वर्षा भम्भाणी मिर्जा
इंदौर-जयपुर यात्रा के लिए रात को चलने वाली इंटरसिटी बेहतरीन ट्रेन है। हफ्ते में केवल दो दिन चलती है। रात को बैठो और सुबह शहर आ जाता है। बीते शनिवार मेरी बर्थ के सामने एक सज्जन थे। टीटीइ के आने पर उन्होंने परिचय में अपना पूरा नाम बताया। ललाट पर तिलक था और सिर पर चोटी। रात भर के खर्राटों के बाद सुबह वे जागे और जयपुर से कोई दो सब स्टेशन पहले बोलने गुस्से में बोलने लगे–” बेकार शहर है ये। पुलिस सुनती नी यहां की। एमपी में ऐसा नी है। सरकार सुनती है हमारी। लोगों ने झूठी शान दिखा कर मेरे बेटे की शादी यहां करा दी। ग़लत कामों में लिप्त है परिवार।” किसी ने कहा –”यहाँ भी आप ही की सरकार है, क्या दिक्कत है।” हां है न पर सुनवाई नी है , राजीनामा करने जा रहा हूं।” कहकर सज्जन गुस्से में ही उतर गए। पड़ोस में एक राजस्थानी परिवार बैठा हुआ था, उन्होंने सज्जन के जाते ही तकियों की और इशारा किया जो एक, दो नहीं पूरे तीन थे। रेलवे एक बर्थ पर एक तकिया देता है। बातों –बातों में राजस्थान के लोकसभा चुनाव की चर्चा भी चली। यहां काफी लोग इस बार इंडिया गठबंधन को 25 में से पांच से सात सीटें दे रहें हैं। इस परिवार के एक सदस्य की राय ज़रा अलग थी। वे कह रहें थे -“इस बार तो आधी–आधी मानो। कड़ी टक्कर है।” तपाक से एक दूसरी टिप्पणी आई पांच सीटें भी आ जाएं इंडिया गठबंधन को तो बहुत बड़ी बात होगी , लोग केंद्र में मोदी को ही चाहते हैं। ”
वैसे सच है कि देश के सबसे लंबे लोकसभा चुनाव का दंगल अब जाकर जमने लगा है। ज्यों-ज्यों मतदान के चरण आगे बढ़ रहें हैं चुनाव का लुत्फ़ भी बढ़ रहा है। पांचवा चरण जिसमें उत्तरप्रदेश की रायबरेली,अमेठी और लखनऊ सीट शामिल थीं , वहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को छोड़ दिया जाए तो शेष दो की लड़ाई रोचक हो गई है। कांग्रेस को मास्टर स्ट्रोक लगाने में कोई महारत हासिल नहीं है लेकिन अंतिम समय में राहुल गांधी को अमेठी छोड़ रायबरेली से लड़ाने का फ़ैसला ऐसा ही था। फिर सोनिया गांधी की मतदाताओं से मार्मिक अपील कि अपना बेटा आपको सौंप रही हूँ, इसके बाद तो चुनाव अमेठी जैसा नहीं रहा। बात चुनावी लुत्फ़ की करें तो शुरू में इक तरफ़ा और 400 पार के नैरेटिव से चला चुनाव अब दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस के शपथ पत्र की चर्चा के बाद हुए ध्रुवीकरण को प्रचार में लाते हुए प्रधानमंत्री ने घुसपैठिये ,ज़्यादा बच्चे और मंगलसूत्र छीनने का ज़िक्र तो पहले चरण के बाद ही कर दिया था।पांचवें चरण की समाप्ति के बाद बुधवार को उत्तर प्रदेश के बस्ती में हुई चुनावी सभा में कह दिया कि मैं बहुत से अच्छे काम करने वाला हूँ और आप सब भाजपा को वोट देकर पुण्य कमाइए। सपा-कांग्रेस को वोट देकर अपना वोट व्यर्थ मत गवाइये। मैं 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना खिला रहा हूं ,यह पुण्य भी आपको तब ही लगेगा जब आप भाजपा को वोट देंगे। किसी ने तंज़ कसा साहेब को मतपत्र पर भाजपा और उनके निशान की कोई ज़रूरत ही नहीं है केवल उनका नाम ही लिख देना काफ़ी था।
इधर राहुल गांधी ने भी दिल्ली में चांदनी चौक की अपनी सभा में अजीब बात कह दी। उन्होंने नरेंद्र मोदी को लेकर कहा कि आप तो वेजिटेरियन है और आप तो कहते हो कि बचपन में आपके घर मुस्लिम परिवारों से खाना आता था तो क्या आप शाकाहारी नहीं हो ,आप तो सभी चैनलों पर यही कहते हो कि मैं वेजिटेरियन हूं । अब राहुल गांधी को कौन समझाए कि भई हरेक व्यंजन में कोई गोश्त के टुकड़े नहीं पड़ते हैं। पूरे देश में त्योहारों पर भोजन का आदान -प्रदान होता है। इससे पहले भी वे कह चुके हैं कि हमें शक्ति से लड़ना है, जबकि कहना वे आसुरी शक्ति चाहते थे। वैसे चुनाव खटाखट अंदाज़ में आगे बढ़ रहा है और जनता को फटाफट नतीजों का इंतज़ार है जो कि 4 जून को आएंगे। प्रधानमंत्री ने राहुल को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि जो दिन रात अडानी-अंबानी का नाम लेते नहीं थकते थे ,उन्होंने अचानक से नाम रटना बंद क्यों कर दिया ? क्या उनके पास टेम्पो भर-भर कर पैसे पहुंच रहे हैं ? राहुल का पलटवार था कि आपको कैसे पता कि अडानी-अंबानी टेंपो में भरकर पैसे भेजते हैं और अगर ऐसा है तो क्यों नहीं सीबीआई, ईडी लगा कर पता कर लेते। एक-दुसरे की पिच पर खेलते इन नेताओं ने कई ढीली गेंद भी डाली हैं। वैसे यह बयान हैरान कर देने वाला था कि आखिर इन उद्योगपतियों को पैसा पहुंचाने वाला बताने की आवश्यकता प्रधानमंत्री को क्यों कर हुई ?
