सिद्धार्थ
चे ग्वेरा का भूत अब भारतीय राजसत्ता को सता रहा है। लगता है कि उनकी रूह कब्र से निकल कर भारतीय शासक वर्ग को डरा रही है। चे ग्वेरा से आज की तारीख में डरती सत्ताओं को देखकर लग रहा है कि चे ने जो अमेरिकी सैनिक उन्हें गोली मार रहे थे, उनसे उन्होंने ठीक ही कहा था-Do not shoot! I am Che Guevara and I am worth more to you alive than dead.” (“मुझे गोली मत मारो! मैं तुम्हारे लिए जीवित रहते ज्यादा काम का हूं, मौत के बाद मैं तुम लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होऊंगा”) वही हुआ, शहादत के बाद चे ग्वेरा दुनिया के नौजवानों के लिए क्रांति और क्रांतिकारिता के प्रतीक बन गए।
जुल्म और सितम के खिलाफ संघर्ष के नायक। अन्यायी राजसत्ताओं को चुनौती देने के लिए प्रेरणा के स्रोत। क्रूर, जुल्मी,अन्यायी और शोषक-उत्पीड़क शासक को चुनौती दिने वाले नौजवान आज भी चे की ओर देखते हैं, उनके रास्ते को अपनाते हैं।
भारतीय जांच एजेंसियों का कहना है कि 13 दिसंबर, 2023 को भारतीय संसद को निशाना बनाने वाले लोग चे ग्वेरा के मोटरसाइकिल डायरीज से प्रभावित थे। विशेषकर मुख्य अभियुक्त और संसद को निशाना बनाने वालों का अगुआ मनोरंजन।आप सबको याद हो होगा कि 13 दिसंबर, 2023 को नए संसद भवन में भगत सिंह के स्टाइल में चार नौजवानों ने कुछ पर्चे फेंके थे। उनमें से दो मनोरंजन और सागर शर्मा विजिटर गैलरी से लोकसभा के हॉल में छलांग लगाए। उसके बाद धुँआ उठा था।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि मनोरंजन और सागर शर्मा लोकसभा भवन में छलांग लगाए थे। जबकि नीलम रनोलिया और अनमोल शिंदे धुंआ का कंटेनर संसद भवन के बाहर खोले थे। ललित झा पर साक्ष्यों को नष्ट करने का आरोप लगाया गया था। पांचवें आरोपी महेश कुमावत पर इनसे जुड़े रहने का आरोप लगाया गया। जांच एजेंसियों का कहना है कि इन पांचों ने मिलकर ‘भगत सिंह फैंस फेज’ फेसबुक पर बनाया था।
इस पूरे मामले में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार जांच एजेंसी काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट ऑफ देलही पुलिस ने 1 हजार पेज की चार्जशीट दायर की है। जिसमें मुख्य अभियुक्त मनोरंजन पर यह आरोप लगाया है कि उसके कम्प्यूटर और मेल में चे ग्वेरा की मोटरसाइकिल डायरीज मिली है। जांच एजेंसी का कहना है कि इस सामग्री का मिलना इस बात का सबूत है कि इस घटना को अंजाम देने के पीछे बड़ी साजिश थी। जांच एजेंसी ने यह भी कहा कि इस डायरीज से मनोरंजन प्रभावित हुआ था। उसने इसके बारे में अन्य लोगों को लिखा।
इस डायरीज से प्रभावित होकर मनोरंजन ने भी पूरे देश की यात्रा की और इसके बाद उन तरीकों और रास्तों के बारे में सोचने लगा, जिससे वह अपना संगठन बना सके। जांच एजेंसी का कहना है कि इस संगठन के माध्यम से वह अपनी सरकार बनाना चाहता था। चार्जशीट यह भी कहती है कि वह भारत की लोकतांत्रिक सरकार को पलटना चाहता था। इसके लिए उसने लोकतंत्र के प्रतीक संसद को निशाना बनाया। हम सभी को पता है कि भगत सिंह की तरह संसद को निशाना बनाने की कोशिश करने वाले सभी 6 आरोपी यूएपीए ( UAPA) के तहत जेल में हैं।
सवाल यह है कि आखिर चे ग्वेरा के मोटरसाइकिल डायरीज में ऐसा क्या है, जिससे मनोरंजन ने भारतीय राजसत्ता को पलटने की और नई सरकार कायम करने की प्रेरणा ली? क्या सचमुच में चे की डायरी किसी व्यक्ति खासकर नौजवानों को क्रांतिकारी बनने और अन्यायी सत्ता को पलटने की प्रेरणा देती है?
हां यह सच है कि चे ग्वेरा की मोटरसाइकिल डायरीज किसी की जिंदगी की दिशा बदल सकती है, उसे अपने देश और दुनिया के जनसाधारण मेहनतकशों के साथ जोड़ देती है। जुल्म और अन्याय के शिकार लोगों के साथ एक आत्मीय रिश्ता कायम करने की प्रेरणा देती है। लोगों की तकलीफ़ को अपनी तकलीफ़ बनाने की दिशा में धकेल देती है। लैटिन अमेरिका के महानायक और लैटिन अमेरिकी क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत जोस मार्टी के इस कथन की ओर ले जाती है कि “ मैं अपनी नियति को दुनिया भर के गरीबों की नियति के साथ जोड़ना चाहता हूं।” ( “I want to link my destiny to that of the poor of this world”.)।
चे ग्वेरा के मोटरसाइकिल डायरी से क्यों दुनिया भर के आतताई सत्ताओं को डर लगता है, क्यों वे इसे अपने खिलाफ बगावत के लिए प्रेरित करने वाली चीज मानती हैं, क्यों भारत सरकार की एजेंसियां इस डायरी को खतरनाक मान रही हैं?
यह डायरी अर्जेंटीना में पैदा हुए दो नौजवानों अर्नेस्टो चे ग्वेरा और अलबेर्टो ग्रेनाडो की साउथ अमेरिका की यात्रा का विवरण है। यह यात्रा चे ग्वेरा ने तब शुरू की थी, जब उनकी उम्र 23 साल थी और वे मेडिकल के छात्र थे। उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई से 1 साल की छुट्टी लेकर यह यात्रा शुरू की थी। उनके साथ उनके सीनियर 29 वर्षीय वायो केमिस्ट अलबेर्टो ग्रेनाडो भी थे। दोनों ने करीब 9 महीने तक पूरे साउथ अमेरिका की यात्रा की। यह यात्रा अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स से शुरू हुई। उन्होंने अर्जेंटीना, चिली, पेरू, इक्वाडोर, कोलंबिया, बेनेजुएला, पनाम और मियामी की यात्रा की।
यह यात्रा उन्होंने सिंगल सिलेंडर 1939, 500cc मोटरसाइकिल से की थी। यात्रा की शुरुआती मुख्य उद्देश्य सैन पाबलो (पेरू) की कुष्ठ रोगियों की कॉलोनी में जाना था। वहां के कुष्ठ रोगियों से मिलना था। इस बीमारी को छुआछूत की बीमारी समझा जाता था। रोगियों को अछूत समझा जाता था। इनका इलाज करने वाले डॉक्टर उनसे करीब चार किलोमीटर की दूरी पर अमेजन नदी के उस पार रहते थे। रोगियों को नदी के उस पार रखा जाता था। डॉक्टर या नर्स उनको सीधे छूते नहीं थे। दस्ताना पहनकर ही उन्हें छूते थे, उनसे दूरी बनाकर रहते। जबकि यह साबित हो चुका था कि यह छुआछूत की बीमारी नहीं है। चे डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले के रूप में उनसे मिलना और उनके बारे में जानना चाहते थे।
इस एक उद्देश्य के अलावा इस यात्रा का शुरू में उद्देश्य एक नौजवान की रोमांच और रोमांस चाहत भी थी। लेकिन यह यात्रा धीरे-धीरे लैटिन अमेरिका के गरीबों, जुल्म और शोषण के शिकार लोगों, बीमारी से मरते लोगों, खदानों में काम करते श्रमिकों से हालातों को जानने और किसानों की दुर्दशा से परिचित होने की यात्रा बन गई।
करीब 9 महीनों की इस यात्रा में चे और उनके साथी पर्यटक स्थलों पर नहीं गए, बल्कि लैटिन अमेरिका के आम जन से घुलने-मिलने का इसे अवसर बनाया। उनके दुख-दर्द को समझने का मौका बना लिया। दोनों साथी किसानों से मिले। यह समझने की कोशिश की इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी वे क्यों भरपेट भोजन तक ठीक से नहीं कर पाते। चिली के ताबें की खदानों के श्रमिकों से मिले, अनकी अकथ दर्द भरी दास्तान से परिचित हुए। कैसे अमेरिकी कंपनियां (यूएसए) चिली के संसाधनों को लूट रही हैं और वहां के श्रमिकों का खून निचोड़ रही हैं।
वे लैटिन अमेरिका के उन कम्युनिस्टों से मिले, जो लोगों की रोटी और हक के लिए संघर्ष करते थे, मेहनतकशों को संगठित करने की कोशिश करते हैं। इस वजह से वे राजसत्ता की नजरों में खतरनाक माने जाते हैं, उन्हें तरह-तरह से यातनाएं दी जाती हैं। इन यात्रा के दौरान उस औरत से मिले जो तपेदिक की बीमारी के चलते यातनादायी मौत मर रही थी, लेकिन इलाज की कौन कहे, भरभेट भोजन भी उसके लिए उपलब्ध नहीं था।
चे ग्वेरा ने जिंदगी के सच को जानने के लिए अस्पतालों और पुलिस थानों की यात्रा की। मरीजों से मिले। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उनकी समझ बनी थी कि किसी देश के अस्पताल और वहां इलाज कराने वालों से मिलकर उस देश के आम लोगों के क्या हालात हैं इसको जाना जा सकता है। आम लोगों के प्रति पुलिस के व्यवहार को जानने के लिए चे और उनके साथी पुलिस थानों पर गए।
यात्रा के दौरान चे ने आगे की यात्रा के लिए पैसा जुटाने और खाना खाने के लिए ढाबों में वेटर और बर्तन साफ करने का काम किया। कभी मजदूरों के साथ मजदूरी की। जो काम मिला किया। जहां जगह मिली वहां रूक गए। कुष्ठ रोगियों के साथ करीब एक सप्ताह बिताया। बिना दस्ताने के उनसे हाथ मिलाया। उनके साथ बैठे। खाना खाया। उनके करीब रहे। किसी तरह की दूरी नहीं बनाई। अपने जैसा ही उन्हें भी माना।
इस यात्रा में उनकी मार्क्सवादियों से भी मुलाकात हुई। उनका मार्क्सवाद से परिचय हुआ। उनको यह अहसास हुआ कि पूरा लैटिन अमेरिका एक देश जैसा ही। सबके दुख-दर्द एक से हैं। सभी जगह गरीबों-मेहनकशों की हालत एक जैसी है। अधिकांश देशों की आततायी सत्ता अमेरिकी साम्राज्यवादियों से मिलकर अपने देश के संसाधनों को और श्रम को लुटेरी कंपनियों को सौंप रही हैं। विरोध करने वालों को कुचला जा रहा है। लोगों के लिए संघर्ष करने वालों को कम्युनिस्ट कहकर तरह-तरह से यातना दी जा रही है।
इस यात्रा ने चे ग्वेरा के देखने और सोचने का ढंग बदल दिया। उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि लैटिन अमेरिका को मेडिकल के डॉक्टर की जगह समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले डॉक्टरों की ज्यादा जरूरत है। चे एक मेडिकल क्लास खाते-पीते परिवार में पैदा हुए थे। जहां एक हद तक सुख-सुविधाएं थीं। लेकिन लैटिन अमेरिकी लोगों की हालत को देखकर और उसके कारणों को जानकर उन्होंने जोस मार्टी की तरह अपनी नियति को दुनिया के गरीब लोगों की नियति से जोड़ लिया।
उन्हें लगने लगा कि लैटिन अमेरिका के आततायी शासकों और अमेरिकी गठजोड़ को क्रांति, विशेषकर सशस्त्र क्रांति से ही सत्ता से हटाया जा सकता है। एक ऐसी सत्ता कायम की जा सकती है, जो लोगों की सत्ता हो। मेहनतकशों की सत्ता हो। चे ने क्रांति का रास्ता चुन लिया। जैसा कि उन्होंने अपने पिता से वादा किया था, उस वादे को पूरा करते हुए उन्होंने एक साल की बाकी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की।
चे खूबसूरत दुनिया के लिए जिंदगी और मौत से मोहब्बत करने वाले क्रांतिकारी बन गए। उन्होंने अपने दोस्त कास्त्रो के साथ मिलकर क्यूबा में क्रांति संपन्न की। अमेरिकी साम्राज्यवाद और तानाशाह बतिस्ता के गठजोड़ वाली सत्ता को सशस्त्र क्रांति से उखाड़ फेंका। क्यूबा को एक खूबसूरत देश में तब्दील कर दिया।
क्रांतिकारियों की गैलेक्सी के एक चमकते सितारे का नाम अर्नेस्टो चे ग्वेरा बन गया। एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही नसें तन जाती हैं। दिलो-दिमाग उत्तेजना से भर जाता है। हर तरह के अन्याय के खिलाफ लड़ने और न्यायपूर्ण दुनिया बनाने के ख्वाब तैरने लगते हैं। उम्र छोटी हो, लेकिन खूबसूरत हो, यह कल्पना हिलोरे मारने लगती है।
