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कांग्रेस चुनाव लड़ना सीख गई:भाजपा के चक्रव्यूह में नहीं फंसे राहुल और प्रियंका?

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सनत जैन

लगता है कांग्रेस चुनाव लड़ना सीख गई है। रायबरेली और अमेठी को लेकर अंत तक कांग्रेस ने सस्पेंस बनाकर रखा। भाजपा अमेठी और रायबरेली में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए जाल बिछाकर बैठी हुई थी। इस जाल में फंसने के स्थान पर कांग्रेस ने तगड़ी चुनौती, भाजपा के लिए खड़ी कर दी है। भाजपा ने सोचा था, दोनों भाई बहन खड़े होंगे। अगले चरण के चुनाव प्रचार में राहुल और प्रियंका अपनी सीटों पर फंस जाएंगे।

कांग्रेस, राष्ट्रीय स्तर के चुनाव प्रचार में बहुत कमजोर पड़ जाएगी। दोनों अपनी-अपनी सीटें निकालने के लिए पूरा अस्तित्व दांव पर लगा देंगे। तीसरे चरण के बाद के सारे चुनाव में भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं रहेगी। परिवारवाद को लेकर कांग्रेस और गांधी परिवार को घेरने में भाजपा सफल होगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। भाजपा की सारी ताकत यूपी में है। मुख्यमंत्री के रूप में आदित्यनाथ योगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो स्वयं बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं। इन दोनों योद्धाओं के होते हुए राहुल और प्रियंका को सबक सिखाने की जो रणनीति भाजपा ने बनाई थी, उस चक्रव्यूह में कम से कम राहुल और प्रियंका नहीं फंसे।

राहुल गांधी सबसे सुरक्षित रायबरेली से लड़ने जा रहे हैं। यहां से सोनिया गांधी सांसद हैं। गाँधी परिवार की सक्रियता रायबरेली में बनी हुई थी। राहुल गांधी को रायबरेली में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने का असर अमेठी सीट पर भी पड़ेगा। अमेठी की सीट एक बार राहुल गांधी हार चुके हैं। वहां से गांधी परिवार ने अपने सबसे विश्वासी किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतार दिया है। राजीव गांधी के समय से वह अमेठी संसदीय क्षेत्र में काम कर रहे हैं। अमेठी के मतदाता उन्हें जानते हैं। उनके माध्यम से कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चुनौती दी है। स्मृति ईरानी यदि किशोरी लाल शर्मा से हार गईं तो स्मृति ईरानी का राजनीतिक कैरियर भी खत्म हो जाएगा। वहीं गांधी परिवार को दांव भी नहीं लगाना पड़ा। प्रियंका गांधी कांग्रेस की स्टार प्रचारक बनकर देश भर के सभी राज्यों में घूम- घूम कर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार करेंगी। राहुल गांधी भी अगले चरणों के चुनाव प्रचार में लगे रहेंगे।

बीच-बीच में वह रायबरेली में भी रहेंगे। भाई बहन की यह जोड़ी राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करती रहेगी। भाजपा चाहती थी, इन दोनों को उत्तर प्रदेश में रायबरेली और अमेठी में फंसाकर उन्हें चुनाव प्रचार से बाहर कर दिया जाए। भाजपा को इंडिया गठबंधन और कांग्रेस से जो चुनौती मिल रही है, उसका मुकाबला करने की रणनीति भाजपा की फेल हो गई है। अब राहुल गांधी को भगोड़ा कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है, कि यदि किशोरी लाल शर्मा को लड़ाना था, तो कांग्रेस को पहले ही घोषणा कर देनी चाहिए थी। प्रियंका गांधी रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़ती, तो आसानी से जीत सकती थीं। वह क्यों नहीं लड़ीं। राहुल कहते हैं डरो नहीं, लेकिन राहुल और प्रियंका खुद चुनाव लड़ने से डर रहे हैं।

सही मायने में इन्हें भी मालूम था, कि उनके लिए यह सब कहा जाएगा। गांधी परिवार व्यक्तिगत लड़ाई लड़ने की जगह पर इस बार राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन और कांग्रेस को जिताने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने जिस तरह से कांग्रेस संगठन को छिन्न-भिन्न कर, राहुल गांधी और कांग्रेस को चुनाव मैदान से बाहर करने की कोशिश की थी। इसका माकूल जवाब समय आने पर कांग्रेस की ओर से दिया गया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। राहुल गांधी को पप्पू से नेता बनने में 5 साल का समय लगा है। सही मायने में भाजपा ने राहुल गांधी और कांग्रेस को चुनाव लड़ना सिखा दिया है। मार-मार कर कैसे पहलवान बनाया जाता है, इसका सटीक उदाहरण राहुल गांधी हैं। मोदी और राहुल के बीच में अब सीधा मुकाबला है। विपक्ष में रहकर किस तरीके से चुनाव लड़ा जाता है। किस तरह की रिस्क ली जाती है। जिनसे लड़ रहे हैं, उन्हें कैसे भ्रमित कर लड़ाई लड़ी जाती है। रायबरेली और अमेठी सीट को लेकर जितनी बीजेपी परेशान थी, वैसी परेशानी कांग्रेस में नहीं थी। सारा गोदी मीडिया अमेठी और रायबरेली में डटा हुआ था। अंतिम समय पर कांग्रेस ने जो निर्णय लिया, उससे भाजपा के साथ-साथ गोदी मीडिया भी हतप्रभ है।

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और गोदी मीडिया ने जो जाल बिछाया था, उसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस नहीं फंसी। भाजपा के लिए तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक के चुनाव में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। यह बात भाजपा और मीडिया अच्छे तरीके से जानता है। प्रियंका गांधी की चुनावी सभाओं और रेलियों में जिस तरह की भीड़ जुट रही है। जिस तरह से वह मतदाताओं के साथ संवाद कर रही हैं। मीडिया की भाषा में इफेक्टिव कम्युनिकेशन के रूप में माना जाता है। प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के संवाद का असर मतदाताओं के बीच में हो रहा है। 2013 और 2014 में नरेंद्र मोदी को लेकर जो भरोसा मतदाताओं के बीच में जगा था। भाई बहनों की इस टीम से भाजपा और नरेंद्र मोदी को वही चुनौती मिल रही है। इसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी।

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