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मेरे विदेश प्रवास की कुछ अनुभूतियाँ और स्मृतियां 

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         डॉ. विकास मानव 

तब मैं तीन महाद्वीपों में रहता था.  भारत जो मेरी जन्मस्थली है. अमेरिका जहां कई मित्र हैं. अफ्रीका जहां से मैंने अपने स्प्रिचुअल चिकित्सीय कार्य का प्रयोग आरंभ किया.

    प्राया हर 6 महीने बाद में 2 हफ्ते की छुट्टियों के लिए भारत होकर अमेरिका जाता. फिर वापस नाइजीरिया आकर अपने काम में लग जाता. करीब-करीब पूरी दुनिया का चक्कर लग जाता लेकिन सही मायने में अगर मैं कहूं तो यह यात्रा बहुत उबाऊ होती. इसलिए कि हिंदुस्तान से अमेरिका के पश्चिमी छोर पहुंचने में करीब करीब 24 घंटे लग जाते हैं और करीब 20 घंटे की हवाई यात्रा में आपका हाल बेहाल हो जाता है. 

    क्या करें ट्रेन तो चलती नहीं है अगर चलती भी होती तो भी हवाई यात्रा से ही पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने में आप इतनी जल्दी जा सकते है.

1990 मेँ मुझे इराक में बतौर ट्रेनर नौकरी का नियुक्ति पत्र आया. मैं खुश था. नई नई प्रेमिका लाइफ में अटैच हुई थी  लेकिन तब आर्थिक विपन्नताओं से जूझ रहा था इसलिये ये एक खुशखबरी थी।

    दिल्ली इराकी दूतावास में वीसा के लिये गया तो एक भद्दी सी पंजाबी औरत रिसेप्शन पर बैठी हुई थी और उसने मुझसे बड़ी ही बद्दतमीजी से मेरा नियुक्ति पत्र देखने के बाद कहा कि we dont need indian doctors in iraq, जैसे कि वही सद्दाम हुसैन हो। यद्दपि मेरा सब काम हो गया बस कुछ ही दिनों में वहाँ जाना था कि ईरान इराक युद्ध छिड़ गया और फिर नही गया लेकिन उस औरत के शब्द मुझे आज भी याद हैं। लोग इतने संवेदनहीन एवं असभ्य कैसे हो सकते हैं।

      1995 में जब पहली बार नाइजीरिया से प्रेमिका सहित भारत छुट्टी के  लिये जा रहा था तो एक हफ्ते लंदन में रुका. उस समय हरेक के दिल में ये तमन्ना रहती थी कि ब्रिटेन और अमेरिका  घूमने के लिये जरूर जाया जाय  आम भारतीय का वेतन इतना कम होता था कि विदेश घूमना उसके बस की बात नही थी. मुझे मेरे मिशन की तरफ से एयर टिकट हर दो साल में मिलता था तीन लोगों के लिये इसलिये लंदन यात्रा का मुझ पर कोई खास आर्थिक भार नही पड़ा।

    लंदन ट्यूब(अंडर ग्राउंड ,मेट्रो),मैडम तुसाद,चिड़ियाघर,साउथ हाल  आदि एक नया अनुभव था। मेट्रो केवल 5 सेकंड के लिए रुकती थी. सबकुछ इतना व्यवस्थित था कि कोई परेशानी नही हुई। मैडम तुसाद में कई हस्तियों के पुतले एक नई चीज थी वहां.

   एक भारतीय युवती मिली और बोली कि इतने दिनों बाद किसी से हिंदी में बात करके बहुत अच्छा लग रहा है. हीथ्रो हवाई अड्डे पर पंजाब से आई हुई कई माताएं और बहिने झाड़ू पोंछा लगाते हुए दिखीं। होटल का खाना खाते खाते मन भर गया था तो आखिरी दिन प्रेयसी जी ने किचेन में आलू फ्राई करके खिलाये. उनकी खुशबू और स्वाद मुझे आज भी याद है.

   आज ब्रिटेन अमेरिका,कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय  बहुत सम्पन्न हो गए हैं और यह जानकर अच्छा लगता है। आज अमेरिका में भारतीय समुदाय की सबसे अधिक per capita income है जो कि पहले यहूदियों की होती थी.

