अनिल जैन
इस समय तो भाजपा ने दूसरी पार्टी के नेताओं के लिए एक तरह से भर्ती मेला लगाया हुआ है। इस मेले में एक योजना यह भी है कि ‘जब भी आओ, टिकट पाओ।’ इसका मतलब है कि यह जरूरी नहीं कि दूसरी पार्टी छोड़ कर भाजपा में आने वाले नेता पहले कुछ साल पार्टी के लिए काम करें, फिर उन्हें टिकट दिया जाएगा। अब आते ही टिकट मिलने की सुविधा है।
दरअसल पिछले सप्ताह भाजपा ने जब लोकसभा चुनाव के लिए अपने 195 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की तो बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने रात तीन बजे तक जागते हुए पांच घंटे तक सोच-विचार कर उम्मीदवारों नाम तय किए। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद पार्टी में शामिल होने वाले वाले नेता का नाम भी उम्मीदवारों की सूची में शामिल था। जाहिर है कि पार्टी में शामिल होने से पहले ही उस नेता टिकट देने का फैसला हो गया था। यह नेता हैं तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति के सांसद बीबी पाटिल, जो बीते शुक्रवार को भाजपा में शामिल हुए। इससे एक दिन पहले गुरुवार को आधी रात के बाद तक भाजपा की बैठक हुई थी। लेकिन शनिवार को जब पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आई तो उसमें शुक्रवार को पार्टी ज्वाइन करने वाले बीबी पाटिल का भी नाम था। उनसे एक दिन पहले भाजपा में शामिल हुए उन्हीं की पार्टी के सांसद पी. रामुलू का नाम भी भाजपा उम्मीदवारों की सूची में था। इसी तरह झारखंड में कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और राजस्थान के कांग्रेस नेता महेंद्र मालवीय को भी भाजपा में शामिल होने के तत्काल बाद पार्टी का उम्मीदवार बना दिया गया।
अभी पार्टी के लगभग 350 उम्मीदवार तय होना बाकी है। अंतिम सूची आते-आते ऐसे नामों की फ़ेहरिस्त लंबी हो जाएगी, जो पार्टी में शामिल होने से पहले या शामिल होने के 24 घंटे के अंदर ही टिकट पा जाएंगे।
केंद्रीय सचिव को सच बयानी की सज़ा
जब किसी सरकार का पूरा कामकाज झूठे और फर्जी आंकडों के सहारे चल रहा हो और सरकार का मुखिया हर दिन लोगों के सामने झूठ बोलता हो, तो उस सरकार में किसी नौकरशाह का सच बोलना अपराध ही माना जाएगा। केंद्र सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी को भी सच बोलने की सजा मिली है। उन्हें आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से हटा कर ग्रामीण विकास मंत्रालय के भू संपदा विभाग में भेज दिया गया है।
उन्हें दी गई इस सजा की वजह यह है कि उन्होंने 29 फरवरी को प्रेस कान्फ्रेंस करके पहले पेयजल स्वच्छता पुरस्कार का ऐलान किया था। उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में बताया था कि था कि देश के 485 शहरों में पानी का नमूना जांच के लिए दिया गया था, जिसमें से सिर्फ 46 शहरों का नमूना ही सौ फीसदी पास हुआ यानी 439 शहरों का पानी जांच में फ़ेल हो गया। बताया जा रहा है कि पांच मार्च को ही पुरस्कार दिया जाना था लेकिन सरकार ने उसे टाल दिया और उसके बाद सच बोलने की सजा के तौर पर मनोज जोशी का तबादला कर दिया गया। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले सर्वेक्षण और पानी के नमनों का रिकॉर्ड जनता के सामने आने की संभावना से सरकार पीछे हट गई।
भाजपा की नज़र विपक्षी गठबंधन पर
भाजपा भले ही 400 पार का हल्ला मचा रही है लेकिन हकीकत यह है कि वह विपक्षी गठबंधन से बेहद डरी हुई है। उसने उम्मीदवारों की पहली सूची में उन राज्यों के उम्मीदवार घोषित किए है, जिन राज्यों में विपक्षी गठबंधन मजबूत नहीं है। यानी भाजपा जहां मजबूत स्थिति में है और पिछले चुनाव मे लाखों वोट के अंतर से ज्यादातर सीटों पर जीती हैं उन्हीं सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा हुई है। पहले कहा जा रहा था कि भाजपा कमजोर सीटों पर पहले उम्मीदवार घोषित करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। असल में भाजपा कमजोर सीटों पर विपक्ष के उम्मीदवार का इंतजार कर रही है। वह विपक्षी गठबंधन की पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे पर नजर रखे हुए है और उस हिसाब से अपने उम्मीदवार तय करेगी। भाजपा ने बिहार में उम्मीदवार नहीं घोषित किए क्योंकि वहां भाजपा का अपना गठबंधन तय नहीं है और दूसरी ओर राजद, कांग्रेस व लेफ्ट के बीच भी सीटों का बंटवारा घोषित नहीं हुआ है। भाजपा इंतजार कर रही है कि विपक्षी पार्टियां उम्मीदवार घोषित करें तो वह अपना फैसला करे। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा ने अपने गठबंधन में जैसे तैसे सीटों का बंटवारा तो कर लिया है लेकिन उम्मीदवार घोषित नहीं किए है। वहां भी भाजपा की नजर कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के बीच सीटों के बंटवारे पर है। पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश की भी जो सीटें रोकी गई हैं उनका फैसला विपक्षी गठबंधन तय होने के बाद ही होगा।
