अग्नि आलोक
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*कहानी : रक्षक*

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     सोनी कुमारी, वाराणसी 

   “मैं कहाँ हूँ?”

  होश में आने के साथ उमा ने मद्धिम स्वर में सवाल किया। 

   “आप इस समय अस्पताल में हैं, आप को पूरे चौबीस घंटे के बाद होश आया है.”

  उमा की आवाज सुनते ही एक नर्स उसके नजदीक आकर के बोली। 

  “मुझे अस्पताल में कौन लेकर आया, क्या मेरे साथ बहुत बुरा हुआ है?”

  उमा ने लेटे लेटे फिर से सवाल किया। 

   “तुम्हारे जैसी बहादुर लड़की के साथ कौन बुरा कर सकता है भला? बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी तुमने अपनी लाज बचाने के साथ अपराधी को मार डालने का जो काम किया है इसकी खबर सभी अखबारों में छपी है।लोग तुम्हें  रणचंडी कहकर संबोधित कर रहे हैं।वैसे तुम आराम करो तबतक तुम्हारे होश में आने की खबर मैं डाक्टर से बताती हूँ।”

  ऐसा कहते हुए नर्स बाहर निकल गयी।

     नर्स के जाने के साथ ही उमा विगत में खो गयी। एक प्राइवेट फर्म के एमडी की पर्सनल सेक्रेटरी थी वह। एमडी उसे अपनी बेटी की तरह मानते हैं। अस्वस्थ होने के कारण एक महीने से उनकी जगह उनका बेटा आफिस का काम देख रहा है।

      आफिस आने के साथ ही उसने अपने दो हमउम्र दोस्तों को भी आफिस में रख लिया है। दो के दोनों काम कम चापलूसी ज्यादा करते हैं। नियमानुसार छ बजे आफिस बंद हो जाना चाहिए मगर अब आफिस आठ बजे तक बंद हो जाता है। पर्सनल सेक्रेटरी होने के कारण उमा को भी रुकना पड़ जाता है। 

     देर तक दफ्तर में रुकने पर उसे घर जाने में डर लगता है। डर का कारण उसके मुहल्ले का दादा श्यामू है। आते जाते समय जब वह घूरता है तब जैसे जान ही निकल जाती है। जाड़े के दिन में मुहल्ले में पहुंचते पहुंचते नौ बजे जाता है। डर लगता है कि किसी दिन उसे अकेली देखकर : सोचते ही उसके हाथ पांव कांपने लगते हैं।

    मगर आजतक वह दूर से ही घूर कर रह जाता है, कभी पास आने की हिम्मत नहीं किया है। 

      कैसी हो?

    इस सवाल को सुनकर वह अपनी सोच से बाहर आयी। उसके सामने डाक्टर, नर्स के साथ एक पुलिस इंसपेक्टर भी खड़ा था।

 “मैंने पूछा था आप कैसी हैं?”

  डाक्टर ने अपना सवाल फिर से दोहराया। 

  “ठीक हूँ, बहुत कमजोरी सी लग रही है।”

   उमा ने धीमे स्वर में अपना उत्तर दिया था। 

   “यही मैं भी कह रहा हूँ, तुम्हारे शरीर से ढेर सारा खून बहा है। अच्छा यह है कि तुम्हें शारीरिक नुकसान के अलावा और कुछ नहीं हुआ है।इंस्पेक्टर साहब तुम्हारा बयान लेना चाहते हैं, मगर मैं अभी इसकी इजाजत नहीं दूंगा। तुम आराम करो।”

   ऐसा कहते हुए डाक्टर पुलिस इंस्पेक्टर को साथ लिए चला गया। उमा अपनी आंखें बंद कर दोबारा अपनी सोच में डूब गयी। 

      बीती रात आठ बजे जब वह घर जाने की इजाजत लेने बास के केबिन में गयी तब उसके दोनों चंदा मंगू उसके साथ ही बैठे हुए थे। अभी वह कुछ कहती तभी बास ने कहा आज एक पार्टी आनेवाली है। उनसे मीटिंग के बाद निकला जायेगा। 

   “सर मुझे स्कूटी से जाना होता है, रास्ते में कहीं कहीं सूना होता है डर लगता है।”

 उसने अपनी मजबूरी बताया था। 

   “अरे भाई हमलोग तुम्हें तुम्हारे घर छोड़कर आयेंगे, स्कूटी यहीं रहेगी कल ले जाना।”

   ऐसा कहते हुए तीनो ने एक दूसरे को छिपी नजरों से देखा था। यह देख उसका माथा ठनका वह उसी समय निकल गयी होती मगर मजबूरी क्या न कराये। नौकरी चली गई तो घर कैसे चलेगा? बूढ़े माँ बाप और स्वयं उसके पेट की आग कैसे बुझेगी? 

     सब झूठ व फरेब था, कोई पार्टी नहीं आई। रात दस बजे वह तीनों उसका रक्षक बन कार से छोड़ने चले। मगर रास्ते मे सूना जगह कार रोक तीनों भेडिंये अपने असली रूप में आ गए। कार से उतर कर चीखते हुए भगी मगर ठोकर खाकर गिर पड़ी थी।

    अपनी अस्मत बचाने हेतु वह हाथ पांव चलाने के साथ चिल्ला रही थी। खुद के बेहोश होने से पहले उसने श्यामू दादा को देखा था जो आने के साथ उन तीनों राक्षसों पर टूट पड़ा था। 

    अगले दिन डाक्टर के विजिट के बाद इंस्पेक्टर आ गया। आने के साथ वह बोला :

   “देखिए हम आपको जान गये हैं, आप उमाजी हैं। आपके पिताजी ने बताया है कि आप किसी आफिस में काम करती हैं। देखिए सूचना मिलने पर जब पुलिस आपके पास पहुंची तो आप लहुलुहान बेहोश पड़ी थीं। आपके पास इस एरिया का हिस्ट्रीशीटर बदमाश श्यामू मरा पड़ा था। लगता है आपको अकेले आते देखकर उसने आपकी इज्जत लूटना चाहा। आप उससे भिड़ गयीं, और अपनी आत्मरक्षा में आपके हाथों वह मारा गया। उसकी मृत्यु  गोली से हुई है, मगर मौकायेबारदात से कोई हथियार नहीं मिला है। अब आपही बता सकती हैं कि उस रात वास्तव में क्या हुआ था? आपने उस राक्षस को कैसे हरा पायीं?”

    “राक्षस नहीं था वह, मेरा तो मेरा रखवाला बनकर आया और उन दुष्टों के हाथों अपनी बलि चढाकर गया।”

   इंस्पेक्टर की बात समाप्त होते ही वह चीख पड़ी।

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