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अठारहवीं बार बिसात पर भारतीय लोकतंत्र….

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राकेश अचल

भारत का लोकतंत्र अठारहवीं बार बिसात पर है । लोकतंत्र को जीतने के लिए बाजियां लग रहीं है । कोई जान की बाजी लगा रहा है तो कोई ईमान की बाजी लगा रहा है । किसी ने आँखें खोलकर बाजी लगाने की तैयारी की है तो कोई आँखें बंद कर ब्लाइंड खेलने पर आमादा है। सबकी अपनी-अपनी तैयारी है । किसी ने 2024 के लिए दांव लगाने का इंतजाम किया है और किसी की नजर 2047 पर है। यानि एक से बढ़कर एक योद्धा मैदान में हैं और बेचारे मतदाता की जान सांसत में है। लगता है जैसे वो खुद मोहरा है। सभी मिलजुलकर उसी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।


भारत में चुनाव कोई नयी बात नहीं है । जब भारत आजाद नहीं था तब भी उसने चुनाव देखे हैं और आजाद होने के बाद से लगातार भारत और भारत का जनमानस चुनावों से गुजरता हुआ ही 1947 से 2024 तक आ पहुंचा है। चुनाव कराने के लिए भारत के पास एक केंद्रीय चुनाव आयोग है । इस आयोग को चुनाव लड़ने वाले और चुनाव में मोहरा बनने वाले लोग प्यार से केंचुआ कहते हैं,लेकिन मै ठहरा साहित्य का विद्यार्थी ,इसलिए मै चुनाव आयोग को केंचुआ नहीं बल्कि भूमिनाग कहता हूँ । रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भी केंचुए को भूमिनाग कहकर ही इज्जत बक्शी है।


आप केंचुआ को दंतहीन,नखहीन या विषहीन कहें लेकिन केंचुआ है कि पूरे पांच साल चुनावों की तैयारी करता है । ये तैयारी युद्धस्तर की होती है और हर चुनाव के बाद नया चुनाव केंचुआ के लिए एक बड़ी चुनौती होता है,क्योंकि हर चुनाव में मतदाताओं की संख्या में घट-बढ़ होती रहती है। देश की विविधता तथा संस्कृति ही नहीं बल्कि भूगोल भी केंचुआ की तैयारियों को प्रभावित करता है। मतदान कराने के लिए मतदाताओं तक चुनाव लड़ने वाले पहुंचे या न पहुंचें लेकिन केंचुआ वहां तक पहुंचता है । इसलिए केंचुआ तमाम निन्दा और आलोचनाओं के बावजूद प्रशंसा का पात्र भी है। केंचुआ पहाड़,जंगल,नदी-नाले,सर्दी,गर्मी,बरसात की तमाम बाधाओं को पार करने में सिद्धहस्त हो चुका है। समय के साथ केंचुआ की महारत भी लगातार बढ़ी है।


देश में अठारहवीं बार संसद के लिए चुनाव करने जा रहे केंचुआ ने इस बार लगभग 97 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार का इस्तेमाल कराने के लिए इंतजाम किये हैं ताकि झंझावातों में फंसा लोकतंत्र महफूज रह सके ,उसका फ्यूज न उड़े। लोकतंत्र का फ्यूज उड़ाने की हालिया कोशिशों से सारा देश और दुनिया वाकिफ है ,इसलिए इस पर विस्तार से फिर कभी। केंचुआ ने 18 साल के नवोदित मतदाता से लेकर शतायु हो चुके मतदाताओं की भी चिंता की है। देश का सौभाग्य है कि उसके पास आज भी दो लाख से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं जिन्होंने पूरी शताब्दी देखी है । केंचुआ ने इस बार 85 साल की उम्र पार कर चुके मतदाताओं को घर बैठे मतदान करने की व्यवस्था भी की है ,यदि वे चाहें तो। केंचुआ वृहन्नलाओं की भी बराबर फ़िक्र करता है।


भारतीय लोकतंत्र में हर तरह का बल इस्तेमाल किया जाता है । केंचुआ के पास चुनाव के लिए डेढ़ करोड़ कर्मचारी और लाखों का फ़ौज-फांटा होता है। केंचुआ के समाने केवल गौधन,गजधन,बाजधन और रतनधनों से निबटने की ही चुनौती नहीं होती बल्कि उसे इलेक्टोरल धन और बाहुबल से भी निबटना पड़ता है। हर किसी की कोशिश होती है कि वो लोकतंत्र की डोली बलात अपने घर ले जाये। कभी इसमें कामयाबियां भी मिलती हैं और कभी नहीं भी। बलाबल के इस्तेमाल से जब-तब चुनाव रक्तरंजित भी हो जाते हैं ,लेकिन केंचुआ का कहना है की वो चुनावों में किसी भी सूरत में रक्तपात नहीं होने देगा । मेरा मन करता है कि इस आश्वासन के लिए मै केंचुआ के मुंह में घी-शक़्कर भर दूँ।


