देश की जनता के बीच बुरी तरह बदनाम हो चुकी सुप्रीम कोर्ट ने खुद की साख बचाने के लिए चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में एक नया पहल लिया है, जिसमें उसने कुछ तो बिना मतलब वर्षों से जेलों में बंद जी. एन. साईंबाबा जैसे भारत के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को जेलों से रिहा करने का कार्य किया तो वहीं चुनावी चंदा जैसे कुछेक मामलों पर कुछ सख्त रुख दिखाने का दिखावा किया.
क्यों किया ? जवाब है बदनाम हो चुकी सुप्रीम कोर्ट की इज्ज़त कुछ फैसलों से बहाल कर आगामी चुनावों में सुप्रीम कोर्ट अपने इसी साख का इस्तेमाल भाजपा को एक बार फिर सत्ता पर बिठाने के लिए टूल की तरह कर सके और बाद में ‘भाजपा वाशिंग मशीन’ की तरह काम कर सके.
जैसा कि सीएए के लागू करने के बाद ही भाजपा की ओर से घोषणा कर दी गई है कि देश में कोई भी विरोध प्रदर्शन नहीं किया जायेगा, कि इसे चुनौती केवल सुप्रीम कोर्ट में ही दी जा सकती है, सड़कों पर नहीं. जो भी राजनीतिक दल सड़कों पर विरोध करेगा, उसका रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग खत्म कर देगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट भारत में भाजपा के फासीवाद को लागू करने का सबसे बड़ा टूलकिट बनने जा रहा है.
इससे पहले भी भाजपा, जो भारत की न्यायपालिका को ठेंगे पर रखा है और बिकने के लिए तैयार न होने वाले जजों को न केवल मौत के घाट उतारा है बल्कि उसके परिजनों को बंदूक के नोक पर रखकर उससे मनचाहे फैसला करवाया है. जस्टिस गोगोई जैसे मुखर जज को यूं ही नहीं मोदी सरकार ने कुत्तों की तरह पट्टा पहनाया है. और अब जस्टिस चन्द्रचूड़ जैसे जजों को मोहरा बना लिया.है.
जनवादी किसान सभा के नेता रजनीश भारती मौजूदा जस्टिस की सक्रियता पर लिखते हैं – भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था. इलेक्टोरल बॉन्ड एक गुमनाम वचन पत्र होता है, जैसे आरबीआई करेंसी नोट जारी कर वचन देता है, लगभग उसी तर्ज पर एसबीआई इलेक्टोरल बाण्ड जारी करके वचन देता है.
फर्क यही है कि करेंसी नोटों का लेन देन किसी से भी कर सकते हैं, जबकि इलेक्टोरल बाण्ड एसबीआई की कुछ चुनिंदा शाखाओं से खरीद कर किसी भी ऐसी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं जिसे आम चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला हो. इसमें चन्दा देने वाले का नाम भी गोपनीय रखने का प्रावधान था. मगर आप सोचते हैं कि चन्दा तो परम्परागत ढंग से दिया ही जा रहा था, ऐसे बाण्ड की जरूरत क्यों पड़ी ?
दरअसल अमेरिकी सुपर पावर की अगुआई में विदेशी साम्राज्यवादी ताकतें भारत के लोकसभा व कुछ चुनिंदा विधानसभाओं के आम चुनावों को प्रभावित करती रही हैं. अक्सर लोकसभा के आमचुनाव के ठीक पहले डालर के रेट में गिरावट इसीलिए आती रही है कि चुनाव से पहले विदेशी ताकतें डालर को रूपये में बदलती हैं और अपनी चहेती पार्टियों को ज्यादा से ज्यादा चन्दा कालेधन के रूप में देती रही हैं.
कई बड़े पूंजीपति भी काले धन में ही चन्दा देना चाहते हैं. परन्तु अब डिजिटल जमाने में बहुत बड़े पैमाने पर कालाधन चन्दे के रूप में लेना, छिपाना और खर्च करना राजनीतिक पार्टियों के लिए असंभव तो नहीं मगर कठिन होता जा रहा था. इस कठिन काम को आसान बनाने के लिए इस चुनावी भ्रष्टाचार को रोकने की बजाय सरकार ने इलेक्टोरल बाण्ड योजना के नाम पर उसी तरह इसे कानूनी जामा पहना दिया था, जिस तरह जुआखोरी, नशाखोरी, मिलावटखोरी, सूदखोरी… को कुछ कानूनी शर्तों के साथ कानूनन जायज घोषित कर दिया है.
मगर सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बाण्ड को अवैध घोषित कर दिया. इतने सालों तक सर्वोच्य न्यायालय को ये इलेक्टोरल बाण्ड वैध लगता था और जैसे ही लोकसभा चुनाव सर पर है, तो अवैध ? तो आप सोचते होंगे कि सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के पीछे क्यूं पड़ा है ?
