-डॉ सुनीलम
18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे पर यह लेख लिखे जाने तक किसी को भी बहुमत नहीं मिला है। गिनती जारी है। अभी तक चुनाव आयोग द्वारा जीते हुए उम्मीदवारों को अधिकृत तौर पर जीता हुआ घोषित नहीं किया गया है । अब तक जो नतीजे आए हैं उनके आधार पर कुछ टिप्पणियां लिख रहा हूं ।
*किसानों ने ताकत दिखाई* – संयुक्त किसान मोर्चा ने देश भर में ‘भाजपा को बेनकाब करो, विरोध करो, दंडित करो’ अभियान चलाया था। संयुक्त किसान मोर्चा का अपना कोई उम्मीदवार नहीं था लेकिन अपने अभियान को देश के किसानों तक ले जाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चे से जुड़े किसान संगठनों ने तमाम पर्चे बनाकर बांटे, सोशल मीडिया कैंपेन चलाया, सभाएं और प्रेस कॉन्फ्रेंस की तथा गांव-गांव में किसानों से संपर्क किया। पंजाब में तमाम जिलों में भाजपा के उम्मीदवारों, नेताओं का काले झंडे दिखाकर विरोध किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा को पंजाब में एक भी सीट नहीं मिल सकी । हरियाणा में इस अभियान के फलस्वरुप भाजपा की सरकार होने के बावजूद भी भाजपा को गिनी चुनी सीटों से संतोष करना पड़ा। किसानों के अभियान के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के भाजपा के साथ गठबंधन बनाने के बावजूद मुजफ्फरनगर सहित तमाम सीटें भाजपा हार गई।
किसानों की सबसे बड़ी जीत लखीमपुर खीरी में हुई जहां केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे द्वारा चार किसानों और एक पत्रकार को जीप से कुचलकर मार दिया गया था। किसानों के लिए लखीमपुर खीरी की सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लखीमपुर की सीट भाजपा ने जीत ली थी । इस बार लखीमपुर के किसान मतदाताओं ने अजय मिश्रा टेनी को हराकर किसानों को कुचलने की सजा देने का काम किया है।
बिहार में अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री कामरेड राजाराम जी काराकाट से चुनाव जीत गए हैं । वे कई वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का नेतृत्व करते रहे हैं। पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं । इसी तरह अखिल भारतीय किसान सभा के तमिलनाडु के नेता सुधाकरन चुनाव जीत गए हैं। बिहार में बक्सर के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसान आंदोलन के नेता पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह भी चुनाव जीत गए हैं।
राजस्थान से अखिल भारतीय किसान सभा के पूर्व अध्यक्ष अमराराम की जीत भी किसान आंदोलन की जीत किसान आंदोलन के प्रभाव को दर्शाता है
असल में किसानों के भाजपा विरोधी अभियान का सीधा लाभ इंडिया गठबंधन को हुआ है क्योंकि उसने किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने और कर्जा मुक्ति का वायदा अपने घोषणा पत्र के माध्यम से देश के किसानों से किया था।
*संविधान बचाने के लिए मतदाताओं ने किया इंडिया गठबंधन का समर्थन* – इंडिया गठबंधन ने लोकतंत्र बचाने और संविधान बचाने को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाया था, जिसके चलते उसे देश के प्रबुद्ध नागरिकों, दलित समूहों और अल्पसंख्यकों का भरपूर समर्थन मिला। असल में संविधान बचाने का मुद्दा आरक्षण बचाने के मुद्दे के साथ भी जुड़ गया था। जिसके चलते आरक्षण का लाभ पाने वाले सामाजिक समूहों ने इंडिया गठबंधन का साथ दिया।
*ध्रुवीकरण करने में नाकाम रहे नरेंद्र मोदी-* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान दिए गए 200 भाषणों तथा 80 साक्षात्कारो में लगभग 700 बार हिंदू-मुसलमान और भारत-पाकिस्तान का मुद्दा उठाकर, श्री राम को 500 वर्ष बाद अयोध्या वापस लाने, भाजपा के नेताओं द्वारा ज्ञानवापी, मथुरा, सी ए एन – एन आर सी, मुस्लिम पिछड़े वर्गों द्वारा हिंदू पिछड़े वर्गों के आरक्षण पर डाका डालने जैसे मुद्दे उठाए थे लेकिन मतदाताओं ने ध्रुवीकरण के मुद्दे को नकार दिया। इस तरह नरेंद्र मोदी के नैरेटिव को जनता ने फेल कर दिया। मतदाता इंडिया गठबंधन के बेरोजगारी, महंगाई, एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्जा मुक्ति, महिलाओं के यौन शोषण, जाति जनगणना जैसे मुद्दों से प्रभावित हुए।