ख़ुशी की बात है कि केंचुआ सियासत में बढ़ती अदावतों और घटियापन से भी वाकिफ है। लेकिन ये सिर्फ ख़ुशी की बात है संतुष्ट होने की बात नहीं, क्योंकि सियासत के घटियापन से निबटने के लिए केंचुआ घटियापन कहाँ से लाएगा ? केवल एडवांस एडवाइजरी जारी करने से तो बात बनने वाली नहीं है । इसके लिए एक्शन की भी जरूरत है जो शायद केंचुए के बूते की बात नहीं है ,क्योंकि आखिर केंचुए को झुकना तो अपने नियोक्ता के प्रति ही है। हालाँकि केंचुआ नियोक्ता के प्रति नहीं बल्कि संविधान के प्रति जबाबदेह है। केंचुआ भी इस हकीकत से वाकिफ है लेकिन उसकी अपनी मजबूरियां भी हैं। जैसे सभी को राम कठपुतलियों की तरह नाचते हैं ,उसी तरह केंचुए को भी नचाने वाले/ नथने वाले तमाम सपेरे देश की सियासत में मौजूद हैं। [खुदा खैर करे ]


चुनाव गोया की एक पर्व है इसलिए उसे पर्व की ही तरह मनाया जाना चाहिए न कि महाभारत की तरह और न कि किसी जुए की तरह खेला जाना चाहिए। पर्व में होम-हवन सब होता है। चुनाव में भी बहुत सा जनधन और मानवश्रम का होम-हवन होगा इसलिए जरूरी है कि इस पर्व में सभी पक्ष एहतियात बरते । हम लिखने वालों की यही एडवाइजरी है । इससे ज्यादा हम लोग कर भी क्या कर सकते हैं ? केंचुआ भी तो हमारी ही तरह कभी कुछ नहीं कर पाता। देश का दुर्भाग्य ये है कि देश का बुद्धिजीवी समाज भी केंचुए की तरह अपवादों को छोड़कर नख-दन्त विहीन हो चुका है। अपने-अपने बिल में घुसा हुआ है। एक दशक की अराजकता /रामराज के बावजूद 1975 की तरह समग्र क्रांति का बिगुल नहीं फूंक पाया है। समस्या ये है कि देश बार-बार जयप्रकाश नारायण कहाँ से लाये। देश को इंदिरा मैया और मोदी भैया तो बार-बार मिल जाते हैं।


देश को इस चुनाव के जरिये 2047 के लिए नहीं 2029 तक के लिए ही सरकार को चुनना है। 2047 तक तो उसे बार बार सरकार चुनने का मौक़ा मिलेगा ,इसलिए दूर की न सोचें ,पास की ही सोचे। देश में पहले भी पंचवर्षीय योजनाएं बनाकर काम होता रहा है ,23 वर्षीय योजनाएं दुनिया के किसी भी देश में न बनाई जाती हैं और न उनके ऊपर काम हो पाता है ,उलटे इस कोशिश में घल्लूघारा हो जाता है। इससे बचने की जरूरत है। जरूरत से ज्यादा सोचना और करना हमेशा लाभदायक नहीं होता। वैसे दूर-दृष्टि और पक्का इरादा कांग्रेस का पुराना नारा रहा है और गारंटी भी कोई नया शब्द नहीं है । कांग्रेस ने महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार योजना में गारंटी बहुत पहलेबाबस्ता कर दी थी । फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस की गारंटी महात्मा गाँधी के नाम से थी और भाजपा की गारंटी महात्मा मोदी जी के नाम से है।


बहरहाल अठारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव सात चरणों में होना है। होना ही चाहिए। हमारे यहाँ सात भांवरों का,सात-पांच वचनों का बड़ा महत्व है। हमारे खगोल शास्त्र में भी सप्तऋषियों का उल्लेख मिलता है ।हम सात जन्मों और सात समंदरों में यकीन करने वाले लोग हैं। ,इसलिए मतदान भी सात चरणों में हो तो कोई आपत्ति नहीं करना चाहिये । आखिर केंचुआ को भी तो किसी न किसी को उपकृत करना होता है। इत्ता बड़ा देश है यदि एक-दो चरण में नयी सरकार चुन लेगा तो लोग क्या कहेंगे ? लोगों को कहने का कोई मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए ,फिर भी कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोडो बेकार की बातों को ,कहीं बीत न जाये महीना । आखरी बात ये है कि इस चुनाव में फिलहाल वन नेशन,वन इलेक्शन का सपना तो पूरा नहीं हो रहा किन्तु सिक्किम,ओडिशा,अरुणाचल,आंध्र जैसे अनेक राज्य हैं जहाँ की जनता वन नेशन,वन इलेक्शन का प्रतीकात्मक आनद ले सकती है सांसदों के साथ ही अपने विधायक चुनकर। अब ये उन राज्यों की जनता पर निर्भर करता है की वे अपने लिए सिंगल इंजिन की सरकार चुनें या डबल इंजन की। बहरहाल मेरी और से सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ,भले ही वे चुनाव लड़ रहे हों,या लड़ा रहे हो। या मूकदर्शक बनकर लोगों को चुनाव लड़ते-लड़ाते देख रहे हों।

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