणनीतिक साझेदारी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। उस समय, इस नई साझेदारी की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने कहा था- ‘डेनमार्क के पास कौशल है, भारत के पास उसे नापने का पैमाना है और दुनिया को नई तकनीकों की आवश्यकता है।’ यह कथन दोनों देशों के बीच संयुक्त रोडमैप का प्रतिनिधित्व करता है।
पिछले चार सालों में हरित रणनीतिक साझेदारी दोनों देशों को ऊर्जा, जल, सतत शहरी विकास, स्वास्थ्य, कृषि, समुद्री और बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काफी करीब लाई है। पानी के क्षेत्र में, डेनमार्क और भारत के बीच पहला सहयोग राजस्थान राज्य में स्थापित किया गया था। दोनों देश सतत शहरी जल क्षेत्र विकसित करने पर सहयोग कर रहे हैं, जहां आरहूस शहर (डेनमार्क) और राजस्थान राज्य गैर-राजस्व जल को कम करने, सतत भूजल प्रबंधन, नदी के कायाकल्प और शहरी क्षेत्रों में एकीकृत जल प्रबंधन के माध्यम से रहने की क्षमता बढ़ाने पर सहयोग कर रहे हैं। जयपुर, उदयपुर और नवलगढ़ को आदर्श शहर के रूप में चुना गया है। डेनमार्क ही वह एकमात्र भागीदार देश है, जिसने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जल जीवन मिशन को रणनीतिक तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा (यूएनओपी) को वित्त पोषित किया। इसके तहत पहले चरण (2021-2022) में उत्तर प्रदेश के 11 जिलों के 137 गांवों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। दूसरे चरण (2022-2024) में परियोजना को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम और तमिलनाडु के 19 जिलों के 268 गांवों तक विस्तारित किया गया।
स्वच्छ नदी जल प्राप्त करना भारत-डेनमार्क सहयोग का एक और फोकस क्षेत्र है और दोनों देश वाराणसी में स्वच्छ नदियों पर स्मार्ट प्रयोगशाला (एसएलसीआर) की स्थापना में लगे हुए हैं, जिस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन के बीच 9 अक्टूबर 2021 को सुश्री मेटे की भारत यात्रा के दौरान सहमति बनी थी। ऊर्जा के क्षेत्र में भी अनेक डेनिश ऊर्जा विशेषज्ञ भारतीय संस्थानों में कार्यरत रहकर भारतीय सहयोगियों के साथ संयुक्त परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। इस साल की शुरुआत में, भारत और डेनमार्क ने ग्रीन फ्यूल अलायंस इंडिया लॉन्च किया, जिसमें मुख्य रूप से शामिल डेनमार्क की कंपनियां भारत में हरित ईंधन के उत्पादन के लिए तकनीक लाने की क्षमता रखती हैं।
भारत-डेनमार्क राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे होने के अवसर पर डेनमार्क का मानता है कि हम भारत जैसे दोस्त के बिना पृथ्वी को नहीं बचा सकते। हरित रणनीतिक साझेदारी ने 2020 से हमारी दोस्ती का मार्गदर्शन किया है और हम न केवल अपने लिए, बल्कि दुनिया भर के अपने अन्य दोस्तों के लिए भी इसके लाभों को पहुंचाने की उम्मीद करते हैं। निस्संदेह अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को साझा करके भारत और डेनमार्क एक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं कि कैसे वैश्विक साझेदारी महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों व सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में सार्थक प्रगति कर सकती है। इसे हम अफ्रीकी देशों में सौर ऊर्जा लाने के लिए दोनों देशों द्वारा अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइएसए) में मिलकर काम करने से भी समझ सकते हैं। दोनों देशों की हरित रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य यह भी है कि दोनों देशों के लोग इसके लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने और धरती माता के साथ संतुलन में रहने के लिए प्रेरित होते रहें।