*400 पार के दावे की हवा निकली-* प्रधानमंत्री ने ‘इस बार 400 पार’ का नारा दिया था लेकिन भाजपा और एनडीए गठबंधन 300 सीटें भी पार नहीं कर सका। भाजपा को तो अब तक 240 सीटें मिली है। असल में मतदाताओं ने मोदी के अहंकार और घमंड को खत्म करने के लिए भाजपा के खिलाफ मतदान किया है।
*चुनाव में गड़बड़ी का मुद्दा बना-* पहले चरण का चुनाव होने के बाद यह दिखलाई पड़ने लगा था कि मतदाता नरेंद्र मोदी की सरकार को सजा देने का मन बना चुके हैं। हर चरण के बाद माहौल इंडिया गठबंधन के पक्ष में बनता चला गया । चार चरणों के बाद नागरिक समाज के लोगों को यह महसूस हुआ कि जनादेश को चुराने की कोशिश मोदी सरकार के द्वारा की जा सकती है। इसको लेकर बेंगलुरु और दिल्ली में बैठक बुलाई गई। (यह बैठक राष्ट्रीय स्तर पर इडेलू, कर्नाटका का अभियान चलाने वाले लोगों द्वारा बुलाई गई, जिसमें देश के तमाम बुद्धिजीवी जन संगठन, किसान संगठन, श्रमिक संगठन के नेता शामिल हुए)
*इंडिया गठबंधन की पार्टियों को फॉर्म 17 सी और मतगणना अभिकर्ता को आवश्यक निर्देश, डाक मतपत्र की गिनती, सिंबल लोडिंग यूनिट की गिनती को लेकर सजग किया गया। देश भर के निर्वाचन अधिकारियों, चुनाव आयोग के अधिकारियों, मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की मांग की गई। नागरिक समाज के लोगों ने स्वयं ‘वोटर्स विल मस्ट प्रिवेल’ अभियान चलाया । बड़ी संख्या में मतगणना केंद्रों पर एकजुट हुए। इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने भी सभी सुझावों को गंभीरता से लिया तथा इंडिया गठबंधन ने 1 जून को बैठक करके इन मुद्दों पर आवश्यक निर्देश जारी किया तथा देशवासियों से जागरूक रहने की अपील की।
इस अभियान का असर मतगणना के दौरान स्पष्ट दिखलाई दिया। लगभग हर लोकसभा क्षेत्र में मतगणना के दौरान मतगणना अभिकर्ता ने हर गड़बड़ी को चुनौती दी। इसके बावजूद भी तमाम क्षेत्रों में गड़बड़ी की गई । जिसे उम्मीदवारों द्वारा न्यायालय में आज चुनौती दी जा रही है।
*सर्वोच्च न्यायालय से अपील-* गत वर्षो में कई बार अनेक संगठन ई वी एम के माध्यम से की जा रही गड़बड़ियों के तथ्यों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे। बाद में वीवीपीएटी की पर्चियों की 100% गिनती करने, 17 सी फॉर्म को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाले जाने को लेकर अनेक संगठन सर्वोच्च न्यायालय गए लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश देने से इनकार कर दिया।
26 अप्रैल को सिंबल लोडिंग यूनिट को 45 दिन तक सुरक्षित रखने तथा शिकायत होने पर 45 दिन के भीतर गिनती करने के निर्देश का नोटिफिकेशन भी चुनाव आयोग ने नहीं निकाला है।
*मेरे सुझाव-* 4 जून की शाम को इंडिया गठबंधन को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष याचिका देकर चुनाव आयोग के कार्यकलापों की निगरानी के लिए न्यायाधीशों की कमेटी गठित करने का अनुरोध करना चाहिए था। इंडिया गठबंधन को सर्वोच्च न्यायालय से गृहमंत्री अमित शाह द्वारा निर्वाचन अधिकारियों से किसी भी तरह से संपर्क करने पर रोक लगाने का अनुरोध करना चाहिए था ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सकें, लेकिन यह नहीं किया गया।
यह लेख लिखे जाने तक भाजपा को 272 सीटें हासिल नहीं हुई है तथा सरकार बनाने के लिए भाजपा चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जदयू पर निर्भर है। इंडिया गठबंधन के नेताओं को चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन में शामिल होकर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
चंद्रबाबू नायडू एक समय तीसरे मोर्चे के संयोजक रहे हैं। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना के मुख्यमंत्रीयों को उन्हें इंडिया गठबंधन में शामिल करने को लेकर बातचीत करनी चाहिए।
यह प्रयास इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि दक्षिण के राज्यों की यह शिकायत रही है कि उनके साथ केंद्र सरकार भेदभाव करता रहा है।
यह सर्वविदित है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों का सपना प्रधानमंत्री बनने का रहा है तथा बिहार और आंध्रप्रदेश दोनों ही राज्यों को विशेष दर्जे की जरूरत है। इन दोनों नेताओं को, जोड़ने के लिए नागरिक समाज भी प्रयासरत है।
डॉ सुनीलम
पूर्व विधायक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान संघर्ष समिति
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