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जल स्रोतों पर गहराता संकट, अंधविश्वास की चपेट में ‘ कथली ‘ नदी 

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 विवेक रंजन सिंह    

पहाड़ी जगहों पर जलस्रोतों की कमी नहीं होती। पूर्वजों ने जलस्रोतों को बहुत ही कायदे से बचाकर रखा। ये जलस्रोत कभी कभी विशाल जल धारा बन जाते हैं तो कभी कभी छोटी मोटी सहायक नदियों के रूप में अनवरत बहते रहते हैं। गर्मी के भयानक मौसम में भी इनमे थोड़ा बहुत जल तो होता ही है। जिनमे कभी जानवर प्यास बुझा लेते हैं तो कभी इंसान। मगर ये जलस्रोत जैसे ही नगरों और इंसानी बस्तियों से गुजरते हैं, मैले हो जाते हैं।

विंध्य और मैकल पर्वत श्रृंखला के बीच बसे मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में नदियों का जाल है। सोन,छोटी महानदी और जोहिला जैसी प्रमुख नदियों के अलावा कई ऐसे जल स्रोत हैं जिनके पानी से न सिर्फ मनुष्यों की प्यास बुझती है अपितु सिंचाई भी की जाती है। मगर आज के समय में कई छोटी छोटी नदियों का अस्तित्व संकट में हैं। बरसात के समय को छोड़ इन नदियों में जल के नाम पर बस एक छोटी पतली सी धारा ही दिखती है और वो भी मैली। इन नदियों में बरसात को छोड़ पानी मिलना मुश्किल हो जाता है। कटनी जिले की नदियों माई और जलअंगार में तो जमा पानी के सिवा कुछ नहीं दिखता। चारों ओर जलसंकट गहरा होता जा रहा है, फिर भी शासन प्रशासन और लोग अपने सामने मर रहे इन जलस्रोतों को बचाने के लिए रत्ती भर भी प्रयास नहीं कर रहे। इंसानों की हद से ज्यादा बढ़ती इच्छाओं ने इन नदियों का गला घोंट कर रख दिया है। जो नदियां तो शहर के बाहर बाहर निकल जाती हैं उन पर अतिक्रमण नहीं होता मगर जो नगरों और कस्बों से गुजरी, उनके गले में फांसी लगना तय है। शहर के कूड़ों और गंदे पानी से पटी नदियों की दशा सिर्फ दयनीय नहीं है बल्कि आने वाले समय के लिए खतरे का संकेत हैं।

उमरिया के चंदिया में एक नदी है ‘ कथली ‘। हालांकि ये कोई बहुत बड़ी नदी नही है मगर इनकी जलधारा का ऐतिहासिक और पौराणिक उल्लेख कई जगहों पर मिलता है। चंदिया से थोड़े दूर बरम बाबा की पठारी से यह नदी एक छोटे से जल स्रोत से निकलती है और फिर चंदिया से होते हुए आगे छोटी महानदी में मिल जाती है। यह नदी बहुत बड़ी लंबाई नहीं तय करती मगर शोध के मुताबिक इसके पानी में गंधक की मात्रा काफी पाई जाती है जिससे चर्मरोग ठीक होते हैं। ये भी कहा जाता है कि पौराणिक आख्यानों में इसे कथली गंगा के नाम से भी जाना जाता है। ये तो हुआ इसका पौराणिक और ऐतिहासिक पक्ष। अब जरा ये भी जान लें कि ये नदी आज के समय में किस हाल में है।

