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स्वास्थ्य मिशन के जश्न पर उठे प्रश्न हैं, बेहूदे….!

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सुसंस्कृति परिहार 

 आम तौर पर किसी भी जश्न के मौके पर नाच,गान होना सामान्य बात होती है फिर चाहे वह शासकीय कार्यक्रम हो , अशासकीय या सामाजिक समारोह हो ।हम यहां जिस समारोह की बात करने जा रहे हैं वह अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन यानि 8मार्च की बात है जिस दिन दुनिया की तमाम महिलाएं अपने  मिले हकों की खुशी का इजहार करते हुए प्रसन्नता परस्पर बांटती हैं। सन् 1975 से भारत में भी यह समारोह शासन-प्रशासन के साथ धूमधाम से सभी जगह  में मनाया जाता है जिसमें महिलाएं बड़ी संख्या में जुटती हैं। 

          ऐसा ही एक समारोह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन भोपाल की महिलाओं ने मनाया जिसमें मिशन की डायरेक्टर छवि भारद्वाज भी उपस्थित रहीं।जश्न था तो धूम थी ,खुशी की लहर थी सो उसमें नाच गान भी था। लेकिन आज जो मनुवाद वापसी वालों का चापलूस मीडिया है उसे ये नागवार गुजरा और उन्होंने अपनी टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में इस हंसी ख़ुशी के माहौल में कोरोना को दे पटका।ज्ञातव्य हो ये जो मिशन है इसी के बलबूते पर भोपाल और प्रदेश में कार्यरत तकरीबन डेढ़ लाख महिलाओं ने कोरोना वारियर्स के रूप में जोखिम के बीच अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दीं।जो सर्वदा चौकन्न्नी और सावधान रहीं हों दूसरों को सावधान करती रही हों उन पर इल्जाम लगाया गया कि कार्यक्रम के दौरान समारोह में शामिल महिलाओं ने कोरोना नियमों की अवहेलना की।  8 तारीख का समाचार जब 17तारीख को छपेगा तो फौरी तौर पर यह सही नज़र आता है पर वस्तुस्थिति यह थी कि 8मार्च को ऐसी किसी संहिता की घोषणा नहीं हुई थी इसलिए सब कुछ सामान्य था।   

           दूसरी बात नृत्य को गंभीर कृत्य बताना मर्दवादी सोच को ही दर्शाता है। महिलाएं खुश हो नाचे गाए पढ़ें लिखे आगे बढ़ें ये तथाकथित भद्र समाज को चुभता है लेकिन दरअसल यही ऊपरी तौर दिखता है उसे तो स्त्रियों के ठुमके पुरातन काल से पसंद हैं । इसलिए नृत्य के चित्र और वीडियो का सहारा कथित सभ्य मीडिया ने लिया।किसी महिला के वीडियो का प्रसार भी आपत्तिजनक है ।उस पर आए कमेंट भी समाज की मनोकामना को दर्शाते हैं। ऐसे स्त्री विरोधी समाज के सदस्यों के प्रति कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। 

               ऐसे मीडिया का चरित्र भी दोगला होता है उसे  इस बात पर आपत्ति नहीं होती जब रोज रात में शराब कबाब के नशे धुत्त लोग कोरोना की परवाह किए बिना महफिलें सजाते हैं ऊल-जलूल फ़िज़ूल वातावरण बनाते हैं या कि नेताओं के साथ उमड़ी भीड़ कोरोना संहिता का कितना पालन करती हैं मीडिया ख़ुद किस तरह भीड़ में घुसकर अपना काम करती है । गांधी जी ने कहा था किसी की गलती  दिखाने के लिए उठी उंगली के पीछे तीन उंगलियां आपकी तरफ इशारा करती हैं इस पर ध्यान देना चाहिए।मगर उन्हें इससे क्या लेना देना? 

               अमूमन महिलाओं के खिलाफ बढ़ती ये प्रवृत्ति खतरनाक है। लिंग भेद जब संविधान नहीं करता तब आप उन पर उंगली उठाने वाले कौन होते हैं ?मिशन की महिलाओं ने अच्छा ही किया अपनी आवाज़ बुलंद कर उन्होंने जो ज्ञापन सम्बंधित अख़बार और वीडियो दिखाने वाले मीडिया के विरुद्ध दिया है उस गंभीरता पूर्वक विचार होना चाहिए । महिलाएं सदैव से प्रताड़ित रहीं हैं लेकिन उनकी जाग उम्मीद जगाती है कि वे अब बोलने लगी है उन्हें सुनना होगा और उनके विरुद्ध जबरिया किए अनर्गल प्रचार के लिए क्षमा भी मांगना होगी। भोपाल जागरुक शहर है प्रगतिशील समाज उनके साथ है यह ख़ुशी की बात है ।

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