ओडिशा में कांग्रेस की उम्मीदें ज़िंदा हुईं
ओडिशा कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन वहां पिछले 24 साल से वह न सिर्फ सत्ता से बाहर है बल्कि मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा भी उसे हासिल नहीं है। लोकसभा चुनावों में भी उसका वोट आधार लगातार सिमटता गया है। पिछली बार 2019 में उसे साढ़े 13 फीसदी के करीब वोट मिले थे। दरअसल 15 साल पहले बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन खत्म हो गया था और उसके बाद से दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ते रहे हैं। इससे धीरे-धीरे कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी हो गई। अब फिर से बीजू जनता दल और भाजपा साथ आ रहे हैं तो कांग्रेस के लिए अवसर बन रहा है कि वह अपने प्रदर्शन मे सुधार कर सके। हालांकि कांग्रेस के केंद्रीय नेता इसके लिए पहले से तैयार नहीं थे। उन्हें नहीं लग रहा था कि बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन हो जाएगा। लेकिन अब पार्टी ने मेहनत शुरू कर दी है। पूर्व आईपीएस अधिकारी और झारखंड से सांसद रहे डॉक्टर अजय कुमार ओडिशा के प्रभारी हैं और वे पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिशों में जुटे हैं। पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना की कांग्रेस में वापसी हुई है। वे तटीय ओडिशा के मजबूत नेता हैं और तीन अलग-अलग सीटों- कटक, केंद्रपाड़ा और बालासोर से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। उनसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने भी सपरिवार कांग्रेस में वापसी की है। इससे कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार के आसार बने हैं।
भ्रष्ट नेताओं को दंडित करने का मोदी का अंदाज़
इतना ‘साहस’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही दिखा सकते हैं! वे हर मंच पर खड़े होकर सीना ठोक कर कहते हैं कि वे भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं को छोड़ेंगे नहीं और उसके तुरंत बाद कोई न कोई ऐसा नेता भाजपा मे शामिल हो जाता है, जिस पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे होते हैं। इसीलिए सोशल मीडिया में यह मजाक चलता है कि प्रधानमंत्री जब कहते है कि छोड़ेंगे नहीं तो उनका मतलब यह होता है कि बाहर नहीं छोड़ेंगे, उसको भाजपा में शामिल करा लेंगे। ऐसी ही चर्चा मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे कृपाशंकर सिंह के भाजपा में शामिल होने और उत्तर प्रदेश की जौनपुर सीट से टिकट पा जाने को लेकर है। गौरतलब है कि कृपाशंकर सिंह यूपीए के 10 साल के शासन के समय बहुत चर्चा में आए थे और उसके बाद वे और उनका पूरा परिवार काला धन जमा करने और धन शोधन के आरोप में फंस गया। कृपाशंकर सिंह पर सैकड़ों करोड़ रुपए का काला धन और बेनामी संपत्ति जमा करने का आरोप लगा।
झारखंड के पूर्व मंत्री कमलेश सिह उनके समधी हैं और उन पर भी धन शोधन के आरोप लगे थे। दोनों एक साथ आरोपी थी। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद कृपाशंकर सिंह के बेटे नरेंद्र मोहन को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था। रांची से मुंबई तक उनके खिलाफ मुकदमे चले और भाजपा ने इसे लेकर कांग्रेस पर जोरदार हमला भी किया। हालांकि कृपाशंकर सिह बाद में सबूत की कमी के चलते बरी हो गए। अब उन्हें भाजपा ने जौनपुर से उम्मीदवार बनाया है।
मोदी की फ़ोटो वाले थैलों के 15 करोड़ के टेंडर
