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इंदौर ने पहली बार देखा ऐसा नीरस, उत्साहविहीन चुनाव

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देश की सबसे बड़ी पंचायत का चुनाव जिले में पंचायतों के चुनाव से भी गया गुजरा हुआ साबित

► न कोई बड़ा नेता इंदौर आया, न कोई आमसभा हुई, दोनों दलों के एक जैसे रहे हाल

► सत्ता सुंदरी का वरण करने से पहले ही कांग्रेस का उजड़ गया ‘सुहाग’, अब नोटा का टेका

न मोदी आए, न योगी। न प्रियंका आईं, न राहुल बाबा के चरण अहिल्या नगरी इंदौर में पड़े। मोटाभाई ने भी इस शहर से किनारा कर लिया, जबकि शहर के अगल-बगल आकर सब निकल गए, लेकिन प्रदेश की राजनीतिक राजधानी इंदौर इस चुनाव में बड़े नेताओं की सभाओं को तरस गया। सभा तो दूर चुनावी माहौल तक देखने को नहीं मिला। डीजे तो दूर एक टुग्गल-सा ऑटो रिक्शा तक नजर नहीं आया, जो वोट मांग रहा हो। देश की सबसे बड़ी पंचायत के हो रहे चुनाव के हाल इंदौर जैसे मस्ताने शहर में गांव में होने वाले पंचायत चुनाव से भी गए गुजरे हो गए। दोनों दल के ये ही हाल रहे। एक दल जीत के अतिउत्साह में वो कर बैठा कि चुनाव का बचा-खुचा उत्साह ही रफूचक्कर हो गया। दूसरे दल का चलते चुनाव में मुंह काला हो गया। अब बगैर शोर-शराबे के इस चुनावी सन्नाटे के 48 घंटे और शेष हैं।

बस… अब 48 घंटे शेष हैं इंदौर के इतिहास के सबसे सुस्त, नीरस व उत्साहविहीन चुनाव के मुकम्मल होने में। उत्सवप्रिय इस शहर ने आज तक ऐसा चुनाव देखा ही नहीं, जबकि यह देश की सबसे बड़ी पंचायत, यानी लोकसभा का चुनाव था, लेकिन ये गांव-खेड़े में होने वाले पंचायत के चुनाव से भी गया गुजरा साबित हुआ। न डंडे, न झंडे। न बैनर-पोस्टर। न चिलम, न भोंगे। न बड़ा नेता, न कोई सभा। डीजे वाहन तो दूर ऑटो रिक्शा तक से प्रचार नहीं। न जमीन पर होड़-जोड़, न भोजन-भंडारे। बस, चुनाव के नाम पर जुबानी जंग, मुंहजोरी। न तर्क, न वितर्क। केवल आरोप-प्रत्यारोप। ऐसे ही ये बचे 48 घंटे भी गुजर जाएंगे और मुकम्मल हो जाएगा प्रदेश की राजनीतिक राजधानी इंदौर का ये बड़ा चुनाव।

जिस शहर में सबसे ज्यादा राजनीतिक हलचल होती है, उस इंदौर में सांसद का चुनाव ऐसा होगा किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। भाजपा तो 400 पार के नारे पर सवार होकर बड़ी बेसब्री से इस चुनाव का इंतजार कर रही थी। राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, महिला आरक्षण जैसे तमगों के साथ कमलदल में तो उत्सव जैसा माहौल पसरा हुआ था। ‘मोदी की हैट्रिक’ और विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद भाजपा का उत्साह तो कुलांचें मार रहा था।

ऐसे में दूसरे दल के नेताओं के भाजपा में शुरू हुए प्रवेश के खटकरम ने तो वक्त से पहले ही कमलदल को विजयी बना दिया। ऐसे में कमलदल खेमे में बड़ी शिद्दत से चुनाव का इंतजार था। कांग्रेस जरूर डरी-सहमी थी। विधानसभा चुनाव की पड़ी मार और पार्टी नेताओं के एक के बाद एक भाजपा में प्रवेश ने उसका बचा मनोबल भी जमींदोज कर दिया था। बावजूद इसके पार्टी कमजोर चुनौती के साथ ही सही, चुनाव मैदान में डटी हुई थी।

सत्ता सुंदरी ठगी रह गई, दूल्हा ‘पड़ोसन’ संग भागा
कांग्रेस का हाल इस चुनाव में सबसे बुरा हुआ। पार्टी की जो दुर्गति इस बार हुई, ऐसी इस शहर में आजादी के बाद से अब तक नहीं हुई थी। पार्टी का हाल चलते चुनाव में ऐसा हो गया कि वह न सिर्फ प्रदेश, बल्कि देशभर में हंसी की पात्र बन गई। पार्टीसत्ता सुंदरी का वरण करने निकली थी। दूल्हा मिल नहीं रहा था।

बमुश्किल वर मिला और उसे नामांकन पर्चे के संग घोड़ी पर चढ़ाया गया। घोड़ी चढ़ा चुनावी दूल्हा बगैर चुनावी फेरे पड़े लोकसभा के मंडप से भाग खड़ा हुआ। सत्ता सुंदरी ठगी-सी खड़ी रह गई और उसको वरण करने आ रहा दूल्हा ‘पड़ोसन’ के साथ फरार हो गया। कांग्रेस के लिए चलते चुनाव में ये एक तरह से ‘सुहाग उजड़ने’ की तरह था। पार्टीका मुंह काला हो गया, वैसे ही जैसे लग्न मंडप से दुल्हन के अचानक भाग जाने पर किसी परिजन, परिवार का होता है। शर्मसार कांग्रेस अब नोटा की ओट लेकर मुंह छिपाने का विफल प्रयास कर रही है। नोटा के साथ का ये प्रयास भी एक तरह से ‘घर का पूत कुंवारा डोले, पड़ोसी के फेरे’ की तरह ही है।

रोड शो के जरिये गर्मी भरने की आखिरी कोशिश आज
सुस्त व नीरस चुनाव में प्रचार के अंतिम दिन सीएम के रोड शो के जरिये चुनावी गर्मी भरने की आखिरी कोशिश इंदौर में हो रही है। ये रोड शो आज यानी 11 मई को दोपहर बाद शुरू होगा। केंद्र होगा पुराना इंदौर का वो हिस्सा, जो भाजपाई हलकों में ‘अयोध्या’ कहलाता है। शहर के मध्य क्षेत्र में सीएम डॉ. मोहन यादव जीप में सवार हो वोटों की गुहार लगाने निकलेंगे। प्रचार के आखिरी दिन इस हिस्से में पार्टी का दमखम दिखाने का ये ‘पुराना टोटका’ है। पार्टी का ऐसा मानना रहा है कि अंतिम दिन प्रचार शहर के उन बाजारों में हो, जो शहर ही नहीं देश की शान हैं।

लिहाजा मुख्यमंत्री आज सराफा, सीतलामाता बाजार, नृसिंह बाजार, राजवाड़ा, मारोठिया बाजार जैसे इलाकों में रोड शो करेंगे। जवाहर मार्ग व एमजी रोड का खजूरी बाजार, गौराकुंड वाला हिस्सा भी इसका गवाह बनेगा। दोपहर बाद मध्य क्षेत्र में भाजपाई माहौल बनाने की इस आखिरी कोशिश को कितना बल मिलता है, शाम 5 बजे तक साफ हो जाएगा।

“भाई’ का ‘धोबी पछाड़’ सांई की ‘कंगाली’
भाजपाई खेमे के हाल तो बड़े ही विचित्र रहे इस बार। जीत की 100 फीसदी गारंटी के साथ चुनाव की शुरुआत हुई, लेकिन उम्मीदवार की घोषणा होते ही पार्टी में एक तरह से नाउम्मीदी छा गई। पार्टी के नेता तो दूर कार्यकर्ता भी नहीं चाहते थे कि ‘सांई’ रिपीट हो। न मातृसंस्था की मंशा थी। तभी तो भाई ने आत्मविश्वास के साथ एक मंच से सांई का टिकट ही काट दिया था।

वैसे भी सांई का न कोई बेहतरीन ट्रेक रिकार्ड था कि वे दूसरी बार टिकट के हकदार बने। लेकिन जोड़-तोड़, जमावट में माहिर हो चले सांई को पूर्व में की गई ‘साधना’ काम आ गई और वे दोनों जेब में हाथ डाल शान से टिकट ले आए। कमजोर चुनौती के चलते जीत के दावे आठ लाख तक जाने लगे ही थे कि ‘भाई’ ने चुनावी अखाड़े में ऐसा ‘धोबी पछाड़’ दांव मारा कि कांग्रेस तो चारों खाने चित हुई ही, सांई को भी दिन में तारे नजर आ गए। कहां तो वे बड़ी जीत के बाद ‘पोमाने’ के सपने देख रहे थे और बिरादरी के दम पर मंत्री बनने की उम्मीदें लगाए हुए थे और कहां अब उनकी जीत ही गिनती में नहीं आने की परिस्थिति।

‘भाई’ ने तो शीर्ष नेतृत्व की मंशा को पूर्ण कर दिया, लेकिन ‘सांई’ उसी दिन से ‘कोप भवन’ में प्रवेश कर गए और स्वयं को पार्टी की एक बड़ी बैठक में ‘कंगाल’ घोषित कर दिया। अब भाजपाई खेमे में इस चुनाव में दो ही चर्चे शेष रह गए हैं। एक भाई का धोबी पछाड़ और दूसरी ‘सांई’ की कंगाली।

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