सुनीता नारायण
कुछ साल पहले बेंगलूरु में ‘इक्सक्रीटा मैटर्स’ पर हमारी रिपोर्ट जारी करते समय, मैं शहर के जल और गंदे नाली के पानी का प्रबंधन करने वालों के साथ एक जोश से भरी चर्चा में शामिल हुई थी। इस चर्चा का मुद्दा शहर में जल प्रबंधन का ढांचा था जो हमारे शोध के अनुसार किफायती और टिकाऊ नहीं था। हालांकि इंजीनियर इस बात से असहमत थे।
उनके अनुसार वे पाइपलाइनों के माध्यम से लगभग 100 किलोमीटर दूर से कावेरी नदी का पानी प्राप्त करने में सफल रहे थे और इसलिए उनके पास चिंता करने का कोई कारण नहीं था। उनका मानना था कि उन्होंने सब कुछ अपने नियंत्रण में कर रखा है। अब जब यह अत्याधुनिक तकनीक वाला शहर गंभीर जल संकट की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में संभव है कि ये लोग फिर से अपने विकल्पों पर पुनर्विचार करने के साथ ही उस पर आगे दोबारा काम करें।
तथ्य है कि अन्य शहरों की तरह ही बेंगलूरु भी एक ऐसा ही शहर है जिसे आईना देखने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि अधिक लागत वाले इंजीनियरिंग समाधानों वाली बेहतर जल आपूर्ति का सपना किस तरह गलत है। जलवायु से जुड़े जोखिम वाले इस दौर में यह स्थिति और खराब होने वाली है क्योंकि अब बारिश अधिक चरम स्तर पर होने के साथ ही अधिक परिवर्तनशील हो जाएगी।
पहले बेंगलूरु को झीलों के विशाल नेटवर्क से पानी की आपूर्ति मिलती थी जो बारिश का पानी इकट्ठा करने और बाढ़ कम करने के लिए विशेषतौर पर बनाया गया था। इसके बाद फिर इस खोज का विस्तार हुआ। इसकी पहली आधिकारिक जल आपूर्ति प्रणाली, शहर से लगभग 18-20 किमी दूर अर्कवती नदी पर हेसरघट्टा झील से जुड़ी थी और इससे आगे यह 35-40 किमी दूर टीजी हल्ली जलाशय से जुड़ी थी।
लेकिन यह सब पर्याप्त नहीं था और 1974 के आसपास महत्त्वाकांक्षी कावेरी जल आपूर्ति योजना की परिकल्पना की गई थी जिसके तहत पानी को लगभग 490 मीटर की ऊंचाई तक पंप करने की योजना थी और इसे 100 किमी से अधिक दूर ले जाने की बात भी थी। जब मैंने शहर के इंजीनियरों से बात की तो वे इस चमत्कारिक इंजीनियरिंग परियोजना के चौथे चरण में थे और जैसा कि मैंने कहा, उन्हें इसमें चिंता करने का कोई कारण नहीं दिखता था।
मैंने लगभग एक दशक पहले, लंबी दूरी तक पानी पहुंचाने की लागत के बारे में बात की थी। शहर को पानी पहुंचाने के लिए पहले से ही बहुत ज्यादा बिजली की जरूरत थी, जिससे शहर के जल और सीवर बोर्ड की पहले से ही कमजोर आर्थिक स्थिति और खराब हो रही थी।
जैसे-जैसे दूरी बढ़ती गई, वैसे-वैसे पानी की बरबादी की मात्रा भी बढ़ती गई। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक एक दशक पहले तक यह लगभग 40 प्रतिशत थी। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों के लिए पानी की आपूर्ति की लागत बढ़ रही थी और वित्तीय स्थिति अनिश्चित थी। लेकिन ऊपरी स्तर पर सब ठीक था।
शहर ने अपने नागरिकों के लिए शत-प्रतिशत जल आपूर्ति का दावा किया और यह संकेत भी दिए कि समस्याएं चाहें जो भी हों लेकिन कावेरी के चौथे चरण के तहत इन्हें सुलझा लिया जाएगा। मैंने उनका ध्यान कुछ तथ्यों की ओर दिलाया जिनको लेकर वह गंभीर नहीं थे।
पहला, यह कि शहर और उसके आसपास के इलाकों में भूजल का उपयोग बढ़ रहा था जिससे यह साफ पता चल रहा था कि जलापूर्ति की स्थिति उतनी ठीक नहीं है जितना दिखाया जा रहा था।
दूसरा, यह कि शहर का तेजी से विस्तार हो रहा था और इस विस्तार की रफ्तार के साथ ही जल और जल निकासी के बुनियादी ढांचे का तैयार होना असंभव था और यह इस वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रख पाएगा।
तीसरी, सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि गंदे पानी का उपचार नहीं किया जा रहा था जिसके चलते झीलों और झरने के जाल में प्रदूषण बढ़ रहा था। हालांकि, इंजीनियर भविष्य को लेकर आशावादी थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने हर उपलब्ध तकनीक का उपयोग करके पहले ही रोजाना 72 करोड़ लीटर गंदे पानी की उपचार क्षमता तैयार कर ली है और इससे वे तकनीकी रूप से लगभग सभी तरह के गंदे पानी का उपचार करने में सक्षम होंगे। लेकिन जब मैंने बताया कि आधी से भी कम क्षमता का उपयोग किया जा रहा है तब उन्होंने मुझसे कहा कि यह कुछ समय की बात है और जल्द ही पाइपलाइन नेटवर्क का विस्तार होगा और सब ठीक हो जाएगा।
