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नरेंद्र मोदी का 400 पार का लक्ष्य संविधान को बदलने के लिए

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अनंत कुमार हेगड़े के बयान से भाजपा और आरएसएस के छिपे हुए मंसूबे उजागर हुए हैं। देश के मतदाताओं को समझ लेना चाहिए कि “अबकी बार 370 पार” का नारा क्यों दिया जा रहा है। नरेंद्र मोदी का 370 पार का लक्ष्य संविधान को बदलने के लिए है। दरअसल, संविधान में आमूलचूल परिवर्तन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत तथा आधे से अधिक राज्यों में संबंधित पार्टी की सरकारों का होना जरूरी हैं। इसलिए हेगड़े ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हमारा 370 पार करने का लक्ष्य संविधान को बदलने और धर्म की रक्षा करने के लिए है। 

रविकांत

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक के भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने संविधान को बदलने के बारे में बयान दिया है। नरेंद्र मोदी ने अबकी बार 400 पार का लक्ष्य क्यों रखा है, इसकी असली वजह बताते हुए हेगड़े ने कहा है कि संविधान बदलने और धर्म की रक्षा के लिए इतना बड़ा बहुमत चाहिए। हेगड़े के इस बयान को केवल शरारतपूर्ण या सनसनी पैदा करने वाला नहीं माना जा सकता। दरअसल यह भाजपा और आरएसएस का असली एजेंडा है, जो एक सांसद की जुबान से प्रकट हुआ है।

यकीनी तौर पर अनंत कुमार हेगड़े के बयान से भाजपा और आरएसएस के छिपे हुए मंसूबे उजागर हुए हैं। देश के मतदाताओं को समझ लेना चाहिए कि “अबकी बार 370 पार” का नारा क्यों दिया जा रहा है। नरेंद्र मोदी का 370 पार का लक्ष्य संविधान को बदलने के लिए है। दरअसल, संविधान में आमूलचूल परिवर्तन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत तथा आधे से अधिक राज्यों में संबंधित पार्टी की सरकारों का होना जरूरी हैं। इसलिए हेगड़े ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हमारा 370 पार करने का लक्ष्य संविधान को बदलने और धर्म की रक्षा करने के लिए है। 

ऐसे में दो सवाल उठते हैं। पहला, अगर संघ और भाजपा की यही मंशा है तो नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत खुले तौर पर इसका ऐलान क्यों नहीं करते? क्या उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए डंके की चोट पर यह ऐलान नहीं करना चाहिए कि “तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें संविधान बदलकर दूंगा”। मोदी और भागवत को खुलकर बोलना चाहिए कि फिर से सत्ता में आने पर हम डॉ. आंबेडकर का संविधान बदलकर हिंदू राष्ट्र का नया संविधान लाएंगे। हालांकि यह आरएसएस का कोई नया एजेंडा नहीं है। संघ ने हमेशा से संविधान, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का अनादर किया है। संविधान पारित होने के तीन दिन बाद ही 30 नवंबर 1949 को आरएसएस के मुख-पत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने अपने संपादकीय में लिखा था कि, “भारत के संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है, क्योंकि इसमें मनु की संहिताएं नहीं है।” इसलिए उन्हें यह संविधान स्वीकार नहीं है। सर्वविदित है कि आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर चार दशक तक तिरंगा नहीं फहराया। राष्ट्रगान को लेकर भी आरएसएस ने भ्रम फैलाया कि इसमें इंग्लैंड के राजा का महिमामंडन किया गया है। जबकि यह बात पूरे तरीके से निराधार और असत्य है। इसी तरह तीन रंगों की पट्टियों के मध्य में नीले रंग के बौद्ध धर्म के प्रतीक धर्मचक्र परिवर्तन से युक्त तिरंगे को आरएसएस अशुभ कहता रहा। राष्ट्रध्वज का आरएसएस ने कभी दिल से सम्मान नहीं किया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि 20 जनवरी 2024 को जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ तो पूरे देश को भगवा झंडों से पाट दिया गया। इसका व्यापक प्रभाव 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस पर पड़ा। पूरे देश में लहराते भगवा झंडों से तिरंगे की आभा और शान फीकी हुई। यह तिरंगे का अपमान है और भगवा को राष्ट्रध्वज के रूप में थोपने की नापाक कोशिश।