     1996 में परास्नातक उपरांत जब पहली बार नाइजीरिया आया तो मेरे शहर में खाने पीने की सभी चीजें नही मिलती थीं. आटे दाल के लिये काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी. इसलिए जब मैं पहली बार अपने पासपोर्ट के काम के लिये लेगोस गया तो वहां से एक सिंधी स्टोर से अरहर की दाल के काफी पैकेट ले आया जो उस समय बहुत मंहगे थे. बाद में पता चला कि यहाँ साबुत अरहर मिलती है और उसी को तुड़वा (split) कर तूर दाल बन जाती है जिसकी कीमत 15 गुनी कम थी।

   गेंहू और उसका आटा के लिये काफी  मशक्कत करनी पड़ती थी. नाइजीरिया तथा अन्य अफ्रीकी देशों में हमारे सिंधी और गुजराती भाई पिछले कई दशकों से व्यापार कर रहे हैं. बहुत छोटे स्तर पर काम शुरू किया और आज वो इतने बड़े हो गए हैं जिनकी हम और आप कल्पना नही कर सकते.

     1997 में मुझे स्विस दूतावास से ट्रांजिट वीसा लेने के लिये एक दिन लेगोस रुकना पड़ा तो सोचा क्यों न यहाँ का प्रसिद्ध बारबीच देख लिया जाय.  हमने कभी समुद्र नही देखा था इसलिये मैडम सहित वहाँ पहुंच गए. कार्य दिवस होने के कारण बीच पर कोई सैलानी नही था। एक लड़का हमें फोटो आदि लेने और बीच पर घुमाने के लिये हमारी सहायता करने लगा।

     हमें उसके इरादों का कोई अंदाज नही था। करते करते उसने बहाने से लड़ाई शुरू कर दी. कहने लगा आपने मेरी फ़ोटो क्यों ली. उसके लिये उसने कैमरा छीन लिया और उसकी नज़र मेरी प्रेयसी के बैग पर थी जिसमे काफी पैसा था।

    काफी तू तू में में होती रही. इसी दौरान एक व्यक्ति देवदूत बनके हमारी मदद को आया. फिर वो लड़का भाग गया। मतलब ये कि दुनिया में अगर बुराई है तो अच्छाई भी  है।

     बाद में पता चला कि कुछ अपराधी प्रवित्ति के लोग ,पर्यटकों को अकेला पाकर यहाँ अक्सर लूटपाट करते रहते हैं. इसलिये भैया कभी भी और कहीं भी आप सुनसान जगहों पर नही जाएं।

     नाइजीरिया में एक समय ऐसा आया कि अपहरणों की बाढ़ सी आ गयी थी. विदेशी अपराधियों के लिए एक आसान निशाना थे। करीब 4 साल पहले मैं अपनी कंपनी के ड्राइवर के साथ कभी कभीें रात को पार्टियों में जाया करता था. ये नया चालक था और उस पर संदेह करने का कोई कारण भी नहीं था।

    एक रात 10 बजे मुझे फ़ोन  उसने किया कि उसका एक्सीडेंट हो गया है तो मैंने उसको सॉरी बोला और बजाय मेरे, मैनेजर से संपर्क करने के लिए कहा। सहानभूतिवश यदि में उसकी बताई जगह पर पहुंच जाता तो मेरा अपहरण निश्चित था.

    उसके बाद उसने मुझसे कई बार ये पूंछा कि सर् आप बैंक जाओगे क्या आज।अब मैं उसका मतलब समझ पा रहा था. यदि उसे समय रहते पता चल जाये तो वह अपने सहयोगियों के साथ प्लान बनाकर लूट ले और जरूरत पड़ी तो जान से मार दे. भाग्य से ऐसा नही हुआ क्योंकि मैंने उसे बैंक जाने का सही वक्त नही बताया।

    एक दिन सुबह जब दूसरा चालक मुझे लेने के लिए आया तो उसने बताया कि हमारे एकाउंट्स स्टाफ के साथ डकैती हुई है और ड्राइवर को गोली लगी है। हुआ ये था कि इस ड्राइवर ने अपने कुछ साथियों द्वारा पैसे से भरा बैग छिनवाया। बाद में इसने दिखाने के लिये अपनी जांघ में गोली मारी लेकिन एक जगह कार का एक्सीडेंट होने के कारण उस जगह के लोंगो ने इनका अजीब व्यवहार देखकर सबको पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया।

    इस दौरान यह पूरी तरह अनजान बना रहा लेकिन जब इसके साथियों पुलिस की मार के आगे अपना मुंह खोला तो इसकी हकीकत सामने आई।

    पिछले कई सालों में ऐसा कभी नही हुआ था इसलिये उस पर शक करने की कोई बात नही थी। अगर वो इस बार सफल हो जाता तो संभवतया उसका अगला निशाना मैं होता. खैर ऐसा नही हुआ और प्रभु और अपने शुभचिंतको को धन्यवाद देता हूँ।

बाकी अनुभव फिर कभी.

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