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कैसे संभव हो सकेगा अंधश्रद्धा निर्मूलन ?

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डा.सुरेश खैरनार , नागपुर 

कोल्हापूर से नागपुर ! जबसे शाहबानो और बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद को धार्मिक मुलत्ववादीयोने ने तुल दिया ! उसके बाद से अल्पसंख्यक समुदायों में पहचान की समस्या खड़ी हुई है ! और उसी कारण से पुरुषों मे दाढी गोल टोपी पांच बार नमाज – रोजे इत्यादि कर्मकांड ज्यादा मात्रा में शुरू हुए हैं ! और औरतों में हिजाब, बुर्का पहनकर चलने की संख्या मे इजाफा हुआ हैं !

                  कल दोपहर के एक बजे के आसपास मैं कोल्हापुर से नागपुर की ट्रेन में बैठा हूँ ! कोल्हापूर के बाद मिरज स्टेशन से मेरे सामने वाले बर्थ पर सव्वा तीन पैसेंजर आए ! जो रात दो बजे परभणी स्टेशन उतर गए हैं ! सव्वा तीन शब्द इसलिए कि एक छोटा बच्चा था ! और दो तरुण महिलाएं ! और एक पुरुष ,

             महिलाओं ने काफ़ी फेशनेबल बुर्के पहने हुए थे ! दोनों बहनें थीं ! छोटी बहन आयुर्वेद की डाक्टर थीं ! और बड़ी एनेस्थेशिया की डॉक्टर ! दोपहर दो बजे ट्रेन में चढने के बाद बर्थपर, एक बर्थकीही साईजकी चटई जैसे कपडे को बिछाकर नमाज अदा कीया ! और गाडीसे उतरने के पहले चारों बार यह क्रिया एनेस्थेशिया की पढ़ाई की हुईं महिला ने किया ! दुसरी आयुर्वेद वाली ने नहीं किया ! लेकिन वह एनेस्थेशियन और इंजीनियरिंग की पढाई किया हुआ युवा ने भी कीया था !

  उसके पहले कोल्हापूर के बसस्टॅण्डसे स्टेशन पैदल आते वक्त, रोडसाईड के एक वडापाव के स्टॉल पर, ठहरने के बाद देखा कि पच्चीस – तीस साल का युवक जो कि वडापाव का ठेला का मालिक था ! तीन केसरिया रंग के टिके लगाया हुआ था ! वैसे ही कलसे आज तक ट्रेन में स्थानीय चाय भेल इत्यादि चिजे बेचने के लिए जितने भी आए उनमेसे ज्यादातर विक्रेता टिके लगाएं हुए !

                 देखकर मेरे मन में आया कि अंधश्रध्दा निर्मूलन समिती या वैज्ञानिक सोच के लिए, विज्ञानाभिमुकता जैसे मुल्यो की कोशिश करने के साथ-साथ कमअधिक प्रमाण में भारत के सभी प्रदेशों में यह आलम जारी है !

           संघके लोगों की भारत विश्वगुरु बनेगा कि रट ! और यह धार्मिक कर्मकांड की बढ़ती हुई संख्या ही विश्वगुरु का हरावल दस्ता है ? इन लोगों के विश्वगुरु की संकल्पना में, सभी लोगो ने अवैज्ञानिक सोच अपनाकर इस तरह के कर्मकांड करना होगा तो समस्त विश्व का क्या होगा ?

          भारत में गत सौ सालों से इनकी कोशिश चल रही है ! और आज भारत में सभी प्रकार के धार्मिक फुहडपन के लिए यही लोग जिम्मेदार है ! कोरोना के समय जब देश का प्रधानमंत्री खुद थालीया बजाने जैसे बचकानी हरकत करने के लिए लोगों को अपिल करता है ! तो ऐसे देश में और क्या होगा ? 22 जनवरी को राममंदिर के तथाकथित प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के दौरान भी प्रधानमंत्री ने देश के लोगों को घरों पर भगवान झंडा फहराने तथा रामरथ के जुलूस और राम नाम को लेकर डीजे के उपर बजाए गए विभिन्न गानों ने बिमार तथा दुधपिते बच्चों की निंद हराम कर दी थी !

          जिस देश में एक तरफ मंगलयान अभियान के साथ वही वैज्ञानिक तिरूपति के मंदिर में मंगलयान की प्रतिकृति भेट चढाने के लिए जाते हैं ! इसलिए अंधश्रद्धा निर्मूलन कैसे संभव हो सकेगा ?

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