और अब आलम है कि भाजपा का एक सांसद डॉ. आंबेडकर के संविधान को बदलकर दलित, पिछड़े, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचलकर हिंदू राष्ट्र का संविधान लिखने की मुनादी कर रहा है। हालांकि यह कोई पहली बार दिया गया बयान नहीं है और न ही अनंत कुमार हेगडे पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने संविधान को बदलने और हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कही है। पिछले दस साल के नरेंद्र मोदी के शासनकाल में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए तमाम हिंदूवादी संगठन और अनेक गेरूआधारी स्वघोषित हिंदू धर्म रक्षक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए व्याकुल हैं। ऐसे बाबाओं और कट्टर हिंदू संगठनों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। तमाम गेरुआधारी रातदिन दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण को कोसते रहते हैं। डॉ. आंबेडकर से इनकी नफरत कितनी गहरी है, यह किसी से छिपी नहीं है। मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में डॉ. आंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने की अनेक घटनाएं घटित हुईं। इनके नफरती, विभाजनकारी और हिंसक बयानों तथा कृत्यों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। चूंकि संघी ब्राह्मणवादियों की आबादी बहुत कम है इसलिए वे इसे जबरन नहीं थोप सकते। वे धीरे-धीरे सांस्कृतिक आभामंडल रचकर लोगों के मन में हिंदुत्व को ठूंसकर धर्मनिरपेक्ष संविधान के प्रति नफरत पैदा करना चाहते हैं। लेकिन वे नहीं जानते कि संविधान, लोकतंत्र और अधिकारों का डीएनए अब दलितों पिछड़ों के रगों में गहरा समाहित हो चुका है। अलबत्ता हेगड़े का यह बयान एक खतरे की तरफ जरूर संकेत करता है।

चुनाव सामग्री की दुकान का एक दृश्य

हालांकि यह कोई नया खतरा नहीं है। इस खतरे को डॉ. अंबेडकर ने बहुत पहले ही भांप लिया था। इसीलिए उन्होंने संवैधानिक मूल्यों और बौद्ध धम्म की सांस्कृतिक धारा का एक विकल्प दे दिया था। 

यह सर्वविदित है कि हिंदुत्ववादी भाजपा जब भी सरकार में आई, उसने संविधान को बदलने की कोशिश की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में एन. वैंकट चलैया की अध्यक्षता में संविधान समीक्षा आयोग बनाया गया। विरोध के चलते अटल बिहारी वाजपेयी की मंशा पूरी नहीं हो सकी। दस साल तक केंद्र में रही यूपीए की सरकार में संविधान और लोकतंत्र की संस्थाएं मजबूत हुईं। 2014 में राष्ट्रवाद के छद्म और अच्छे दिन के वादे के नाम पर पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंदुत्ववादी संगठन खुलकर डॉ. आंबेडकर के संविधान को बदलकर हिंदू राष्ट्र का नया संविधान लागू करने के लिए मचलने लगे। सरकारी संरक्षण में ऐसे संगठन और तमाम कट्टरपंथी बेलगाम हो गए। इसके अलावा संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी संविधान के खिलाफ लिखने-बोलने लगे।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे वर्तमान राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने 8 अगस्त 2023 को संसद में कहा कि संविधान के मूल ढांचे पर बहस हो सकती है। जबकि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में (1973) सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की बेंच ने स्पष्ट फैसला दिया था कि संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। वहीं 15 अगस्त, 2023 को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबराय ने ‘मिंट’ नामक अंग्रेजी अखबार में एक लेख लिखा– ‘देयर इज ए केस फ़ॉर वी द पीपुल टू इम्ब्रेस अ न्यू कॉन्स्टिट्यूशन’। इसमें उन्होंने लिखा कि “भारत का संविधान औपनिवेशिक विरासत है। अब हमें एक नए संविधान की जरूरत है।” यानि डॉ. आंबेडकर के संविधान को बदलकर नया संविधान लिखा जाना चाहिए। अब भाजपा का एक सांसद खुलकर इस नाम पर वोट मांग रहा है।

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