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एनडीए के हर दल को मिला अलग-अलग जातियों को साधने का जिम्मा

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नई दिल्ली। बिहार में जीत की गारंटी की राह में दलों-गठबंधनों के लिए सबसे बड़ी पहेली जातिगत समीकरण हैं। बीते करीब साढ़े तीन दशक का इतिहास रहा है कि जिसने भी इसे साधने में सफलता हासिल की, जीत की चाबी उसी के हाथ लगी। इस सच्चाई को भांपते हुए भाजपा की अगुवाई वाले एनडीएने सहयोगियों को अलग-अलग जाति और वर्ग को साधने की जिम्मेदारी दी है। टिकट वितरण में भी जाति समीकरण को साधने की रणनीति साफ तौर पर झलकती है।

भाजपा, जदयू, हम और आरएलएम ने 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में अब तक 35 उम्मीदवार घोषित किए हैं। इनमें भाजपा ने अगड़ों और पिछड़ों में यादव बिरादरी को प्राथमिकता दी है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जदयू ने अपने हिस्से की 16 सीटों में से 11 सीटें पिछड़ा वर्ग (ओबीसी 6, अति पिछड़ा 5), एक-एक सीट अल्पसंख्यक और महादलित को दी है। गया सीट पर महादलित बिरादरी के जीतनराम मांझी, तो काराकाट सीट पर कुशवाहा बिरादरी के उपेंद्र कुशवाहा खुद उम्मीदवार होंगे। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने अपने हिस्से की पांच सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। हालांकि उनके हिस्से की तीन सीटें एससी सुरक्षित है। इन पर दलित उम्मीदवार का आना तय है। बाकी की दो सीटों में से एक सीट अल्पसंख्यक, तो एक अगड़ा को दिया जाना तय है। ऐसे में 40 सीटों के गणित को देखें, तो एनडीए में टिकट पाने वालों में ओबीसी के 18, सामान्य वर्ग के 14, एससी से 6 और अल्पसंख्यक बिरादरी के 2 उम्मीदवार होंगे।

अगड़ों में राजपूत बिरादरी को वरीयता
एनडीए ने अपनी सूची में अगड़ा वर्ग के 14 नेताओं को मौका दिया है। इनमें राजपूत बिरादरी (6 सीट) को वरीयता मिली है। भाजपा ने इस बिरादरी के पांच, तो जदयू ने एक को मौका दिया है। ब्राह्मण बिरादरी से भाजपा ने दो, तो जदयू ने एक, भूमिहार बिरादरी से भाजपा ने दो, तो जदयू ने एक, जबकि कायस्थ बिरादरी से भाजपा ने एक नेता को मौका दिया है।

यादव बिरादरी पर खास नजर
एनडीए की नजर राज्य की आबादी में पिछड़ी जातियों में सबसे बड़ी बिरादरी यादव पर है। इसी यादव और मुस्लिम समीकरण पर विपक्षी महागठबंधन की नींव खड़ी है। खासतौर से यादव बिरादरी में सेंध लगाने की जिम्मेदारी भाजपा की है। पार्टी ने तीन उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव, अशोक यादव को यादव बाहुल्य सीटों पर उम्मीदवार बनाया है। इस बिरादरी के ही गिरिधारी यादव को जदयू ने बांका से टिकट दिया है।

लवकुश को संभालने की जिम्मेदारी तीन चेहरों पर
बिहार में यादव के बाद ओबीसी की सबसे बड़ी बिरादरी लवकुश (कुर्मी-कुशवाहा) है। इन्हें संभालने का जिम्मा सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा पर है। रणनीतिकारों का मानना है कि चूंकि सीएम खुद कुर्मी, डिप्टी सीएम कुशवाहा बिरादरी से हैं, ऐसे में लवकुश वोट बैंक में विपक्षी गठबंधन के लिए सेंध लगाना आसान नहीं होगा।

दलित वोट के लिए चिराग-मांझी पर नजर
राज्य में 19 फीसदी दलित मतदाता हैं। इन्हें साधने की जिम्मेदारी लोजपा चिराग गुट और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी पर है। दलित वोट बैंक पर बेहतर पकड़ के कारण भाजपा ने लोजपा के दूसरे गुट पर चिराग को तरजीह दी है, जबकि महादलित वर्ग से आने वाले मांझी अपनी बिरादरी में बेहर मुखर हैं। उन्हें गया सुरक्षित सीट मिली है, जबकि चिराग को पांच में से तीन सुरक्षित सीटें दी गई हैं।

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