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हरियाणा में भ्रम का ‘चक्रव्यूह’

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पंजाब के बाद हरियाणा राज्य किसान आंदोलन का गवाह रहा है। राज्य में बेरोजगारी की दर देश में उच्चतम बनी हुई है। पंजाब और गुजरात के बाद हरियाणा से बड़ी संख्या में युवाओं के विदेश पलायन की खबरें हैं। खेलों में हरियाणा सबसे अग्रणी होने के बावजूद महिला पहलवान खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। देश में बड़ी संख्या में फ़ौज में भर्ती होने वाला हरयाणवी युवा और उसका परिवार मोदी सरकार के ‘अग्निवीर योजना’ से नाराज है। भाजपा के लिए लोकसभा से अधिक विधान सभा का चुनाव भारी पड़ने जा रहा है। लेकिन, चूंकि लोकसभा से केंद्र सरकार का भविष्य तय होता है, इसलिए भाजपा इसके लिए जान की बाजी लगा सकती है।

23 दिसंबर को सिरसा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने हजारों लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए ऐलान किया, “भाजपा के साथ जेजेपी के दुष्यंत चौटाला का जो समझौता था, उसमें एक और समझौता हो गया है। भ्रष्टाचार का समझौता। समझौता तोड़ने का भी समझौता हो गया है। ये मेरी बात समझ के आप दिल में रखना। ये समझौता तोड़ेंगे, बीजेपी के इशारे पर ये लोग आपके बीच में आयेंगे। कांग्रेस के वोट बैंक में कौन ज्यादा सेंधमारी करेगा, अभय सिंह ज्यादा मारेंगे या दुष्यंत चौटाला ज्यादा मारेंगे, बीजेपी के इशारे पर इस तरह की राजनीति की जायेगी। एक चक्रव्यूह रचा जायेगा। प्रदेश में परिवर्तन को रोकने के लिए चक्रव्यूह रचा जायेगा। पिछली बार तो आप भी और हम भी नादान थे, लेकिन अब आप भी समझ चुके हो, और हम भी समझ चुके हैं। इस चक्रव्यूह को तोड़ने का काम और इस तोड़ने में आप लोग हमारा साथ दोगे या नहीं, एक बार हाथ खड़े करके आप सबसे आशीर्वाद और साथ मांगता हूं।”

इस वीडियो को दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज सोशल मीडिया X पर जारी किया है। वीडियो में सभा में सभी लोग दोनों हाथ खड़ा कर 2024 के चुनाव में इस चक्रव्यूह को तोड़ने का संकल्प लेते नजर आते हैं। दोपहर से सवा लाख से अधिक दर्शक इस वीडियो को देख चुके हैं।

आज इस वीडियो क्लिप का खास महत्व था। आज सुबह मनोहर लाल खट्टर अपना इस्तीफ़ा राज्यपाल को सौंप देते हैं। शाम 4 बजे तक नए मुख्यमंत्री के ऐलान की भी घोषणा हो जाती है। नये मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जा चुकी है। यह ताज नायब सिंह सैनी को सौंपा जा रहा है। सैनी साहब ओबीसी समुदाय से आते हैं, और 2019 में कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद होने के साथ-साथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर भी विराजमान हैं।

प्रदेश में अचानक से 9 साल तक चली आ रही खट्टर सरकार को हटाने की मजबूरी भाजपा के लिए क्यों आन पड़ी? इसकी सबसे बड़ी वजह है जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ 2024 लोकसभा चुनाव में समझौता न हो पाना। कल रात दुष्यंत चौटाला और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच की वार्ता असफल सिद्ध हुई। राज्य में भाजपा के 10 सांसद हैं, और इस प्रकार हरियाणा में भाजपा का स्ट्राइक रेट शत-प्रतिशत है। भाजपा अपने खाते से एक सीट का बलिदान करने को तैयार थी, लेकिन जजपा दो सीटों को लेकर अड़ी हुई थी।

स्वार्थ का गठबंधन था, टूटना लाजिमी था

इसे समझने के लिए हमें पीछे जाना होगा। 2014 में आईंएनएलडी के पास दो सांसद थे, जबकि भाजपा के 7 तो कांग्रेस से एकमात्र सांसद दीपेंद्र हुड्डा जीते थे। अक्टूबर 2019 विधान सभा चुनाव में भाजपा के खाते में 41 सीट (36.49% वोट) आई थी, जबकि दूसरे नबंर पर कांग्रेस पार्टी के खाते में 30 सीट (28%) और जजपा 10 सीट (14.80%) के साथ तीसरे नंबर की पार्टी बनकर पहली बार प्रदेश की राजनीति में उभरी थी। कांग्रेस और जजपा दोनों ही चुनाव में भाजपा विरोधी राजनीति कर रहे थे, लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद दुष्यंत चौटाला ने खट्टर सरकार में शामिल होने का फैसला किया, और उप-मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की कमान संभाली।

किसान राजनीति और जाट वोटर के बल पर दुष्यंत चौटाला को इतनी सीट हासिल हुई थी। इस बार उनके पूरी तरह से अप्रासंगिक बन जाने का खतरा था। खट्टर सरकार से अलग हटकर ही उनकी पार्टी चुनाव का सामना कर सकती थी। हरियाणा को जाट और किसान आधारित राजनीति का गढ़ माना जाता है। भाजपा ने पिछले 10 वर्ष से इस समीकरण को उलट दिया है। इसके लिए जाट वोटों में विभाजन पहली शर्त है। इसी बात को दीपेन्द्र सिंह हुड्डा दिसंबर की अपनी रैली में बता रहे थे।

नायब सिंह सैनी कितने दिनों के लिए मुख्यमंत्री?