रुख हवाओं का बदला हुआ दिख रहा है क्योंकि उन चुनावी विश्लेषकों जिन्होंने पहले भाजपा को अच्छी-खासी सीटें दे दी थी, अब लेख लिख-लिख कर अपने आंकड़ों में सुधार कर रहे हैं। वे लिखते हैं -भाजपा ने बिहार और महाराष्ट्र में गलती कर दी । एकनाथ शिंदे और नीतीश कुमार की विश्वसनीयता जनता में कम है। ऐसे में महाराष्ट्र में शिंदे को 15 और बिहार में नीतीश को 16 सीटें नहीं देनी थीं। दूसरी गलती जो पार्टी ने की है वह यह कि प्रचार को विकास केंद्रित रिकॉर्ड पर नहीं रखते हुए पहले ध्रुवीकरण और फिर बाद में राहुल गांधी पर केंद्रित हो गया। सरकार ने बुनियादी ढांचे और डिजिटल प्रौद्योगिकी से लेकर स्वास्थ्य बीमा और खाद्य सुरक्षा में बेहतर काम किया है, उसका ज़िक्र होना था। राहुल गांधी पर केंद्रित प्रचार ने उन्हें प्रमुख विपक्षी नेता बना दिया। सच है कि प्रधानमंत्री हर रैली में उन्हें शहज़ादा कहते हुए उन्हीं के मुद्दों पर आ जाते हैं। ऐसे में राहुल गांधी के हौसले बुलंद हैं और वे कहने लगे हैं आपको प्रधानमंत्री से जो कहलवाना हो मुझे बोल दो, मैं उनसे बुलवा दूंगा। मैंने परिवार की हर महिला के खाते में सालाना एक लाख रूपए फटाफट भेजने की बात कही उन्होंने भी अपने भाषण में फटाफट का ज़िक्र करते दिया। दरअसल प्रधानमंत्री ने कहा था कि अब रायबरेली की जनता भी खटाखट खटाखट कांग्रेस के नेताओं को भेजेगी घर और 4 जून के बाद ये विदेश भाग जाएंगे ।
एक बात जो भारतीय जनता पार्टी के लोग कर रहे हैं, वह है प्रधानमंत्री को भगवान के समकक्ष खड़ा करना। क्या पार्टी उन बाबाओं से प्रभावित है जो गरीब जनता के बीच इस तरह पेश आते हैं जैसे उनके पास उनके दुःख हरने की कोई जादुई चाबी हो।वैसे प्रधानमंत्री चैनलों को दिए साक्षात्कारों में कह चुके हैं कि उन्हें भगवान ने भेजा है और उनकी ऊर्जा बायोलॉजिकल नहीं है।आशय अवतार के समकक्ष बताने का हो सकता है लेकिन भारतवर्ष के प्रधानमंत्री का पद यूं भी बहुत शक्तिशाली है, इसे किसी भी अवतार रूप में आने की कोई ज़रुरत नहीं। भाजपा प्रवक्ता और पुरी से प्रत्याशी संविद पात्रा ने भी फिर ऐसा कुछ जिस पर तीखी प्रतिक्रिया आई। पात्रा ने कहा -” भगवान जगन्नाथ मोदी जी के भक्त है।”इस वक्तव्य पर उड़ीसा के मुख्यमंत्री और राहुल गांधी ने जमकर हमला बोला। राहुल गांधी ने कहा -जब प्रधानमंत्री खुद को शहंशाह और दरबारी भगवान मानने लगें तो मतलब साफ़ है कि लंका का पतन नज़दीक है। ” प्रचार में देखा गया है कि कई मौकों पर भाजपा के लोग उन्हें अवतार बताने की कोशिश करते हैं। एक और दिक्कत यह भी है कि भले ही अकाली दल ,बीजू जनता दल और बहुजन समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं है लेकिन वे भाजपा को आड़े हाथों लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते। ज़ाहिर है महाराष्ट्र और बिहार में पार्टी की गलती को विश्लेषक मान रहे हैं लेकिन शेष जगहों पर भाजपा अकेली ही लड़ती दिखाई देती है। टेक मुग़ल इलोन मस्क का भारत यात्रा रद्द करना,विदेशी पोर्टफोलियो निर्देशकों द्वारा अपने शेयर बेचने और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरकार को बड़ी राशि देने भी को भी सरकार के लगातार तीसरी बार बनने न बनने से जोड़कर देखा जा रहा है। समीकरण फटाफट बदल रहे हैं। कुछ तो यह भी कहने लगे हैं कि इन चुनावों में भाजपा की मातृ संस्था ने किनारा कर लिया है। चुनाव अंतिम चरण में है। कोई रणछोड़ भी नहीं है। देश का हाल इंदौर और सूरत-सा नहीं है जहां विपक्ष के प्रत्याशियों का बोरिया-बिस्तर ही गोल हो गया।