आरती शर्मा
_दार्शनिक ताओ के दृष्टिकोण से कहूं तो अगर व्यक्ति संभोग में उतावला न हो, केवल गहरे विश्राम में ही शिथिल हो तो वह एक हजार वर्ष जी सकता है। अगर स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ गहरे विश्राम में हो एक दूसरे में डूबे हों कोई जल्दी न हो, कोई तनाव न हो, तो बहुत कुछ घट सकता है रासायनिक चीजें घट सकती हैं।_
ऎसा इसलिए कि उस समय दोनों के जीवन-रसों का मिलन होता है दोनों की शरीर-विद्युत, दोनों की जीवन-ऊर्जा का मिलन होता है। केवल इस मिलन से–क्योंकि ये दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं–एक पॉजिटिव है एक नेगेटिव है। ये दो विपरीत धुरव हैं–सिर्फ गहराई में मिलन से वे एक दूसरे को और जीवतंता प्रदान करते हैं।
कहने का आसय यह कि गहन संभोग से नरनारी बिना वृद्धावस्था को प्राप्त हुए लंबे समय तक जी सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब आप संघर्ष नहीं करते।
_यह बात विरोधाभासी प्रतीत होती है। जो कामवासना से लड़ रहे हैं उनका वीर्य स्खलन जल्दी हो जाएगा, क्योंकि तनाव ग्रस्त चित्त तनाव से मुक्त होने की जल्दी में होता है।_
*क्या कहती हैं नई खोजें?*
मास्टर्स और जान्सन्सने पहली बार इस पर वैज्ञानिक ढंग से काम किया है कि गहन मैथुन में क्या-क्या घटित होता है। उन्हें यह पता चला कि 95% प्रतिशत पुरुषों का समय से पहले ही वीर्य-स्खलन हो जाता है। मतलब पुरुषों का प्रगाढ़ मिलन से पहले ही स्खलन हो जाता है और काम-कृत्य समाप्त हो जाता है।
_इसलिए नब्बे प्रतिशत स्त्रियां तो काम के आनंद-शिखर ऑरगॉज्म तक पहुंचती ही नहीं. वे कभी शिखर तक गहन तृप्तिदायक शिखर तक नहीं पहुंचतीं. नब्बे प्रतिशत स्त्रियां।_
यह संख्या बहुत बड़ी है. आपको क्या लगता है, आप अपवाद हैं? नहीं आप भी इस 90% की हिस्सा हैं.
_जिसे आप यौनसुख मान बैठी हैं, वह तो उसकी छाया भी नहीं है. संभोग सुख वह है, जिसमें आप पुरुष की तरह डिस्चार्ज हों और “बस बस प्लीज…” कहते – कहते चरम आनंद में बेसुध हो जाएँ. क्या आप आज तक इस स्टेज तक पहुँच सकी?_
नहीं ना!
इसी कारण स्त्रियां इतनी चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं. बाहर से रंग रोगन कर लें, खीस निपोरती रहें, भीतर से सड़ती और रोती हीं रहती हैं वे. वे ऐसी ही रहेंगी।
_कोई मर्द इंसान, कोई ध्यान आसानी से ऎसी स्त्री की सहायता नहीं कर सकता. कोइ दर्शन, कोई धर्म, कोई नैतिकता उसे पुरुष–जिसके साथ वह रह रही है–के साथ चैन से जीने में सहायक नहीं हो सकता।_
आधुनिक विज्ञान तथा प्राचीन ध्यान तंत्र दोनों ही कहते हैं कि जब तक स्त्री को गहन काम-तृप्ति नहीं मिलेगी, वह परिवार के लिए एक समस्या ही बनी रहेगी। वह हमेशा झगड़ने और सड़ने के लिए तैयार मिलेगी।
*समझना होगा पुरुष क़ो :*
अगर आपकी पत्नी हमेशा झगड़े के भाव में रहती है तो सारी बातों पर फिर से विचार करो। केवल पत्नी ही नहीं, आप भी इसका कारण हो सकते हो। क्योंकि स्त्रियां काम संवेग, ऑरगॉज्म, तक नहीं पहुंचती, वे संभोग -विरोधी हो जाती हैं।
_वे संभोग के लिए आसानी से तैयार नहीं होतीं। उनकी खुशामद करनी पड़ती है; वे काम- भोग के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे इसके लिए तैयार भी क्यों हो? उन्हें कभी इससे कोई सुख भी तो प्राप्त नहीं होता। उलटे, उन्हें तो ऐसा लगता है कि पुरुष अपनी इकतरफा हवस के लिए उनका भोग करता है. उन्हें इस्तेमाल किया गया है। उन्हें ऐसा लगता है कि वस्तु की भांति उपयोग कर उन्हें फेंक दिया गया है।_
पुरुष संतुष्ट है क्योंकि उसने वीर्य बाहर फेंक दिया है। तब वह करवट लेता है और सो जाता है. पत्नी रोती है। उसका उपयोग किया गया है और यह प्रतीति उसे किसी भी रूप में तृप्ति नहीं देती। इससे उसका पति या प्रेमी तो छुटकारा पाकर हल्का हो गया लेकिन उसके लिए यह कोई संतोषप्रद अनुभव न था।
_स्त्रियां शारीरिक संवेग के ऐसी आनंददायी शिखर पर कभी पहुंचती ही नहीं जहां उनके शरीर का एक-एक तंतु सिहर उठे और एक-एक कोशिका सजीव हो जाए। वे वहां तक कभी पहुंच नहीं पातीं।_
इसका कारण है समाज की काम-विरोधी चित्तवृत्ति। संघर्ष करनेवाला मन वहां उपस्थित है. इसलिए स्त्री इतनी दमित और मंद हो गई है।
[चेतना विकास मिशन)