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आधी दुनिया का समाज : निशब्द की स्थिति किसने पैदा की 

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          पुष्पा गुप्ता 

 शीर्षक का सवाल अब जरूरी इसीलिए हो गया है कि क्योंकि समय के साथ तकनीक के विकास में काफी बल दिया गया लेकिन जिस देश में उसकी भाषा और स्त्री जाति का अपमान हो वहां विकास सिर्फ ढकोसला बनके ही रह जाता है.

     जब जब स्त्री जाति का अपमान होता है , उसका शोषण होता है तब तब धर्म का ध्वज भी शर्म से झुख जाता है ! मुगलों और अंग्रेजो ने भारत को गुलाम बनाने के लिए हमारी संस्कृति और सभ्यता की नींव पर हमला बोला.

      सुनियोजित तरीके से के मूल भाषाओ और स्त्रियों का शोषण किया गया ! इस शोषण से पुरुषो में कुंठा,शर्म और बेइज्जती का भाव उत्पन्न हुआ और इसी कारण उन्होंने अपने ही माँ,बहन,बेटियों का त्याग कर दिया और इस त्याग से उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे राक्षसों के मंसूबो को पूरा कर दिया जो भारत को लूटने के लिए आये थे.

       सब्जी मंडी की तरह भारत की नारी जाति के देह का सौदा होने लग गया और कायरो की तरह पुरुषो ने उसपर आवाज उठाना अपनी बेइज्जती समझा ! ये समय के साथ बढ़ता चला गया और भारत में देह व्यापार को बढ़ावा मिलने लग गया ! इस व्यापार के मेले में कुछ संकुचित सोच वाले बालको का जन्म हुआ जो इसी व्यापार को आगे फ़ैलाने वाले थे और धीरे धीरे ये व्यापार अब वर्तमान समय में सामान्य घटना हो गयी है.

      एक समय था जब नारी जाति की पूजा की जाती थी,कोई भी शुभ कार्य य बढ़े कार्य में उसकी उपस्थिति अनिवार्य और पवित्र मानी जाती थी पर आज नारी जाति की परिभाषा बदल सी गयी है ! पुरुषो को अपने कायरपूर्ण फैसलों पर कुछ समय बाद ग्लानी हुयी भी जब अंग्रेजो,मुगलों द्वारा सरेआम महिलाओ,बालिकाओ का चीर-हरण होता था और वो इसीलिए विरोध नही करते य आवाज नही उठाते क्योंकि वो मानते थे कि अब तो उनका सम्मान खत्म हो गया है ! अब कोई फायदा नही विरोध य आवाज उठाने का ! क्योंकि नारी ही प्रधान होती थी.

       उसके सम्मान से ही परिवार,सम्बन्धी य समाज का सम्मान होता था ! स्त्री जाति के सम्मान य अपमान से हर परिवार,सम्बन्धी और समाज को फर्क पड़ता है ! और ये बात अधर्मी लोग जानते थे इसीलिए शिक्षा-व्यवस्था के साथ भारतीयों के चरित्र संस्कार पर उन्होंने जमकर हमला बोला ! चुप्पी और धैर्य रखकर भारतीयों ने ये जान लिया कि अपने ही स्त्री को बाजार में बिकते हुए देखकर जीवन जीना ये कोई बहादुरी नही अपितु घोर कायरता मात्र है और जैसे ही पुरुष जाति में इस भाव का जन्म हुआ ! क्रांति आ गयी.

        स्त्री जाति को खोया सम्मान और यथोचित शक्ति फिर से मिलने लगी और इसका उदाहरण इतिहास के किताबो में देखा जा सकता है ! और आज एक बार फिर भारत में भारतीयों के मुखौटा पहने हुए कई अंग्रेजो और अधर्मियो की आत्मा है जो दिन रात भारत को खोखला करने में लगी हुयी है.

