हरनाम सिंह
“अंग्रेज दंड देते थे, हम न्याय देंगे” यह बात देश के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने संसद में कही थी। वे 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में “भारतीय न्याय संहिता- 2023” ( बी एन एस ) अधिनियम पेश कर रहे थे। आलोचकों के अनुसार यह बिल कानून मंत्री को पेश करना था ना कि गृहमंत्री को। लेकिन किसे याद है देश का कानून मंत्री कौन है ? विधि विशेषज्ञों के अनुसार नए कानून को लाने का उद्देश्य ब्रिटिश काल के उपनिवेशवादी कानून से मुक्ति दिलाना नहीं अपितु राज्य और पुलिस की शक्तियों को विस्तार देना है, असहमति की आवाज को दबाना है। चुनावी प्रचार के शोर में भारतीय न्याय संहिता पर कहीं चर्चा नहीं है। एक जुलाई के बाद अगर सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ तो, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार से असहमति विध्वंस के रूप में परिभाषित होगी, और देश के नागरिक संविधान प्रदत्त अधिकारों से वंचित हो जाएंगे।
#भारतीय न्याय संहिता
नई न्याय संहिता लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर पश्चात 25 दिसंबर 2023 को राजपत्र में प्रकाशित हुई थी। यह संहिता अब तक देश में लागू (आईपीसी) भारतीय दंड संहिता, (सीआरपीसी) आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेगी। यह नया कानून विशुद्ध रूप से भारतीय जनता पार्टी की और विचारधारा के अनुरूप है। संसद में शोरगुल के बीच बिना किसी बहस के पारित इन नए कानून पर सुझाए गए 50 संशोधन में से एक भी स्वीकार नहीं किया गया था।
इस नए कानून में जो बड़े परिवर्तन किए गए हैं उनमें आत्महत्या के प्रयास को दंड के दायरे से बाहर किया गया है। फर्जी और भ्रामक खबरें फैलाने वालों को दंडित करने का प्रावधान है। समलैंगिकता को पूरी तरह अपराध बनाया गया है राष्ट्रपति और राज्यपाल को धमकाना भी दंडनीय अपराध होगा।
#आत्महत्या का प्रयास
बीएनएस के तहत अब आत्महत्या करने के प्रयास पर अब कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा। लेकिन धारा 224 के अनुसार किसी लोक सेवक, अधिकारी को कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के इरादे से आत्महत्या की कोशिश को अपराध माना गया है। ऐसा करने वाले के लिए एक साल की सजा का प्रावधान रखा गया है। आलोचकों के अनुसार यह स्थिति इसलिए पैदा होती है कि अधिकारी पीड़ित की व्यथा पर ध्यान ही नहीं देते। उनकी संवेदनहीनता पीड़ित को आत्महत्या के लिए प्रेरित करती है। इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था।
#समलैंगिक संबंध
न्याय संहिता में पुरानी आईपीसी की विवादित धारा 377 को पूरी तरह से हटा दिया गया है। इस धारा में यौन संबंध बनाने पर उम्र कैद का प्रावधान रखा गया था। वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध मानने से इनकार किया था। वर्तमान नए कानून में पुरुषों, महिलाओं अथवा अन्य जेंडर के बीच सहमति बिना सहमति के हर तरह के समलैंगिक यौन संबंधों को गैर कानूनी बनाया गया है।
#राष्ट्रपति राज्यपाल को धमकाना
नए कानूनी प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति या राज्यपाल को डरा धमका कर उन्हें काम करने से रोकना अपराध माना गया है। लोग सवाल कर रहे हैं की सर्वोच्च सुरक्षा प्राप्त राष्ट्रपति और राज्यपाल को कौन डरा और धमका सकता है ? लेकिन नए कानून में यह प्रावधान संभवत: इसलिए किया गया है कि जिन राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें हैं वहां राज्यपाल केंद्र के निर्देशों पर राज्य की निर्वाचित सरकार के खिलाफ कार्यवाही कर सकें। और राज्य सरकारें ऐसे राज्यपालों का विरोध भी न कर सके। इसलिए राज्यपाल का विरोध करना अपराध बनाया गया है।
#असहमति पर अंकुश
पुराने कानून की धारा 124 (ए) के अनुसार बोले गए, लिखे गए शब्दों, दृश्यों, संकेतों द्वारा सरकार के प्रति असंतोष प्रकट करना देशद्रोह माना गया था। नए कानून में देशद्रोह के स्थान पर “विध्वंसक गतिविधि” शब्द का उपयोग किया गया है। नए कानून की धारा 150 के अनुसार अलगाव या सशस्त्र विद्रोह,विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करने के प्रयासों की भावनाओं को प्रोत्साहित करने को देश की संप्रभुता और अखंडता के खतरे से जोड़ा गया है। फर्जी और भ्रामक खबरें फैलाने वालों को 3 साल की सजा जुर्माना अथवा दोनों से दंडित करने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन कानून में यह नहीं बताया गया है की विध्वंसक अलगाववादी गतिविधियों की भावनाएं क्या है ?