सुप्रीमकोर्ट ने चण्डीगढ़ मेयर के भ्रष्ट चुनाव का पासा पलट कर अपना चेहरा चमका लिया है. इलेक्टोरल बाण्ड को अवैध ठहराकर सत्तापक्ष की कठपुतली होने का दाग़ धुल लिया है. बहुत लोग बता रहे हैं कि यह फैसला मोदी सरकार के खिलाफ है, मगर वास्तव में यह मोदी सरकार और भाजपा के पक्ष में है. इस फैसले से भाजपा निर्णायक तौर पर मजबूत हुई है और कांग्रेस कमजोर हुई है.
इसको यूं समझिये, मान लीजिए A और B कहीं भोजन के कार्यक्रम में आमंत्रित हों. वहां भोजन कराने वालों की मिलीभगत से A ने अपना पेट सबसे पहले भर लिया और जब खाने के लिए B का नंबर आया तो आयोजकों ने भोजन के कार्यक्रम को ही बन्द कर दिया. इस तरह A की साज़िश के चलते B भूखा ही रह गया. इलेक्टोरल बाण्ड के मामले में भाजपा ने ठीक ऐसे ही कांग्रेस को भूखा छोड़ दिया है. आंकड़े यही बता रहे हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2016 से 2022 के बीच 16,437.63 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे गए. इसमें से भाजपा को 10,122 करोड़ रूपये मिले, जो कुल दान का लगभग 60% था. मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी दूसरे स्थान पर रही. इनमें से उसे सिर्फ 10 प्रतिशत मिले. कांग्रेस 1,547 करोड़ या प्राप्त करके बीजेपी से बहुत पीछे हो गयी.
इस तरह भाजपा ने बीते आठ साल में इलेक्टोरल बाण्ड के जरिए खूब पैसा इकट्ठा कर लिया. अब जब कांग्रेस का नंबर आने वाला था, क्योंकि ज्यादातर पूंजीपति विपक्षी पार्टी को चन्दा देकर सत्तापक्ष की पार्टी को नाराज़ नहीं करना चाहते इसलिए अधिकांश पूंजीपति विपक्षी पार्टियों को चन्दा उस वक्त देना चाहते हैं जब चुनाव आचार संहिता लागू हो जाती है.
विपक्षी होने के नाते अब कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनने लगा था, अब उसको चंदा मिलने की बारी थी तब तक तो सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बाण्ड को ही अवैध घोषित कर दिया है. इस तरह भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के जरिए कांग्रेस का कमर तोड़ दिया. अगर 2024 चुनाव कांग्रेस जीत भी जाए तो निकट भविष्य में कोष के मामले में भाजपा को पछाड़ना बहुत मुश्किल है और भाजपा हार भी जाएगी तो इसी कोष के बल पर कभी भी सरकार गिरा सकती है या अगली बार कांग्रेस को करारी मात दे सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से हिसाब मांगा. एसबीआई ने तीन महीने का समय मांगा. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए एसबीआई को 24 घंटे के अंदर हिसाब देने का आदेश दिया. इसी दौरान केंद्र सरकार ने सीएए लागू कर दिया. इस पर बहुत सारे बुद्धिजीवी सुप्रीम कोर्ट की पीठ थपथपा रहे हैं. उनको लगता है कि इलेक्टोरल बाण्ड मामले से ध्यान हटाने के लिए सीएए लागू किया. वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बहुत बड़ा तोप समझ रहे हैं. उन्हें लगता है कि भाजपा को बहुत बड़ी सजा मिल जायेगी.
मगर भाजपा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं करने जा रहा है. एसबीआई ने 24 घंटे के अन्दर हिसाब दे तो दिया, अब क्या कर लेंगे ? कुछ नहीं. तो क्या इलेक्टोरल बाण्ड पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश मोदी सरकार के इशारे पर हुआ है ? क्या सुप्रीम कोर्ट अब भी मोदी सरकार की कठपुतली बना हुआ है ? या मोदी सरकार की नाक में दम कर दिया है ? इन तथ्यों से आप समझ सकते हैं.
रजनीश भारती के इन तथ्यपरक बातों से साफ हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट अब भारत में ‘भाजपा वाशिंग मशीन’ की तरह बेधड़क इस्तेमाल किया जायेगा और इसकी मदद से भारत की मेहनतकश जनता के तमाम विरोधों को बेरहमी से कुचला जायेगा, जिसका एक छोटा सा नमूना पंजाब के किसानों को हरियाणा के बॉर्डर पर रोककर उसपर लाठी, गोलियां, ड्रोन्स के जरिये बमों को गिराया गया, उनकी हत्या की गई यहां तक की उनके रास्ते में कीलें, बड़े बड़े पत्थरों को खतरनाक तरीक़े से रखा गया.
जिस तरह भाजपा ने लोकसभा चुनावों के ठीक पहले किसानों के आंदोलन को रोकने के लिए क्रूर तरीकों का इस्तेमाल किया, उससे कतई नहीं लगता है कि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में हारने की जरा भी फिक्र है. वह हर हाल में अपनी जीत सुनिश्चित मानती है. इसलिए देश की जनता को ‘मानवीय’ दिखते सुप्रीम कोर्ट के भाजपापरस्त खतरनाक चेहरों को अपनी आंखों से धूमिल होने नहीं देना चाहिए.