आज शाम 5 बजे चंडीगढ़ में राज्यपाल बंगारू दत्तात्रेय ने जब नायब सिंह सैनी को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई, तो उस दौरान मंच पर मनोहर लाल खट्टर उपस्थित थे, जिनके पांव छूकर सैनी शपथ लेने पहुंचे। नए मुख्यमंत्री को खट्टर गुट का बताया जाता है। इसके साथ कुछ अन्य विधायकों को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, जो सभी पूर्व सरकार में मंत्री थे। इनमें कंवर पाल गुर्जर, मूलचंद शर्मा, कमलजीत संधू, रणजीत सिंह चौटाला (निर्दलीय) सहित जयप्रकाश दलाल ने शपथ ली। लेकिन गृह मंत्री अनिल विज के बारे में खबर है कि वे नेतृत्व परिवर्तन से खफा हैं, इसीलिए वे चंडीगढ़ नहीं पधारे।

शपथ ग्रहण से पहले एक खबर वायरल थी कि भाजपा ने गठबंधन तोड़ने वाली जजपा के 10 विधायकों में से 5 को अपने पाले में करने में सफलता हासिल कर ली है। इसी के साथ यह भी अटकल थी कि नायब सिंह सैनी की जगह फिर से मनोहर लाल खट्टर ही दोबारा मुख्यमंत्री पद संभालने जा रहे हैं, क्योंकि अब बहुमत के लिए कोई संकट नहीं है। लेकिन शायद केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश के बाद सैनी के लिए राज्य में रास्ता साफ़ हो गया। शपथ समारोह में जजपा के 4 विधायकों की मौजूदगी एक बड़ा संकेत दे रही है।

दुष्यंत चौटाला के लिए यह दोहरी मार है। पहला, भाजपा के साथ सरकार बनाकर गलबहियां करना उनकी पार्टी को परंपरागत जाट वोटबैंक से दूर कर गया। और जब उन्होंने कड़े सौदेबाजी का उपक्रम कर गठबंधन तोड़ खट्टर सरकार को कमजोर करने की कोशिश की तो उनके ही दल में बड़ी सेंधमारी कर आज भाजपा ने उन्हें पैदल कर दिया है। यह एक अच्छा सबक है उन दलों के लिए जो लाल बत्ती और पॉवर के लिए किसी भी हद तक जाकर समझौता करने से बाज नहीं आ रहे।

अपने गठबंधन के साथियों के साथ भाजपा का ट्रैक अब पूरी तरह से कुख्यात हो चुका है। बिहार में जेडीयू, एलजेपी फिलहाल इससे दो-चार हो रही हैं। कश्मीर में मेहबूबा, पंजाब में अकाली और महराष्ट्र में शिवसेना-उद्धव गुट को इसका इल्हाम है, और तमिलनाडु में एआईएडीएमके इसका खामियाजा भुगत रही हैं। लेकिन इसका अपवाद भी है। तमिलनाडु, त्रिपुरा, ओडिसा और आंध्र प्रदेश में दूध के जले दलों को अपने अस्तित्व के लिए फिर से जलते कड़ाह में कूदने की तमन्ना है।

2024 चुनाव में हरियाणा किधर जायेगा?

पंजाब के बाद हरियाणा राज्य किसान आंदोलन का गवाह रहा है। राज्य में बेरोजगारी की दर देश में उच्चतम बनी हुई है। पंजाब और गुजरात के बाद हरियाणा से बड़ी संख्या में युवाओं के विदेश पलायन की खबरें हैं। खेलों में हरियाणा सबसे अग्रणी होने के बावजूद महिला पहलवान खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। देश में बड़ी संख्या में फ़ौज में भर्ती होने वाला हरयाणवी युवा और उसका परिवार मोदी सरकार के ‘अग्निवीर योजना’ से नाराज है। भाजपा के लिए लोकसभा से अधिक विधान सभा का चुनाव भारी पड़ने जा रहा है। लेकिन, चूंकि लोकसभा से केंद्र सरकार का भविष्य तय होता है, इसलिए भाजपा इसके लिए जान की बाजी लगा सकती है।

यहां पर यह भी दिखा कि केंद्र की खातिर कभी भी किसी मुख्यमंत्री को हटाया जा सकता है। इनकी हैसियत शतरंज के प्यादे से अधिक नहीं है। इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एकजुट होकर चुनावी रण में है, और इसके कारण उम्मीद की जा रही है कि भाजपा:कांग्रेस के बीच 5:5 सीटें आने जा रही हैं। हिसार से मौजूदा भाजपा सांसद, ब्रिजेंद्र सिंह ने भी किसानों, महिला पहलवानों के मुद्दे पर अपनी नाराजगी को मुद्दा बनाते हुए भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। 2019 में उन्होंने 3 लाख से भी अधिक मतों से अपना चुनाव जीता था।

2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की इकतरफा जीत के बावजूद जब राज्य विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, तो देश का मीडिया भाजपा को 80 सीट दे रहा था। कांग्रेसियों के बीच सिर-फुटव्वल अपने चरम पर था, और उन्हें खुद 10 सीट से अधिक की उम्मीद नहीं थी, लेकिन परिणाम आने के बाद वे पछतावा जता रहे थे कि एकजुट रहते तो राज्य में कांग्रेस की सरकार होती। इस बार कांग्रेस की तैयारी अपेक्षाकृत काफी बेहतर है। क्या उत्तर भारत में हरियाणा से बदलाव की शुरुआत होने जा रही है?

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