डॉ. प्रिया
ऑटिज्म एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो जन्म के साथ बच्चों में देखने को मिलता है। यह बच्चों के बिहेवियर, ग्रोथ, बात करने के तौर तरीकों को प्रभावित करता है। हालांकि, यह कोई जानलेवा बीमारी नहीं है, यह बच्चों के मस्तिष्क से जुड़ी समस्या है।
ऑटिज्म का कोई निश्चित इलाज नहीं है, परंतु सही समय पर इसका पता चलने से समस्या का उचित समाधान किया जा सकता है। प्रेगनेंसी के दौरान उचित देखभाल कर इसे प्रिवेंट किया जा सकता है।
इसलिए इसके प्रति लोगों को अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है।
*क्या है ऑटिज्म डिसऑर्डर?*
ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को सामाजिक तौर पर बातचीत करने में समस्या होती है। ऑटिज्म ग्रसित बच्चों का व्यवहार सामान्य बच्चों की तुलना में काफी अलग होता है।
एएसडी पीड़ित बच्चों के सीखने, आगे बढ़ने या ध्यान देने का तौर तरीका भी अलग होता है।
*क्यों होता है ऑटिज़्म?*
ऑटिज्म एक जेनेटिक संबंधी समस्या है। पर कई ऐसे अन्य कारण भी हैं, जो इसके खतरे को बढ़ा देते हैं।
एनवायरमेंटल फैक्टर, ओल्डर पेरेंट्स, ड्रग्स और टॉक्सिक एक्स्पोज़र, लो बर्थ वेट, प्रेगनेंसी कॉम्प्लिकेशंस और मैटरनल इन्फेक्शन आदि ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा देती हैं। हालांकि, इसका कोई एक स्थाई कारण नहीं है।
*भारत में ऑटिज़्म के आंकड़े :*
भारत में ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों के मामले दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं।
2021 में इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 68 बच्चों में से 1 बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है। लड़कियों की तुलना में लड़के आमतौर पर ऑटिज्म से अधिक प्रभावित होते हैं।
यदि संख्या पर गौर किया जाए, तो पुरुष-महिला अनुपात लगभग 3:1 का है। यह समस्या जेनेटिक है, परंतु प्रेगनेंसी में महिलाएं उचित देखभाल के साथ इसके खतरे को कम कर सकती हैं।
*जानें क्यों बढ़ रहे हैं ऑटिज्म के आंकड़े?*
आज से कुछ साल पहले तक पेरेंट्स अपने बच्चों के बर्ताव को समझ नहीं पाते थे, और उन्हें ऑटिज्म की जानकारी भी नहीं थी। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिजीज के बारे में जागरूकता समझ और स्पष्ट बढ़ाने से इसकी संख्या का पता लगाना शुरू हुआ है।
कुछ जेनेटिक कारण हैं और कुछ पर्यावरणीय कारण भी इस प्रवृत्ति में योगदान दे सकते हैं। वहीं महिलाओं द्वारा प्रेगनेंसी के दौरान बरती जाने वाली लापरवाही भी बच्चे को ऑटिज्म का शिकार बना सकती है।
*ऑटिज्म का खतरा कैसे कम किया जा सकता है?*
ऑटिज्म एक जेनेटिक प्रॉब्लम है, जो जन्म के साथ आती है। परंतु प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं द्वारा की जाने वाली कुछ गलतियों के कारण ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है। इन गलतियों को समझें और दोहराने से बचें।
*1. शराब से पूरी तरह परहेज :*
प्रेगनेंसी के दौरान किसी भी महिला को शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। यहां तक कि उन्हें कंसीव करने के कुछ महीने पहले से ही शराब पीना छोड़ देना चाहिए। यदि आप प्रेगनेंसी के दौरान एक बार भी शराब पीती हैं, तो यह आपकी बॉडी के लिए पॉइजन साबित हो सकता है। वहीं इससे बच्चों में ऑटिज्म का खतरा भी बढ़ जाता है।
इसलिए शराब के अलावा अन्य एल्कोहलिक ड्रिंक्स से भी पूरी तरह परहेज करें।
*2. बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेना घातक :*
यदि आप प्रेगनेंट हैं और आपको बीमार महसूस हो रहा है, तो ऐसे में डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी प्रकार की मेडिसिन न लें। किसी भी प्रकार के ड्रग मेडिसिन को लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना बेहद जरूरी है।
अन्यथा मेडिसिन में मौजूद केमिकल्स और अन्य कांबिनेशंस बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
*3. हेल्दी लाइफस्टाइल ज़रूरी :*
प्रेगनेंसी के दौरान हेल्दी लाइफस्टाइल मेंटेन कर आप अपने बच्चों की सेहत को पूरी तरह से स्वस्थ रख सकती हैं। स्वस्थ एवं संतुलित खाद्य पदार्थों का सेवन करें, साथ ही नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।
जरूरी विटामिन और मिनरल्स का ध्यान रखना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शरीर में मौजूदा पोषक तत्वों के विषय पर अपने डॉक्टर की सलाह लें।
*4. रेगुलर चेक अप :*
प्रेगनेंसी में शरीर की नियमित जांच करवाना बेहद महत्वपूर्ण है।
नियमित जांच करवाने से आपके साथ साथ बच्चों की सेहत का भी अंदाज़ हो जाता है और उसके हिसाब से डॉक्टर समय रहते जो ट्रीटमेंट हो सकता है वे करते हैं।