दो साल पहले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय यह देखने को मिला था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फोटो वाले थैले बड़ी संख्या में खरीदे गए थे और उनमें गरीबों को राशन बांटा गया था। अभी लोकसभा चुनाव से पहले फिर एक बार ऐसा ही देखने को मिल रहा है। अलग-अलग राज्यों में राशन बांटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों वाले थैले खरीदे जा रहे हैं। गौरतलब है कि अलग-अलग योजना का लाभार्थी वर्ग भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग है। पांच किलो मुफ्त अनाज की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और अन्य योजनाओं के तहत गरीबों को मिलने वाला राशन मोदी के फोटो वाले थैले में दिया जाएगा। इसके लिए राज्यों में टेंडर जारी करने की होड़ मची है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के पांच राज्यों में टेंडर जारी हो गए हैं, जिनमें से चार राज्य पूर्वोत्तर के हैं। सूचना के अधिकार कानून के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता अजय बोस ने आरटीआई कानून के तहत जानकारी मांगी थी, जिसमें बताया गया है कि पूर्वोत्तर के चार राज्यों- मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम के अलावा राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाले थैले खरीदने के टेंडर जारी किए गए है। इन पांच राज्यों में कुल 15 करोड़ रुपए के टेंडर जारी हुए हैं।
चुनाव आयोग को भाजपा का सुझाव
वैसे तो अब आमतौर पर चुनाव आयोग वही करता है जैसा उसे सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से करने को कहा जाता है, फिर भी यह दिखाने के लिए कि वह तटस्थ है, कुछ न कुछ तो करना ही पडता है। सो, भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मिल कर कुछ सुझाव दिए हैं। उसका एक सुझाव तो ठीक है कि सभी मतदान केंद्रों पर वीडियोग्राफी कराई जानी चाहिए। अभी जो नियम है उसके हिसाब से 50 फीसदी मतदान केंद्रों पर वीडियोग्राफी होती है।
लेकिन भाजपा का दूसरा सुझाव अजीबोगरीब है। भाजपा ने आशंका जताई है कि मतदान केंद्रों पर बोगस वोटिंग होती है, इसलिए मतदाताओं की दोहरी पहचान की जाए। हालांकि मतदाताओं की पहचान के लिए पहचान पत्र के अलावा हर पार्टी के पोलिंग एजेंट भी बैठे होते हैं। महानगरों और कुछ बड़े शहरों को छोड़ दे तो ज्यादातर पोलिंग एजेंट मतदाताओं को पहचान रहे होते हैं। गौरतलब है कि अभी मतदानकर्मी मतदाता पहचान पत्र की फोटो और मतदाता सूची की फोटो के साथ मतदाता का मिलान करते हैं, उसके बाद उसकी उंगली पर स्याही लगाई जाती है और फिर उसे ईवीएम बूथ में भेजा जाता है। इसलिए सवाल है कि जब मतदाता सामने है तो सीधे उसकी शक्ल का मिलान करने की बजाय फोटो खींचने की क्या तुक है? अगर फोटो खींची गई तो उसमें अतिरिक्त समय लगेगा, जिससे मतदान की प्रक्रिया धीमी हो जाएगी। इस तरह के सुझाव का कोई मकसद भी समझ में नहीं आ रहा है। विपक्षी पार्टियां भाजपा पर मतदान में गड़बड़ी के आरोप लगाती हैं, इसलिए लगता है भाजपा ने भी जवाब में बोगस वोटिंग का मामला उठा दिया है।
दिल्ली में भाजपा की पुरानी पीढ़ी राजनीति से बाहर
राजधानी दिल्ली में भाजपा की पुरानी पीढ़ी अब पूरी तरह से राजनीति से बाहर हो गई। डॉ. हर्षवर्धन भाजपा के आखिरी पुराने और बड़े नेता थे, जिन्हें इस बार लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया गया। पिछले चुनाव में विजय गोयल को टिकट नहीं दिया गया था। वे भी पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे। जिस समय नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने उस समय भाजपा की पुरानी पीढ़ी के नेताओं में विजय कुमार मल्होत्रा सक्रिय थे। 2013 तक वे दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता थे लेकिन 2014 में उनको टिकट नहीं मिली। उस समय तक केदारनाथ साहनी और साहिब सिंह वर्मा का निधन हो चुका था तथा मदनलाल खुराना की सेहत खराब हो गई थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज पहले ही दिल्ली की राजनीति छोड़ कर मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ने लगी थीं। 2019 में उनका भी निधन हो गया। अब उनकी बेटी बांसुरी स्वराज को इस बार पार्टी ने नई दिल्ली सीट से टिकट दिया है। हालांकि साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा टिकट पाने में नाकाम रहे। हो सकता है कि उन्हें हरियाणा की किसी सीट से टिकट मिले। बहरहाल, खुराना, वर्मा, साहनी और मल्होत्रा के बाद विजय गोयल और अब डॉ. हर्षवर्धन की भी विदाई हो गई। अब पुराने कहे जाने नेताओं में से रामवीर सिंह विधूड़ी को भाजपा ने दक्षिण दिल्ली से उम्मीदवार बनाया है। लेकिन वे कई पार्टियों से घूम कर कुछ साल पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)