*वर्तमान समय में स्त्री जाति की दशा :*

     आज कहने को तो २१ शताब्दी में हम जी रहे है पर सोच हमारी जानवरों जैसी हो गयी है ! ये सोच सभी भारतीयों की नही है अपितु उन मूर्खो की है जो मनुष्य रूपी देह को ओढ़े हुए है और अंदर एक मूर्ख जानवर की आत्मा बसी हुयी है ! आज स्त्रियों को सशक्त करने के लिए कई ngo,संस्था और दुकाने खुल गयी है जो स्त्री जाति के अन्याय के लिए लड़ती तो है,उनका साथ भी देती है ! लेकिन उनको सशक्त करने के चक्कर में वे भूल गयी है कि ऐसा करने से वो पुरुषो के प्रति स्त्री जाति के भाव को भी कुछ हद तक हीन कर रही है.

     पुरुषो और महिलाओ के बीच भेदभाव वैसे ही पहले से था जिसे कई समाज-सेवियों ने अपने प्रयासों से काफी हद तक कम किया पर उस भेदभाव को बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शन करने से न केवल स्त्रियों का बल्कि पुरुषो का भी मजाक बन रहा है ! आज इन स्त्रियों के मन में पुरुषो की जो छवि है वो गुंडों य राक्षसों वाली है ! आज उन्हें शक और हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है और वर्तमान में कानून तो कड़े किये गये है जिससे अपराधो में कमी आये पर आज उन कानूनों का ही कुछ महिलाये गलत इस्तेमाल कर रही है !! झूठे रेप,छेड़छाड़ के कई मुकद्दमो से पुरुषो में ये भय सताने लग गया है कि भारत आज अन्याय वाला देश हो गया है.

       आज महिलाओ द्वारा इन कानूनों से पुरुषो को ब्लैकमेल किया जा रहा है ! बीते वर्षो से अपराधो में कई गुना इजाफा हुआ है जिसे कम करने की आवश्यकता है पर क्या कानून बना लेने से अपराधो में कमी आई ?? निर्भया केस हो या बन्दायु कांड इन सब में देश की जनता ने आवाज उठाया और सरकार को इन मामलो को गम्भीरता से लेना पड़ा पर मात्र गम्भीरता से लेने,अपराधियों को सजा देने और कठोर कानून बना लेने से वाकई कुछ हद तक भी अपराधो में कमी आई ?

      हाँ अपराधो की संख्या टीवी य समाचार पत्रों से कम जरुर हो जाती है पर पुलिस रिकॉर्ड में ये दिनों दिन बढती जा रही है.

*अपराधों के बढ़ोतरी में मूल कारण क्या है ?*

       अपराधो के बढ़ोतरी में सब से बढ़ा कारण है अज्ञानता और ये अपराधो में ही नही दुःख का भी सबसे बड़ा कारण अज्ञानता ही है ! लेकिन सबके अनुसार अपराध के अलग अलग कारण होते है ! कुछ चिंतक इसे पीड़ित की गलती बताते है तो कुछ चिंतक इसे अपराधी की गलती ! कुछ चिंतक इसमें माता-पिता को दोषी मानते है तो कुछ चिंतक माहौल को.

      सबका किसी समस्या य अपराध को देखने का अपना अपना नजरिया है और उसी नजरिये से वे अपने विचार रखते है ! लेकिन आज बड़ा प्रश्न ये है कि कब तक अपराधो में इजाफा यूँ ही बढ़ता रहेगा?

      नारी शोषण,अपराध,उत्पीड़न अपने चरम पर है ! क्या कोई ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो पायेगा जिसमे नारी का शोषण और उनके प्रति अपराध को रोका जा सके ? ऐसी व्यवस्था बने य न बने पर उन कारणों को नष्ट य कम करने से भी अपराध का स्तर कुछ हद तक कम किया जा सकता है. भारत में जो नारी के प्रति अपराध बढाने वाले तत्व है वे कुछ इस प्रकार से है 

*भारत की शिक्षा व्यवस्था का कमजोर होना :*

 आज गाँव,देहात,शहरों में छोटे-बड़े स्कूल तो खुल गये है पर शिक्षा के नाम पर वहां मात्र रटाया जाता है ! वैदिक शिक्षा का हर जगह अभाव है और जो पाश्चत्य शिक्षा हम ग्रहण कर रहे है य अन्य विद्यार्थियों को ग्रहण करवाया जा रहा है अगर वो इतनी सशक्त और मजबूत होती तो आज अपराधिक मामलो में पढ़े-लिखे लोग शामिल न होते.

