अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

ये कैसा लोकतंत्र: अब शांतिपूर्ण धरना भी अपराध ?

Share

सनत जैन

भारत में शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करना भी अपराध की श्रेणी में आ गया है? धरना प्रदर्शन के लिए यदि अनुमति मांगी जाती है। जिला और पुलिस प्रशासन आमतौर पर कानून व्यवस्था की स्थिति के नाम पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं देता है। यदि दबाव में अनुमति दे भी दी, तो उसमें इस तरह की शर्तें लगा दी जाती हैं। जिसका पालन आयोजक के वश में ही नहीं रहता है। यदि प्रदर्शन सरकार और प्रशासन के खिलाफ हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्रदर्शन करने की आमतौर पर अब अनुमति नहीं मिलती है।

जिला प्रशासन द्वारा धारा 144 का उपयोग धरना प्रदर्शन को रोकने में अब बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। धारा 144 लगाकर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। जो भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकार को खत्म करने जैसा है। इसी तरह से पुलिस लोगों को गिरफ्तार कर लेती है। उन्हें गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया जाता है। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी का कारण पूछने पर उस पर सरकारी काम में अवरोध पैदा करने, तरह-तरह के आरोप लगाकर, पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज कर लेती है। कई मामलों में तो यह भी देखने में आया है। पुलिस बिना सूचना दिए चार्ज शीट अदालत में पेश कर देती है।

धरना प्रदर्शन के मामलों में फरार घोषित कर दिया जाता है। न्यायालयों में कई वर्षों तक मुकदमा लंबित रहता है। कई वर्षों तक लोगों को न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं। हाल ही में चुनाव आयोग के सामने शांतिपूर्वक धरना दे रहे टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन और लगभग एक दर्जन लोगों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। दिल्ली पुलिस उन्हें घसीट कर बस तक ले गई। पुलिस उन्हें यह भी नहीं बता रही थी, दिल्ली पुलिस उन्हें क्यों हिरासत में ले रही है। वह अपनी बात रखने के लिए चुनाव आयोग के कार्यालय में आए थे। वह धरना देकर शांति पूर्वक विरोध दर्ज करा रहे थे। सांसद डेरेक का कहना था,दिल्ली पुलिस द्वारा उन्हें नौवीं बार हिरासत में लिया गया है। हम लोग शांतिपूर्ण ढंग से बैठे हुए थे। मीडिया से बात कर रहे थे। इसी बीच पुलिस आई और अपराधियों की तरह घसीट कर ले गई।

यह सब कैमरे के सामने हो रहा था। इसके बाद भी पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ा। पुलिस गिरफ्तार करके उन्हें बसों से मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन के बाहर उन्हें काफी देर तक रखा। उसके बाद 2 घंटे तक वह बस में हम लोगों को घुमाते रहे। कहां ले जा रहे हैं, और किस अपराध में हिरासत में लिया है। यह भी पुलिस द्वारा नहीं बताया गया। लगभग 2 घंटे अवैध हिरासत में रखने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। सांसदों के साथ ऐसा व्यवहार किए जाने पर उन्होंने एतराज जताते हुए कहा, कानून के अनुसार सीआरपीसी की धारा 500(1) के तहत हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताया जाना जरूरी होता है। लगभग 2 घंटे तक किसी को कुछ भी नहीं बताया गया। निकटतम पुलिस स्टेशन पर भी नहीं ले जाया गया। घंटो बस में घुमाने के बाद छोड़ दिया गया। भारत में कानून तो बना दिए जाते हैं। लेकिन कानून का पालन वही लोग नहीं करते हैं, जिनके ऊपर कानून के पालन कराने की जिम्मेदारी होती है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से धरना और प्रदर्शन की अनुमति देने में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन अड़ंगेबाजी लगता है। तरह-तरह की ऐसी शर्ते लाद देता है। जिनका पालन करना आयोजक के लिए संभव ही नहीं होता है।

जिला प्रशासन को ऐसा लगता है, कि धरना प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। ऐसी स्थिति में धारा 144 का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान पुलिस की बर्बरता भी बड़ी आम हो गई है। जब पुलिस और जिला प्रशासन ही नियमों का पालन नहीं करते हैं। तब स्थिति और भी विकट हो जाती है। किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा की पुलिस ने जिस तरह की बर्बरता किसानों के ऊपर की है। उसे सारे देश ने देखा है। शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को किस तरह से रोका जाता है। किसानों के ऊपर जिस तरह से अश्रु गैस के गोले छोड़े गए। किसानों को रोकने के लिए जिस तरीके के अवरोध लगाए गए। दिल्ली प्रदर्शन के लिए जाने वाले किसानों को हरियाणा में ही रोक लिया गया। यह भी सारे देश ने देखा है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में जहां मानव अधिकार और कानून का राज है। उन नियमों-कानूनों को तोड़ने का काम यदि पुलिस करने लगती है। इससे स्थिति खराब होती है। सीबीआई और ईड़ी जैसी जांच एजेंसियों के ऊपर भी इसी तरीके के आरोप लगने लगे हैं। गिरफ्तारी के बाद भी कई दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखने के कई मामले सामने आ चुके हैं। कई दिनों बाद गिरफ्तारी बताने के बाद कोर्ट में पेश किया जाता है। पीएमएलए कानून, जो ड्रग माफिया और आतंकवादियों के लिए बनाया गया था। सरकार और जांच एजेंसी उस कानून का उपयोग विपक्षी दलों के खिलाफ किया जा रहा हैं। वर्षों विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ कोई सबूत नहीं होने के बाद भी उन्हें जेलों में बंद करके रखा जा रहा है। इसकी तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिलने लगी है। आम जनता तो कई वर्षों से इस तरीके की प्रताड़ना को झेलती आ रही है। अब बड़े-बड़े राजनेता, संवैधानिक पदों पर बैठे हुए मंत्री, मुख्यमंत्री,सांसद और विधायक इस तरह की प्रताणना के शिकार हो रहे हैं। इसके बाद गैर कानूनी हिरासत में रखने के मामले में चिंता जाहिर की जा रही है। अति सर्वत्र वर्जयते की तर्ज पर जब बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग अवैध हिरासत के शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में आशा की जा सकती है। भविष्य में जिन लोगों के ऊपर कानूनो का पालन कराने की जिम्मेदारी दी गई है। उनको भी कानून के अनुसार जिम्मेदार बनाए जाने की दिशा में भविष्य में कोई ना कोई प्रयास जरूर राजनेता करेंगे। जो अधिकारी नियमों और कानून का पालन नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी जिम्मेदारी तय की जाए। उन्हें दंडित किया जाए, तभी जाकर स्थितियों में सुधार आ सकता है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें