अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

भारत की महान स्वतंत्रता सेनानी अमर वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई 

Share

 मुनेश त्यागी 

   भारतीय इतिहास की दुर्गा, एक महान वीरांगना, क्रांतिकारी, रणनीतिकार, संगठनकर्ता, प्रतिबद्ध, अनुशासित और परम योगिनी महारानी लक्ष्मी बाई 17 जून 1858 वीरगति को प्राप्त हुई थी और इसी के साथ छोड़ गई थी अपनी अमर और अमिट छाप, देश पर प्राण न्योछावर करने का जज्बा और प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने का अद्भुत हौसला।

     यह महान वीरांगना अपनी मौत के साथ ही दे गई थी देदीप्यमान सबक ,,,,,,देश, समाज और भारतीय जन के लिए और उन पर मर मिटने का एक अद्भुत सबक। कुछ लोग महारानी पर आरोप लगाते हैं कि लक्ष्मीबाई केवल झांसी के लिए लड़ रही थी और 1857 की भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पहली जंग से उनका कोई लेना-देना नहीं था। यह मान्यता और मत सरासर गलत है, एकदम निराधार और बेबुनियाद है। यह बात एक साजिश का हिस्सा है जो हमारी इस अमर वीरांगना का कद छोटा करता है। यह हकीकत नहीं है। आईये सुनते हैं उन्हीं की मुंह जवानी ,,,, “मैं अपनी झांसी में नहीं दूंगी, जिसमें हिम्मत है वह ले ले।”

      संग्राम के दूसरे नेताओं की तरह लक्ष्मीबाई के भी लक्ष्य थे। स्वराज, भारत की आजादी, ब्रिटिश दासता से मुक्ति, अंग्रेजी साम्राज्य का विनाश, फिरंगियों के अत्याचार, लूट और शोषण-सर्वनाश  से जनता और देश को निजात दिलाना, आजाद आदमी  की तरह मरना और जीना और भारतीय जनता के स्वाभिमान की रक्षा करना।

     उनकी लड़ाई मात्र झांसी के वास्ते नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की जनता की खातिर थी। इस संग्राम के बाद महारानी लक्ष्मीबाई भारत  के इतिहास की सबसे बड़ी बहादुर और क्रांतिकारी नायिका बनकर उभरी जो अत्याचारों के समक्ष झुकना, दबना और समर्पण करना और हार मानना नहीं बल्कि लड लड़कर, बलिदान और त्याग करके, अपना सर्वस्व स्वाहा करके अपना उद्देश्य प्राप्त करना सिखा गई  और अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए लोगों को अपने प्राण न्योछावर करना सिखा गईं।

       वे जोश, साहस और बलिदान का मार्ग प्रशस्त कर गई। वे हिंदुस्तान की आगे आने वाली पीढ़ियों को मुक्ति मार्ग दिखा गई और पूरी दुनिया और भारतीय कौम के लिए एक मिसाल बन गई, कभी न बुझने, मिटने वाली मशाल और मिसाल।

        अपने मिशन में वह किस तरह लगनशील और प्रतिबद्ध थी कि रानी ने पूरी झांसी के मर्दों, औरतों और युवक-युवतियों को तैयार किया, उनमें देश की आजादी की भावना भरी, उनमें देश पर मिटने का जज्बा पैदा किया, औरतों और मर्दों को एक मिशन की खातिर लड़ना सिखाया और उनका अद्भुत समन्वय किया। हर मोर्चे पर औरतें मर्दों का साथ देतीं, गोला बारूद तैयार  करतीं, उन्हें युद्ध के मोर्चे तक पहुंचाती और तोपें चलातीं।

     महारानी लक्ष्मीबाई ने औरतों को घर के बाहर निकाला। उन्हें पर्दे-घूंघट की गुलामी से बाहर निकाला,भारतीय घुटन भरी परंपराओं को राष्ट्रीय मुक्ति के अभियान में आडे नहीं आने दिया। औरतों को परिस्थितियों का दास नहीं, बल्कि उन पर काबू करना सिखाया। देश की खातिर उनके हाथों में तोप,  बंदूक, भाले और तलवार थमायी। उन्हें बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनाया, देश और भारत भूमि के लिए लड़ना, मरना और  अपना सर्वस्व न्यौछावर करना सिखाया। औरत मर्द को एक साथ लड़ना मरना सिखाया और उन्हें सीख दे गई कि घर की चारदीवारी में घुट घुट कर मरने से बेहतर है कि मैदान-ए-जंग में देश की खातिर अपने प्राणों की हंसते-हंसते आहुति देना।

       लक्ष्मीबाई सांप्रदायिक सद्भाव की अनुपम मिसाल हैं उन्होंने अपनी सेना में सभी जातियों और धर्मों के लोगों को शामिल किया उनकी सेना में ब्राह्मण, कांची, तेली, क्षत्रिय, कोरी ,महाराष्ट्री, बुंदेलखंडी, राजा महाराजा, पठान, मुसलमान शामिल थे। उन्होंने अपनी दासियों को अपना सहयोगी बनाया। उनकी नायब जूही थी, जासूसी विभाग की प्रधान मोतीबाई थी, तो निजी सचिव मुंदर थी। उनके सदर दरवाजे  के रक्षक सरदार खुदाबख्श थे, तोपखाने के तोपची गुलाम गौस खान, कर्नल रघुनाथ  सिंह और मोहम्मद जमा खान थे।

