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कॉर्पोरेट कंपनियों और स्वयंसेवी संस्थाओं के गठजोड़ से सीएसआर फंड का दुरुपयोग

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सनत जैन

पिछले 5 वर्षों में कंपनियों ने सीएसआर फंड के रूप में 1 लाख 14 हजार 774 करोड रुपए स्वयंसेवी संस्थाओं को दान में दिए हैं। इस धन का उपयोग किस तरह से हुआ है। इसके नए-नए खुलाशे सामने आ रहे हैं। वर्ष 2021-22 में 19,043 कंपनियों ने 26,278.71 करोड, 2020-21 में 20840 कंपनियों ने 26,210.95 करोड़, 2019-20 में 22985 कंपनियों ने 24965.82 करोड़, 2018-19 में 250181 कंपनियों ने 20217.65 करोड़ तथा 2017-18 में 21525 कंपनियों में ने 17,098.57 करोड रुपए का दान किया है।

कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड का उपयोग कंपनियां अपने निजी हितों के लिए कर रही हैं। कंपनियों द्वारा जिन स्वयंसेवी संस्थाओ को दान दिया जाता है। उस संस्था से 65 से लेकर 80 फ़ीसदी राशि कंपनियों द्वारा वापस ले ली जाती है। इस राशि का उपयोग कंपनी रिश्वत बांटने चुनावी चंदा देने और अपने विरोधियों को निपटाने के लिए काले धन के रूप में अपनी सुविधानुसार करती है। सीएसआर फंड की जो बंदर बांट हो रही है। उसमें एक बड़ी राशि पिछले 5 वर्षों में इलेक्ट्रोल बांड के रूप में राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दी गई है। यह बात भी अब खुलकर सामने आने लगी है।

कंपनी एक्ट 2013 के अनुसार हर कंपनी को अपने शुद्ध मुनाफे की दो फ़ीसदी राशि को सामाजिक सरोकारों में खर्च करना जरूरी होता है। जिन ट्रस्ट या स्वयंसेवी संस्थाओं को यह राशि दी जाती है। उन्हीं ट्रस्ट और संस्थाओं से 65 से लेकर 80 फ़ीसदी राशि कंपनियों द्वारा वापस ले लेती हैं। ट्रस्ट एवं स्वयंसेवी संस्थाएं दी गई राशि को खर्च में दिखा देती हैं। 20 से 35 फ़ीसदी तक चंदा स्वयंसेवी संस्थाओं के पास रह जाता है। अधिकांश चंदा उन स्वयंसेवी संस्थाओं को दिया गया है।

जो सेवा निवृत आईएएस, आईपीएस अधिकारी, राजनेता और उनके परिवारजन चलाते हैं। कंपनियों के इस फंड को दिलाने के लिए सीएसआर फंड कंसल्टेंट इस काम को बखूबी अंजाम दिलाने में अपनी सेवाएं देते हैं। सीएसआर फंड की कमीशन खोरी का यह धंधा बड़े पैमाने पर देश मे चल रहा है। दान में दी गई 65 से 80 फ़ीसदी रकम अंगड़ियों के माध्यम से नगद रूप में कंपनियों के पास वापस पहुंच जाती है। इस राशि का उपयोग ब्लैक मनी के रूप में किया जाता है। कंपनियों का ऑडिट सीए द्वारा किया जाता है। वह इस बात की जांच नहीं करते हैं, कि जो दान दिया गया है, वह सही तरीके से खर्च हुआ है, या नहीं। इसी तरीके से ट्रस्ट और स्वयं सेवी संस्थाओं का ऑडिट भी सीए द्वारा किया जाता है। वह भी आय और व्यब का ऑडिट वाउचर के अनुसार करके इति श्री कर लेते हैं। आयकर अधिकारियों के ऑडिट में इस तरह की गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद भी, इस तरह के अवैध लेनदेन पर रोक लगा पाना संभव नहीं हो पा रहा है।

पिछले वर्षों में इलेक्ट्रोल बांड के रूप में कंपनियों ने जो चुनावी चंदा दिया है। उसमें से अधिकांश चंदा सीएसआर फंड की रा‎शि से अपरोक्ष रूप से दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्टेट बैंक आफ इंडिया ने इलेक्ट्रोल बांड को लेकर जो खुलासा किया है। उसमें जिन कंपनियों ने चंदा दिया है। उनकी बैलेंस शीट में उस चंदे का जिक्र ही नहीं है। यदि इस मामले की जांच कराई जाए, तो यह अभी तक का एक बहुत बड़ा घोटाला है। सरकार ने जिस तरीके के कानून बनाए हैं। उसके बाद देश में काला धन एकत्रित हो, इसकी संभावना ही नहीं है। अभी भी ईड़ी,सीबीआई और आयकर विभाग के जहां छापे पड़ते हैं।

करोड़ों अरबों रुपए की नगदी बरामद होती है। कॉर्पोरेट कंपनियों और स्वयंसेवी संस्थाओं के गठजोड़ से अंगड़ियों के माध्यम से हर साल करोड़ों रुपए का लेनदेन काले धन के रूप में भारत में हो रहा है। इसे आयकर और ईडी के अधिकारी भी जानते हैं। सरकार भी जानती है। सरकारी सरपरस्ती में काले धन का यह लेनदेन आज भी बखूबी चल रहा है। कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का इससे बड़ा मजाक और कोई नहीं हो सकता है। गरीबों के नाम पर योजनायें और कानून बनाये जाते हैं। इसका लाभ गरीबों को नहीं ‎मिलता है। गरीबों के नाम पर जो योजनायें संचा‎लित होती हैं, उसका लाभ बड़े-बड़े धन्नासेठ उठाते हैं। सीएसआर फंड भी उसका एक उदाहरण है।

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