     आज शिक्षा के क्षेत्र में भी अपराध य तो विद्यार्थी द्वारा देखे जा सकते है य उन आधुनिक शिक्षको द्वारा जो ऐसी शिक्षा देते है !! भारत की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि शिक्षा दो तब भी अपराध होने की सम्भावना है और न दो तो और भी ज्यादा सम्भावना है ! ऐसे में हमे फिर से गुरुकुल पद्धिति पर अपना ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है जिससे भारत में शिक्षा व्यस्था सशक्त और मजबूत हो सके.

*भारत में गरीबी का होना :*

     आज गरीबी के कारण कई अपराध होते हुए देखे गये है और ऐसा नही है कि अपराध करने वाले सभी आरोपी बच जाते है लेकिन गरीबी की मार जब उनके परिवार पर पड़ती है तो अनैतिक काम भी वे आसानी से कर जाते है ! किसी के घर दो वक्त का भोजन नही जुटता तो किसी के बेटी की शादी में रुपयों की कमी.

      किसी के यहाँ बच्चे को दूध पिलाने के पैसे नही तो किसी को शिक्षा न दे पाने का अभाव, गरीबी के उदहारण अगर हमने दिए तो लेख का अंत असम्भव होगा इसीलिए उदहारण को यही विराम देते है ! गरीबी से बचने के लिए और गरीबी से पीड़ित लोग अपराधिक मामलो को अंजाम न दे उसके लिए मात्र कठोर कानून की आवश्यकता नही बल्कि जागरूकता लाने की आवश्यकता है.

      उन धनसम्पन्न और बुद्धि सम्पन्न लोगो को आगे आकर ऐसे लोगो की मदद करने की आवश्यकता है जो गरीबी से पीड़ित होकर ये सब कर रहे है ! सरकार की योजनाये मात्र इन लोगो को फ्री में खाने और आलसी,कामचोर बनाने वाली है और य तो सरकार की सुविधाए इन तक पहुँच नही पा रही लेकिन अगर समाज के जागरूक लोग इनके उत्थान के लिए कोई मुहीम चलाये तो काफी कुछ बदल सकता है इनके जीवन में और इनके द्वारा होने वाले अपराधो में कमी भी आ सकती है.

      मात्र इनको रोजगार देकर ही नही बल्कि अपने अनुसार इनके लिए रात के विद्यालय खोलकर भी उचित शिक्षा प्रदान करके इन्हें सभ्य और जागरूक किया जा सकता है ताकि अपराध करने का ये कभी सोचे भी नही.

*संयुक्त परिवार की कमी :*

     आज भारत के लोगो का जिस तरह उठना-बैठना है वो बाहर के देश की नकल प्रतीत होती है ! भारत में पहले सम्पन्न परिवार होता था और एक ही मकान,महल में सभी रहा करते थे जिससे बच्चो को काफी अनुभवी अभिभावकों द्वारा नीति,संस्कार,सयंम की शिक्षा मिल जाया करती थी.

      पर आज के परिवार सिमटने लग गये है ! एक कमरे य फ्लैट में सिर्फ माता-पिता और बच्चे रहते है जिसमे घर का मुखिया यानि पिता काम पे जाते है तो माताएं भी आज गरीबी के कारण काम पर जाती है ! सिर्फ गरीबी के कारण नही बल्कि अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए भी उन्हें दहलीज लांगनी पड़ती है.

      कुछ तो ऐसे मजबूर मताए बहने है जो गर्भ धारण किये होते है और और उन्हें ऐसे नाजुक स्थिति में काम करते हुए देखकर सिर्फ यही बोलने का मन करता है कि निशब्द की ये स्थिति किसने पैदा की ?

      सिर्फ महिलाये ही नही पुरुष भी बीमारी य अन्य समस्या के बावजूद कमाने घर से बाहर जाते है और उस स्थिति में बच्चे भी घर की हालत देखकर कम उम्र में ही पढाई छोडकर काम करने लग जाते है.

     वही पे उन्हें नशे की लत लग जाती है क्योंकि कुछ युवाओ द्वारा ये भ्रम फैलाया जाता है कि इससे दुःख दूर होता है! टेंशन खत्म होती है ! और नशे की लत लगते ही आप समझ सकते है कि अपराधिक मामलो को अंजाम देना कोई आश्चर्य नही है ! कमाने के लिए बाहर जाने वाले माता-पिता के बच्चे य तो नौकर के भरोसे पलते है य तो पड़ोसी के भरोसे जिससे बच्चो को माँ की ममता,प्यार,स्नेह,दुलार और वो नैतिक शिक्षा,संस्कार, नही मिल पाता जो उसे मिलना चाहिए और नतीजा अच्छे-खासे परिवार के बच्चे भी अपराधिक मामलो को अंजाम दे जाते है.

*घर का माहौल का अव्यवस्थित होना :*

     भारत में घर के माहौल के बिगड़ने से बच्चो का चरित्र,व्यक्तित्व निर्माण प्रभावित होता है ! और उसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब एक शिशु जन्म लेता है तो वो वही भाषा बोलता है जो उसके माता-पिता बोलते है तो इस लिहाज से हम ये मान सकते है कि माता-पिता के व्यक्तित्व,व्यवहार और उनके द्वारा बनाये माहौल का बच्चो पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों तरह से प्रभाव पड़ता है.

      आज कई घरो में माता-पिता स्वयं लड़ते है और उसका प्रभाव बच्चो पर काफी नकारात्मक पड़ता है और इस कारणों से खीज कर भी वो खुद का य दूसरो का अहित कर बैठता है ! घर में पिता द्वारा माता से हिंसा य माता द्वारा पिता से हिंसा जब ये सब बच्चे देखते है तो सोचिये उनका व्यक्तिव कैसा बनेगा और इसी आग में घी डालने का काम टीवी,सिनेमा और अश्लील,अपराधिक धारावाहिक कर देते है जो उन्हें तरह तरह के विचार दिखाते है कि कैसे कैसे अपराध भारत में होते है.

      कहने को तो ऐसे धारावाहिक का उद्देश अपराध को रोकना है पर बीते कुछ सालो में कई अपराधियों ने ये माना कि उन्हें ये विचार फिल्म,धारावाहिक से मिला था ! चाहे यौन शोषण हो य हत्या इन सभी के विचार इन्हें टीवी,सिनेमा से ही मिलते है और उप्पर से जब टीवी,सिनेमा में ये दिखाया जाता ही कि कैसे कानून का इस्तेमाल करके वे आसानी से छुट जाते है तो ऐसे में उनके हौसले बुलंद होना स्वाभाविक है और अपराधिक गतिविधियों को देना कोई आश्चर्य की बात नही है.

 *समाज का माहौल :*

     भारत में समाज का माहौल आज दयनीय और चिंताजनक है ! हाल ही के कुछ दिनों के मैनपुरी की घटना ने ये बात साबित भी कर दिया जिसमे एक महिला अपने पति के साथ मैनपुरी में दो युवको से रास्ता पूछ रही थी और उसी बीच उन युवको में से एक ने महिला के पति से बद्द्त्मीजी से बात की और जब बात बढ़ गयी तो दोनों युवको ने अपनी मर्यादा लांघते हुए बेहरमी से उस महिला के पति और महिला पर उसके बच्चे के सामने भरे बाजार में लाठियां बरसाने लगे.

      ये कृत्य इतना गम्भीर और शर्मनाक है जिसे परिभाषित हम तो क्या कोई चिंतक,समाज-सेवी नही कर सकता ! भरे बाजार में महिला की चुन्नी उतारना,उसपे लाठियों से हमला करना और नपुंसक,कायरो की तरह समाज के लोगो द्वारा वीडियो रिकॉर्डिंग करना,चुप रहना और मूक दर्शक बने रहना ये साबित करता है कि मैनपुरी की जनता में कायरो का खून दौड़ रहा है और उन समाज के लोगो पर भी धिक्कार है जो इतने संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति की रोटियां सेक रहे है.

         अपराधिक गतिविधियों को किसी पार्टी का श्रेय देना ये हर बार उचित नही ! हालाँकि ये जरुर देखा गया है कि उत्तरप्रदेश में मुलायम-अखिलेश सरकार में अपराधिक गतिविधियाँ काफी बढ़ रही है जिसमे कुछ रक्षक की भूमिका निभाने वाले पुलिस कर्मी और नेता भी शामिल है.

       ऐसे में जनता पर भी ये सवाल उठता है कि ऐसी सरकार का समर्थन क्यों देते है जिसे राज्य सम्भालने नही आता हो !! घर के बाहर,समाज का माहौल बिलकुल नशेड़ियो का हो गया है ,जिसे देखो धुम्रपान करता हुआ पाया जा सकता है य फिर गुटखा थूकते हुए.

       आदर्श युवको व् युवतियों का आज शहरों में लगभग लोप होता जा रहा है ! आर्दश के मिसाल सिर्फ बनावती टीवी,सीरियल में देखे जा रहे है जबकि घर,परिवार य समाज में कोई आदर्श चरित्र स्थापित ही नही करना चाह रहा !! किसी भी समाज का निर्माण परिवार से बनता है और परिवार हम सब के द्वारा बनता है तो यदि समाज में परिवर्तन चाहते है तो हमे समाज को बदलने के साथ साथ खुदको भी बदलना होगा और जैसा परिवर्तन हम समाज से अपेक्षा कर रहे है वो परिवर्तन सर्वप्रथम खुद में लाना होगा नही तो छोटी छोटी गलती,भूल और अपराध ही आगे चलकर बड़े अपराधिक गतिविधियों को समाज में जन्म दने के कारण बनते है.

 अक्सर देखा गया है कि महिलाओ के प्रति अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में समाज बढ़-चढ़कर भाग य शामिल होता है क्योंकि स्त्रियों से सहानुभूति समाज को हमेशा से हुयी है पर आज नारी उत्पीड़न के साथ ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि पुरुषो के साथ भी महिलाओ द्वारा उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे है.

      कुछ उन्हें बेवजह छेड़खानी के आरोप में पिटवा देते है तो कुछ उन्हें झूठे मामले में दोषी बना देते है बेचारे उन युवक-पुरुषो को समाज में फिर हेय दृष्टि से देखा जाता है जबकि न तो उन्होंने जुर्म किया होता है और न ही उनपे वो जुर्म साबित होता है ! ऐसे में उनका भविष्य और करियर दोनों ही लगभग बर्बाद हो जाते है ! एक ऐसा ही मामला हरियाणा की दो बहनों का था जिसे पूरा देश सराहना दे रहा था पर बाद में पता चला कि वो लडकियाँ हमेशा से ऐसे करती आ रही है और ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अपने हक और सहानुभूति का इस तरह गलत इस्तेमाल कोई करे.

      एक सर्वे के दौरान पुरुषो ने बताया कि अपराध में केवल पुरुष ही दोषी ही नही बल्कि वो समाज भी जिम्मेदार होता है जो सिर्फ दंड विधान को ही अपराध को कम करने का एक कारण मानते है ! दंड का भय दिखाकर आप समाज को ये संदेश दे रहे है कि फलाना अपराध करने पर आपको ये सजा मिलने का प्रावधान है मतलब जब अपराध हो तब सजा.

      इसका मतलब अपराध न हो उसके लिए ठोस कदम तय नही है लेकिन जब अपराध हो जाये तब दंड विधान उपलब्ध है !! तो ऐसे सजा य दंड का क्या लाभ जो अपराध में कमी न ला सके ! महिलाओ के जघन्य अपराधिक मामलो में पूछ-ताछ के दौरान जब अपराधियों से सवाल किये गये तो अपराधियों ने बताया कि जिस महिला य लड़की के साथ उन्होंने अपराध को अंजाम दिया है उन्होंने छोटे वस्त्र पहने थे इसीलिए उन्होंने ऐसा किया पर सवाल ये उठता है कि छोटे वस्त्र पहनने से क्या वाकई अपराधिक मामले सम्भव है?

     जब कुछ महिलाओ से यही सवाल किया गया तो उन्होंने कई राज्य और देश का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि अन्य जगह भी छोटे वस्त्र चलन में तो क्या वहां ऐसा सब क्यों नही होता ? पुरुषो को चाहिए कि वे अपनी सोच बदले,हम क्या पहने और क्या नही ये सब तय करने का अधिकार हमारा है उनका नही !! जब यही सवाल हमने कुछ चिंतको से किया तो उन्होंने जो जवाब दिया वो हैरान करने वाला था.

      उन्होंने कहा दोनों वर्ग अपने अनुसार सही है लेकिन सामाजिक दृष्टि और दूरदर्शी सोच आज के लोगों में नही है ! वो फैसला य निष्कर्ष अपने बुद्धि और सोच के अनुसार लेते है सामाजिक दृष्टिकोण से नही ! वस्त्र का चयन क्या हो ये अधिकार बेशक महिलाओ का निजी मामला है लेकिन ये बात भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि जिस जगह क्षेत्र और देश का वो उदाहरण पेश कर रहे है वो क्षेत्र उस माहौल के हिसाब से ढल चूका है और वहां के लोगो को उस माहौल में रहने की आदत हो गयी है.

      बात रही अपराधिक मामलो की तो ऐसा नही है कि केवल छोटे वस्त्र ही अपराध को अंजाम देने के कारण होते है ! अपराध की प्रवृति को छोटे वस्त्र बढाते जरुर है और ये बात वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रमाणित हो चूका है लेकिन इसमें शिक्षा,नैतिक संस्कार और संयम का पाठ नही होना भी कारण है.

फैशन की आड़ में कुछ महिलाये ये भूल जाती है कि जिस देश में नारी को देवी रूप में पूजा जाता है आज वो उस का अस्तित्व धूमिल करने में लगी हुयी है.

     भ्रामक प्रचारों से जगह जगह ,समाज,शहर वैसे ही प्रभावित है ! अश्लील गाने,पोस्टर,फिल्म सरेआम बाजार में बिक रहे है और ये उन लोगो में अपराधिक प्रवृति को जन्म देते है जो नैतिक शिक्षा और संयम से पोषित नही हुए होते ! बेटी-बचाओ और बेटी पढो के नारे तो आज लिए जाते है पर बेटा-बेटी को संस्कारवान बनाओ,चरित्रवान बनाओ ये नारा न जाने कब लिया जायेगा !! आश्चर्य कि बात है कि बेटी-बचाओ और बेटी पढाओ का नारा भी उन कलाकारों द्वारा प्रचारित करवाया जाता है जो फिल्म में अपने अंग-प्रदर्शन से नारी के चरित्र को धूमिल कर चुकी है.

      एक तरफ तो सरकार और कलाकार नशा,अपराध को कम करने की मुहीम चलाते है तो दूसरी तरफ इन नशीले पदार्थो पर छुट दी जाती है ! इनको बढ़ावा दिया जाये इसीलिए इनके कारखाने बड़े पैमाने पर लगाये जाते है ! अश्लील,अभद्र,अमर्यादित और अपराधिक सिनेमा,सीरियल से लोगो को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपराधो और नशा को बढ़ावा देने वाले विचार सुझाये जाते है तो दूसरी तरफ कठोर कानून और चुनाव में अपराध और भ्रष्टाचार को जद से खत्म करने के झूठे कसमे खाए जाते है.

     इस लेख को पढने के बाद आप खुद तय कीजिये कि अपराध को जन्म कौन दे रहा है अपराधी कौन है.

     जनता को चाहिए कि एकजुट होकर इनके ढोंग का पर्दाफाश करे और अपराधिक तत्वों को फैलने से रोके ! इनका खुलकर बहिष्कार करे ! जब तक जनता इन सरकार और कलाकार के नौटंकी को नही समझेगी तब तक अपराध यूँ ही होते रहेंगे.

      अगर अपराधो को वाकई नारी के प्रति य पुरुषो के प्रति कम करना है तो पुरुष और स्त्री दोनों को चाहिए कि वो अपना महत्व समझे और पुरुषो को चाहिए कि महिलाओ के सम्मान और सुरक्षा के लिए आदर्श स्थापित करे क्योंकि इतिहस गवाह है महिलाओ का सरंक्षण और विकास किसी कानून से नही बल्कि पुरुषो के विवेक,संयम और बुद्धिमत्ता से हुआ है.

     नारी जाति को हक के नाम पर गुमराह करने के बजाय पुरुषो को उनका महत्व समझने की जरूरत है क्योंकि नारी के प्रति अपराध,शोषण पुरुषो के पौरुष पर भी प्रश्न चिन्ह उठाता है ! महिलाओ के साथ अपराध वही हो सकता है जहाँ कायर मर्दों का वास हो.

     जरूरत है तो सिर्फ पुरुष जाति को अपनी गरिमा पहचानने की क्योंकि कोई नियम,कायदे,कानून नारी जाति को विकसित,पोषित,संरक्षित नही कर सकते जब तक पुरुष और स्त्री का समाज में समन्वय स्थापित न हो ! सिर्फ पुरुष ही नही स्त्री को भी पुरुषो के प्रति आदर-सम्मान का भाव उत्पन्न करना होगा और उन्हें पुरुषो को ये विश्वास दिलाना होगा कि आपके होते हुए हमारा कुछ नही हो सकता.

      प्रकृति ने पुरुष को बलवान,कठोर तो स्त्री को दया ,करुणा का वरदान दिया है और इसीलिए भी सदियों से नारी शक्ति का विकास पुरुषो के सहयोग से सम्भव हो पाया है और सिर्फ नारी का ही नही पुरुषो की शक्ति को बढ़ाने में भी नारी जाति की अहम भूमिका रही है और हम ये कह सकते है कि पुरुष और स्त्री एक दूसरे के सरंक्षक भी है लेकिन वर्तमान में पुरुषो द्वारा अपनी महत्वता को न पहचानने की जो भूल हुयी है वो भी एक कारण है नारी जाति के प्रति अपराधिक मामलो को जन्म देने की.

       पुरुष हो य स्त्री,बच्चे हो य बूढ़े अगर अपराध को खत्म य कम करना है तो उन्हें अपने क्षेत्र में अपने स्तर पर एक चर्चा करने की जरूत है जिससे सबके विचार आ सके कि कौन कौन और किस तरह के तत्व अपराधिक मामलो को बढ़ाने के जिम्मेदार है ! इस चर्चा को कराना बहुत मुश्किल है लेकिन ये सच है कि जब शर्म य संकोच के भय को त्याग कर समाज इस तरह के चर्चे को बढ़ावा देगा तो काफी हद तक बाते उनके सामने निष्कर्ष के रूप में निकलती जाएगी और समाधान भी पता चल जायेगा.

       बस खुद में चेतना लाने की जरूरत है इसीलिए उठे आगे बढ़े और पुरुष-स्त्री किसी के प्रति भी अपराध हो उसे रोकने और खत्म करने में अपनी उर्जा लगाएं.

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