      महारानी ने साम्राज्यवाद का मुंह पकड़ा, उसकी चुनौती स्वीकार की, वह डरी नहीं, विचलित नहीं हुई, हार नहीं मानी, उसका आसान शिकार नहीं बनी। उन्होंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया,,, पति ,पुत्र, राज सब कुछ। वह विश्व इतिहास की सर्वश्रेष्ठ नायिका बन गई और बेगम हजरत महल के साथ भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन बैठीं। वह  आज भी इसी सिंहासन पर विराजमान है जो आगामी पीढियों का मार्गदर्शन करती रहेगी।

      लक्ष्मीबाई देशवासियों को वतन की खातिर हंसते-हंसते मरना मिटना और सब कुछ बलिदान करना सिखा गयी। आजाद, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, अश्फाक, बिस्मिल, सुभाष और आजाद हिंद सैनिकों ने लक्ष्मीबाई का हौसला जज्बा और मिसाल कायम की। वे हारी, थकी, बेबस, निराश और उदास औरतों के लिए एक हौंसला अफजाई करने वाली रोशनी हैं जो दबाव, अभाव और मजबूरियों के बोझ तले दबकर आत्मसमर्पण कर देती हैं और हालात का शिकार बनकर अपनी चेतना और जिस्म का सौदा कर बैठती हैं और वैश्या, भोग्या और माल-वस्तु बन बैठती हैं।

      महारानी लक्ष्मी बाई पर भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को बहुत नाज था और महारानी लक्ष्मीबाई की इसी वीरता, बहादुरी और शहीद होने का परिणाम देखिए कि जब सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का निर्माण किया था तो उसमें एक महिला विंग का भी निर्माण किया गया था जिसका नाम महारानी लक्ष्मी बाई के नाम पर “रानी झांसी रेजिमेंट” रखा गया था और उसकी मुखिया कैप्टन लक्ष्मी सहगल को बनाया गया था।

      आई आईए देखते हैं उनके जीवन के आखिरी क्षणों की एक झलक,,,,, रानी लक्ष्मी बाई घिर गईं, लेकिन अपने चंद सवारों के साथ वे दुश्मन के घेरे को तोड़कर निकल गईं। अंग्रेजों ने उनका पीछा किया।रानी के साथी अंग्रेजों को खत्म करते-करते हुए, एक-एक कर गिरने लगे। रानी के नए घोड़े ने बड़ा धोखा दिया। महारानी लक्ष्मी बाई ने पीछा करने वाले अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा, बाकी भाग खड़े हुए। लेकिन मुंदर समेत उनके प्राय सभी साथी भी मारे गए और रानी स्वयं बुरी तरह घायल हो गईं। उनके बचे हुए दो-तीन साथी उन्हें पास के बाबा गंगादास के आश्रम में ले गए। उन्हें पीने को पानी दिया गया और बिस्तर पर लिटाया गया। शीघ्र ही रानी ने अंतिम सांस ली। उनके साथियों ने तुरंत उनके शव को जला दिया, ताकि उनका मृत शरीर अंग्रेजों के हाथ में न पडने पाये।

      इस तरह भारतीय इतिहास की इस वीरांगना के जीवन का अंत 17 जून 1858 को सिर्फ 23 वर्ष की आयु में हुआ। यूरोप वासियों को अपनी जॉन और  आर्क पर बड़ा अभियान है। भारत की यह वीरांगना जॉन ऑफ आर्क से काफी बढ़कर थी। उनका बलिदान युगों युगों तक भारतवासियों के दिल में स्वतंत्रता की भावना प्रज्वलित करेगा। रानी की वीरता का लोहा उनके बड़े-बड़े दुश्मनों ने भी माना था। अंग्रेज अधिकारी रोज ने कहा था कि “वह उन सब में सबसे अच्छी और सबसे बहादुर थी।”

      महारानी की दृढ मान्यता थी कि यदि स्त्रियां दृढता और मजबूती का कवच पहन लें, अपने इरादे मजबूत कर लें, तो संसार का कोई भी पुरुष उन्हें लूट नहीं सकता, उनकी इज्जत से खिलवाड़ नही कर सकता। वे औरतों और मर्दों को लड़ना और अपने उद्देश्य के लिए संगठित होना सिखा गई, कायरों की तरह भागना नहीं, बल्कि तिल-तिल कर मरना, मिटना सिखा गई। भारतीय इतिहास की दुर्गा का संपूर्ण व्यक्तित्व धर्मनिरपेक्ष, संघर्षी, लड़ाकू, जनतांत्रिक, सर्व समावेशी और अनुशासित था। भारतीय जन को, औरतों मर्दों को, अपनी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक मुक्ति के लिए इन गुणों को आज अपनी जिंदगी में उतारने की सबसे ज्यादा जरूरत है। हमारी आज की बहुत सारी माताएं, बहनें, बहुऐं और बेटियां उनसे बहुत कुछ सीख सकती हैं। महारानी लक्ष्मी बाई को शत-शत नमन, वंदन और अभिनंदन और भावभीनी श्रद्धांजलि।

       भारत की आजादी की अपनी महान वीरांगना श्रद्धेय महारानी लक्ष्मीबाई के लिए हम तो यही कहेंगे,,,,

कुछ इस तरह चलीं दुनिया के साथ-साथ
गर वो नहीं तो उनकी दास्तां चले
और
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
पूरे भारत में आई थी फिर से नई जवानी थी,
गुम हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हर बोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें