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महंगाई पिछले 13 महीने के शीर्ष स्तर पर,जनता परेशान, कंपनियां मालामाल

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  • सनत जैन

थोक महंगाई पिछले 13 महीने के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई है। पिछले महीने के मुकाबले थोक महंगाई तीन गुना बढ़ गई है। वाणिज्य मंत्रालय ने मंगलवार को जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार पिछले बार की तुलना में थोक महंगाई की दर 1.26 फ़ीसदी बढ़ गई है। मार्च के महीने में यह 0.53 फ़ीसदी थी। पिछले 1 महीने में महंगाई की दर 0.79 फ़ीसदी बढ़ी है। पिछले 13 महीनो में महंगाई का यह सबसे उच्चतम स्तर है। खाद्य पदार्थों की महंगाई 4.65 फ़ीसदी से बढ़कर 5.32 फ़ीसदी हो गई है। रोजाना उपयोग में आने वाली खाद्य पदार्थ, तेल साबुन एवं रोजमर्रा के समान की कीमत 4.1 फीसदी से बढ़कर 5.1 फ़ीसदी पर पहुंच गई हैं। खाने-पीने के उत्पाद की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। अप्रैल के महीने में प्याज की कीमतें 59.5 फ़ीसदी बढ़ गई है। आलू के थोक एवं फुटकर भाव बढ़ते ही जा रहे हैं। खाद्य पदार्थ और रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमत लगातार बढ़ रही है। इस कारण जनता महंगाई की मार से परेशान है। वहीं कंपनियां मालामाल हो रही हैं। सरकार कहती है, कि खुदरा महंगाई दर में नरमी आ रही है। जब थोक बाजार भाव में लगातार महंगाई बढ़ रही है तब खुदरा कीमतें कैसे कम होंगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। उत्पादक कंपनियां महंगाई बढ़ने पर उत्पाद का वजन घटाकर पैकेट की कीमत उतनी ही रखती हैं, जिस कारण लगता है, कि खुदरा महंगाई नहीं बढ़ रही है। लेकिन उपभोक्ता के पास उसी कीमत पर कम वजन का समान पहुंचता है। पैसे ज्यादा लगते हैं और वस्तु कम मात्रा में मिलती है। किसानों का भी यही रोना है। खाद की बोरी में वजन कम हो गया, लेकिन कीमत उतनी ही है। महंगाई बढ़ने के बाद कंपनियों की कमाई और भी बढ़ जाती है। जनता परेशान होती रहती है। दूध-दही से लेकर हर खाद्य पदार्थ के रेट लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।
सरकार का प्रचार तंत्र हमेशा जनता को यह बताने की कोशिश करता है, कि खुदरा महंगाई दर नहीं बढ़ रही है। पूंजीवाद के इस युग में पूंजीवादियों ने इसका नया रास्ता निकाल लिया है। पैकेट बंद उत्पाद की कीमत उतनी ही रखी जा रही है, लेकिन उसका वजन लगातार घटाया जा रहा है। इस कारण उपभोक्ताओं को माल कम मिलता है, और उपभोक्ता को कीमत वजन की तुलना में ज्यादा चुकाना पड़ती है। महंगाई बढ़ने से सरकार की कमाई तेजी के साथ बढ़ रही है। महंगाई बढ़ाने में सरकार का भी बहुत बड़ा योगदान है। सरकार की जीएसटी की आय लगातार बढ़ती जा रही है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से सरकार की आय निरंतर बढ़ रही है। जो भी टैक्स लगता है, वह वस्तु की कीमत पर लगता है। महंगाई बढ़ने से सरकार के सभी विभागों की आय कर के रूप में लगातार बढ़ती ही जा रही है। जीएसटी में रिकॉर्ड तोड़ वसूली सरकार कर रही है। गरीब हो या अमीर सभी को जीएसटी में 12 से 28 फीसदी तक टेक्स देना पड़ रहा है। गरीबों की संख्या ज्यादा है। गरीबी ही सबसे ज्यादा टैक्स देता है। गरीब और मध्यम वर्ग इस महंगाई से सबसे ज्यादा परेशान है। इसका सही फायदा कंपनियों और सरकार को हो रहा है। महंगाई बढ़ने से इन्हीं दोनों को सबसे ज्यादा फायदा होता है। हर कंपनी का तिमाही और वार्षिक मुनाफा पिछले वर्षों की तुलना में बढ़ता जाता है। लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग कर्ज के बोझ से दबता जा रहा है। गरीब और मध्यम वर्ग की आय नहीं बढ़ती है। उसे अपने खर्च को पूरा करने के लिए समान पर कटौती करना पड़ती है। लोगों को पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है, जिसके कारण बीमारी का शिकार भी होना पड़ रहा है। महंगाई बढ़ने से सरकार की कमाई निरंतर बढ़ रही है। सरकार ज्यादा से ज्यादा राजस्व प्राप्त करने के लिए महंगाई के प्रति आंख मूंदकर बैठी हुई है। लोकसभा का चुनाव चल रहा है। सरकार को इस बात की भी चिंता नहीं है, बढ़ती हुई महंगाई से कहीं मतदाता नाराज ना हो जाए। जिस तरह के हालात वर्तमान में बन गए हैं, वह गरीब, निम्न एवं मध्यम वर्ग के लिए काफी दुखदाई साबित हो रहे हैं। सरकार को समय रहते महंगाई को नियंत्रित करने की दशा में ठोस उपाय करने चाहिए। सरकार को अपने खर्च को नियंत्रित रखने की जरूरत है। महंगाई आउट ऑफ कंट्रोल होने से कभी भी विस्फोटक स्थिति बन सकती है। सरकार को इस दिशा में ठोस प्रयास करने चाहिए।

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