 उमरिया और कटनी की सीमा पर बसे कस्बे चंदिया की कथली नदी बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। वैसे तो चंदिया कई मायनों में ख़ास है। यहां की मिट्टी से बने बर्तन दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं। इसकी मिट्टी से बनी सुराही का पानी फ्रिज जैसा ठंडा होता है। मगर एक अजीबोगरीब खासियत यहां होने वाली झाडफूंक भी है। दूर दूर से लोग यहां झाड़फूंक कराने रात में आते हैं और दिन में नदी स्नान कर चले जाते हैं। नदी की हालत ऐसी है कि जानवर भी मुंह न डाले। मगर अब अंध आस्था है तो है। कहते हैं कि झाडफूंक के बाद इस नाले जैसी नदी में स्नान करने से भूत उतर जाता है। वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बरम बाबा के पास से निकलने वाली इस नदी में दैवीय ताकते हैं। हो सकता है कि आस्था और विज्ञान काफी हद तक एक साथ जुड़े हों। पानी में गंधक की मात्रा होने से चर्मरोग ठीक होने की बात तो मानी जा सकती है मगर ये भूत भगाने की कहानी? मैने इन नदी के किनारे करीब चार किलोमीटर तक की यात्रा की। इसके किनारे चलकर देखा, पानी को देखा। और इसकी हालत देखकर मुझे यही लगा कि झाडफूंक से भूत भले न भागे मगर इतना तो तय है अगर इस पानी में कोई डुबकी लगा ले तो निश्चित इसकी गंध से भूत भाग जाएगा। और शायद यही इसके पीछे का छिपा रहस्य भी हो बाकि सब तो व्यापार के लिए है। ये नहाने तक की भी बात ठीक है मगर उसके आगे के कारनामे तो और हास्यास्पद है।  लोगों का मानना है  कि जिन कपड़ों के स्नान किया जाए उसे इसी नदी में फेंक दिया जाना चाहिए। नदी के आस पास बेहया के बहुत से पेड़ हैं। झुरमुटों से बहती नदी कदम कदम पर मुड़ी है। धारा के नाम पर मैला काला गंदा पानी है। आपको जगह जगह महिलाएं नहाती मिल जाएंगी। किनारों पर शौच की भरमार है। नगर निगम की ओर से थोड़े बहुत स्लोगन लिखे गए हैं कि नदी को गंदा न करें। उनके इस स्लोगन से ही पता चल पाता है कि नाले की शक्ल में बहती ये जलधारा नदी है। ओझा बाबा ओझाई करके हजारों महिलाओं को नदी में नहाने के लिए उतार देते हैं। अंध श्रद्धा का ऐसा नमूना आपको अपने आस पास मिल भी जाएगा। नदी के जीर्णोद्धार और इस पागलपन से मुक्ति का कोई भी उचित कदम नगर निगम द्वारा नहीं दिखता। कई नदियां ऐसे ही ओझा,सोखा और दकियानूसी प्रथाओं के चलते संकट में हैं। इसका जल जिस स्रोत से निकलता है वहां का पानी एकदम कंचन है,मगर जस जस ये आगे बढ़ती है भूत प्रेत की मंडलियां इसे घेर लेती हैं। आगे किसी तरह जोर लगाते खुद को बचाते ये छोटी महानदी में समा जाती है। 

इस नदी का पाट बहुत चौड़ा भी नही हैं। धीरे धीरे जितना है भी वो भी सिमटता जा रहा है। पूरी की पूरी नदी के किनारों पर कपड़ों की भरमार है। इन कपड़ों के सड़ने से पानी तो दूषित होता है, बरसात में ये सब बहकर मुख्य नदियों की कोख में समा जाते हैं। सिंचित भू भागों में भी ये बहकर खेती योग्य जमीन को नुकसान पहुंचाते हैं। चंदिया क्षेत्र के लिए यह नदी भविष्य के लिए अच्छा जलस्रोत हो सकती है। इसके किनारे समतल भू भाग भी हैं जहां खेती होती है। ऐसे में इसके जल को संरक्षित करने तथा उसको इस अंधश्रद्धा से मुक्त करके साफ जलधारा में बदला जा सकता है। इसकी कुल लंबाई दस किलोमीटर से ज्यादा नही हैं मगर जल स्रोत काफी लाभकारी है।नदी में सल्फर की मात्रा अधिक होने से ये उन फसलों के लिए लाभकारी हैं जिनकी वृद्धि और उपज के लिए सल्फर की जरूरत होती है। ये खेती को उपजाऊ बनाने में भी सहायक है। ऐसे में प्रशासन को कथली नदी जैसी अन्य नदियों और जलस्रोतों को अतिक्रमण और अंधविश्वास की जकड़ से छुड़ाकर मानवहित के लिए उपयोगी बनाना होगा। वरना ऐसी छोटी छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझती हुई आंखें मूंद लेंगी और इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएंगी।

विवेक रंजन सिंह 

( छात्र, पत्रकारिता विभाग 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र)

मोबाइल नंबर – 9140586154

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