कल्पना करना मुश्किल है, लेकिन यह सच है सिर्फ और सिर्फ 39 साल में शहीद हो जाने वाला एक नौजवान इतना कुछ कर गया जिसे करने के लिए सैकड़ों वर्षों की उम्र नाकाफी लगती है। वह फिदेल कास्त्रो के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर क्यूबा में क्रांति करता है, अमेरिकी कठपुतली बातिस्ता का तख्ता पलट देता है। ठीक अमेरिका (यूएसए) से सटे छोटे से देश में क्रांति की चौकी स्थापित कर देता है, जिसका भय आज भी अमेरिका को सताता रहता है।
एक ऐसा क्रांतिकारी जो आज भी दुनिया के युवाओं का प्रेरणास्रोत है। जिसका जन्म अर्जेंटीना में होता, क्रांति क्यूबा में करता है और वोलोबिया में क्रांति की तैयारी करते अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए के हाथों शहीद होता है। कोई अकेला व्यक्ति अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया, तो उसका नाम चे ग्वेरा है। जिसे मारने के लिए अमेरिका ने अपनी सारी ताकत लगा दी। मरने के बाद भी जिसका भूत अमेरिका और उसके पिट्ठू शासकों को सताता रहता है। वे चे ग्वेरा का मारने में सफल हो गए लेकिन उसके क्रांति के सपने को नहीं मार पाए।
दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के आदिम लोगों का कत्लेआम कर स्पेन ने पहले इन देशों को गुलाम बना लिया। ये देश स्पेन से संघर्ष कर आजाद हो ही रहे थे कि अमेरिका (USA) ने अपने कठपुतली शासक को बैठाकर इन देशों पर नियंत्रण कर लिया। दक्षिण अमेरिका के क्रांतिकारी निरंतर स्पेन और बाद में अमेरिका के खिलाफ संघर्ष करते रहे। इन्हीं कांतिकारियों में से दो को आज पूरी दुनिया जानती है। एक का नाम फिदेल क्रास्त्रो और दूसरे का नाम चे ग्वेरा है।
जन्मजात विद्रोही। उनके पिता कहते थे कि मेरे बेटे की रगों में आयरिश विद्रोहियों का खून बहता रहता है। चे के पिता स्पेन के खिलाफ पूरे दक्षिण अमेरिका में चल रहे संघर्षों के समर्थक थे। चे को अपने देश और अपने महाद्वीप के लोगों की गरीबी बेचैन कर देती थी। होश संभालते ही उनके दिलो-दिमाग में यह प्रश्न उठता था कि आखिर प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न और कड़ी मेहनत करने वाले मेरे देश और मेरे महाद्वीप के लोग इतने गरीब, लाचार, बेबस और गुलाम क्यों हैं? क्यों और कैसे स्पेन और बाद में अमेरिका ने हमारे महाद्वीप पर कब्जा कर लिया और यहां की संपदा को लूटा।
चे ग्वेरा पेशे से डॉक्टर थे। बहुत कम उम्र में उन्होंने करीब 3 हजार किताबें पढ़ डाली थीं। पाल्बो नेरुदा और जॉन कीट्स उनके प्रिय कवि थे। रूडियार्ड किपलिंग उनके पसंदीदा लेखकों में शामिल थे। कार्ल मार्क्स और लेनिन के साथ बुद्ध, अरस्तू और वर्ट्रेड रसेल उनके प्रिय दार्शनिक और चिंतक थे। खुद चे एक अच्छे लेखक थे। वह नियमित डायरी लिखते थे।
दक्षिण अमेरिका के कई देशों में क्रांतिकारी संघर्षों मे शामिल हुए। बाद में वे कास्त्रो के साथ क्यूबा की क्रांति (1959) के नायक बने। जिस क्रांति ने क्यूबा में अमेरिका की कठपुतली बातिस्ता की सरकार को उखाड़ फेंका। क्यूबा की क्रांतिकारी सरकार में विभिन्न जिम्मेदारियों को संभालते हुए उन्होंने क्यूबा की जनता की जिंदगी में आमूल-चूल परिवर्तन करने में अहम भूमिका निभाई। क्यूबा दुनिया के लिए आदर्श देश बन गया। इस सब में चे ग्वेरा की अहम भूमिका थी।
क्यूबा में अपने कामों को पूरा करने के बाद चे लैटिन अमेरिका के अन्य देशों में क्रांति को अंजाम देने निकल पड़े। वोलोबिया में क्रांतिकारी संघर्ष करते हुए 9 अक्टूबर 1967 को वे 39 वर्ष की उम्र में शहीद हुए। गोली मारने जा रहे सैनिकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि Do not shoot! I am Che Guevara and I am worth more to you alive than dead.”
ऐसे चे की डायरी का भूत भारतीय राजसत्ता को सता रहा है। उनकी रूह भारतीय एजेंसियों को आज भी भयभीत कर रही है।