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अयोध्या यानी ऐसी नगरी जहॉं युद्ध विद्वेष का भाव भी न हो 

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रमाशंकर सिंह 

तुलसीकृत रामचरितमानस में श्रीराम अपनी प्रिय नगरी अयोध्या और वहॉं के वासियों के प्रति अपना भाव कैसे व्यक्त करते हैं यह ख़ास तौर पर उन्हें जानना चाहिये जो रणघोष की भाँति “ जयश्रीराम “ तो हुंकारते हैं पर समावेशी अयोध्या की असल भावना से कोसों दूर रह जाते हैं। अयोध्या यानी ऐसी नगरी जहॉं युद्ध विद्वेष का भाव भी न हो ! 

अनपढ़ अंधभक्तों की उन्मादी फ़ौज बन गयी पर रामचरितमानस तो कभी पढ़ा न जा सका , एक बार भी वाचन तक ही न हुआ पारायण की बात कहॉं उठ सकती है। अयोध्या ने मतदान अपने मूल स्वभाव के अनुसार किया है। चित्रकूट ने भी। अयोध्या में सब मिलकर राम गुणगान करते आये हैं। उसमें नास्तिक आस्तिक धर्मप्रिय धर्मप्राण भक्त और उनके साथ अन्य धर्मावलंबी है। अयोध्या चंपत राय जैसों ने नहीं बनाई है। वे सरकारी और जनता के पैसे से भवन बनवा सकते हैं लेकिन अयोध्या भवनों में कभी नहीं बिराजती , वह हर मन में पैठी हुई है।  

अयोध्या में लोग जायेंगें , वहॉं के निवासियों से मिलेंगें जुलेंगें , वहीं से प्रसाद फूल माला तस्वीरें खरीदेंगें , वहीं के होटलों व धर्मशालाओं में रुकेंगें और सभी भारतवासी इस आव्हान का समूल बहिष्कार करेंगें कि सिर्फ रामलला के नये मंदिर में जाकर लौट आओ। हज़ारों बरसों से अयोध्या का अस्तित्व और व्यापार कुछ मूढमतियों के बल पर न था।  अयोध्या के राम अन्य सभी मंदिरों गढ़ियों मठों गली कूचों लोगों रसोइयों आँगनों के बग़ैर अधूरे हैं। 

जो यह नहीं जानते वे राम, अयोध्या और भारत को भी बिल्कुल नहीं जानते! अगली बार यही रूप बाबा विश्वनाथ के बनारस ने दिखा दिया फिर ? हल्का सा इशारा तो इस बार कर ही दिया है। बनारस का बॉयकॉट करोगे ? मथुरा तिरुपति द्वारिका मदुरै नासिक कन्याकुमारी चित्रकूट  बैजनाथ प्रयाग श्रावस्ती और ंभरतकुंड के सुल्तानपुर जनपद किस किस का बहिष्कार करोगे मूर्खो? स्थानों के नाम बदल कर देख लिया फिर भी प्रयागराज और अयोध्या हार ही गये ना ! 

सब जगह राजनीति अलग रही है और आस्थायें अलग। तुम्हारा अस्तित्व इस देश में अभी अभी आया है। जुम्मा जुम्मा दस बीस साल हुये हैं। भारत में गंगा जमुना नर्मदा आदिकाल से सबको सींच रही है , जो यहॉं का होकर बस जाये सो सभी को ! 

मानस में घटघट वासी श्री राम अयोध्या का  बखान इस तरह कर रहे हैं , सुनो पढ़ो जानो :

“ जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना॥
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥

अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी।
मम धामदा पुरी सुख रासी॥
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी।
धन्य अवध जो राम बखानी॥ “

‘ अति प्रिय मोहि इहॉं के बासी ‘ , यह नहीं कहा कि जो भाजपा या अलानी फलानीं पार्टी को वोट दें या न दें सिर्फ़ वे ही ।

उपरोक्त दोनों उद्धरण उपलब्ध कराने के लिये वशिष्ठ जी का आभार । मुझे स्मरण कराना पड़ता है तब याद आ जाता है। बचपन में रोज़ संझा बिरियॉं बाद गॉंव में मानस का पारायण जो होता था।एक बात और कि मुझे नास्तिक होने की प्रेरणा व शक्ति सनातनधर्म से ही मिली किसी राजनीति से नहीं – है ना विचित्र बात।

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