अब आइए आज की स्थिति पर नजर डालते हैं। वर्ष 2010 में, शहर की पानी की आवश्यकता लगभग 112.5 करोड़ लीटर प्रतिदिन आंकी गई थी जो अब दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 260.0 करोड़ लीटर प्रतिदिन हो चुकी है और कावेरी अब भी आधी जल की आपूर्ति करती है और बाकी जल की आपूर्ति अब भी भूजल के माध्यम से होती है।
दूसरे शब्दों में, मांग में आई तेजी के मुकाबले आपूर्ति कम ही रही है और ऐसे में लोगों के पास पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए गहरी खुदाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। बारिश की अनियमितता बढ़ने के साथ, ये स्रोत तेजी से सूख रहे हैं। लेकिन पाइपलाइन के सपने दिखाने और उसे बेचने वाले इस संकट को नहीं समझ पाए हैं। शहर के मुख्य जल प्रबंधक अब कावेरी परियोजना के पांचवें चरण पर दांव लगा रहे हैं और उनका कहना है कि इसकी शुरुआत बहुत जल्द हो जाएगी और इससे पानी से जुड़ी सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी।
जहां तक गंदे पानी और मल आदि का सवाल है इसकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है और इसका बुनियादी ढांचा दोगुने से भी ज्यादा हो गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2021 की इन्वेंट्री के अनुसार, शहर में अब रोजाना 166.8 करोड़ लीटर गंदे पानी की उपचार क्षमता है और रोजाना 42.5 करोड़ लीटर की उपचार क्षमता निर्माणाधीन है। लेकिन इसका क्षमता उपयोग 50 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर है, यानी दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अधिक गंदे पानी आदि को रोका जा रहा है।
लेकिन पानी की जरूरत दोगुनी होने के साथ ही गंदे पानी आदि की मात्रा भी बढ़ गई है और अधिकांश गंदे पानी को रोका नहीं जा पा रहा है और न ही इसका उपचार किया जा रहा है। लेकिन, आप इंजीनियरों से बात करें तो वे आपको बताएंगे कि यह सिर्फ समय की बात है और सब ठीक हो जाएगा। सभी घर जुड़ जाएंगे, गंदे पानी को रोका जाएगा और इसे उपचार संयंत्रों में ले जाकर फिर नदियों में स्वच्छ पानी बहाया जाएगा जो चमत्कारिक तरीके से बदला हुआ होगा।
यही हमारी जल से जुड़ी योजना की असली समस्या है। हम यह समझने में असमर्थ हैं कि पानी और कचरे से जुड़े इस पूरे कारोबार में बदलाव लाने की कितनी जरूरत है और इसमें कितना अवसर है। इस व्यवस्था बेहतरी के लिए रोकने की जरूरत है। सच तो यह है कि बेंगलूरु में पर्याप्त बारिश होती है और यहां कई झीलें हैं जो इस पानी को फिर से जमीन के नीचे तक पहुंचा सकती हैं। ऐसे में हमारा भूजल सुरक्षित हो सकता है। अगर ऐसा हो तब भारी बारिश के समय भी शहर के अमीर और प्रभावशाली लोगों को बाढ़ में डूबने से बचने के लिए तैरना नहीं पड़ेगा। बारिश की हर बूंद का इस्तेमाल सूखा पड़ने दौर में किया जा सकता है।
तब शहर अपने गंदे पानी की निकासी वाली प्रणाली का प्रबंधन अलग तरीके से कर सकता है। पाइपलाइनों के जरिये गंदा पानी ले जाने पर भरोसा करने के बजाय, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि गंदे पानी और मल का हर एक बूंद टैंकरों द्वारा इकट्ठा किया जाए और फिर इसका उपचार करने के बाद इसे झील के बुनियादी ढांचे में डाला जाए और फिर से इसका इस्तेमाल किया जाए।
लेकिन इसके लिए जल इंजीनियरों को जमीनी हकीकत को समझना होगा और उन्हें भविष्य के लिए जल प्रबंधन पर पुनर्विचार करना होगा। यह सिर्फ बेंगलूरु की कहानी नहीं है। यह स्थिति आज भले ही उनकी है लेकिन ऐसी स्थिति कल आपके सामने भी बन सकती है।
(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट से संबद्ध हैं)