आलोचक इसे असहमति का गला दबाने का कानून मानते हैं। अमूमन ऐसे मामलों में आरोपी को सजा नहीं होती। लंबी अवधि तक हिरासत में रखना ही सजा होती है। वर्तमान सरकार जिस तरह से यूएपीए कानून का उपयोग असहमति रखने वाले विद्यार्थियों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर कर रही है। नई सरकार ऐसे ही नए दमनकारी कानून से लैस होगी।
विश्लेषकों के अनुसार सरकार किसी भी खबर को फर्जी भ्रामक बताकर अखबारों, समाचार चैनलों ब्लॉगर्स की आवाज का गला दबा सकती है। वर्तमान में सरकार की सांप्रदायिक फासीवादी नीतियों का विभिन्न माध्यम से विरोध किया जा रहा है। हालांकि अधिकांश संचार साधनों पर सरकार और भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। बावजूद इसके कई युटयुबर्स रवीश कुमार, अजीत अंजुम, ध्रुव राठी, वायर जैसे समाचार साधन सक्रिय हैं। सरकार भ्रामक, फर्जी, विध्वंसक, अलगाववादी का आरोप लगाकर सोशल मीडिया के इन प्लेटफार्मों का मुंह बंद करना चाहती है।
नए कानून में पुलिस को दमन के असीमित अधिकार दिए गए हैं। वर्तमान में भी पुलिस जिस तरह से कानून के दायरे के बाहर जाकर एनकाउंटर करती है, आरोपियों के जुलूस निकलती है, बुलडोजरों से घर गिराने को न्याय बताती है। नए कानून में शासको की मंशा के अनुरूप पुलिस को खुलकर खेलने का अवसर मिल जाएगा।
पुराने कानून में सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की खंडपीठ द्वारा जनहित में पुलिस अधिकारियों को कुछ स्थाई निर्देश दिए गए थे। जिसे “डीके वासु गाइडलाइंस” के नाम से जाना जाता है। इन प्रावधानों को प्रत्येक थाने में एक बोर्ड पर प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है। नए कानून में इस अनिवार्यता को भी हटा दिया गया है। नए कानून में किसी भी आरोपी को मेडिकल बोर्ड के सामने प्रस्तुत करने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। पुलिस हिरासत में रखने की अवधि बढ़ा दी गई है।
#विदेश में भी नहीं हो सकता विरोध
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत से कई नेताओं ने विदेशों में जाकर भारत की आजादी की आवाज को बुलंद किया था। सुभाष चंद्र बोस, राजा महेंद्र प्रताप सिंह से लेकर अनगिनत नाम है। यही नहीं जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था तब जनसंघ (भाजपा )के कई नेताओं ने विदेशों में जाकर भारत सरकार के विरुद्ध आंदोलन का आह्वान किया था। जनसंघ का नया स्वरूप भाजपा की सरकार विदेशों में जाकर सरकार का विरोध करने को संज्ञेय अपराध बता रही है। देश के बाहर भी सरकार की नीतियों की आलोचना नहीं की जा सकेगी। सरकार ऐसे आरोपी के खिलाफ उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चला कर दंडित करेगी। फिर अपराधी घोषित कर संबंधित देश से प्रत्यार्पण की मांग करेगी।
नए कानून के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी सरकारी कर्मचारियों द्वारा जारी समंस को लेने से इनकार नहीं कर सकता। समंस न लेने को भी अपराध बनाया गया है।इस पर तीन माह के कारावास की सजा का प्रावधान रखा गया है।